न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils)
डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट (DLC) टेस्ट क्या है और यह कैसे किया जाता है?
डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट (DLC) टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) के विभिन्न प्रकारों की प्रतिशत मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। WBC मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते हैं:
- न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils)
- लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)
- मोनोसाइट्स (Monocytes)
- ईओसिनोफिल्स (Eosinophils)
- बेसोफिल्स (Basophils)
इस टेस्ट के जरिए डॉक्टर यह समझ सकते हैं कि किस प्रकार के WBC असामान्य रूप से बढ़े या घटे हुए हैं, जिससे शरीर में मौजूद संक्रमण या अन्य बीमारियों का पता चलता है।
DLC टेस्ट में न्यूट्रोफिल्स की जांच कैसे की जाती है?
न्यूट्रोफिल्स, WBC का सबसे प्रमुख प्रकार है, जो शरीर को बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
जांच की प्रक्रिया:
- ब्लड सैंपल कलेक्शन:
- मरीज के हाथ की नस से रक्त लिया जाता है।
- यह ब्लड सैंपल एंटीकोआगुलेंट युक्त ट्यूब (EDTA Tube) में रखा जाता है।
- ब्लड सैंपल की जांच:
- हेमेटोलॉजी एनालाइजर (Hematology Analyzer) के जरिए ऑटोमेटेड गणना की जाती है।
- कुछ मामलों में ब्लड स्मीयर बनाकर माइक्रोस्कोप से भी देखा जाता है।
- Leishman’s या Wright’s Stain का उपयोग करके न्यूट्रोफिल्स को अलग से पहचाना जाता है।
- परिणाम:
- न्यूट्रोफिल्स की सामान्य मात्रा 40-70% होनी चाहिए।
- यदि न्यूट्रोफिल्स अधिक या कम होते हैं, तो यह संक्रमण, सूजन, या अन्य बीमारियों की ओर संकेत करता है।
DLC टेस्ट क्यों किया जाता है?
यह टेस्ट संक्रमण, सूजन, एलर्जी, इम्यून डिसऑर्डर और कैंसर जैसी बीमारियों के निदान में मदद करता है।
मुख्य कारण:
- बैक्टीरियल और वायरल संक्रमण का पता लगाना।
- एलर्जी और अस्थमा की जांच करना।
- ल्यूकेमिया और अन्य ब्लड कैंसर की पहचान करना।
- इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी को समझना।
- बोन मैरो डिसऑर्डर का विश्लेषण करना।
DLC टेस्ट से कौन-कौन सी बीमारियों का पता चलता है?
- न्यूट्रोफिलिया (Neutrophilia) – न्यूट्रोफिल्स का बढ़ना:
- बैक्टीरियल संक्रमण (Pneumonia, Tuberculosis)
- सूजन संबंधी रोग (Arthritis, Inflammatory disorders)
- स्ट्रेस, सर्जरी या चोट के कारण
- ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर)
- न्यूट्रोपेनिया (Neutropenia) – न्यूट्रोफिल्स का घटना:
- वायरल संक्रमण (Dengue, HIV, Hepatitis)
- बोन मैरो की समस्या
- ऑटोइम्यून बीमारियाँ (Lupus, Rheumatoid arthritis)
- कीमोथेरेपी या रेडिएशन के प्रभाव
DLC टेस्ट कैसे किया जाता है?
- ऑटोमेटेड हेमेटोलॉजी एनालाइजर (Automated Hematology Analyzer)
- ब्लड सैंपल डालने के बाद, मशीन WBC के हर प्रकार की गणना करती है।
- यह रिपोर्ट को जल्दी और सटीक रूप से तैयार करता है।
- माइक्रोस्कोप द्वारा मैनुअल काउंटिंग:
- रक्त की स्लाइड तैयार की जाती है।
- Leishman’s Stain या Wright’s Stain से WBC को रंगा जाता है।
- माइक्रोस्कोप के तहत हर प्रकार के WBC की गिनती की जाती है।
DLC टेस्ट करने के लिए उपयोग की जाने वाली मशीनें
- Hematology Analyzer (CBC Analyzer Machine) – यह WBC के विभिन्न प्रकारों की गिनती करता है।
- Automated Flow Cytometry – अधिक विस्तृत और सटीक गणना के लिए।
- Microscope – मैनुअल जांच के लिए।
DLC टेस्ट करने के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायन (Reagents)
- EDTA (Ethylenediaminetetraacetic Acid) – खून को जमने से रोकने के लिए।
- Leishman’s Stain या Wright’s Stain – WBC को पहचानने के लिए।
- Buffer Solutions – pH संतुलन बनाए रखने के लिए।
DLC टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे पढ़ें और समझें? (उदाहरण सहित)
उदाहरण रिपोर्ट:
- न्यूट्रोफिल्स: 80% (सामान्य से अधिक)
- लिम्फोसाइट्स: 15% (कम)
- ईओसिनोफिल्स: 3% (सामान्य)
- मोनोसाइट्स: 2% (सामान्य)
- बेसोफिल्स: 0.5% (सामान्य)
रिपोर्ट की व्याख्या:
- यदि न्यूट्रोफिल्स 80% से अधिक हैं, तो यह बैक्टीरियल संक्रमण का संकेत हो सकता है।
- यदि लिम्फोसाइट्स की संख्या कम है, तो शरीर किसी गंभीर संक्रमण से जूझ रहा हो सकता है।
निष्कर्ष:
इस रिपोर्ट के आधार पर मरीज को बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाएँ लिख सकते हैं।
बीमारी का उपचार और सुझाव
- यदि न्यूट्रोफिल्स अधिक हैं (Neutrophilia):
- एंटीबायोटिक्स (डॉक्टर की सलाह से) लें।
- शरीर को हाइड्रेट रखें और पोषण युक्त भोजन करें।
- अगर ल्यूकेमिया की आशंका है तो बोन मैरो टेस्ट कराएँ।
- यदि न्यूट्रोफिल्स कम हैं (Neutropenia):
- विटामिन B12 और फोलिक एसिड युक्त आहार लें।
- संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें।
- यदि गंभीर रूप से कम हैं, तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत हो सकती है।
निष्कर्ष:
DLC टेस्ट शरीर में WBC के विभिन्न प्रकारों की गणना करता है और संक्रमण, एलर्जी, कैंसर और इम्यून डिसऑर्डर जैसी बीमारियों का पता लगाने में मदद करता है। यदि रिपोर्ट में कोई असामान्यता पाई जाती है, तो डॉक्टर की सलाह लेकर उचित उपचार किया जाना चाहिए। न्यूट्रोफिल्स की मात्रा में असामान्य वृद्धि या कमी शरीर में किसी बड़ी समस्या का संकेत हो सकती है, इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।