नवपाषाण काल
नवपाषाण काल (Neolithic Age) की विस्तृत जानकारी
1. नवपाषाण काल का समय-सीमा
नवपाषाण काल की शुरुआत लगभग 9000 ईसा पूर्व में हुई और यह लगभग 3000 ईसा पूर्व तक चला। हालांकि, यह समय क्षेत्रीय रूप से अलग-अलग था। भारत में नवपाषाण काल लगभग 7000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
2. नवपाषाण काल के उपभाग (Subdivisions)
नवपाषाण काल को विभिन्न क्षेत्रों और उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- पूर्वी नवपाषाण (Early Neolithic) – प्रारंभिक कृषि और पशुपालन की शुरुआत।
- मध्य नवपाषाण (Middle Neolithic) – स्थायी आवासों का निर्माण, मिट्टी के बर्तनों का विकास।
- उत्तर नवपाषाण (Late Neolithic) – उन्नत कृषि, पशुपालन, व्यापार और समाजिक संरचनाओं का विकास।
1. पूर्वी नवपाषाण काल (Early Neolithic Age) – प्रारंभिक नवपाषाण काल
समय-सीमा:
- लगभग 9000 ईसा पूर्व से 7000 ईसा पूर्व तक
- भारत में यह काल मुख्यतः 7000 ईसा पूर्व से 5000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
- कृषि की शुरुआत:
- मनुष्यों ने पहली बार अनाज (जैसे गेहूँ और जौ) उगाना शुरू किया।
- शिकार और भोजन संग्रह से कृषि आधारित जीवनशैली की ओर बदलाव हुआ।
- पशुपालन की शुरुआत:
- भेड़, बकरी और कुत्तों को पालतू बनाया गया।
- प्रारंभिक पशुपालन के प्रमाण मेहरगढ़ और बुर्जहोम में मिले हैं।
- गुफाओं और झोपड़ियों में निवास:
- लोग अस्थायी गुफाओं और कच्ची झोपड़ियों में रहते थे।
- कुछ स्थानों पर गड्ढों में बने घर (Pit Dwellings) भी मिले हैं, जैसे बुर्जहोम (कश्मीर)।
- पत्थर के औजारों का उपयोग:
- कच्चे पत्थरों से बने औजारों का उपयोग किया जाता था।
- औजारों की धार तेज करने की तकनीक विकसित हो रही थी।
- महत्वपूर्ण स्थल:
- मेहरगढ़ (पाकिस्तान) – यहाँ कृषि और पशुपालन के सबसे पुराने प्रमाण मिले हैं।
- बुर्जहोम (कश्मीर, भारत) – यहाँ गड्ढों में बने घर मिले हैं।
- कोल्डिहवा (उत्तर प्रदेश) – यहाँ सबसे पुराने चावल के प्रमाण मिले हैं।
2. मध्य नवपाषाण काल (Middle Neolithic Age) – मध्य नवपाषाण काल
समय-सीमा:
- लगभग 7000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व तक
- भारत में 5000 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक
मुख्य विशेषताएँ:
- स्थायी गाँवों की स्थापना:
- लोग स्थायी रूप से बसने लगे और मिट्टी तथा लकड़ी के घर बनाने लगे।
- बड़ी संख्या में लोग संगठित समाज में रहने लगे।
- उन्नत कृषि:
- अब लोगों ने बाजरा, चावल और अन्य फसलों की खेती शुरू कर दी।
- कृषि के साथ-साथ जल संग्रहण के भी प्रमाण मिले हैं।
- मिट्टी के बर्तन (Pottery) का विकास:
- इस काल में मिट्टी के बर्तन बनने लगे, जिन पर कला और चित्रकारी भी देखी जाती है।
- लाल और काले रंग के मिट्टी के बर्तन इस काल की प्रमुख विशेषता हैं।
- पशुपालन और व्यापार:
- गाय, भेड़, बकरी के साथ-साथ बैल और सूअर का पालन भी शुरू हुआ।
- वस्तुओं का विनिमय (Barter System) प्रारंभ हुआ।
- औजारों का विकास:
- पत्थर के औजारों को अब पॉलिश करके धारदार बनाया जाने लगा।
- लकड़ी और हड्डी से बने औजारों का उपयोग बढ़ा।
- धार्मिक गतिविधियाँ:
- पूर्वजों की पूजा, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने की परंपरा मिली है।
- लोगों ने मृत्यु के बाद कब्रों में उपयोगी वस्तुएँ रखना शुरू किया।
- महत्वपूर्ण स्थल:
- चिरांद (बिहार) – यहाँ मिट्टी के बर्तन, हड्डी के औजार और कृषि के प्रमाण मिले हैं।
- गुफ़कराल (कश्मीर) – यहाँ मिट्टी के घरों और औजारों के प्रमाण मिले हैं।
- महदहा (उत्तर प्रदेश) – यहाँ मिट्टी के घर और चावल की खेती के प्रमाण मिले हैं।
3. उत्तर नवपाषाण काल (Late Neolithic Age) – उत्तर नवपाषाण काल
समय-सीमा:
- लगभग 4000 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व तक
- भारत में 3000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक
मुख्य विशेषताएँ:
- संगठित समाज और नगरों की शुरुआत:
- बड़े गाँवों का निर्माण हुआ, जो आगे चलकर नगरों में परिवर्तित हुए।
- सामाजिक संगठन और वर्ग विभाजन की प्रक्रिया शुरू हुई।
- सिंचाई और उन्नत कृषि:
- सिंचाई के लिए नहरें और कुएँ बनाए गए।
- कृषि कार्य अधिक व्यवस्थित हुआ और बैलों का उपयोग हल चलाने में किया जाने लगा।
- कृषि उपकरणों का विकास:
- पत्थर के हल, दरांती और चाकू जैसे औजार विकसित हुए।
- बुनाई और कपड़ा उत्पादन का प्रारंभिक रूप विकसित हुआ।
- धातुओं का प्रारंभिक उपयोग:
- नवपाषाण काल के अंत में तांबे (Copper) का उपयोग प्रारंभ हुआ, जिससे अगला युग ताम्रपाषाण (Chalcolithic Age) कहलाया।
- कुछ स्थलों पर तांबे के उपकरण मिले हैं।
- धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ:
- देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा के प्रमाण मिले हैं।
- मृतकों को दफनाने की परंपरा विकसित हुई।
- महत्वपूर्ण स्थल:
- मस्की (कर्नाटक) – नवपाषाण संस्कृति के प्रमाण मिले हैं।
- पैयमपल्ली (तमिलनाडु) – यहाँ नवपाषाण युग की विकसित कृषि सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।
- अदिचनल्लूर (तमिलनाडु) – यहाँ मिट्टी के बर्तन, तांबे के उपकरण और मानव कंकाल मिले हैं।
- पूर्वी नवपाषाण काल – कृषि और पशुपालन की शुरुआत।
- मध्य नवपाषाण काल – मिट्टी के बर्तन, स्थायी गाँव और समाजिक संगठन।
- उत्तर नवपाषाण काल – नगरों की स्थापना, उन्नत कृषि और धातु का प्रारंभिक उपयोग।
इस युग ने आने वाली सभ्यताओं, जैसे सिंधु घाटी सभ्यता (Harappan Civilization) की नींव रखी।
3. नवपाषाण काल की विशेषताएँ
- कृषि की शुरुआत: मनुष्य ने पहली बार जौ, गेहूँ, चावल जैसी फसलों की खेती शुरू की।
- पशुपालन: गाय, भेड़, बकरी और कुत्तों को पालतू बनाया गया।
- मिट्टी के बर्तन: नवपाषाण काल में हाथ से बने और चाक से बने मिट्टी के बर्तन मिलते हैं।
- पॉलिश किए गए पत्थर के औजार: पत्थर के औजारों को रगड़कर धारदार बनाया गया।
- स्थायी बस्तियों की स्थापना: गुफाओं और अस्थायी आश्रयों से निकलकर लोग स्थायी गाँवों में बसने लगे।
- बुनाई और वस्त्र निर्माण: कपड़े बनाने के लिए सूती और ऊनी धागों का उपयोग शुरू हुआ।
- धर्म और आध्यात्मिकता: इस काल में पूर्वजों की पूजा, देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण और कब्रों में वस्तुएँ रखने की परंपरा मिली है।
- कला और शिल्प: नवपाषाण काल में चित्रकला और मूर्तिकला के प्रारंभिक रूप विकसित हुए।
4. नवपाषाण स्थलों की खुदाई और वैज्ञानिकों के नाम
भारत में नवपाषाण काल के कई प्रमुख पुरातात्विक स्थल खुदाई के दौरान मिले हैं। इनकी खोज करने वाले प्रमुख वैज्ञानिकों और खुदाई के वर्षों की जानकारी निम्नलिखित है:
- मेहरगढ़ (बलूचिस्तान, पाकिस्तान)
- खोजकर्ता: जीन फ्रांस्वा जारिज़ (Jean-François Jarrige)
- खुदाई का वर्ष: 1974
- विशेषता: यह भारत उपमहाद्वीप में नवपाषाण काल का सबसे प्राचीन स्थल है। यहाँ से कृषि और पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।
- बुर्जहोम (कश्मीर, भारत)
- खोजकर्ता: एच.डी. संकलिया (H.D. Sankalia)
- खुदाई का वर्ष: 1950 के दशक
- विशेषता: यहाँ गड्ढों में बने घर (Pit Dwellings) और कुत्तों को दफनाने की परंपरा के प्रमाण मिले हैं।
- गुफ़कराल (कश्मीर, भारत)
- खोजकर्ता: डॉ. टी.एन. खजारिया (T.N. Khazanchi)
- खुदाई का वर्ष: 1980 के दशक
- विशेषता: यहाँ मिट्टी के बर्तन, हड्डी के औजार और कृषि के प्रमाण मिले हैं।
- कन्हेर (महाराष्ट्र, भारत)
- खोजकर्ता: एच.डी. संकलिया (H.D. Sankalia)
- खुदाई का वर्ष: 1960 के दशक
- विशेषता: यह स्थल कृषि और पशुपालन के प्रमाण के लिए जाना जाता है।
- कोल्डिहवा और महदहा (उत्तर प्रदेश, भारत)
- खोजकर्ता: आर.सी. शर्मा (R.C. Sharma)
- खुदाई का वर्ष: 1970 के दशक
- विशेषता: यहाँ से भारत में सबसे पुराने चावल की खेती के प्रमाण मिले हैं (लगभग 6000 ईसा पूर्व)।
- चिरांद (बिहार, भारत)
- खोजकर्ता: बी.बी. लाल (B.B. Lal)
- खुदाई का वर्ष: 1970 के दशक
- विशेषता: यहाँ से पॉलिश किए गए पत्थर के औजार, हड्डी के उपकरण और मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
- मस्की (कर्नाटक, भारत)
- खोजकर्ता: एम.एस. कृष्णा (M.S. Krishna)
- खुदाई का वर्ष: 1950 के दशक
- विशेषता: यहाँ से नवपाषाण कालीन बसावटों के प्रमाण मिले हैं।
5. नवपाषाण काल से जुड़ी विशेष बातें
- नवपाषाण काल में औजारों की पॉलिशिंग तकनीक विकसित हुई, जिससे उन्हें अधिक धारदार और उपयोगी बनाया गया।
- यह काल कृषि और स्थायी बस्तियों की स्थापना का युग था, जिससे सभ्यता के विकास की नींव रखी गई।
- इस काल में धातु (तांबा) के उपयोग के कुछ प्रारंभिक प्रमाण भी मिलने लगे थे, जिससे अगला चरण ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Age) प्रारंभ हुआ।
- भारत में नवपाषाण स्थलों से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर लाल और काले रंग की चित्रकारी देखने को मिलती है।
- बुर्जहोम और गुफ़कराल जैसे स्थलों में लोग गड्ढों में घर बनाते थे, जिससे वे ठंड और दुश्मनों से बच सके।
निष्कर्ष
नवपाषाण काल मानव सभ्यता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस काल में मनुष्य ने शिकारी-संग्रहकर्ता जीवन से कृषि और स्थायी निवास की ओर कदम बढ़ाया। इस युग ने भविष्य में विकसित होने वाली सभ्यताओं की नींव रखी और मानव जीवन में स्थायित्व और सामाजिक संगठन का आधार तैयार किया। भारत में इस काल के महत्वपूर्ण स्थलों की खुदाई से हमें प्राचीन कृषि, पशुपालन, औजारों, घरों और धार्मिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती है, जो इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।