डी-डाइमर टेस्ट (D-Dimer Test)
डी-डाइमर टेस्ट (D-Dimer Test) की विस्तृत जानकारी
1. डी-डाइमर टेस्ट क्यों किया जाता है?
डी-डाइमर टेस्ट रक्त में डी-डाइमर प्रोटीन के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। डी-डाइमर एक प्रकार का प्रोटीन अंश (Protein Fragment) होता है, जो तब बनता है जब रक्त का थक्का (Clot) घुलता है। आमतौर पर, शरीर में बनने वाले छोटे-मोटे रक्त के थक्के खुद ही घुल जाते हैं और डी-डाइमर का स्तर बहुत कम रहता है।
यदि शरीर में कहीं अत्यधिक थक्के (Clot) बन रहे हैं और टूट रहे हैं, तो डी-डाइमर का स्तर बढ़ जाता है। इसलिए, यह टेस्ट उन स्थितियों में किया जाता है जहां डॉक्टर को अनुचित रक्त के थक्के (Abnormal Blood Clots) बनने की संभावना हो।
डी-डाइमर टेस्ट की आवश्यकता तब होती है जब:
- मरीज को डीप वेन थ्रॉम्बोसिस (DVT) या फेफड़ों में रक्त के थक्के (Pulmonary Embolism – PE) का संदेह हो।
- मरीज को स्ट्रोक (Stroke) या हार्ट अटैक (Heart Attack) हुआ हो।
- डिसेमिनेटेड इंट्रावास्कुलर कोगुलेशन (DIC) जैसी गंभीर स्थिति की जांच करनी हो।
- कोविड-19, कैंसर या अन्य बीमारियों में ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम बढ़ गया हो।
- गर्भावस्था के दौरान या इसके तुरंत बाद रक्त के थक्कों से जुड़ी समस्याओं की जांच करनी हो।
2. इस टेस्ट से किन-किन बीमारियों का पता चलता है?
- डीप वेन थ्रॉम्बोसिस (DVT): पैरों की नसों में रक्त के थक्के जम जाते हैं, जिससे सूजन और दर्द होता है।
- पल्मोनरी एंबोलिज़्म (PE): फेफड़ों में रक्त के थक्के पहुंच जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत और छाती में दर्द होता है।
- स्ट्रोक (Stroke): मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे लकवे (Paralysis) जैसी स्थिति बन सकती है।
- डिसेमिनेटेड इंट्रावास्कुलर कोगुलेशन (DIC): शरीर में अत्यधिक थक्के बनने और घुलने की प्रक्रिया अनियंत्रित हो जाती है, जिससे खून बहने या अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है।
- कोविड-19 और अन्य संक्रमणों में ब्लड क्लॉटिंग: गंभीर संक्रमणों में डी-डाइमर का स्तर बढ़ जाता है, जिससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
- कैंसर: कुछ प्रकार के कैंसर में रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जिससे डी-डाइमर का स्तर ऊंचा हो सकता है।
- प्रेग्नेंसी में ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर: गर्भावस्था के दौरान या डिलीवरी के बाद कुछ महिलाओं में ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ जाता है।
3. यह टेस्ट कैसे किया जाता है?
- ब्लड सैंपल लिया जाता है – नस (Vein) से रक्त निकालकर एक विशेष ट्यूब में रखा जाता है।
- ब्लड को सेंट्रीफ्यूज किया जाता है – जिससे प्लाज्मा को अलग किया जाता है।
- कोगुलेशन एनालाइज़र या ELISA टेस्ट के जरिए डी-डाइमर की मात्रा मापी जाती है।
4. इस टेस्ट को करने के लिए कौन-कौन सी मशीनों का उपयोग किया जाता है?
- कोगुलेशन एनालाइज़र (Coagulation Analyzer) – रक्त में डी-डाइमर की मात्रा मापने के लिए।
- ELISA (Enzyme-Linked Immunosorbent Assay) मशीन – डी-डाइमर का स्तर जांचने के लिए एक और सटीक तकनीक।
- इम्यूनोटर्बिडोमेट्रिक एनालाइज़र (Immunoturbidometric Analyzer) – तेजी से डी-डाइमर का पता लगाने के लिए।
5. इस टेस्ट को करने के लिए कौन-कौन से रसायनों की जरूरत होती है?
- डी-डाइमर एंटीबॉडी रिएजेंट (D-Dimer Antibody Reagent) – डी-डाइमर के अंश को पहचानने के लिए।
- सोडियम साइट्रेट (Sodium Citrate) – रक्त को थक्के बनने से रोकने के लिए।
- बफर सॉल्यूशन (Buffer Solution) – सैंपल को स्टेबल रखने के लिए।
6. टेस्ट की रिपोर्ट को कैसे समझें?
सामान्य डी-डाइमर स्तर: 0.5 माइक्रोग्राम/मिलीलीटर (µg/mL) से कम होता है।
डी-डाइमर का स्तर अगर बढ़ा हुआ हो तो:
- 0.5 – 1.0 µg/mL: हल्की ब्लड क्लॉटिंग या संक्रमण हो सकता है।
- 1.0 – 5.0 µg/mL: डीवीटी, पल्मोनरी एंबोलिज़्म, स्ट्रोक, हार्ट अटैक या अन्य कोगुलेशन विकार हो सकते हैं।
- >5.0 µg/mL: गंभीर डीआईसी, कैंसर, कोविड-19 में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या हो सकती है।
उदाहरण:
- अगर किसी मरीज का डी-डाइमर 3.5 µg/mL आया है, तो डॉक्टर डीवीटी, पल्मोनरी एंबोलिज़्म या स्ट्रोक की संभावना की जांच करेंगे।
- अगर किसी कोविड-19 मरीज का डी-डाइमर 6.0 µg/mL से ज्यादा है, तो यह गंभीर क्लॉटिंग के संकेत हो सकते हैं और उसे एंटीकोएगुलेंट थेरेपी दी जा सकती है।
7. बीमारियों के उपचार के सुझाव
- अगर डी-डाइमर का स्तर अधिक (>0.5 µg/mL) है, तो:
- ब्लड थिनर (Anticoagulants) जैसे हेपरिन (Heparin) या वारफेरिन (Warfarin) दी जाती हैं।
- डीवीटी या पल्मोनरी एंबोलिज़्म के मामले में, मरीज को एल्ब्यूमिन और ऑक्सीजन थेरेपी दी जा सकती है।
- यदि डीआईसी जैसी स्थिति है, तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन और क्रायोप्रेसिपिटेट दिया जा सकता है।
- कैंसर के मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग के इलाज के लिए विशेष एंटीकोएगुलेंट दिए जाते हैं।
- अगर डी-डाइमर का स्तर सामान्य (<0.5 µg/mL) है, तो:
- आमतौर पर, रक्त में कोई खतरनाक थक्का नहीं बना है, और कोई विशेष इलाज की जरूरत नहीं होती।
- अगर डी-डाइमर का स्तर बहुत ज्यादा (>5.0 µg/mL) है, तो:
- मरीज को आईसीयू में भर्ती किया जा सकता है।
- शरीर में ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए ऑक्सीजन थेरेपी दी जाती है।
- किसी भी गंभीर स्थिति में फाइब्रिनोलाइटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) दी जाती है, जिससे खतरनाक थक्के टूट सकें।
निष्कर्ष
डी-डाइमर टेस्ट शरीर में अनावश्यक रक्त के थक्के बनने और घुलने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह डीवीटी, पल्मोनरी एंबोलिज़्म, स्ट्रोक, डीआईसी, कोविड-19, और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की पहचान में मदद करता है। यदि रिपोर्ट में डी-डाइमर का स्तर बढ़ा हुआ आता है, तो डॉक्टर स्थिति के अनुसार उचित उपचार और ब्लड थिनर दवाएं देते हैं।