राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूट वंश (753 – 982 ई.)

राष्ट्रकूट वंश भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने दक्षिण और मध्य भारत में 8वीं से 10वीं शताब्दी तक शासन किया। इनका मूल स्थान कर्नाटक और महाराष्ट्र क्षेत्र था, लेकिन बाद में इन्होंने उत्तर भारत के कई क्षेत्रों तक अपना साम्राज्य फैलाया।


राष्ट्रकूट वंश का साम्राज्य

राष्ट्रकूट साम्राज्य दक्षिण भारत से मध्य भारत और उत्तर भारत तक फैला था।

  • उत्तर में – गंगा-यमुना दोआब और कन्नौज
  • दक्षिण में – तमिलनाडु और केरल तक
  • पूर्व में – उड़ीसा और बंगाल तक
  • पश्चिम में – गुजरात और कोंकण तट तक

इनका साम्राज्य वर्तमान महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था।


राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक और उनके युद्ध

1. दंतिदुर्ग (735-756 ई.) – संस्थापक

  • चालुक्य वंश को हराकर राष्ट्रकूट साम्राज्य की स्थापना की।
  • मालवा पर विजय प्राप्त की और कांची (तमिलनाडु) तक साम्राज्य बढ़ाया।
  • ‘राजाधिराज’ और ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की।

2. कृष्ण प्रथम (756-774 ई.)

  • राष्ट्रकूट वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक।
  • कैलाश मंदिर (एलोरा) का निर्माण कराया
  • दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।

3. ध्रुव (780-793 ई.)

  • कन्नौज पर आक्रमण कर त्रिपक्षीय संघर्ष (पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट) में भाग लिया
  • प्रतिहार शासक वत्सराज और पाल शासक धर्मपाल को हराया।
  • राष्ट्रकूटों का प्रभाव उत्तरी भारत तक फैलाया।

4. गोविंद तृतीय (793-814 ई.)

  • कांची, उड़ीसा और कश्मीर तक विजय अभियान चलाया।
  • पांड्य, चोल और चेर शासकों को हराया।
  • श्रीलंका के राजा ने भी उसकी अधीनता स्वीकार की।

5. अमोघवर्ष (814-878 ई.) – साहित्य और कला का संरक्षक

  • सबसे लंबा शासन (64 वर्ष)।
  • ‘काविराज’ की उपाधि धारण की
  • कन्नड़ भाषा का पहला साहित्य “कविराजमार्ग” लिखा।
  • जैन धर्म को संरक्षण दिया और कई मंदिरों का निर्माण कराया।

6. इंद्र तृतीय (914-928 ई.)

  • प्रतिहार शासक महिपाल को हराकर कन्नौज पर कब्जा किया
  • गुजरात और मालवा पर नियंत्रण किया।

7. कृष्ण तृतीय (939-967 ई.)

  • चोलों और पांड्यों को हराकर दक्षिण भारत में प्रभाव बढ़ाया।
  • राष्ट्रकूट साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तार किया।

राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख मंदिर और स्थापत्य कला

1. कैलाश मंदिर, एलोरा (महाराष्ट्र)

  • कृष्ण प्रथम ने बनवाया।
  • यह भारत का सबसे बड़ा एकाश्म (एक ही पत्थर से बना) मंदिर है।
  • शिव को समर्पित, इसकी संरचना अद्वितीय है।

2. जैन मंदिर, एलोरा (महाराष्ट्र)

  • अमोघवर्ष ने बनवाया।
  • यह जैन धर्म की दिगंबर परंपरा का केंद्र था।

3. पत्तडकल के मंदिर (कर्नाटक)

  • राष्ट्रकूटों के संरक्षण में विकसीत हुए।
  • यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

4. मूकाम्बिका मंदिर (कर्नाटक)

  • अमोघवर्ष के शासनकाल में बनाया गया।

राष्ट्रकूट वंश में लिखे गए प्रमुख साहित्य

संस्कृत और कन्नड़ साहित्य:

  1. “कविराजमार्ग” (अमोघवर्ष) – कन्नड़ भाषा का पहला ग्रंथ।
  2. “प्रश्नोत्तर मालय” (अमोघवर्ष) – धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ।
  3. “गणित सार संग्रह” (महावीराचार्य) – गणित पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ।
  4. “कर्पूर मंजरी” (राजशेखर) – संस्कृत साहित्य का प्रसिद्ध नाटक।

राष्ट्रकूट वंश के प्रसिद्ध स्थल और स्मारक

  1. एलोरा गुफाएँ (महाराष्ट्र) – हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के मंदिर।
  2. अजान्ता गुफाएँ (महाराष्ट्र) – बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकला।
  3. पत्तडकल (कर्नाटक) – राष्ट्रकूटों द्वारा विकसित कला का केंद्र।

राष्ट्रकूट वंश से जुड़े प्रसिद्ध व्यक्ति

शासक:

  1. दंतिदुर्ग – संस्थापक।
  2. कृष्ण प्रथम – कैलाश मंदिर का निर्माता।
  3. अमोघवर्ष – कन्नड़ साहित्य और जैन धर्म का संरक्षक।

साहित्यकार और कवि:

  1. अमोघवर्ष – “कविराजमार्ग” का लेखक।
  2. राजशेखर – संस्कृत नाटककार।
  3. महावीराचार्य – गणितज्ञ।

धार्मिक और दार्शनिक व्यक्ति:

  1. जिनसेन – जैन आचार्य, जिन्होंने अमोघवर्ष को शिक्षा दी।
  2. महावीराचार्य – गणितज्ञ, जिन्होंने “गणित सार संग्रह” लिखा।

राष्ट्रकूट वंश की विशेषताएँ

  1. त्रिपक्षीय संघर्ष – प्रतिहार और पाल वंश से उत्तर भारत में कन्नौज के लिए संघर्ष किया।
  2. कन्नड़ साहित्य का विकास – अमोघवर्ष ने कन्नड़ भाषा को बढ़ावा दिया।
  3. एकाश्म स्थापत्य कला – कैलाश मंदिर और एलोरा की गुफाओं का निर्माण कराया।
  4. जैन धर्म का संरक्षण – जैन विद्वानों को प्रोत्साहन दिया।
  5. साम्राज्य विस्तार – दक्षिण और उत्तर भारत में व्यापक विजय अभियान चलाया।

राष्ट्रकूट वंश का पतन (982 ई.)

  1. चालुक्य वंश का उदय – पश्चिमी चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों को हराकर कर्नाटक पर कब्जा कर लिया।
  2. राजनीतिक अस्थिरता – कमजोर शासकों के कारण साम्राज्य धीरे-धीरे बिखर गया।
  3. चोलों का उदय – चोलों ने दक्षिण भारत में शक्ति प्राप्त कर ली।
  4. उत्तर भारत में शक्ति संतुलन बदल गया – प्रतिहार और पाल शासकों ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली।

निष्कर्ष

राष्ट्रकूट वंश भारत का एक महत्वपूर्ण साम्राज्य था, जिसने कला, साहित्य, स्थापत्य और धर्म के क्षेत्र में महान योगदान दिया। एलोरा का कैलाश मंदिर, कन्नड़ साहित्य का विकास, और त्रिपक्षीय संघर्ष राष्ट्रकूटों की प्रमुख उपलब्धियाँ थीं। हालांकि, 10वीं शताब्दी के अंत तक चालुक्य और चोल वंश के उदय के कारण राष्ट्रकूट साम्राज्य समाप्त हो गया


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