नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय भारत का एक प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था, जिसकी स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 415-455 ई.) ने की थी। यह विश्वविद्यालय लगभग 800 वर्षों तक उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा। यहाँ से शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के छात्र आते थे।
यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म, दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, व्याकरण, और अन्य शास्त्रों की पढ़ाई के लिए प्रसिद्ध था। नालंदा का प्रमुख पतन 1193 ई. में हुआ, जब तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया और इसकी विशाल लाइब्रेरी (धर्मगंज) में आग लगा दी, जो महीनों तक जलती रही।
नालंदा से जुड़े हुए राजा
- कुमारगुप्त प्रथम (415-455 ई.) – नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की।
- स्कंदगुप्त (455-467 ई.) – नालंदा का विस्तार किया और इसे समृद्ध बनाया।
- हर्षवर्धन (606-647 ई.) – नालंदा को राजकीय संरक्षण दिया और कई भिक्षुओं के खर्च की व्यवस्था की।
- पाल वंश के शासक (8वीं-12वीं शताब्दी) – विशेषकर धर्मपाल और देवपाल ने नालंदा को और विकसित किया।
- बख्तियार खिलजी (1193 ई.) – नालंदा को नष्ट कर दिया और वहाँ के भिक्षुओं की हत्या कर दी।
नालंदा से जुड़ी सामान्य ज्ञान की बातें
- नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 से अधिक शिक्षक थे।
- इसकी लाइब्रेरी “धर्मगंज” कहलाती थी, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ संग्रहीत थीं।
- प्रमुख चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग यहाँ अध्ययन करने आए थे और उन्होंने इसकी महानता का वर्णन किया।
- विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए कठिन परीक्षा देनी पड़ती थी, जिसे केवल कुछ ही छात्र पास कर पाते थे।
- यहाँ महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन अन्य धर्मों और शास्त्रों का भी अध्ययन होता था।
- यह विश्वविद्यालय 9वीं से 12वीं शताब्दी तक पाल शासकों के संरक्षण में स्वर्ण युग में था।
- नालंदा को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है।
- नालंदा का नाम “नालंदा” इसलिए पड़ा क्योंकि यह ज्ञान (विद्या) का केंद्र था – “ना आलंदा” जिसका अर्थ है “जिसका ज्ञान कभी खत्म न हो”।
- 2010 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण किया, और यह एक आधुनिक विश्वविद्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
- नालंदा के अवशेष बिहार के नालंदा जिले में स्थित हैं, जो आज भी प्राचीन शिक्षा प्रणाली का गौरवशाली प्रमाण हैं।
बख्तियार खिलजी ने नालंदा को क्यों जलाया?
बख्तियार खिलजी ने 1193 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। इसके पीछे कई ऐतिहासिक और राजनीतिक कारण थे, जिनमें धार्मिक कट्टरता, सत्ता विस्तार, और भारतीय ज्ञान परंपरा को नष्ट करने की मंशा प्रमुख थी।
1. धार्मिक कट्टरता और बौद्ध संस्कृति का विरोध
- बख्तियार खिलजी एक तुर्क आक्रमणकारी था, जो इस्लाम के प्रचार और हिंदू-बौद्ध संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से भारत आया था।
- नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म और हिंदू दर्शन का एक प्रमुख केंद्र था, जिससे खिलजी को खतरा महसूस हुआ।
- उसने बौद्ध भिक्षुओं और हिंदू विद्वानों को मारकर इस ज्ञान परंपरा को खत्म करने की कोशिश की।
2. भारतीय ज्ञान-विज्ञान से अज्ञानता
- कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी संस्कृत और भारतीय ग्रंथों को नहीं समझता था।
- उसे यह भ्रम था कि इन ग्रंथों में सिर्फ धर्म से जुड़ी बातें लिखी हैं, जबकि वास्तव में इनमें चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र और विज्ञान की अद्भुत जानकारियाँ थीं।
- उसने नालंदा की विशाल लाइब्रेरी “धर्मगंज” को जलाने का आदेश दिया, जिससे हजारों दुर्लभ पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं।
3. भारत में बौद्ध धर्म और शिक्षा प्रणाली को खत्म करना
- खिलजी चाहता था कि भारत की बौद्ध शिक्षा प्रणाली पूरी तरह समाप्त हो जाए, ताकि उसकी सत्ता को कोई चुनौती न मिले।
- नालंदा उस समय विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था, जहाँ से बौद्ध धर्म के प्रचारक पूरी दुनिया में जाते थे।
- इसे नष्ट कर उसने भारत में बौद्ध धर्म को कमजोर कर दिया, जिससे बाद में बौद्ध धर्म का पतन शुरू हो गया।
4. सैन्य रणनीति और सत्ता विस्तार
- बख्तियार खिलजी बिहार और बंगाल को जीतना चाहता था, और इसके लिए उसने शिक्षा केंद्रों, मठों और धार्मिक स्थलों को नष्ट किया।
- नालंदा एक संस्कृति और विद्या का गढ़ था, जिसे खत्म कर उसने अपनी सत्ता को मजबूत किया।
5. ग्रंथों और पांडुलिपियों को जलाने का कारण
- कहा जाता है कि नालंदा की लाइब्रेरी तीन महीने तक जलती रही, क्योंकि उसमें लाखों पांडुलिपियाँ थीं।
- इन ग्रंथों में चिकित्सा विज्ञान की भी अद्भुत जानकारियाँ थीं।
- एक कथा के अनुसार, खिलजी बीमार पड़ा तो उसके दरबारियों ने उसे नालंदा के विद्वान चिकित्सकों से इलाज कराने को कहा।
- लेकिन खिलजी को विश्वास नहीं हुआ कि भारतीय ग्रंथों में चिकित्सा संबंधी ज्ञान हो सकता है।
- उसने नालंदा की सभी पांडुलिपियाँ जलवा दीं, जिससे भारत की कई दुर्लभ चिकित्सा पद्धतियाँ नष्ट हो गईं।
निष्कर्ष
बख्तियार खिलजी का नालंदा विश्वविद्यालय को जलाना भारत के इतिहास का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और बौद्धिक विनाश था।
- इससे बौद्ध धर्म कमजोर हुआ,
- भारत की ज्ञान परंपरा को गहरा आघात लगा,
- और भारतीय शिक्षा प्रणाली मध्यकाल में कमजोर हो गई।
यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है।
बख्तियार खिलजी और नालंदा विश्वविद्यालय: विनाश की कहानी
बख्तियार खिलजी एक तुर्क आक्रमणकारी था, जिसने 1193 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। यह घटना भारत के इतिहास में विद्या और संस्कृति के सबसे बड़े विनाशों में से एक मानी जाती है।
कैसे हुआ नालंदा का विनाश?
- बख्तियार खिलजी का उद्देश्य
- बख्तियार खिलजी, मोहम्मद गोरी का एक सेनापति था, जिसने बिहार और बंगाल पर हमला किया।
- उसका उद्देश्य केवल विजय पाना ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और बौद्ध शिक्षा प्रणाली को खत्म करना था।
- नालंदा पर हमला (1193 ई.)
- जब बख्तियार खिलजी बिहार पहुंचा, तो उसने बौद्ध मठों और शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाया।
- उसने नालंदा विश्वविद्यालय में भारी लूटपाट की और इसे आग लगा दी।
- नालंदा की प्रसिद्ध लाइब्रेरी “धर्मगंज” (जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ थीं) को जला दिया गया।
- पांडुलिपियों का जलना
- कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तीन महीने तक जलती रही, क्योंकि उसमें लाखों ग्रंथ थे।
- ये ग्रंथ बौद्ध धर्म, वेद, गणित, विज्ञान, चिकित्सा और दर्शन से संबंधित थे।
- बौद्ध भिक्षुओं की हत्या
- बख्तियार खिलजी ने हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी और कई को बंदी बना लिया।
- कुछ भिक्षु तिब्बत और नेपाल भाग गए, लेकिन नालंदा का पुनरुद्धार संभव नहीं हो सका।
बख्तियार खिलजी के हमले के प्रभाव
- बौद्ध धर्म का पतन – नालंदा की बर्बादी के बाद भारत में बौद्ध धर्म कमजोर हो गया।
- ज्ञान का विनाश – भारत का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र नष्ट हो गया और लाखों ग्रंथ लुप्त हो गए।
- भारतीय संस्कृति पर गहरा आघात – शिक्षा और विद्या का एक स्वर्ण युग समाप्त हो गया।
नालंदा का पुनर्जागरण
- 2010 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को दोबारा स्थापित करने का निर्णय लिया।
- आज, यह एक आधुनिक विश्वविद्यालय के रूप में फिर से अस्तित्व में आ चुका है।
बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा का विनाश भारत के इतिहास में सबसे दुखद घटनाओं में से एक माना जाता है।