शुंग वंश (185 ईसा पूर्व – 75 ईसा पूर्व)
उत्पत्ति और स्थापना:
- शुंग वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में की थी।
- पुष्यमित्र शुंग, अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था। उसने बृहद्रथ की हत्या कर स्वयं को राजा घोषित किया।
महत्वपूर्ण शासक:
- पुष्यमित्र शुंग (185-149 ईसा पूर्व)
- इस वंश का संस्थापक था।
- यवनों (यूनानी आक्रमणकारियों) को पराजित किया।
- अश्वमेध यज्ञ करवाया, जिससे उसका ब्राह्मण धर्म के प्रति झुकाव स्पष्ट होता है।
- कहा जाता है कि इसने बौद्धों के प्रति कठोर नीतियाँ अपनाईं, लेकिन बौद्ध धर्म पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ।
- पाटलिपुत्र इस वंश की राजधानी थी।
- पेशे से – मौर्य साम्राज्य का सेनापति था।
- वंश – ब्राह्मण जाति से संबंधित था।
- यवन आक्रमण – उसने यूनानी शासक डेमेट्रियस के आक्रमण को विफल किया।
- संस्कृति संरक्षण – वैदिक धर्म और संस्कृत साहित्य को बढ़ावा दिया।
- बौद्ध धर्म पर प्रभाव – कुछ बौद्ध ग्रंथों में इसे बौद्ध-विरोधी बताया गया है।
- शुंग मुद्राएँ – उसके काल की मुद्रा पर ब्राह्मण प्रतीक मिलते हैं।
- विदिशा का महत्व – विदिशा को एक प्रमुख प्रशासनिक केंद्र बनाया।
- मौर्य साम्राज्य का अंत – उसके शासन के बाद मौर्य वंश पूरी तरह समाप्त हो गया।
- सेना और युद्ध – एक शक्तिशाली सैन्य व्यवस्था बनाई।
- भारतीय इतिहास में स्थान – मौर्य काल के बाद ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान का श्रेय इसे जाता है।
- युद्ध – पुष्यमित्र शुंग ने यवनों (यूनानी आक्रमणकारियों) और शकों के खिलाफ युद्ध लड़ा।
- मुख्य शत्रु – यूनानी राजा डेमेट्रियस और उसके सेनापति मिनांडर।
- युद्ध में विजय – उसने यवनों को पाटलिपुत्र और मगध से खदेड़ दिया।
- साहित्य में उल्लेख – “गर्गी संहिता” और “मालविकाग्निमित्रम्” में इसका वर्णन है।
- बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख – “दिव्यावदान” और “अशोकावदान” में इसे बौद्ध-विरोधी बताया गया है।
- मंदिर निर्माण – उसने वैदिक संस्कृति को बढ़ावा देते हुए कई मंदिरों का निर्माण कराया।
- परिवार – पुत्र अग्निमित्र शुंग, जो उसका उत्तराधिकारी बना।
- वंश – ब्राह्मण परिवार से था, और वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित किया।
- मौत – कुछ मतों के अनुसार उसकी हत्या उसके ही मंत्री ने कर दी थी।
- वंश का संस्थापक – पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की।
- सम्राट बनने से पहले – मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था।
- सम्राट बनने का तरीका – बृहद्रथ की हत्या कर गद्दी हासिल की।
- राजधानी – पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
- अन्य प्रमुख शहर – विदिशा और कौशांबी उसके शासनकाल में प्रमुख केंद्र थे।
- धार्मिक झुकाव – ब्राह्मण धर्म का समर्थन करता था।
- यज्ञों का आयोजन – दो अश्वमेध यज्ञ किए।
- मुद्राएँ – उसकी मुद्राओं पर ब्राह्मण धर्म से जुड़े प्रतीक पाए गए हैं।
- बौद्ध धर्म पर दृष्टिकोण – कुछ बौद्ध ग्रंथों में इसे बौद्ध-विरोधी बताया गया, लेकिन प्रमाण नहीं मिलते।
- विदिशा का प्रशासन – अपने पुत्र अग्निमित्र को विदिशा का शासक बनाया।
- शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ – यवनों का आक्रमण, बौद्धों पर कथित अत्याचार, वैदिक धर्म का पुनरुद्धार।
- यवन आक्रमण – यूनानी राजा डेमेट्रियस और मिनांडर के आक्रमणों का सामना किया।
- यवनों पर विजय – शुंग सेना ने यवनों को हराकर उन्हें भारत से बाहर निकाला।
- साहित्य में स्थान – कालिदास के नाटक “मालविकाग्निमित्रम्” में उसके पुत्र का उल्लेख मिलता है।
- अंत – कुछ मतों के अनुसार उसकी हत्या उसके ही सेनापति ने कर दी थी।
- उत्तराधिकारी – उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग गद्दी पर बैठा।
- शुंग वंश का प्रभाव – वैदिक संस्कृति और हिंदू धर्म को फिर से मजबूत किया।
- कला का विकास – सांची और भरहुत स्तूपों का निर्माण हुआ।
- पतन के कारण – कमजोर उत्तराधिकारी और आंतरिक विद्रोह।
- अग्निमित्र शुंग (149-141 ईसा पूर्व)
- पुष्यमित्र शुंग का पुत्र और उत्तराधिकारी था।
- कालिदास के नाटक “मालविकाग्निमित्रम्” में इसका उल्लेख मिलता है।
- विदर्भ राज्य के साथ संघर्ष किया।
- अग्निमित्र शुंग से जुड़ा सामान्य ज्ञान (1 लाइन उत्तर)
- शासन काल – 149 ईसा पूर्व से 141 ईसा पूर्व।
- वंश – शुंग वंश का दूसरा शासक था।
- राजधानी – पाटलिपुत्र।
- पिता – पुष्यमित्र शुंग।
- धार्मिक नीति – ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया।
- बौद्ध धर्म पर दृष्टिकोण – पुष्यमित्र शुंग की तरह इसे भी बौद्ध-विरोधी बताया जाता है।
- प्रमुख युद्ध – विदर्भ राज्य के साथ युद्ध किया।
- विदर्भ युद्ध का कारण – विदर्भ के राजा ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
- सफलता – विदर्भ युद्ध में विजय प्राप्त की।
- प्रसिद्ध साहित्यिक उल्लेख – कालिदास के नाटक “मालविकाग्निमित्रम्” में इसका वर्णन है।
- शासन प्रणाली – पिता की तरह सैन्य शक्ति पर जोर दिया।
- प्रमुख मंदिर – ब्राह्मण धर्म के मंदिरों का निर्माण करवाया।
- यज्ञों का आयोजन – वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए यज्ञ करवाए।
- मुद्राएँ – उसकी मुद्राओं में हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक मिलते हैं।
- परिवार – पुष्यमित्र शुंग का पुत्र और उत्तराधिकारी था।
- उत्तराधिकारी – उसके बाद शुंग वंश में अन्य कमजोर शासकों का शासन रहा।
- राजनीतिक स्थिरता – शासनकाल अपेक्षाकृत छोटा था लेकिन प्रभावी रहा।
- सेना का विस्तार – यवनों के खिलाफ रक्षा के लिए सेना को संगठित किया।
- प्रशासन – पिता की नीति को आगे बढ़ाया और साम्राज्य को मजबूत किया।
- मृत्यु – उसके बाद शुंग साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा।
- अग्निमित्र शुंग से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें (1 लाइन उत्तर)
- राजधानी – उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी।
- अन्य प्रशासनिक केंद्र – विदिशा और कौशांबी उसके शासनकाल में महत्वपूर्ण केंद्र थे।
- पुत्र – उसके पुत्र का नाम वसुमित्र था।
- उत्तराधिकारी – अग्निमित्र शुंग के बाद उसका पुत्र वसुमित्र गद्दी पर बैठा।
- मुख्य युद्ध – विदर्भ युद्ध, जो विदर्भ के विद्रोह को दबाने के लिए लड़ा गया।
- विदर्भ युद्ध का कारण – विदर्भ के शासक ने शुंग साम्राज्य से स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
- विदर्भ युद्ध का परिणाम – अग्निमित्र शुंग ने विदर्भ को जीत लिया।
- यवनों से संघर्ष – यूनानी (यवन) शासकों के आक्रमण का सामना किया।
- शुंग सेना का नेतृत्व – उसके पुत्र वसुमित्र ने यवनों के खिलाफ युद्ध में सेना का नेतृत्व किया।
- महत्वपूर्ण विजय – उसके शासनकाल में विदर्भ और यवनों पर शुंग साम्राज्य की विजय हुई।
- भद्रक और भागवत
- इनके शासनकाल में शुंग साम्राज्य कमजोर पड़ गया।
- भद्रक और भागवत (शुंग वंश) से जुड़ी 1 लाइन जानकारी
- राजा बनने का तरीका (भद्रक) – अपने पूर्ववर्ती शुंग शासक की मृत्यु के बाद राजा बना।
- राजा बनने का तरीका (भागवत) – भद्रक के बाद सत्ता संभाली, लेकिन विवरण अस्पष्ट है।
- परिवार (भद्रक) – संभवतः अग्निमित्र शुंग या उसके उत्तराधिकारियों का वंशज था।
- परिवार (भागवत) – भद्रक का उत्तराधिकारी और शुंग वंश का सदस्य था।
- युद्ध (भद्रक) – शासनकाल के दौरान किसी बड़े युद्ध का प्रमाण नहीं मिलता।
- युद्ध (भागवत) – शुंग वंश के कमजोर होने के कारण विद्रोहों का सामना किया।
- मंदिर निर्माण – इनके शासनकाल में कोई प्रमुख मंदिर निर्माण का प्रमाण नहीं मिलता।
- विशेष बातें – शुंग वंश का धीरे-धीरे पतन इनके काल में शुरू हुआ।
- विशेष काम – संभवतः ब्राह्मणवादी परंपराओं को बनाए रखा।
- राजधानी – पाटलिपुत्र शुंग साम्राज्य की राजधानी बनी रही।
- शासन की स्थिति – इनके शासनकाल में शुंग वंश कमजोर हो गया।
- शुंग वंश का प्रभाव – इनके बाद वंश का पतन शुरू हुआ और कण्व वंश का उदय हुआ।
- देवभूति (83-75 ईसा पूर्व)
- शुंग वंश का अंतिम शासक था।
- इसके मंत्री वसुदेव काण्व ने इसकी हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की।
- देवभूति (शुंग वंश) से जुड़ी 1 लाइन जानकारी
- राजा बनने का तरीका – अपने पूर्ववर्ती शुंग शासक भागवत की मृत्यु के बाद राजा बना।
- परिवार – शुंग वंश का अंतिम शासक था।
- युद्ध – उसके शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण युद्ध नहीं हुआ।
- मुख्य समस्या – शुंग वंश के पतन के समय सत्ता कमजोर हो चुकी थी।
- राजनीतिक स्थिति – दरबारी षड्यंत्र और आंतरिक विद्रोहों से उसका शासन कमजोर हो गया।
- हत्या – उसके मंत्री वसुदेव (कण्व वंश के संस्थापक) ने उसकी हत्या कर दी।
- राजधानी – पाटलिपुत्र ही उसकी राजधानी थी।
- विशेष बातें – विलासी जीवन जीने के कारण कमजोर शासक माना जाता है।
- विशेष काम – कोई विशेष उपलब्धि नहीं, क्योंकि यह शुंग वंश का अंतिम राजा था।
- शुंग वंश का अंत – उसकी हत्या के साथ ही शुंग वंश का पतन हो गया और कण्व वंश की स्थापना हुई।
- देवभूति (शुंग वंश) से जुड़ी नई 1 लाइन जानकारी
- शासनकाल – लगभग 83 ईसा पूर्व से 73 ईसा पूर्व तक शासन किया।
- व्यक्तित्व – ऐतिहासिक रूप से उसे एक कमजोर और विलासी शासक माना जाता है।
- दरबारी षड्यंत्र – मंत्री वसुदेव ने सत्ता हथियाने के लिए षड्यंत्र किया।
- हत्या का कारण – प्रशासनिक कमजोरी और कण्व वंश की सत्ता प्राप्त करने की योजना।
- हत्या की साजिश – वसुदेव ने देवभूति को उसकी एक दासी के माध्यम से मरवा दिया।
- मौर्य वंश जैसी स्थिति – जैसे बृहद्रथ मौर्य की हत्या से मौर्य वंश समाप्त हुआ, वैसे ही देवभूति की हत्या से शुंग वंश खत्म हुआ।
- बौद्ध धर्म पर प्रभाव – उसके शासनकाल में बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म के बीच संघर्ष कम हो गया था।
- सैन्य शक्ति – इस समय तक शुंग सेना कमजोर हो चुकी थी, जिससे कण्व वंश को सत्ता संभालने में आसानी हुई।
- मंदिर निर्माण – उसके काल में कोई महत्वपूर्ण मंदिर निर्माण का उल्लेख नहीं मिलता।
- अंतिम प्रभाव – देवभूति के साथ ही शुंग वंश का अंत हुआ और कण्व वंश ने शासन शुरू किया।
शासन और प्रशासन:
- शुंग शासक ब्राह्मण धर्म को बढ़ावा देते थे।
- उन्होंने वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया।
- प्रशासनिक व्यवस्था मौर्यों के समान थी।
शुंग वंश की प्रमुख विशेषताएँ (1 लाइन उत्तर)
- स्थापना – पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में शुंग वंश की स्थापना की।
- राजधानी – प्रमुख राजधानी पाटलिपुत्र थी, जबकि विदिशा एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र था।
- धार्मिक नीति – ब्राह्मण धर्म और वैदिक संस्कृति को पुनः स्थापित किया।
- बौद्ध धर्म पर प्रभाव – कुछ बौद्ध ग्रंथों में इसे बौद्ध-विरोधी बताया गया है, लेकिन प्रमाण मिश्रित हैं।
- अश्वमेध यज्ञ – पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ कराए।
- यवन आक्रमण – यूनानी शासकों मिनांडर और डेमेट्रियस के आक्रमणों का सामना किया।
- विदर्भ युद्ध – अग्निमित्र शुंग ने विदर्भ के विद्रोह को कुचल दिया।
- कला और स्थापत्य – सांची और भरहुत स्तूपों का निर्माण हुआ।
- साहित्य में योगदान – कालिदास का नाटक “मालविकाग्निमित्रम्” शुंग वंश से संबंधित है।
- सैनिक शक्ति – घुड़सवार और पैदल सेना को संगठित किया गया।
- प्रमुख शासक – पुष्यमित्र शुंग, अग्निमित्र शुंग, वसुमित्र, देवभूति।
- शासन प्रणाली – केंद्रीयकृत सत्ता लेकिन स्थानीय राजाओं और मंत्रियों का प्रभाव रहा।
- मुद्राएँ – शुंग काल की मुद्राओं पर ब्राह्मणवादी प्रतीक पाए जाते हैं।
- अंत – 73 ईसा पूर्व में मंत्री वसुदेव कण्व ने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर दी, जिससे वंश समाप्त हो गया।
- स्थापना का कारण – पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर सत्ता प्राप्त की।
- समाज पर प्रभाव – वैदिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया और ब्राह्मणों का प्रभाव बढ़ा।
- संस्कृति का पुनर्जागरण – हिंदू धर्म के कर्मकांड, यज्ञ और वेदों का पुनरुद्धार हुआ।
- स्थापत्य कला – बौद्ध स्थापत्य में वृद्धि हुई, जैसे सांची स्तूप और भरहुत स्तूप का विकास।
- सैन्य रणनीति – यवन आक्रमणों को रोकने के लिए एक संगठित सैन्य व्यवस्था विकसित की।
- विदेशी संबंध – यूनानियों (यवनों) के साथ लगातार संघर्ष हुआ, लेकिन व्यापारिक संबंध भी बने रहे।
- प्रांतीय प्रशासन – विभिन्न क्षेत्रों को स्थानीय शासकों और गवर्नरों के अधीन रखा गया।
- शिक्षा और ज्ञान – ब्राह्मणों को शिक्षा में विशेषाधिकार दिया गया और गुरुकुल प्रणाली को बढ़ावा मिला।
- धार्मिक सहिष्णुता – हालाँकि ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया, लेकिन बौद्ध धर्म भी फला-फूला।
- साहित्यिक योगदान – पतंजलि ने इस काल में “महाभाष्य” की रचना की।
- संगीत और नाटक – नाट्यशास्त्र और संगीत कला का विकास हुआ, जिससे कालिदास जैसे विद्वानों को प्रेरणा मिली।
- यवनों की पराजय – शुंग शासकों ने मिनांडर और अन्य यवन शासकों को पराजित किया।
- हाथी सेना का उपयोग – युद्धों में हाथी सेना का प्रमुख रूप से उपयोग किया गया।
- कृषि और अर्थव्यवस्था – कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी, और व्यापारिक मार्ग विकसित किए गए।
- महिलाओं की स्थिति – महिलाओं की सामाजिक स्थिति में गिरावट आई और पर्दा प्रथा का आरंभ हुआ।
- नौकरी और प्रशासन – ब्राह्मणों और क्षत्रियों को उच्च प्रशासनिक पदों पर प्राथमिकता दी गई।
- शासन प्रणाली – राजा के साथ मंत्रिपरिषद और सामंतशाही व्यवस्था प्रभावी रही।
- नवीन धार्मिक परंपराएँ – शैव, वैष्णव और शाक्त धर्म के अलग-अलग पंथ उभरने लगे।
- वंश का पतन – आंतरिक षड्यंत्रों, कमजोर शासकों और कण्व वंश के उदय से शुंग वंश समाप्त हुआ।
- शुंग वंश की स्थापना – 185 ईसा पूर्व में पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश को हटाकर की।
- अंतिम शासक – देवभूति, जिसे मंत्री वसुदेव कण्व ने मार दिया।
- राजधानी – पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार)।
- प्रमुख साहित्यिक स्रोत – पतंजलि का “महाभाष्य” और कालिदास का “मालविकाग्निमित्रम्”।
- अश्वमेध यज्ञ – पुष्यमित्र शुंग ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किया।
- मुख्य शासक – पुष्यमित्र शुंग, अग्निमित्र शुंग, वसुमित्र, देवभूति।
- विदेशी संघर्ष – यूनानी राजा मिनांडर और शक-यवनों से युद्ध हुआ।
- बौद्ध धर्म पर प्रभाव – कुछ बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध-विरोधी बताया गया।
- कला और स्थापत्य – सांची स्तूप और भरहुत स्तूप का निर्माण हुआ।
- महत्वपूर्ण युद्ध – विदर्भ युद्ध (अग्निमित्र शुंग द्वारा लड़ा गया)।
- शासन प्रणाली – केंद्रीय सत्ता के साथ सामंतवादी शासन व्यवस्था।
- आर्थिक स्थिति – कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और व्यापारिक मार्गों का विकास।
- मुख्य धार्मिक प्रवृत्ति – वैदिक धर्म का पुनरुद्धार और ब्राह्मणवाद का विस्तार।
- सेना का विकास – पुष्यमित्र शुंग ने सैन्य शक्ति को संगठित किया और यवनों को हराया।
- मुख्य प्रशासनिक केंद्र – विदिशा, उज्जैन और कौशांबी।
- धार्मिक संरचनाएँ – हिंदू मंदिरों और मठों का निर्माण बढ़ा।
- राजवंश का पतन – आंतरिक षड्यंत्र और कमजोर शासकों के कारण 73 ईसा पूर्व में पतन।
- उत्तराधिकारी वंश – कण्व वंश ने शुंग वंश का स्थान लिया।
- मुख्य प्रतिद्वंदी – दक्षिण में सातवाहन और पश्चिम में शक-यवन।
- सत्ता हस्तांतरण – ब्राह्मण मंत्री वसुदेव ने अंतिम शुंग राजा की हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की।
शुंग वंश से जुड़े विशेष स्थल और स्थापत्य कला
- पाटलिपुत्र – शुंग वंश की राजधानी, जहाँ से शासन किया गया।
- विदिशा (मध्य प्रदेश) – शुंग प्रशासन का एक प्रमुख केंद्र, कला और स्थापत्य का विकास हुआ।
- सांची (मध्य प्रदेश) – शुंग काल में सांची स्तूप का विस्तार और अलंकरण हुआ।
- भरहुत (मध्य प्रदेश) – प्रसिद्ध भरहुत स्तूप का निर्माण हुआ, जो बौद्ध कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- कौशांबी (उत्तर प्रदेश) – शुंग शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र।
- बोधगया (बिहार) – यहाँ बुद्ध से जुड़े धार्मिक स्थल विकसित हुए, हालाँकि शुंग शासनकाल में ब्राह्मणवाद प्रभावी था।
- मतुरा (उत्तर प्रदेश) – इस काल में मथुरा कला शैली का प्रारंभ हुआ, जिसमें बौद्ध और हिंदू मूर्तिकला विकसित हुई।
- अमरावती (आंध्र प्रदेश) – शुंग काल में यहाँ बौद्ध स्थापत्य का विकास हुआ।
- नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) – बौद्ध धर्म से जुड़े कुछ निर्माण कार्य शुंग काल में विकसित हुए।
- उज्जैन (मध्य प्रदेश) – शुंग शासन के दौरान व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र।
- बौद्ध स्थापत्य का विकास – हालाँकि शुंग ब्राह्मण धर्म के समर्थक थे, लेकिन बौद्ध कला को भी बढ़ावा मिला।
- स्तूपों का निर्माण – सांची और भरहुत स्तूपों का विस्तार किया गया।
- तोरण द्वार (गेटवे) का विकास – सांची स्तूप पर पहली बार अलंकृत तोरण द्वार बने।
- मूर्तिकला की शुरुआत – इस काल में पत्थर की मूर्तियों का प्रयोग बढ़ा।
- धर्मचक्र प्रतीक – शुंग कला में धर्मचक्र और बोधि वृक्ष को प्रमुख रूप से दिखाया गया।
- शिल्पकारी – भरहुत स्तूप की रेलिंग पर उत्कीर्ण कथा चित्र महत्वपूर्ण हैं।
- ईंट और पत्थर के उपयोग में वृद्धि – भवन निर्माण में पत्थरों का व्यापक प्रयोग शुरू हुआ।
- हिंदू धर्म से जुड़े स्थापत्य – कुछ मंदिरों और वेदियों का निर्माण किया गया, लेकिन इनके प्रमाण कम हैं।
- प्राकृतिक गुफाएँ – इस काल में गुफा वास्तुकला विकसित हुई, जिसमें गुफा विहार और चैत्यगृह शामिल हैं।
- मथुरा कला का प्रारंभ – इस काल में मथुरा कला की नींव पड़ी, जो आगे चलकर प्रसिद्ध हुई।
कला और संस्कृति:
- शुंग काल में बौद्ध और हिंदू कला दोनों को बढ़ावा मिला।
- सांची और भरहुत स्तूपों का निर्माण इसी काल में हुआ।
- मथुरा और गंधार कला के प्रारंभिक चरण की झलक देखने को मिलती है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
- ब्राह्मण धर्म (वैदिक परंपराएँ) का पुनरुत्थान।
- अश्वमेध यज्ञ का आयोजन।
- संस्कृत साहित्य और नाटकों को संरक्षण।
- यवनों और अन्य आक्रमणकारियों से संघर्ष।
पतन का कारण:
- कमजोर उत्तराधिकारी।
- आंतरिक विद्रोह।
- मंत्री वसुदेव काण्व द्वारा अंतिम शुंग शासक की हत्या और कण्व वंश की स्थापना।
संबंधित स्थल:
- सांची (मध्य प्रदेश)
- भरहुत (मध्य प्रदेश)
- विदिशा (मध्य प्रदेश)
शुंग वंश ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर हिंदू धर्म और कला-संस्कृति के पुनरुत्थान में।