वर्धन वंश के प्रमुख शासक:
- प्रभाकरवर्धन
- राज्यवर्धन
- हर्षवर्धन
प्रभाकरवर्धन (580-605 ई.) – वर्धन वंश का संस्थापक
1. परिचय:
- प्रभाकरवर्धन वर्धन वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
- उसका शासन थानेसर (वर्तमान हरियाणा) से प्रारंभ हुआ।
- उसने हूणों और अन्य आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
2. राजा कैसे बना?
- वर्धन वंश के एक स्थानीय क्षत्रिय कुल से संबंध रखने वाले प्रभाकरवर्धन ने धीरे-धीरे शक्ति अर्जित की।
- उसने अपने प्रभाव से थानेसर पर अधिकार कर लिया और स्वयं को “महाराजाधिराज” की उपाधि दी।
3. साम्राज्य का विस्तार:
- प्रभाकरवर्धन का साम्राज्य थानेसर (हरियाणा) से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों तक फैला हुआ था।
- उसने मगध, मालवा और बंगाल की ओर भी अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया।
4. प्रमुख युद्ध और विजयों:
- हूणों के विरुद्ध युद्ध:
- हूणों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और उन्हें हराया।
- गुर्जरों और गांधार पर आक्रमण:
- गुर्जरों और गांधार क्षेत्र के शासकों को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया।
- मालवा के शासकों से संघर्ष:
- उसने मालवा क्षेत्र के कुछ भागों पर भी अधिकार किया।
5. स्थापत्य कला का योगदान:
- प्रभाकरवर्धन के काल में कोई विशेष स्थापत्य कला का प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन उसने अपने साम्राज्य में बौद्ध और हिंदू मंदिरों का संरक्षण किया।
- बाद में हर्षवर्धन के शासनकाल में स्थापत्य कला को अधिक बढ़ावा मिला।
6. साहित्य और ग्रंथ:
- प्रभाकरवर्धन के काल में कोई विशेष ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उसके पुत्र हर्षवर्धन ने संस्कृत नाटकों जैसे “नागानंद”, “रत्नावली”, और “प्रियदर्शिका” की रचना की।
- उसके समय में संस्कृत साहित्य का विकास प्रारंभ हो चुका था।
7. प्रसिद्ध यात्री:
- प्रभाकरवर्धन के शासनकाल में कोई प्रसिद्ध चीनी या विदेशी यात्री भारत नहीं आया।
- उसके पुत्र हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया और उसने तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थिति का वर्णन किया।
8. किसलिए प्रसिद्ध था?
- प्रभाकरवर्धन हूणों के विरुद्ध संघर्ष और अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रसिद्ध था।
- उसने वर्धन वंश की नींव मजबूत की और अपने पुत्रों राज्यवर्धन और हर्षवर्धन के लिए साम्राज्य को सुरक्षित किया।
- उसने उत्तर भारत में गुप्त काल के बाद राजनीतिक स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
9. मृत्यु:
- प्रभाकरवर्धन की मृत्यु 605 ई. में हुई, जिसके बाद उसका पुत्र राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा।
- बाद में राज्यवर्धन की हत्या के बाद, उसका छोटा भाई हर्षवर्धन शासक बना और उसने वर्धन वंश को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया।
राज्यवर्धन (605-606 ई.) – वर्धन वंश का वीर लेकिन अल्पकालिक शासक
1. परिचय:
- राज्यवर्धन वर्धन वंश का दूसरा शासक था।
- वह प्रभाकरवर्धन का पुत्र और हर्षवर्धन का बड़ा भाई था।
- उसका शासनकाल बहुत छोटा (लगभग 1 वर्ष) था, लेकिन उसने अपनी बहन राज्यश्री को बचाने के लिए बड़ा युद्ध लड़ा।
2. राजा कैसे बना?
- 605 ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद, राज्यवर्धन ने थानेसर की गद्दी संभाली।
- उस समय उत्तर भारत में मौखरी वंश और गौड़ राज्य (बंगाल) के बीच संघर्ष चल रहा था।
3. प्रमुख युद्ध और विजयों:
- मौखरी वंश और गौड़ राजा शशांक के खिलाफ युद्ध:
- राज्यवर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह मौखरी वंश के शासक ग्रहवर्मन से हुआ था।
- बंगाल के राजा शशांक और मालवा के शासक ने मिलकर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बना लिया।
- राज्यवर्धन ने अपनी बहन को बचाने के लिए गौड़ राजा शशांक के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
- उसने मालवा और बंगाल की सेनाओं को हराया और कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- शशांक द्वारा हत्या:
- जब राज्यवर्धन युद्ध जीतकर लौट रहा था, तब शशांक ने छल से उसे आमंत्रित किया और हत्या कर दी।
- इस प्रकार, राज्यवर्धन का शासन बहुत अल्पकालिक (1 वर्ष) ही रहा।
4. साम्राज्य का विस्तार:
- राज्यवर्धन का साम्राज्य थानेसर से कन्नौज तक फैला हुआ था।
- उसने मालवा और बंगाल की ओर भी विजय प्राप्त की थी।
5. स्थापत्य कला और निर्माण कार्य:
- राज्यवर्धन के छोटे शासनकाल में कोई बड़ा निर्माण कार्य नहीं हुआ।
- उसके बाद, हर्षवर्धन के शासनकाल में बौद्ध मठों, स्तूपों और मंदिरों का निर्माण हुआ।
6. साहित्य और ग्रंथ:
- राज्यवर्धन के समय में कोई महत्वपूर्ण ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
- बाद में हर्षवर्धन ने “नागानंद”, “रत्नावली”, और “प्रियदर्शिका” जैसे नाटकों की रचना की।
7. प्रसिद्ध यात्री:
- राज्यवर्धन के शासनकाल में कोई विदेशी यात्री भारत नहीं आया।
- उसके बाद, चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया।
8. किसलिए प्रसिद्ध था?
- अपनी बहन राज्यश्री को बचाने के लिए किया गया संघर्ष।
- गौड़ राजा शशांक और मालवा के शासकों के खिलाफ वीरतापूर्वक लड़ा गया युद्ध।
- धोखे से शशांक द्वारा उसकी हत्या।
- वर्धन वंश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका।
9. निष्कर्ष:
राज्यवर्धन एक वीर और साहसी शासक था, लेकिन उसका शासनकाल बहुत छोटा रहा। उसकी हत्या के बाद, उसका छोटा भाई हर्षवर्धन सिंहासन पर बैठा और वर्धन वंश को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया।
हर्षवर्धन (606-647 ई.) – वर्धन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक
1. परिचय:
- हर्षवर्धन वर्धन वंश का सबसे महान शासक था।
- वह राज्यवर्धन का छोटा भाई था और अपने भाई की हत्या के बाद गद्दी पर बैठा।
- उसका शासनकाल 606 से 647 ई. तक रहा।
- उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
2. राजा कैसे बना?
- 606 ई. में बंगाल के राजा शशांक ने उसके बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
- इसके बाद हर्षवर्धन ने थानेसर और कन्नौज की गद्दी संभाली और अपने भाई की हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया।
- उसने अपनी बहन राज्यश्री को बचाया, जो विंध्य जंगलों में आत्मदाह करने जा रही थी।
3. साम्राज्य का विस्तार:
- हर्षवर्धन ने उत्तर भारत के अधिकांश भाग पर शासन किया।
- उसका साम्राज्य गुजरात, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल और मध्य प्रदेश तक फैला था।
- उसने दक्षिण भारत को भी जीतने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ।
4. प्रमुख युद्ध और विजयों:
- गौड़ राजा शशांक के खिलाफ युद्ध (606 ई.)
- हर्ष ने अपने भाई राज्यवर्धन की हत्या का बदला लेने के लिए बंगाल के शासक शशांक पर आक्रमण किया।
- हालांकि, शशांक के मरने के बाद उसका राज्य स्वतः कमजोर हो गया और हर्ष ने इसे जीत लिया।
- गुर्जर-प्रतिहार और मालवा पर विजय:
- हर्ष ने मालवा और गुर्जरों को हराकर अपने साम्राज्य में शामिल किया।
- पुलकेशिन II (चालुक्य वंश) के खिलाफ युद्ध (618 ई.)
- हर्षवर्धन ने दक्षिण भारत की ओर अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए चालुक्य शासक पुलकेशिन II पर आक्रमण किया।
- लेकिन नर्मदा नदी के पास उसे हार का सामना करना पड़ा।
- यह हर्ष की सबसे बड़ी असफलता मानी जाती है।
5. स्थापत्य कला और निर्माण कार्य:
- हर्षवर्धन ने बौद्ध धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हुए कई बौद्ध मठों, स्तूपों और मंदिरों का निर्माण कराया।
- उसने नालंदा विश्वविद्यालय का संरक्षण किया और उसकी भव्यता को बढ़ाया।
- हर्ष ने प्रयाग (इलाहाबाद) में प्रयाग महोत्सव की शुरुआत की, जिसमें हर पाँच साल में दान दिया जाता था।
6. साहित्य और ग्रंथ:
- हर्षवर्धन स्वयं एक विद्वान लेखक था और उसने संस्कृत में तीन नाटक लिखे:
- नागानंद
- “नागानंद” सम्राट हर्षवर्धन द्वारा रचित एक प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है।
- यह नाटक बोधिसत्त्व जीवक की कथा पर आधारित है, जो बौद्ध धर्म के आदर्शों को दर्शाता है।
- इसमें त्याग, करुणा और अहिंसा जैसे नैतिक मूल्यों को महत्व दिया गया है।
- नाटक में शिव और बुद्ध धर्म के तत्वों का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।
- “नागानंद” हर्षवर्धन की साहित्यिक रुचि और बौद्ध धर्म के प्रति उनकी आस्था को प्रकट करता है।
- रत्नावली
- “रत्नावली” सम्राट हर्षवर्धन द्वारा रचित एक संस्कृत नाटक है।
- यह एक रोमांटिक नाटक है, जिसमें नायिका रत्नावली और राजा उदयन की प्रेम कथा है।
- नाटक में राजनीतिक कूटनीति, प्रेम और हास्य का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।
- यह नाटक हर्षवर्धन की साहित्यिक प्रतिभा और मनोरंजनप्रियता को दर्शाता है।
- “रत्नावली” संस्कृत नाट्य साहित्य में प्रेम और हास्य रस का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- प्रियदर्शिका
- “प्रियदर्शिका” सम्राट हर्षवर्धन द्वारा रचित एक प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है।
- यह एक प्रेम और राजनीति पर आधारित नाटक है, जिसमें राजा उदयन और प्रियदर्शिका की कथा है।
- नाटक में राजनीतिक घटनाएँ, प्रेम, कूटनीति और नारी सशक्तिकरण का सुंदर वर्णन किया गया है।
- इसकी भाषा सरल और प्रभावशाली है, जो हर्षवर्धन की साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाती है।
- “प्रियदर्शिका” को संस्कृत नाट्य साहित्य में रोमांटिक और ऐतिहासिक नाटक के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है।
- नागानंद
- उसके दरबार में प्रसिद्ध लेखक बाणभट्ट था, जिसने “हर्षचरित” नामक ग्रंथ लिखा।
- “हर्षचरित” संस्कृत साहित्य की पहली ऐतिहासिक जीवनी है, जिसे बाणभट्ट ने लिखा था।
- यह ग्रंथ सम्राट हर्षवर्धन के जीवन, विजय अभियानों और शासन प्रणाली का वर्णन करता है।
- इसमें गद्य और काव्य का मिश्रण है, जिसे अलंकारिक और सुशोभित भाषा में लिखा गया है।
- यह तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।
- “हर्षचरित” आठ अधिकरणों (अध्यायों) में विभाजित है और हर्ष के पूर्वजों की गाथा से शुरू होता है।
- विद्यासागर ने “कादंबरी” नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की।
- “कादंबरी” संस्कृत के महान गद्यकार बाणभट्ट द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आख्यानात्मक काव्य (गद्यकाव्य) है।
- यह ग्रंथ अपूर्ण रह गया था, जिसे बाणभट्ट के पुत्र भूषणभट्ट ने पूरा किया।
- “कादंबरी” को दुनिया का पहला उपन्यास माना जाता है और इसमें प्रेम, रहस्य, और कल्पना का समावेश है।
- इसमें मुख्य पात्र चंद्रापीड और कादंबरी की प्रेम कहानी है, जो पुनर्जन्म पर आधारित है।
- यह संस्कृत साहित्य का एक उत्कृष्ट कृति है और अपनी अद्भुत कल्पनाशीलता के लिए प्रसिद्ध है।
7. प्रसिद्ध यात्री:
- चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) 630 ई. में हर्ष के शासनकाल में भारत आया।
- ह्वेनसांग (Xuanzang) चीन का एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, यात्री और विद्वान था।
- वह 7वीं शताब्दी में भारत आया और हर्षवर्धन के शासनकाल में यहाँ 16 साल (629-645 ई.) तक रहा।
- उसने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म और भारतीय दर्शन का अध्ययन किया।
- उसकी यात्रा का उद्देश्य बौद्ध ग्रंथों को एकत्रित करना और अध्ययन करना था।
- उसने भारत के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का विस्तृत विवरण दिया।
- ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के अनुभव “सी-यू-की” (Records of the Western World) नामक ग्रंथ में लिखे।
- उसने हर्षवर्धन को एक उदार, शक्तिशाली और धर्मपरायण शासक बताया।
- उसके अनुसार, भारत में हजारों बौद्ध मठ और कई बड़े विश्वविद्यालय थे।
- उसने कन्नौज महासभा (643 ई.) में भाग लिया, जिसे हर्षवर्धन ने आयोजित किया था।
- भारत से लौटते समय, वह 657 बौद्ध ग्रंथों और कई मूर्तियों को अपने साथ ले गया, जिनका उसने चीन में अनुवाद किया।
- उसने हर्ष के साम्राज्य, प्रशासन, बौद्ध धर्म और समाज का विस्तृत वर्णन किया।
- ह्वेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन भी किया।
8. किसलिए प्रसिद्ध था?
- एक सफल प्रशासक और सैन्य विजेता के रूप में।
- बौद्ध धर्म और शिक्षा का संरक्षक होने के कारण।
- नालंदा विश्वविद्यालय और बौद्ध मठों के पुनर्निर्माण में योगदान।
- संस्कृत साहित्य के महान रचनाकारों में से एक।
- प्रयाग महोत्सव के आयोजन के लिए।
- प्रयाग महोत्सव सम्राट हर्षवर्धन द्वारा आयोजित एक भव्य धार्मिक और दान समारोह था।
- यह हर पाँच वर्ष में प्रयाग (आधुनिक इलाहाबाद) में संगम तट पर आयोजित किया जाता था।
- इसे “महामोक्ष परिषद” भी कहा जाता था, जिसमें बौद्ध, हिंदू और जैन संतों को आमंत्रित किया जाता था।
- इस अवसर पर हर्षवर्धन अपनी पूरी संपत्ति दान कर देते थे, जिसमें राजकीय खजाना, वस्त्र, गहने आदि शामिल थे।
- हर्षवर्धन स्वयं केवल एक वस्त्र धारण कर बचा लेते थे और पुनः राज्य के सहयोग से शासन चलाते थे।
- इसमें बौद्ध धर्मगुरु, ब्राह्मण, गरीब, जरूरतमंद और साधु-संतों को दान दिया जाता था।
- प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस उत्सव में भाग लिया था और इसका विस्तृत वर्णन किया है।
- ह्वेनसांग के अनुसार, इस आयोजन में लाखों लोग शामिल होते थे और हर्षवर्धन स्वयं सेवा करते थे।
- यह धार्मिक सहिष्णुता, दान और बौद्ध धर्म के प्रति हर्षवर्धन की आस्था को दर्शाता था।
- प्रयाग महोत्सव भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो तत्कालीन समाज और धर्म की झलक देता है।
9. मृत्यु और पतन:
- हर्षवर्धन की 647 ई. में मृत्यु हो गई।
- उसके कोई संतान नहीं थी, जिससे वर्धन वंश का अंत हो गया।
- इसके बाद कन्नौज पर गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूट और पाल वंश का नियंत्रण हो गया।