लेयुकोसाइट एल्कलाइन फॉस्फेटेज (LAP Score)
LAP Score (Leukocyte Alkaline Phosphatase) टेस्ट: विस्तृत जानकारी
1. यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
LAP स्कोर टेस्ट एक विशेष प्रकार का रक्त परीक्षण है जो श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBCs) में पाए जाने वाले अल्कलाइन फॉस्फेटेज एंजाइम के स्तर को मापता है। यह मुख्य रूप से यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि मरीज को क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (CML) या रिएक्टिव न्यूट्रोफिलिया जैसी स्थिति है या नहीं।
2. इस टेस्ट से कौन-कौन सी बीमारियों का पता चलता है?
LAP स्कोर टेस्ट निम्नलिखित बीमारियों की पहचान करने में मदद करता है:
- क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (CML): यह एक प्रकार का रक्त कैंसर है जिसमें असामान्य WBC अत्यधिक मात्रा में बनने लगते हैं। CML में LAP स्कोर कम होता है।
- रिएक्टिव न्यूट्रोफिलिया: यह एक सामान्य संक्रमण, सूजन या स्ट्रेस के कारण हो सकता है। इसमें LAP स्कोर सामान्य या बढ़ा हुआ होता है।
- पॉलीसाइथेमिया वेरा (Polycythemia Vera): यह एक रक्त विकार है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की अत्यधिक वृद्धि होती है। इसमें LAP स्कोर बढ़ा होता है।
- माइलोफाइब्रोसिस (Myelofibrosis): बोन मैरो में असामान्य रूप से फाइब्रोसिस (गांठें) बनने की बीमारी। LAP स्कोर कम या सामान्य हो सकता है।
- इन्फेक्शन और इंफ्लेमेशन: बैक्टीरियल संक्रमण, सेप्सिस, पीलिया, या प्रेग्नेंसी जैसी स्थितियों में LAP स्कोर बढ़ सकता है।
- लीवर और बोन डिजीज: हाइपरपेराथायरायडिज्म (Hyperparathyroidism) और पैगेट्स डिजीज (Paget’s Disease) जैसी बीमारियों में भी LAP स्कोर बढ़ सकता है।
3. इस टेस्ट को कैसे किया जाता है?
LAP स्कोर टेस्ट निम्नलिखित चरणों में किया जाता है:
- ब्लड सैंपल कलेक्शन:
- डॉक्टर या लैब टेक्नीशियन मरीज के हाथ की नस से रक्त का नमूना लेते हैं।
- यह रक्त को एक EDTA ट्यूब में एकत्र किया जाता है।
- स्लाइड प्रिपरेशन:
- रक्त की एक पतली परत (स्मियर) बनाई जाती है और इसे अल्कलाइन फॉस्फेटेज स्टेनिंग प्रक्रिया से रंगा जाता है।
- माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन:
- स्टेन्ड स्लाइड को माइक्रोस्कोप के तहत देखा जाता है।
- 100 न्यूट्रोफिल्स की जांच कर उनके एंजाइम एक्टिविटी स्कोर (0-4 के पैमाने पर) दर्ज किए जाते हैं।
- सभी स्कोर जोड़े जाते हैं और अंतिम LAP स्कोर निकाला जाता है।
4. इस टेस्ट को करने के लिए कौन सी मशीनों का उपयोग किया जाता है?
- ऑटोमैटेड हेमेटोलॉजी एनालाइजर: रक्त कोशिकाओं की संख्या और प्रकार की पहचान करता है।
- लाइट माइक्रोस्कोप: न्यूट्रोफिल्स में अल्कलाइन फॉस्फेटेज एंजाइम की गतिविधि देखने के लिए।
- स्पेक्ट्रोफोटोमीटर: एंजाइम के स्तर को मापने के लिए।
5. इस टेस्ट को करने के लिए कौन से रसायनों की जरूरत होती है?
- नैफ्थोल एएस-बीआई फॉस्फेट (Naphthol AS-BI Phosphate): अल्कलाइन फॉस्फेटेज गतिविधि को मापने के लिए।
- फास्ट ब्लू बी साल्ट (Fast Blue B Salt): न्यूट्रोफिल्स में एंजाइम को रंग देने के लिए।
- बफर सॉल्यूशन: पीएच स्तर को स्थिर बनाए रखने के लिए।
- ईडीटीए (EDTA): रक्त के थक्के बनने से रोकने के लिए।
6. टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे समझाया और पढ़ा जाता है?
LAP स्कोर को 0 से 400 के बीच मापा जाता है।
- कम LAP स्कोर (0-20):
- संभावित बीमारी: क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (CML)
- उदाहरण: यदि किसी मरीज का LAP स्कोर 10 है और ब्लड रिपोर्ट में WBC की संख्या बढ़ी हुई है, तो यह CML का संकेत हो सकता है।
- सामान्य LAP स्कोर (20-100):
- यह सामान्य स्वास्थ्य या हल्के संक्रमण को दर्शाता है।
- उच्च LAP स्कोर (100-400):
- संभावित बीमारी: रिएक्टिव न्यूट्रोफिलिया, पॉलीसाइथेमिया वेरा, या गंभीर संक्रमण।
- उदाहरण: यदि किसी मरीज का LAP स्कोर 200 है और मरीज को बुखार व संक्रमण के लक्षण हैं, तो यह बैक्टीरियल संक्रमण का संकेत हो सकता है।
7. बीमारी के उपचार के सुझाव
इलाज बीमारी के प्रकार पर निर्भर करता है:
- क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया (CML):
- टायरोसिन किनेज इनहिबिटर (TKI) दवाएँ (जैसे इमैटिनिब, डैसाटिनिब)
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट
- कीमोथेरेपी
- रिएक्टिव न्यूट्रोफिलिया:
- यदि संक्रमण के कारण हुआ है तो एंटीबायोटिक्स
- यदि सूजन (Inflammation) के कारण हुआ है तो एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएँ
- पॉलीसाइथेमिया वेरा:
- ब्लड लेटिंग (Phlebotomy)
- हाइड्रॉक्सीयूरिया (Hydroxyurea) जैसी दवाएँ
- मायलोफाइब्रोसिस:
- स्टेम सेल ट्रांसप्लांट
- जैक-2 इनहिबिटर (JAK2 Inhibitor) दवाएँ
निष्कर्ष
LAP स्कोर टेस्ट रक्त में न्यूट्रोफिल्स की अल्कलाइन फॉस्फेटेज गतिविधि का आकलन करने में मदद करता है। यह मुख्य रूप से क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया और रिएक्टिव न्यूट्रोफिलिया जैसी स्थितियों में भेद करने के लिए किया जाता है। कम स्कोर CML का संकेत देता है, जबकि उच्च स्कोर संक्रमण या अन्य रक्त विकारों से जुड़ा हो सकता है। रिपोर्ट की सही व्याख्या के आधार पर डॉक्टर उचित उपचार तय करते हैं, जिससे सही समय पर निदान और इलाज संभव हो पाता है।