Glucan Test (1,3-β-D-glucan Test): To detect invasive fungal infections.
1,3-β-D-ग्लूकेन टेस्ट (Beta-D-Glucan Test)
यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
1,3-β-D-ग्लूकेन टेस्ट एक सीरम आधारित रक्त परीक्षण है, जिसका उपयोग गंभीर और आंतरिक फंगल संक्रमण (Invasive Fungal Infections – IFI) का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- यह फंगल कोशिका भित्ति (Cell Wall) में पाए जाने वाले 1,3-β-D-ग्लूकेन नामक पॉलीसेकेराइड का पता लगाता है।
- यह परीक्षण उन रोगियों के लिए महत्वपूर्ण होता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है (जैसे कि कैंसर, एचआईवी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, या लंबे समय तक आईसीयू में भर्ती मरीज)।
- यह त्वरित निदान में मदद करता है, जिससे गंभीर फंगल संक्रमण का इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है।
इस टेस्ट से किन बीमारियों का पता चलता है?
यह टेस्ट निम्नलिखित इनवेसिव फंगल संक्रमणों (Invasive Fungal Infections – IFI) की पहचान के लिए किया जाता है:
- इनवेसिव कैंडिडायसिस (Invasive Candidiasis)
- यह संक्रमण खून, किडनी, लीवर, और हृदय (Endocarditis) को प्रभावित कर सकता है।
- सामान्य कारण: Candida albicans, Candida glabrata, Candida tropicalis।
- एस्परगिलोसिस (Invasive Aspergillosis)
- यह संक्रमण फेफड़ों, साइनस, और ब्रेन में हो सकता है।
- सामान्य कारण: Aspergillus fumigatus, Aspergillus flavus।
- प्युमोसिस (Pneumocystis pneumonia – PCP)
- यह संक्रमण एचआईवी, कैंसर, या ट्रांसप्लांट मरीजों में फेफड़ों को प्रभावित करता है।
- कारण: Pneumocystis jirovecii।
- फंगल सेप्सिस (Fungal Sepsis)
- यह गंभीर संक्रमण ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन के कारण होता है।
नोट: यह टेस्ट Cryptococcus और Mucormycosis जैसी फंगल बीमारियों का निदान नहीं कर सकता, क्योंकि इन फंगस की सेल वॉल में 1,3-β-D-ग्लूकेन नहीं होता।
1,3-β-D-ग्लूकेन टेस्ट कैसे किया जाता है?
1. सैंपल कलेक्शन (Sample Collection)
- रक्त (Serum) का नमूना लिया जाता है।
- EDTA या Heparin ट्यूब का उपयोग नहीं किया जाता, क्योंकि वे ग्लूकेन स्तर को प्रभावित कर सकते हैं।
2. टेस्ट प्रोसेसिंग (Test Processing)
- एलिसा (ELISA) आधारित विधि का उपयोग किया जाता है।
- इसमें रक्त में 1,3-β-D-ग्लूकेन की मात्रा मापी जाती है।
- परिणाम ng/mL में मापे जाते हैं।
इस टेस्ट के लिए उपयोग की जाने वाली मशीनें
- माइक्रोप्लेट रीडर (Microplate Reader) – ELISA आधारित जांच के लिए।
- स्पेक्ट्रोफोटोमीटर – रंग परिवर्तन मापने के लिए।
- सेंट्रीफ्यूज (Centrifuge) – ब्लड सैंपल प्रोसेस करने के लिए।
- ऑटोमेटेड फंगल बायोमार्कर एनालाइजर – आधुनिक प्रयोगशालाओं में उपयोग किया जाता है।
इस टेस्ट के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायन
- एलिसा किट (ELISA Kit) – 1,3-β-D-ग्लूकेन डिटेक्शन के लिए।
- सब्सट्रेट रिएजेंट (Substrate Reagent) – रंग प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए।
- स्टॉप सॉल्यूशन (Stop Solution) – रिएक्शन रोकने के लिए।
- कंट्रोल सैंपल (Positive and Negative Controls) – टेस्ट की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए।
रिपोर्ट कैसे पढ़ें और समझें?
1. सामान्य (Negative) रिपोर्ट:
- < 60 pg/mL → कोई इनवेसिव फंगल संक्रमण नहीं है।
2. संदेहास्पद (Intermediate) रिपोर्ट:
- 60-80 pg/mL → संक्रमण की संभावना है, लेकिन पुष्टि के लिए अन्य परीक्षणों की आवश्यकता है।
3. पॉजिटिव रिपोर्ट:
- > 80 pg/mL → इनवेसिव फंगल संक्रमण की संभावना बहुत अधिक है।
- इस स्थिति में अतिरिक्त माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्ट (Culture, PCR, Galactomannan Test) किए जाते हैं।
उदाहरण:
एक कैंसर मरीज का 1,3-β-D-ग्लूकेन स्तर 120 pg/mL आता है। इसका मतलब है कि मरीज में Invasive Candidiasis या Aspergillosis होने की संभावना अधिक है।
इन बीमारियों का इलाज कैसे किया जाता है?
1. एंटीफंगल दवाएँ (Antifungal Medications)
- इनवेसिव कैंडिडायसिस (Invasive Candidiasis):
- Fluconazole (Mild Cases)
- Echinocandins (Caspofungin, Micafungin – Severe Cases)
- एस्परगिलोसिस (Invasive Aspergillosis):
- Voriconazole
- Amphotericin B (Severe Cases)
- Pneumocystis Pneumonia (PCP):
- Trimethoprim-Sulfamethoxazole (Bactrim)
2. हॉस्पिटल में एडमिशन और IV थेरेपी
- गंभीर मामलों में मरीज को आईसीयू में भर्ती कर IV एंटीफंगल थेरेपी दी जाती है।
3. इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड मरीजों की देखभाल
- ऑर्गन ट्रांसप्लांट और कैंसर मरीजों में एंटीफंगल प्रोफिलैक्सिस (Preventive Antifungal Therapy) दी जाती है।
निष्कर्ष
- 1,3-β-D-ग्लूकेन टेस्ट इनवेसिव फंगल संक्रमण का जल्दी और प्रभावी निदान करने में मदद करता है।
- >80 pg/mL का स्तर पॉजिटिव संक्रमण का संकेत देता है।
- Candida, Aspergillus, और Pneumocystis संक्रमण की पुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है।
- तेजी से इलाज (Voriconazole, Amphotericin B, Echinocandins) से मरीज की जान बचाई जा सकती है।
यह टेस्ट उन मरीजों के लिए जीवनरक्षक हो सकता है, जिनमें संक्रमण का जल्दी पता लगाना जरूरी होता है!