सातवाहन वंश (लगभग 230 ईसा पूर्व – 220 ईस्वी)
परिचय
सातवाहन वंश प्राचीन भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने दक्षिण भारत और दक्कन क्षेत्र में शासन किया। यह वंश मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उभरा और लगभग 450 वर्षों तक सत्ता में रहा। सातवाहनों ने ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धर्म दोनों को संरक्षण दिया तथा भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1. सातवाहन वंश की स्थापना और प्रमुख शासक
(क) सातवाहन वंश की स्थापना
- इस वंश की स्थापना सिमुक (230 ईसा पूर्व – 207 ईसा पूर्व) ने की।
- सातवाहनों ने कण्व वंश को हराकर मगध पर भी नियंत्रण कर लिया।
- इनका मुख्य क्षेत्र दक्कन (महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश का कुछ भाग) था।
- सातवाहन शासकों ने खुद को “दक्कन के शासक” और “आंध्रभृत्य” कहा।
(ख) सातवाहन वंश के प्रमुख शासक और उनका योगदान
- सिमुक (230 ईसा पूर्व – 207 ईसा पूर्व)
- सातवाहन वंश का संस्थापक।
- मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद सत्ता हासिल की।
- कण्व वंश को हराकर अपनी शक्ति बढ़ाई।
- सिमुक सातवाहन वंश का संस्थापक था और उसने 230 ईसा पूर्व में सत्ता स्थापित की।
- उसने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद दक्कन में अपनी शक्ति बढ़ाई।
- सिमुक ने कण्व वंश और स्थानीय राजाओं को हराकर अपना साम्राज्य स्थापित किया।
- उसकी राजधानी प्रतिष्ठान (वर्तमान पैठन, महाराष्ट्र) थी।
- उसने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन बौद्ध धर्म का भी समर्थन किया।
- सिमुक के शासनकाल में दक्कन और महाराष्ट्र में कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण हुआ।
- उसने दक्षिण भारत में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए सैन्य अभियान चलाए।
- सिमुक ने अपने शासनकाल में कई किलों और नगरों का निर्माण करवाया।
- उसने स्थानीय जनजातियों और शक्तियों को पराजित कर दक्कन को एकीकृत किया।
- सिमुक के बाद उसका भाई कृष्ण सातवाहन का राजा बना।
- सिमुक ने कण्व वंश और स्थानीय राजाओं को हराकर सातवाहन वंश की स्थापना की।
- उसने नंद वंश के शेष प्रभाव को समाप्त कर दक्षिण भारत में अपनी सत्ता स्थापित की।
- सिमुक के परिवार में उसका भाई कृष्ण और उत्तराधिकारी सातकर्णी प्रथम था।
- सिमुक ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान (पैठन, महाराष्ट्र) में स्थापित की।
- उसके शासनकाल में बौद्ध धर्म को संरक्षण मिला और स्तूपों का निर्माण हुआ।
- उसने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई स्तूपों और मठों का निर्माण करवाया।
- नासिक और कन्हेरी गुफाओं का निर्माण सातवाहन शासन के दौरान शुरू हुआ।
- उसने स्थानीय शासकों से युद्ध कर महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक तक साम्राज्य फैलाया।
- सिमुक की वास्तुकला में प्रारंभिक सातवाहन शैली की झलक मिलती है।
- उसकी मुद्राओं पर ब्राह्मण और बौद्ध धर्म से जुड़े प्रतीक अंकित थे।
- कृष्ण (207 ईसा पूर्व – 189 ईसा पूर्व)
- सिमुक का उत्तराधिकारी।
- विदर्भ और उत्तरी कर्नाटक तक साम्राज्य का विस्तार किया।
- नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) में कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया।
- कृष्ण सातवाहन वंश का दूसरा शासक था और सिमुक का उत्तराधिकारी था।
- उसने अपने शासनकाल में सातवाहन साम्राज्य का विस्तार जारी रखा।
- कृष्ण ने विदर्भ और उत्तरी कर्नाटक तक राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- उसने पश्चिमी क्षत्रपों और स्थानीय जनजातियों के खिलाफ कई युद्ध लड़े।
- कृष्ण ने नासिक और नागार्जुनकोंडा क्षेत्र में बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया।
- उसने प्रशासन को संगठित किया और व्यापार मार्गों को सुरक्षित बनाया।
- कृष्ण ने सातवाहन शासन को और अधिक स्थायित्व प्रदान किया।
- उसके समय में सातवाहनों का प्रभाव पश्चिमी भारत में भी बढ़ने लगा।
- उसने बौद्ध धर्म और वैदिक परंपराओं दोनों को संरक्षण दिया।
- कृष्ण के बाद सातवाहन सिंहासन पर सातकर्णी प्रथम बैठा।
- कृष्ण सातवाहन ने अपने सिक्कों पर पौराणिक प्रतीकों को अंकित करवाया।
- उसने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
- कृष्ण ने कई बौद्ध मठों और गुफाओं का निर्माण करवाया, जिनमें नासिक गुफाएँ प्रमुख हैं।
- उसके शासनकाल में व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ीं, जिससे रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार हुआ।
- उसने सातवाहन प्रशासन को मजबूत करने के लिए कई सुधार किए।
- कृष्ण ने अश्वमेध यज्ञ कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।
- उसने ब्राह्मण और बौद्ध धर्म दोनों को संरक्षण दिया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता बनी रही।
- कृष्ण ने सातवाहन सैन्य शक्ति को बढ़ाया और क्षत्रपों के बढ़ते प्रभाव को रोका।
- उसने अपने शासनकाल में कई नए नगरों और किलों का निर्माण करवाया।
- कृष्ण के बाद उसका उत्तराधिकारी सातकर्णी प्रथम बना, जिसने सातवाहन साम्राज्य को और मजबूत किया।
- सातकर्णी प्रथम (189 ईसा पूर्व – 180 ईसा पूर्व)
- इसने अश्वमेध यज्ञ करवाकर खुद को महान शासक घोषित किया।
- पश्चिमी भारत में अपनी शक्ति बढ़ाई।
- सातकर्णी प्रथम सातवाहन वंश का तीसरा शासक था।
- उसने सातवाहन साम्राज्य का विस्तार मध्य भारत और दक्षिण भारत तक किया।
- सातकर्णी प्रथम ने शक, यवन और पार्थियन आक्रमणकारियों से युद्ध किए।
- उसने अश्वमेध यज्ञ करवाकर अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया।
- सातकर्णी प्रथम के समय सातवाहन साम्राज्य की सीमा नर्मदा से लेकर कावेरी नदी तक फैल गई।
- उसने ब्राह्मण धर्म को बढ़ावा दिया और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
- सातकर्णी प्रथम ने महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
- उसके शासनकाल में व्यापार और समुद्री मार्गों का विस्तार हुआ।
- सातवाहन सिक्कों पर उसके नाम और यज्ञों के चिह्न अंकित थे।
- सातकर्णी प्रथम के बाद सातवाहनों की शक्ति थोड़े समय के लिए कमजोर हुई।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी (106 ईस्वी – 130 ईस्वी)
- सातवाहन वंश का सबसे महान शासक।
- शक क्षत्रपों (पश्चिमी क्षत्रपों) को हराया और मालवा, गुजरात, कोंकण तक साम्राज्य फैलाया।
- खुद को “एकमात्र ब्राह्मण” कहा और वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
- बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों को संरक्षण दिया।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
- उसने शक, यवन और पार्थियन शासकों को हराकर सातवाहन साम्राज्य को पुनः मजबूत किया।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी ने पश्चिमी क्षत्रपों के शासक नहपान को हराकर उसकी भूमि पर अधिकार कर लिया।
- उसके शासनकाल में सातवाहन साम्राज्य नर्मदा से कावेरी तक फैला हुआ था।
- उसने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों पर विजय प्राप्त की।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी ने अश्वमेध यज्ञ किया और खुद को क्षत्रियों का रक्षक घोषित किया।
- उसकी माँ, गौतमी बालश्री, ने नासिक गुफाओं के अभिलेख में उसकी विजय का वर्णन किया।
- उसने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन बौद्ध धर्म का भी सम्मान किया।
- उसके सिक्कों पर संस्कृत और प्राकृत भाषा में लेख मिले हैं।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी की मृत्यु के बाद सातवाहन साम्राज्य कुछ समय के लिए कमजोर पड़ गया।
- वसिष्ठीपुत्र पुलुमावी (130 ईस्वी – 158 ईस्वी)
- सातवाहन साम्राज्य का विस्तार तमिलनाडु और दक्षिण भारत तक किया।
- रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार बढ़ाया।
- सातवाहन मुद्राएँ (सिक्के) बड़ी संख्या में जारी किए।
- वसिष्ठीपुत्र पुलुमावी गौतमीपुत्र सातकर्णी का पुत्र और उत्तराधिकारी था।
- उसने सातवाहन साम्राज्य की राजधानी प्रतिष्ठान (पैठन) से अमरावती (आंध्र प्रदेश) स्थानांतरित की।
- उसके शासनकाल में सातवाहनों का प्रभाव दक्षिण भारत में अधिक बढ़ा।
- वसिष्ठीपुत्र पुलुमावी ने दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
- उसने पश्चिमी क्षत्रपों के शासकों से कई युद्ध लड़े लेकिन निर्णायक जीत नहीं मिली।
- उसके समय में सातवाहन साम्राज्य का विस्तार आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और तमिलनाडु तक हुआ।
- उसने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया।
- अमरावती और नागार्जुनकोंडा में बौद्ध कला और स्थापत्य कला का विकास हुआ।
- उसके शासनकाल में सातवाहनों के सिक्कों का प्रचलन बढ़ा, जिन पर प्राकृत भाषा में लेख अंकित थे।
- वसिष्ठीपुत्र पुलुमावी के बाद सातवाहन साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा।
- यज्ञश्री सातकर्णी (158 ईस्वी – 181 ईस्वी)
- समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और पश्चिमी भारत में शक्ति बढ़ाई।
- शक क्षत्रपों के आक्रमण को रोका।
- सातवाहन वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक।
- यज्ञश्री सातकर्णी सातवाहन वंश का एक शक्तिशाली शासक था।
- उसने पश्चिमी क्षत्रपों से युद्ध कर सातवाहन साम्राज्य की खोई हुई भूमि को पुनः प्राप्त किया।
- उसके शासनकाल में सातवाहनों का समुद्री व्यापार बहुत विकसित हुआ।
- यज्ञश्री सातकर्णी ने रोम, मिस्र और दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापारिक संबंध बनाए।
- उसके सिक्कों पर जहाज (नौका) का चित्र मिलता है, जो समुद्री व्यापार का प्रमाण है।
- उसने क्षहरात वंश के शासक रुद्रदामन प्रथम से युद्ध किया, लेकिन उसे पूरी तरह पराजित नहीं कर सका।
- यज्ञश्री सातकर्णी ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और स्तूपों के निर्माण में योगदान दिया।
- उसके शासनकाल में अमरावती और नागार्जुनकोंडा बौद्ध कला और स्थापत्य के प्रमुख केंद्र बने।
- उसने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात और पश्चिमी भारत के कुछ भागों पर शासन किया।
- यज्ञश्री सातकर्णी के बाद सातवाहन साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा और 3वीं शताब्दी में समाप्त हो गया।
- विजय सातकर्णी (181 ईस्वी – 220 ईस्वी)
- कमजोर शासन, सातवाहनों की शक्ति लगातार कम होती गई।
- 220 ईस्वी में सातवाहन वंश का पतन हो गया।
- विजय सातकर्णी सातवाहन वंश का एक अंतिम शक्तिशाली शासक था।
- उसके शासनकाल में सातवाहन साम्राज्य कमजोर होने लगा।
- उसने पश्चिमी क्षत्रपों और अन्य स्थानीय राजाओं से संघर्ष किया।
- विजय सातकर्णी के समय सातवाहन साम्राज्य का प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर हुआ।
- समुद्री व्यापार में गिरावट आई, जिससे आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
- उसने बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों को संरक्षण दिया।
- विजय सातकर्णी के सिक्कों पर सातवाहन प्रतीक और प्राकृत भाषा के लेख मिलते हैं।
- उसके शासनकाल में सातवाहन वंश का धीरे-धीरे पतन शुरू हुआ।
- विजय सातकर्णी के बाद सातवाहन वंश के शासक कमजोर होते गए।
- 3वीं शताब्दी की शुरुआत में सातवाहन साम्राज्य का अंत हो गया।
2. सातवाहन वंश की राजधानी
- प्रारंभिक राजधानी प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र में पुणे के पास, वर्तमान पैठन) थी।
- बाद में राजधानी अमरावती (आंध्र प्रदेश) में स्थानांतरित की गई।
3. सातवाहन शासन व्यवस्था और प्रशासन
- सातवाहन शासक स्वयं को “राजा” और “एक ब्राह्मण शासक” मानते थे।
- प्रशासनिक पद “महारथि”, “महासेनापति” और “अमरनाथ” जैसे थे।
- साम्राज्य को प्रांतों (आहारा) में बाँटा गया था।
- महिलाओं को उच्च दर्जा प्राप्त था, कुछ शासकों की माता के नाम सिक्कों पर अंकित थे।
- व्यापारियों और शिल्पकारों को संरक्षण प्राप्त था।
4. सातवाहन वंश की संस्कृति और धर्म
- सातवाहनों ने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन बौद्ध धर्म का भी समर्थन किया।
- बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को बढ़ावा दिया।
- बौद्ध स्तूपों (सांची, अमरावती, नागार्जुनकोंडा) का निर्माण हुआ।
- हिंदू धर्म में यज्ञों और वैदिक परंपराओं का पुनरुद्धार हुआ।
- स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था, रानी गौतमीबाल की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
5. सातवाहन वंश की स्थापत्य कला और महत्वपूर्ण स्थल
- सांची स्तूप – गौतमीपुत्र सातकर्णी के समय में इसका संरक्षण हुआ।
- अमरावती स्तूप – महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल, इसमें बुद्ध के जीवन की कहानियाँ चित्रित हैं।
- नासिक गुफाएँ – व्यापारियों और बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई गईं।
- कन्हेरी गुफाएँ – बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रमुख केंद्र।
- अजंता गुफाएँ – सातवाहनों के समय में इनका निर्माण हुआ।
6. सातवाहन वंश की अर्थव्यवस्था और व्यापार
- सातवाहनों के समय में रोम, मिस्र, दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार था।
- उनके सिक्कों में पौराणिक प्रतीक, जैसे बैल, शंख, और सूर्य अंकित थे।
- व्यापारिक मार्गों पर कर वसूला जाता था।
- “रौप्य” और “स्वर्ण मुद्राएँ” जारी की गईं।
7. सातवाहन वंश का पतन
- यज्ञश्री सातकर्णी के बाद सातवाहन शक्ति कमजोर हो गई।
- पश्चिमी क्षत्रपों (शक शासकों) और दक्षिण में पल्लवों का उदय हुआ।
- अंततः 220 ईस्वी में सातवाहन वंश समाप्त हो गया और उनकी जगह वाकाटक वंश ने ली।
निष्कर्ष
सातवाहन वंश ने भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने दक्कन और दक्षिण भारत में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखी, व्यापार को बढ़ावा दिया, और बौद्ध एवं हिंदू धर्म दोनों को संरक्षण दिया। उनके शासनकाल में भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक, और आर्थिक उन्नति हुई। हालाँकि, शक्तिशाली शक क्षत्रपों और पल्लवों के बढ़ते प्रभाव ने इस वंश को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया।