HLA Typing (Human Leukocyte Antigen Typing): Matching test for organ transplantation (Kidney, Liver, Bone Marrow).
HLA Typing (Human Leukocyte Antigen Typing): अंग प्रत्यारोपण (Kidney, Liver, Bone Marrow) के लिए मैचिंग जांच।
HLA Typing (Human Leukocyte Antigen Typing): अंग प्रत्यारोपण के लिए मैचिंग जांच
यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
HLA टाइपिंग टेस्ट शरीर में मौजूद ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) की पहचान करने के लिए किया जाता है। यह टेस्ट मुख्य रूप से अंग प्रत्यारोपण (Kidney, Liver, Bone Marrow, Heart, Lungs, Pancreas) के लिए डोनर और रिसीवर के बीच मैचिंग सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
HLA एंटीजन प्रतिरक्षा प्रणाली को यह पहचानने में मदद करते हैं कि कौन-से टिशू शरीर के अपने हैं और कौन-से बाहरी (विदेशी) हैं। यदि अंग प्रत्यारोपण से पहले डोनर और रिसीवर के HLA एंटीजन मेल नहीं खाते, तो शरीर नए अंग को अस्वीकार (Rejection) कर सकता है।
इस टेस्ट से कौन-कौन सी बीमारियों का पता चलता है?
HLA टाइपिंग मुख्य रूप से अंग प्रत्यारोपण मैचिंग के लिए किया जाता है, लेकिन यह ऑटोइम्यून और आनुवंशिक रोगों की जांच के लिए भी उपयोगी है।
- अंग प्रत्यारोपण अस्वीकार (Organ Transplant Rejection)
- रूमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis)
- एंकाइलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis)
- टाइप-1 डायबिटीज (Type-1 Diabetes)
- सेलिएक डिजीज (Celiac Disease)
- लुपस (Systemic Lupus Erythematosus – SLE)
- न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Multiple Sclerosis, Myasthenia Gravis)
- होडगकिन्स लिम्फोमा (Hodgkin’s Lymphoma)
यह टेस्ट कैसे किया जाता है?
- ब्लड सैंपल कलेक्शन
- व्यक्ति के ब्लड या गाल की कोशिकाओं (Buccal Swab) का सैंपल लिया जाता है।
- कुछ मामलों में बोन मैरो (Bone Marrow) सैंपल भी लिया जा सकता है।
- DNA एक्सट्रैक्शन
- सैंपल से DNA को अलग (Isolate) किया जाता है।
- HLA जीन की जांच
- DNA की Polymerase Chain Reaction (PCR) और Sequencing द्वारा HLA जीन की जांच की जाती है।
- इसमें HLA-A, HLA-B, HLA-C, HLA-DR, HLA-DQ और HLA-DP नामक जीन टाइप किए जाते हैं।
- डोनर और रिसीवर के HLA प्रोफाइल की तुलना
- यदि HLA टाइपिंग मेल खाती है, तो अंग प्रत्यारोपण की संभावना बढ़ जाती है।
इस टेस्ट को करने के लिए कौन सी मशीनों का उपयोग किया जाता है?
- PCR मशीन (Polymerase Chain Reaction Machine) – DNA की कॉपी बनाने के लिए।
- DNA सीक्वेंसिंग मशीन (Next-Generation Sequencer) – HLA जीन का विश्लेषण करने के लिए।
- फ्लो साइटोमीटर (Flow Cytometer) – एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया की जांच के लिए।
- हाइब्रिड कैप्चर मशीन (Hybrid Capture System) – HLA जीन के विशिष्ट सीक्वेंस की पहचान के लिए।
- एलिजा रीडर (ELISA Reader) – इम्यूनोलॉजिकल प्रतिक्रिया को मापने के लिए।
टेस्ट को करने के लिए कौन से रसायनों की जरूरत होती है?
- DNA एक्सट्रैक्शन किट (DNA Isolation Kit)
- PCR रिएक्टेंट्स (PCR Master Mix, Primers, Nucleotides)
- Fluorescent Dye या Radioactive Probes
- Sequencing Buffers and Enzymes
- Hybridization Probes for HLA Detection
टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे समझाया और पढ़ा जाता है?
HLA टाइपिंग रिपोर्ट में व्यक्ति के HLA एंटीजन टाइप को दिखाया जाता है, जिसे डोनर के HLA प्रोफाइल से मिलाया जाता है।
HLA Matching Interpretation
- 100% मैच (Full Match) → अंग प्रत्यारोपण की सफलता की संभावना सबसे अधिक।
- 50% मैच (Partial Match) → प्रत्यारोपण संभव, लेकिन इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं की जरूरत होगी।
- कम मैच (Poor Match) → प्रत्यारोपण का असफल होने का जोखिम अधिक।
उदाहरण:
केस 1:
- 35 वर्षीय मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी।
- HLA टाइपिंग में भाई का HLA 100% मेल खा गया।
- डॉक्टरों ने किडनी प्रत्यारोपण को सफल घोषित किया।
केस 2:
- 50 वर्षीय मरीज को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत थी।
- HLA टाइपिंग में बेटा 50% मैच कर पाया।
- डॉक्टरों ने इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं के साथ ट्रांसप्लांट की सलाह दी।
बीमारी के उपचार के बारे में सुझाव
1. अंग प्रत्यारोपण से पहले तैयारी
- सही डोनर का चयन करें।
- संक्रमण से बचने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को जांचें।
2. इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी (Immune Suppressive Therapy)
- प्रत्यारोपण के बाद, शरीर अंग को अस्वीकार न करे, इसके लिए Tacrolimus, Cyclosporine, Mycophenolate Mofetil जैसी दवाएं दी जाती हैं।
3. संक्रमण से बचाव
- अंग प्रत्यारोपण के बाद एंटीबायोटिक्स और एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं।
4. जीवनशैली में सुधार
- धूम्रपान और शराब से बचें।
- संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करें।
निष्कर्ष
HLA टाइपिंग टेस्ट अंग प्रत्यारोपण की सफलता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यदि डोनर और रिसीवर के HLA एंटीजन मेल खाते हैं, तो प्रत्यारोपण की संभावना बढ़ जाती है और अस्वीकृति (Rejection) का खतरा कम हो जाता है। साथ ही, यह टेस्ट ऑटोइम्यून बीमारियों और आनुवंशिक विकारों की पहचान में भी सहायक होता है।