महमूद गजनवी

महमूद गजनवी का जीवन और कहानी

महमूद गजनवी मध्य एशिया के गज़नी (आधुनिक अफगानिस्तान) का एक शक्तिशाली तुर्की शासक था। वह गजनवी वंश (963-1186 ई.) का सबसे प्रभावशाली शासक था, जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसका मुख्य उद्देश्य धन-संपत्ति लूटना और इस्लाम का प्रचार करना था।

महमूद का जन्म 2 नवंबर 971 ई. को हुआ था। उसके पिता सबुक्तगीन गज़नी के शासक थे, जो पहले एक तुर्क गुलाम थे और बाद में शासक बने। महमूद के भाई का नाम इस्माइल था, जिसे उसने हराकर गद्दी हासिल की। वह एक महत्वाकांक्षी और क्रूर शासक था, जिसने अपने सैन्य अभियानों से गज़नी को शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया।


भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण और युद्ध (1000-1027 ई.)

महमूद ने भारत पर 1000 ई. से 1027 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किया। इन आक्रमणों का उद्देश्य भारत की अपार संपत्ति लूटना और उत्तर-पश्चिमी भारत पर नियंत्रण स्थापित करना था।

सबसे पहला आक्रमण उसने 1000 ई. में हिन्दू शाही राज्य (अफगानिस्तान और पंजाब के कुछ हिस्से) पर किया, जहाँ राजा जयपाल उसकी सेना के सामने टिक नहीं सका और पराजित होकर आत्मदाह कर लिया। उसके बाद, उसने जयपाल के पुत्र आनंदपाल को भी हराया।

1008 ई. में पेशावर का युद्ध हुआ, जिसमें आनंदपाल ने कई हिन्दू राजाओं को एकत्रित कर एक बड़ा मोर्चा बनाया। इस युद्ध में महमूद की जीत हुई, और उसने भारत के और भी इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।

1018 ई. में उसने कन्नौज पर हमला किया और वहां के राजा राजा गहड़वाल जयचंद प्रथम को हराकर पूरे नगर को लूट लिया। 1019 ई. में उसने मथुरा और वृंदावन के भव्य मंदिरों को लूटा और नष्ट कर दिया।

सबसे प्रसिद्ध आक्रमण 1025 ई. में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर हुआ, जो हिंदुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल था। महमूद ने इसे तोड़कर अपार संपत्ति लूट ली। कहा जाता है कि उसने मंदिर की स्वर्ण-प्रतिमा को तोड़कर गज़नी ले जाया और वहाँ इस्लामिक ध्वज फहराया।

1027 ई. में उसने अपना अंतिम आक्रमण किया और कुछ छोटे युद्ध लड़े, लेकिन भारत में स्थायी रूप से शासन स्थापित नहीं कर पाया।


महमूद गजनवी की मृत्यु (1030 ई.)

अपने आक्रमणों से अपार धन-संपत्ति इकट्ठा करने के बावजूद महमूद अंततः 1030 ई. में तपेदिक (टीबी) या गंभीर बुखार से मर गया। उसे अफगानिस्तान के गज़नी शहर में दफनाया गया। उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य कमजोर पड़ गया और उसके उत्तराधिकारी अधिक समय तक उसे संभाल नहीं सके।


महमूद गजनवी के समय का साहित्य और विद्वान

हालाँकि महमूद खुद शिक्षित नहीं था, लेकिन उसने विद्वानों और साहित्यकारों को संरक्षण दिया। उसके दरबार में कई प्रमुख लेखक, वैज्ञानिक और कवि थे, जिन्होंने महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।

  1. अल-बेरूनी
    यह एक महान विद्वान और वैज्ञानिक था, जिसने “तहकीक-ए-हिंद” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें भारत की संस्कृति, धर्म, समाज, विज्ञान और खगोलशास्त्र का वर्णन किया गया।
  2. फिरदौसी
    यह प्रसिद्ध फारसी कवि था, जिसने “शाहनामा” नामक ग्रंथ लिखा। यह ईरान के इतिहास पर आधारित एक महाकाव्य था। हालाँकि, महमूद ने फिरदौसी को अपेक्षित पुरस्कार नहीं दिया, जिससे फिरदौसी गुस्से में दरबार छोड़कर चला गया।
  3. उत्बी
    इसने “तारीख-ए-यामिनी” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें महमूद के युद्ध अभियानों और उसकी विजय का विस्तृत वर्णन है।
  4. असादी
    यह एक और प्रसिद्ध फारसी कवि था, जिसने कई कविताएँ लिखीं।

महमूद गजनवी के समय की स्थापत्य कला और प्रसिद्ध स्थल

महमूद ने अपने शासनकाल में महलों, मस्जिदों और किलों का निर्माण करवाया।

  1. गज़नी का महल और किला
    महमूद ने अपनी राजधानी गज़नी में एक विशाल महल और किला बनवाया, जो उसकी सत्ता का प्रतीक था।
  2. गज़नी की जामा मस्जिद
    इस्लामी स्थापत्य कला का एक प्रमुख उदाहरण, जिसे महमूद ने बनवाया था।
  3. गज़नी का शाही मकबरा
    महमूद की मृत्यु के बाद उसे यहीं दफनाया गया। यह मकबरा आज भी अफगानिस्तान में मौजूद है।
  4. सोमनाथ मंदिर का ध्वंस
    भारत में उसका सबसे कुख्यात कार्य सोमनाथ मंदिर को नष्ट करना था। उसने इस मंदिर की संपत्ति लूटी और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया।

महमूद गजनवी का प्रभाव

  • उसके आक्रमणों ने भारत में इस्लामी शासन की नींव रखी
  • उसने उत्तर भारत के हिंदू शासकों की शक्ति को कमजोर कर दिया, जिससे बाद में मोहम्मद गौरी और दिल्ली सल्तनत का उदय हुआ
  • गज़नी को एक शक्तिशाली इस्लामी साम्राज्य में बदल दिया, जिसे वह भारत से लूटे गए धन से संपन्न करता था।
  • उसके आक्रमणों के कारण भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को भारी क्षति पहुँची, खासकर मंदिरों और कला के क्षेत्रों में।

निष्कर्ष

महमूद गजनवी को भारत में एक लुटेरे और आक्रमणकारी के रूप में याद किया जाता है। उसने भारत की अपार संपत्ति लूटी, लेकिन यहाँ स्थायी रूप से शासन स्थापित नहीं कर पाया। उसके आक्रमणों ने मध्यकालीन भारतीय इतिहास को नया मोड़ दिया, क्योंकि इससे इस्लामी शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ

वह केवल एक सैन्य आक्रमणकारी और लूटेरा था, जिसने अपने लिए अपार धन-संपत्ति अर्जित की, लेकिन भारत में कोई स्थायी साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया।

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