Flow Cytometry – Detection of Leukemia (Blood Cancer)

फ्लो साइटोमेट्री (Flow Cytometry) – ल्यूकेमिया (Blood Cancer) की जांच

फ्लो साइटोमेट्री (Flow Cytometry) – ल्यूकेमिया (Blood Cancer) की जांच

1. यह टेस्ट क्यों किया जाता है?

फ्लो साइटोमेट्री एक विशेष लैब तकनीक है जो रक्त, अस्थि मज्जा (Bone Marrow), लिम्फ नोड्स, और अन्य ऊतकों में मौजूद कोशिकाओं का विश्लेषण करने के लिए की जाती है। यह विशेष रूप से ल्यूकेमिया (Leukemia) और लिंफोमा (Lymphoma) जैसी रक्त संबंधी बीमारियों की पहचान करने में मदद करता है।

यह टेस्ट इसलिए किया जाता है क्योंकि:

  • यह रक्त और बोन मैरो में असामान्य कोशिकाओं की उपस्थिति और प्रकार की पहचान करता है।
  • यह ल्यूकेमिया के प्रकार (Acute या Chronic) को निर्धारित करने में मदद करता है।
  • यह कैंसर कोशिकाओं में विशिष्ट बायोमार्कर (Surface Antigens) का पता लगाकर सही इलाज की योजना बनाने में सहायता करता है।
  • यह कैंसर के इलाज के प्रभाव का आकलन करने के लिए भी किया जाता है।

2. इस टेस्ट से कौन-कौन सी बीमारियों का पता चलता है?

फ्लो साइटोमेट्री टेस्ट निम्नलिखित रक्त और प्रतिरक्षा संबंधी बीमारियों का पता लगाने में मदद करता है:

  1. ल्यूकेमिया (Leukemia)
    • Acute Lymphoblastic Leukemia (ALL) – यह बच्चों में सबसे आम प्रकार का ब्लड कैंसर है।
    • Acute Myeloid Leukemia (AML) – यह अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है।
    • Chronic Lymphocytic Leukemia (CLL) – धीमी गति से बढ़ने वाला ब्लड कैंसर।
    • Chronic Myeloid Leukemia (CML) – ल्यूकेमिया का एक दीर्घकालिक प्रकार।
  2. लिंफोमा (Lymphoma)
    • Hodgkin’s Lymphoma
    • Non-Hodgkin’s Lymphoma
  3. मायलोमा (Multiple Myeloma) – प्लाज्मा कोशिकाओं से संबंधित कैंसर।
  4. मायलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम (Myelodysplastic Syndrome) – बोन मैरो में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि।
  5. इम्यूनोडेफिशिएंसी डिसऑर्डर (Immunodeficiency Disorders) – शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी समस्याएँ।

3. इस टेस्ट को कैसे किया जाता है?

फ्लो साइटोमेट्री टेस्ट निम्नलिखित चरणों में किया जाता है:

1. सैंपल कलेक्शन

  • रक्त (Blood Sample), बोन मैरो एस्पिरेशन (Bone Marrow Aspiration), लिम्फ नोड बायोप्सी (Lymph Node Biopsy) या अन्य ऊतक (Tissue) का नमूना लिया जाता है।

2. सैंपल प्रोसेसिंग

  • कोशिकाओं को अलग किया जाता है और उन्हें विशेष फ्लो साइटोमेट्री डाई (Fluorescent Dyes) से रंगा जाता है।
  • ये डाई कोशिकाओं पर मौजूद विशेष एंटीजन (Biomarkers) से जुड़ती हैं।

3. फ्लो साइटोमेट्री मशीन (Flow Cytometer) में विश्लेषण

  • कोशिकाओं को लेजर बीम के सामने प्रवाहित किया जाता है।
  • जब लेजर बीम कोशिकाओं पर पड़ता है, तो कोशिकाएँ फ्लोरोसेंट सिग्नल उत्पन्न करती हैं।
  • मशीन इन सिग्नलों को डिटेक्ट कर विश्लेषण करती है।

4. डेटा विश्लेषण

  • प्राप्त डेटा को ग्राफ और चार्ट के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
  • डॉक्टर इस डेटा का अध्ययन कर यह समझते हैं कि कौन सी कोशिकाएँ असामान्य हैं और कौन सा ब्लड कैंसर मौजूद है।

4. इस टेस्ट को करने के लिए कौन सी मशीनों का उपयोग किया जाता है?

  • फ्लो साइटोमीटर (Flow Cytometer): कोशिकाओं की पहचान और विश्लेषण करता है।
  • लेजर सिस्टम: कोशिकाओं पर प्रकाश डालकर उनकी विशेषताओं को उजागर करता है।
  • फ्लोरोसेंट डिटेक्टर: कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले प्रकाश संकेतों को मापता है।
  • कंप्यूटर आधारित सॉफ़्टवेयर: डेटा को ग्राफ और चार्ट के रूप में प्रस्तुत करता है।

5. इस टेस्ट को करने के लिए कौन से रसायनों की जरूरत होती है?

  • फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी डाई (Fluorescent Antibody Dyes): कोशिकाओं के विशिष्ट एंटीजन को पहचानने के लिए।
  • PBS (Phosphate Buffered Saline): कोशिकाओं को स्थिर रखने के लिए।
  • फिक्सेटिव सॉल्यूशन (Fixative Solution): कोशिकाओं को स्थिर और संरक्षित रखने के लिए।
  • फ्लो साइटोमेट्री बफर: सैंपल को मशीन में प्रवाहित करने के लिए।

6. टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे समझाया और पढ़ा जाता है?

रिपोर्ट को समझने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाता है:

  • ब्लास्ट सेल्स (Blast Cells): यदि बोन मैरो या रक्त में 20% से अधिक ब्लास्ट सेल्स हैं, तो यह Acute Leukemia का संकेत है।
  • CD मार्कर्स (Cluster of Differentiation Markers): ये विशिष्ट कोशिका एंटीजन होते हैं।
    • CD19, CD20: B-Cell Leukemia या Lymphoma का संकेत देते हैं।
    • CD3, CD4, CD8: T-Cell Leukemia से जुड़े होते हैं।
    • CD34, HLA-DR: Acute Leukemia का संकेत देते हैं।
  • साइड स्कैटर और फॉरवर्ड स्कैटर डेटा: कोशिकाओं के आकार और संरचना को दर्शाता है।

उदाहरण:
यदि किसी मरीज की रिपोर्ट में CD19 और CD10 पॉजिटिव हैं, तो यह B-Cell Acute Lymphoblastic Leukemia (B-ALL) का संकेत हो सकता है।

7. बीमारी के उपचार के सुझाव

इलाज बीमारी के प्रकार और स्टेज पर निर्भर करता है:

  • Acute Leukemia (ALL, AML):
    • कीमोथेरेपी (Chemotherapy)
    • बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant)
    • टारगेटेड थेरेपी (Targeted Therapy)
  • Chronic Leukemia (CML, CLL):
    • टायरोसिन किनेज इनहिबिटर (Tyrosine Kinase Inhibitors) जैसे इमैटिनिब (Imatinib)
    • इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy)
  • Lymphoma:
    • रेडिएशन थेरेपी (Radiation Therapy)
    • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी (Monoclonal Antibody Therapy)
  • Multiple Myeloma:
    • स्टेरॉयड थेरेपी (Steroid Therapy)
    • ऑटोमेटेड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant)

निष्कर्ष

फ्लो साइटोमेट्री टेस्ट ल्यूकेमिया, लिंफोमा और अन्य रक्त विकारों की सटीक पहचान करने के लिए एक उन्नत तकनीक है। यह कैंसर कोशिकाओं में मौजूद बायोमार्कर्स को पहचानकर सही निदान और उपचार में मदद करता है। इस टेस्ट से डॉक्टर यह तय कर सकते हैं कि मरीज को कीमोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी या बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत है या नहीं। यदि ल्यूकेमिया का जल्दी पता लगा लिया जाए, तो इलाज की सफलता की संभावना अधिक होती है।

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