Serum Protein Electrophoresis (SPEP) – identification of immunoglobulins and plasma proteins.
Serum Protein Electrophoresis (SPEP) – इम्यूनोग्लोबुलिन और प्लाज्मा प्रोटीन की पहचान।
Serum Protein Electrophoresis (SPEP) – इम्यूनोग्लोबुलिन और प्लाज्मा प्रोटीन की पहचान
यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
Serum Protein Electrophoresis (SPEP) टेस्ट शरीर में मौजूद विभिन्न प्रोटीनों की मात्रा और संरचना का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह मुख्य रूप से इम्यूनोग्लोबुलिन्स (एंटीबॉडी) और प्लाज्मा प्रोटीन की असामान्यताओं की जांच में सहायक होता है। इस टेस्ट का उपयोग विशेष रूप से मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma), क्रॉनिक इंफ्लेमेटरी डिजीज, और लिवर व किडनी से जुड़ी बीमारियों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
मुख्य उद्देश्य:
- गामा ग्लोबुलिन असंतुलन की पहचान – यह एंटीबॉडी का विश्लेषण कर इम्यून डिसऑर्डर या कैंसर की पहचान करता है।
- लिवर और किडनी डिजीज की जांच – प्लाज्मा प्रोटीन में गड़बड़ी लिवर सिरोसिस और नेफ्रोटिक सिंड्रोम का संकेत दे सकती है।
- क्रॉनिक इंफ्लेमेशन और ऑटोइम्यून डिजीज की जांच – शरीर में हो रहे किसी लंबे समय तक सूजन (Chronic Inflammation) या ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान करता है।
- मल्टीपल मायलोमा और अन्य प्लाज्मा सेल डिसऑर्डर – यह टेस्ट मल्टीपल मायलोमा, MGUS (Monoclonal Gammopathy of Undetermined Significance) और अन्य प्लाज्मा सेल विकारों की पुष्टि करता है।
इस टेस्ट से कौन-कौन सी बीमारियों का पता चलता है?
SPEP टेस्ट के जरिए निम्नलिखित बीमारियों की पहचान की जा सकती है:
1. मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma)
- यह एक प्रकार का रक्त कैंसर है जिसमें प्लाज्मा कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं और बड़ी मात्रा में मोनोक्लोनल प्रोटीन (M-protein) उत्पन्न करती हैं।
- SPEP में M-spike दिखने पर यह संकेत मिलता है कि मरीज को मल्टीपल मायलोमा हो सकता है।
2. क्रॉनिक लिवर डिजीज और सिरोसिस (Liver Cirrhosis)
- लिवर की बीमारियों में एल्ब्यूमिन का स्तर घटता है और गामा ग्लोबुलिन बढ़ जाता है।
- SPEP में पॉलीक्लोनल गामा ग्लोबुलिन वृद्धि दिखाई देती है।
3. नेफ्रोटिक सिंड्रोम और किडनी रोग
- किडनी डिजीज में एल्ब्यूमिन की कमी होती है और अल्फा-2 ग्लोबुलिन बढ़ जाता है।
- इससे शरीर में प्रोटीन की कमी और सूजन (Edema) देखी जाती है।
4. ऑटोइम्यून बीमारियां (Autoimmune Disorders)
- रूमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और ल्यूपस (SLE) जैसी बीमारियों में पॉलीक्लोनल गामा ग्लोबुलिन बढ़ जाता है।
- इन बीमारियों में इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर पर हमला करता है।
5. क्रॉनिक इंफेक्शंस और सूजन
- लंग्स, लिवर या इम्यून सिस्टम से जुड़ी क्रॉनिक इंफेक्शन में गामा ग्लोबुलिन की मात्रा बढ़ सकती है।
- HIV/AIDS जैसी स्थितियों में इम्यूनोग्लोबुलिन्स की वृद्धि देखी जाती है।
इस टेस्ट को कैसे किया जाता है?
1. सैंपल कलेक्शन (Blood Sample Collection)
- इस टेस्ट के लिए सीरम (Serum) सैंपल लिया जाता है।
- मरीज को आमतौर पर 8-12 घंटे का उपवास (Fasting) करने की सलाह दी जाती है।
- ब्लड सैंपल को एंटीकोआगुलेंट-फ्री ट्यूब में एकत्र किया जाता है और सेंटरफ्यूज करके प्लाज्मा अलग किया जाता है।
2. इलेक्ट्रोफोरेसिस प्रक्रिया
- अगारोज़ जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Agarose Gel Electrophoresis) या कैपिलरी इलेक्ट्रोफोरेसिस (Capillary Electrophoresis) का उपयोग किया जाता है।
- ब्लड सीरम को एक जेल या कैपिलरी ट्यूब में प्रवाहित किया जाता है और इलेक्ट्रिक करंट पास किया जाता है।
- प्रोटीन अलग-अलग बैंड में विभाजित हो जाते हैं और उनका विश्लेषण किया जाता है।
इस टेस्ट को करने के लिए कौन-कौन सी मशीनों का उपयोग किया जाता है?
- Capillary Electrophoresis Analyzer – यह प्लाज्मा प्रोटीन को अलग करने और उनकी मात्रात्मक जांच के लिए उपयोग होता है।
- Agarose Gel Electrophoresis System – यह पारंपरिक इलेक्ट्रोफोरेसिस विधि है, जिसमें जेल प्लेट का उपयोग किया जाता है।
- Densitometer – यह इलेक्ट्रोफोरेसिस बैंड का स्कैन कर उनके घनत्व का विश्लेषण करता है।
टेस्ट को करने के लिए कौन से रसायनों की जरूरत होती है?
- Electrophoresis Buffer Solution – इलेक्ट्रोफोरेसिस प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए।
- Agarose Gel or Capillary Tubes – प्रोटीन को अलग करने के लिए माध्यम।
- Protein Stains (Coomassie Blue, Amido Black, Silver Stain) – प्रोटीन बैंड को स्पष्ट करने के लिए।
- Densitometric Reagents – प्रोटीन की मात्रात्मक जांच के लिए।
टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे समझाया और पढ़ा जाता है?
Serum Protein Electrophoresis (SPEP) रिपोर्ट में मुख्यतः 5 प्रकार के प्रोटीन फ्रैक्शन्स देखे जाते हैं:
- एल्ब्यूमिन (Albumin) – 50-60%
- अल्फा-1 ग्लोबुलिन (Alpha-1 Globulin) – 2-4%
- अल्फा-2 ग्लोबुलिन (Alpha-2 Globulin) – 6-10%
- बीटा ग्लोबुलिन (Beta Globulin) – 8-15%
- गामा ग्लोबुलिन (Gamma Globulin) – 12-22%
रिपोर्ट की व्याख्या:
- अगर M-Spike पाया जाता है → मल्टीपल मायलोमा या MGUS हो सकता है।
- अगर एल्ब्यूमिन कम और गामा ग्लोबुलिन अधिक है → लिवर डिजीज, इंफेक्शन, या ऑटोइम्यून डिसऑर्डर हो सकता है।
- अगर अल्फा-2 ग्लोबुलिन बढ़ा हुआ है → नेफ्रोटिक सिंड्रोम का संकेत हो सकता है।
उदाहरण:
- अगर रिपोर्ट में M-Spike 3.5 g/dL दिखाता है, तो यह मल्टीपल मायलोमा का संकेत है।
- अगर एल्ब्यूमिन 2.8 g/dL और गामा ग्लोबुलिन 35% है, तो यह लिवर सिरोसिस का संकेत दे सकता है।
बीमारी के उपचार के बारे में सुझाव:
1. मल्टीपल मायलोमा का इलाज:
- कीमोथेरेपी (Chemotherapy)
- स्टेम सेल ट्रांसप्लांट
- इम्यूनोमॉड्यूलेटरी ड्रग्स (Thalidomide, Lenalidomide)
2. लिवर डिजीज का इलाज:
- जीवनशैली सुधार
- लिवर सपोर्टिव थेरेपी
- शराब और अनावश्यक दवाओं से बचाव
3. नेफ्रोटिक सिंड्रोम का इलाज:
- स्टेरॉयड थेरेपी
- ब्लड प्रेशर कंट्रोल
- हाई प्रोटीन डाइट से बचाव
निष्कर्ष:
Serum Protein Electrophoresis (SPEP) एक महत्वपूर्ण डायग्नोस्टिक टेस्ट है, जो मल्टीपल मायलोमा, लिवर डिजीज और किडनी डिसऑर्डर जैसी गंभीर बीमारियों की पहचान में मदद करता है। नियमित जांच और सही इलाज से इन बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।