सेबी का इतिहास

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) का इतिहास – विस्तृत जानकारी

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) भारत में शेयर बाजार और वित्तीय प्रतिभूतियों का मुख्य नियामक निकाय है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की सुरक्षा और शेयर बाजार में पारदर्शिता बनाए रखना था। SEBI का विकास कई चरणों में हुआ, जिसमें इसे धीरे-धीरे कानूनी शक्तियाँ और अधिकार मिले।


1. SEBI की स्थापना और प्रारंभिक दौर (1988-1992)

1.1. स्थापना का कारण

  • 1980 के दशक में भारत के शेयर बाजार में धोखाधड़ी और घोटाले बढ़ रहे थे।
  • दलालों (Brokers) द्वारा निवेशकों के शोषण की घटनाएँ सामने आ रही थीं।
  • कंपनियाँ बिना उचित नियंत्रण के पूँजी जुटा रही थीं, जिससे इनसाइडर ट्रेडिंग और अन्य अनैतिक व्यापारिक गतिविधियाँ हो रही थीं।

1.2. गैर-सांविधिक निकाय (Non-Statutory Body) के रूप में शुरुआत (1988)

  • 12 अप्रैल 1988 को भारत सरकार ने SEBI को गैर-सांविधिक निकाय (Non-Statutory Body) के रूप में स्थापित किया।
  • इसका उद्देश्य शेयर बाजार की गतिविधियों पर नजर रखना था, लेकिन इसके पास कोई विधायी (Legal) शक्तियाँ नहीं थीं।

2. SEBI को कानूनी अधिकार (1992)

2.1. घोटालों के कारण कड़े नियमों की जरूरत

  • 1992 में प्रसिद्ध हर्षद मेहता शेयर बाजार घोटाला हुआ, जिसने बाजार में धोखाधड़ी और नियमों की कमजोरियों को उजागर किया।
  • सरकार ने शेयर बाजार को पारदर्शी और नियंत्रित करने के लिए SEBI को कानूनी अधिकार देने का निर्णय लिया।

2.2. SEBI अधिनियम, 1992 – कानूनी दर्जा प्राप्त हुआ

  • सेबी अधिनियम, 1992 (SEBI Act, 1992) लागू किया गया, जिससे SEBI को एक स्वतंत्र सांविधिक (Statutory) निकाय बना दिया गया।
  • SEBI को प्रतिभूति बाजार (Securities Market) को विनियमित (Regulate) और नियंत्रित (Supervise) करने की शक्ति दी गई।
  • अब यह बाजार के दलालों, कंपनियों और निवेशकों पर कानूनी कार्रवाई कर सकता था।

3. SEBI की प्रमुख शक्तियों और सुधारों का विकास

3.1. 1995 – जाँच और दंड देने की शक्ति

  • 1995 में, सरकार ने SEBI को विशेष शक्तियाँ प्रदान कीं।
  • अब SEBI के पास यह अधिकार था कि वह शेयर बाजार में अनियमितताओं की जाँच कर सके और दंडात्मक कार्रवाई कर सके।
  • इसके तहत, दलालों, म्यूचुअल फंड कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थानों पर SEBI का नियंत्रण मजबूत हुआ।

3.2. 2002 – धोखाधड़ी रोकने के लिए सख्त कदम

  • 2001 में केतन पारेख शेयर घोटाला सामने आया, जिससे शेयर बाजार में एक और बड़ा संकट आया।
  • 2002 में SEBI को और मजबूत बनाया गया और इसमें Fraudulent & Unfair Trade Practices (FUTP) Regulations जोड़े गए।
  • अब SEBI को Inside Trading (अंदरूनी व्यापार) रोकने के लिए भी शक्तियाँ प्रदान की गईं।

3.3. 2014 – सर्च और सीज़र (Search & Seizure) की शक्ति

  • 2013-14 में संसद ने SEBI को विशेष शक्तियाँ दीं।
  • अब SEBI को किसी भी कंपनी या व्यक्ति के ऑफिस में जाकर तलाशी लेने और जब्ती (Seizure) करने का अधिकार मिल गया।
  • इससे पोंजी योजनाओं (Ponzi Schemes) और अन्य वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिली।

4. SEBI का वर्तमान स्वरूप और कार्यक्षेत्र

4.1. SEBI का मुख्यालय और संरचना

  • SEBI का मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
  • इसके अलावा नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और अहमदाबाद में भी क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
  • इसका नेतृत्व एक अध्यक्ष (Chairman) और पूर्णकालिक एवं अंशकालिक सदस्य (Members) करते हैं।
  • SEBI के अध्यक्ष की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है।

4.2. SEBI की प्रमुख जिम्मेदारियाँ

  1. निवेशकों के हितों की रक्षा करना।
  2. शेयर बाजार की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना।
  3. शेयर बाजार से जुड़े दलालों, म्यूचुअल फंड, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों आदि को नियंत्रित करना।
  4. शेयर बाजार में धोखाधड़ी और अनियमितताओं को रोकना।
  5. IPO (Initial Public Offerings) और अन्य वित्तीय गतिविधियों पर निगरानी रखना।

4.3. SEBI द्वारा लिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले

  • स्मॉल इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन: छोटे निवेशकों को ठगने वाली कंपनियों पर कार्रवाई।
  • म्यूचुअल फंड नियम: निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश सुरक्षित करने के लिए कड़े नियम।
  • Algo Trading पर नियंत्रण: शेयर बाजार में एल्गोरिदम ट्रेडिंग पर सख्ती।

5. निष्कर्ष

SEBI भारतीय वित्तीय बाजार का सबसे महत्वपूर्ण नियामक निकाय है। इसकी शुरुआत 1988 में एक गैर-सांविधिक निकाय के रूप में हुई थी, लेकिन 1992 के बाद इसे कानूनी शक्तियाँ प्राप्त हुईं। समय के साथ SEBI को अधिक शक्तियाँ दी गईं, जिससे यह शेयर बाजार में पारदर्शिता और निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम हुआ। वर्तमान में यह भारत के शेयर बाजार का सबसे प्रभावशाली और अनिवार्य हिस्सा बन चुका है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने भारतीय प्रतिभूति बाजार की सुरक्षा, पारदर्शिता और विकास के लिए समय-समय पर कई महत्वपूर्ण योजनाएँ और पहलें शुरू की हैं। यहाँ कुछ प्रमुख योजनाएँ और उनके प्रारंभ की जानकारी प्रस्तुत है:

  1. इनसाइडर ट्रेडिंग पर प्रतिबंध (Prohibition of Insider Trading):
    • शुरुआत: 1992 में।
    • विवरण: SEBI ने 1992 में इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिए नियम लागू किए, जिन्हें 2015 में संशोधित किया गया। इन नियमों का उद्देश्य कंपनियों के अंदरूनी व्यक्तियों द्वारा गोपनीय जानकारी का दुरुपयोग रोकना है।
  2. धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का निषेध (Prohibition of Fraudulent and Unfair Trade Practices):
    • शुरुआत: 1995 में।
    • विवरण: SEBI ने 1995 में ऐसे नियम लागू किए जो प्रतिभूति बाजार में धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकते हैं, जिससे निवेशकों के हितों की रक्षा होती है।
  3. म्यूचुअल फंड विनियम (Mutual Funds Regulations):
    • शुरुआत: 1996 में।
    • विवरण: SEBI ने 1996 में म्यूचुअल फंड्स के संचालन के लिए नियम स्थापित किए, जिससे निवेशकों को सुरक्षित और पारदर्शी निवेश विकल्प मिल सकें।
  4. सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ (Listing Obligations and Disclosure Requirements – LODR):
    • शुरुआत: 2015 में।
    • विवरण: SEBI ने 2015 में LODR विनियम लागू किए, जो सूचीबद्ध कंपनियों के लिए पारदर्शिता और कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुनिश्चित करते हैं।
  5. निवेशक शिक्षा और संरक्षण निधि (Investor Education and Protection Fund – IEPF):
    • शुरुआत: 1999 में।
    • विवरण: SEBI ने 1999 में IEPF की स्थापना की, जिसका उद्देश्य निवेशकों को शिक्षित करना और उनके हितों की रक्षा करना है।

इन पहलों के माध्यम से, SEBI ने भारतीय प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया और बाजार की अखंडता को सुनिश्चित किया है।

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) योजना भारत सरकार द्वारा नवंबर 2015 में शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य निवेशकों को भौतिक सोना खरीदने के बजाय सोने में निवेश का एक सुरक्षित और लाभदायक विकल्प प्रदान करना था। SGB के तहत निवेशक सोने के ग्राम मूल्यवर्ग में बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सरकार द्वारा समर्थित होते हैं। इन बॉन्ड्स पर निवेशकों को सालाना 2.5% ब्याज मिलता है, जो हर छह महीने में उनके खाते में जमा होता है। बॉन्ड की अवधि आठ वर्ष की होती है, हालांकि पांच वर्ष के बाद निवेशक इसे भुना सकते हैं। SGB योजना के माध्यम से सरकार ने सोने के आयात को नियंत्रित करने और निवेशकों को सुरक्षित निवेश विकल्प प्रदान करने का प्रयास किया है।

भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग की शुरुआत 1963 में यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) की स्थापना से हुई थी। UTI ने 1964 में अपनी पहली योजना ‘यूनिट स्कीम 1964’ पेश की, जिससे भारतीय निवेशकों को म्यूचुअल फंड के माध्यम से निवेश का अवसर मिला।

1987 से, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने म्यूचुअल फंड योजनाएँ शुरू कीं, जिससे उद्योग का विस्तार हुआ। उदाहरण के लिए, भारतीय स्टेट बैंक ने जून 1987 में एसबीआई म्यूचुअल फंड की शुरुआत की।

1992 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना के बाद, म्यूचुअल फंड उद्योग में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। SEBI ने 1993 में म्यूचुअल फंड विनियम लागू किए, जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों को म्यूचुअल फंड उद्योग में प्रवेश करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। कोठारी पायनियर, जो अब फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फंड का हिस्सा है, जुलाई 1993 में पंजीकृत होने वाला पहला निजी क्षेत्र का म्यूचुअल फंड था।

SEBI के विनियमों ने म्यूचुअल फंड उद्योग में पारदर्शिता और निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित की, जिससे उद्योग में विश्वास और निवेशकों की संख्या में वृद्धि हुई। इन विनियमों के तहत, म्यूचुअल फंड कंपनियों को निवेशकों के लक्ष्यों के अनुसार विविध योजनाएँ पेश करने की अनुमति मिली, जिससे निवेशकों के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध हुए।

वर्तमान में, SEBI के नियमन के तहत, भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग निरंतर विकास कर रहा है, जिससे निवेशकों को सुरक्षित और लाभदायक निवेश के अवसर मिल रहे हैं।

भारत में शेयर बाजार की शुरुआत 19वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। 1850 के आसपास, मुंबई के टाउन हॉल के सामने एक बरगद के पेड़ के नीचे चार गुजराती और एक पारसी शेयर ब्रोकर ने अनौपचारिक रूप से शेयर ट्रेडिंग शुरू की थी。 धीरे-धीरे, इन ब्रोकरों की संख्या बढ़ती गई, और 1875 में उन्होंने ‘द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन’ की स्थापना की, जो बाद में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के नाम से जाना गया। BSE भारत का पहला औपचारिक स्टॉक एक्सचेंज बना, जिसने देश में संगठित शेयर ट्रेडिंग की नींव रखी।

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