19वीं एवं 20वीं शताब्दी में सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आंदोलन

19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत में कई सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों की शुरुआत हुई, जिनका उद्देश्य समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना और आधुनिकता को अपनाना था। इन आंदोलनों का प्रभाव भारतीय समाज पर गहरा पड़ा और इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को भी प्रेरित किया।

19वीं शताब्दी के सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन

  1. ब्रह्म समाज (1828)
    राजा राम मोहन राय ने 1828 में कोलकाता में ब्रह्म समाज की स्थापना की। यह आंदोलन मूर्तिपूजा, सती प्रथा और जाति-प्रथा का विरोध करता था। इसने एकेश्वरवाद को अपनाने और पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
  2. आर्य समाज (1875)
    स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। यह आंदोलन वेदों को सर्वोच्च धार्मिक ग्रंथ मानता था और मूर्तिपूजा, जातिवाद, बाल विवाह और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ था। आर्य समाज ने “वेदों की ओर लौटो” (वेदिक समाज की पुनर्स्थापना) का नारा दिया।
  3. प्रार्थना समाज (1867)
    मुंबई में इसकी स्थापना आत्माराम पांडुरंग ने की थी। इसका उद्देश्य जातिवाद, छुआछूत, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करना और विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना था।
  4. रामकृष्ण मिशन (1897)
    स्वामी विवेकानंद ने 1897 में बेलूर मठ (पश्चिम बंगाल) में इस आंदोलन की नींव रखी। इसका उद्देश्य समाजसेवा, शिक्षा और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देना था। यह संगठन अब भी विश्वभर में कार्य कर रहा है।
  5. अहमदिया आंदोलन (1889)
    मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने 1889 में पंजाब के क़ादियान से इस आंदोलन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य इस्लाम के मूल संदेश को फैलाना और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना था।
  6. थियोसोफिकल सोसाइटी (1875, भारत में 1882)
    यह आंदोलन एनी बेसेंट और एच.एस. ओलकॉट के नेतृत्व में चला। इसका मुख्यालय 1882 में मद्रास (अब चेन्नई) में स्थापित किया गया। यह हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्मों के बीच समानता पर जोर देता था।

20वीं शताब्दी के सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन

  1. सत्यशोधक समाज (1873, प्रभाव 20वीं शताब्दी में अधिक)
    ज्योतिबा फुले ने 1873 में पुणे में इसकी स्थापना की थी, लेकिन 20वीं सदी में इस आंदोलन का प्रभाव अधिक रहा। यह शूद्रों और अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करता था।
  2. अखाड़ा आंदोलन (1916)
    भगत सिंह, स्वामी सहजानंद सरस्वती जैसे नेताओं ने किसानों को संगठित करने के लिए इस आंदोलन को चलाया। यह जमींदारी प्रथा के खिलाफ था और किसानों के अधिकारों की मांग करता था।
  3. हरिजन आंदोलन (1932)
    महात्मा गांधी ने 1932 में इस आंदोलन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य दलितों के लिए मंदिर प्रवेश, शिक्षा और रोजगार में सुधार लाना था। गांधीजी ने दलितों को “हरिजन” (भगवान के लोग) कहकर संबोधित किया।
  4. नारी सुधार आंदोलन
    20वीं शताब्दी में महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, दहेज प्रथा के खिलाफ कई आंदोलन हुए। इनमें सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई और एनी बेसेंट जैसी प्रमुख हस्तियों ने योगदान दिया।
  5. स्वदेशी आंदोलन (1905)
    बंगाल विभाजन के खिलाफ यह आंदोलन शुरू हुआ। इसमें विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और भारतीय उत्पादों को बढ़ावा दिया गया। यह आंदोलन भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने की भी कोशिश कर रहा था।
  6. डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा दलित सुधार आंदोलन (1920-50)
    अंबेडकर ने अछूतों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन चलाए। 1927 में उन्होंने महाड़ सत्याग्रह किया, जिसमें दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी पीने का अधिकार दिलाने की मांग की गई। 1930 में उन्होंने कालाराम मंदिर आंदोलन शुरू किया, जिसमें दलितों के लिए मंदिर प्रवेश की मांग की गई।

सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन से जुड़े हुए महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (MPPSC)

Scroll to Top