मध्य प्रदेश के पंचायती राज से जुड़े आयोग

मध्य प्रदेश के पंचायती राज से जुड़े आयोग और उनकी विशेषताएँ

मध्य प्रदेश में पंचायती राज प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई आयोग बने, जिन्होंने पंचायतों को अधिक शक्तियाँ देने और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने की सिफारिश की।


1. बालवंत राय मेहता समिति (1957)

विशेषताएँ:
✅ पहली बार त्रिस्तरीय पंचायती राज (ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत) की सिफारिश की।
✅ पंचायतों को विकास योजनाओं का प्रमुख अंग बनाने की बात कही।
✅ पंचायतों को स्वायत्त बनाने और अधिक वित्तीय अधिकार देने की जरूरत बताई।
✅ इस समिति की सिफारिशों पर 1959 में राजस्थान में पहली बार पंचायती राज लागू हुआ और इसके बाद मध्य प्रदेश में भी इसे अपनाया गया।


2. अशोक मेहता समिति (1977)

विशेषताएँ:
✅ त्रिस्तरीय प्रणाली के बजाय द्विस्तरीय पंचायती राज प्रणाली (ग्राम पंचायत और जिला पंचायत) की सिफारिश की।
✅ पंचायतों को राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति देने की बात कही।
✅ पंचायतों को सरकार की योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार बनाने की सिफारिश की।
✅ पंचायती राज में राजनीतिक दलों की भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कही।


3. जी.वी.के. राव समिति (1985)

विशेषताएँ:
✅ पंचायती राज को प्रशासनिक संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने की सिफारिश की।
✅ पंचायतों को विकास योजनाओं की निगरानी और क्रियान्वयन में अहम भूमिका देने पर जोर दिया।
✅ राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे पंचायतों को स्वायत्तशासी निकाय के रूप में कार्य करने दें।
✅ ज़िला स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिला परिषद को देने की सिफारिश की।


4. एल.एम. सिंघवी समिति (1986)

विशेषताएँ:
✅ पहली बार पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की।
✅ पंचायतों के लिए स्वतंत्र चुनाव आयोग गठित करने का सुझाव दिया।
✅ पंचायतों को कर वसूलने और वित्तीय अधिकार देने की बात कही।
✅ पंचायती राज को और अधिक मजबूत करने के लिए संविधान में संशोधन करने की अनुशंसा की।
✅ इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही 73वां संविधान संशोधन (1992) लाया गया।


5. थुंगन समिति (1989)

विशेषताएँ:
✅ पंचायतों को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार देने की सिफारिश की।
✅ पंचायती राज संस्थाओं के लिए राज्य वित्त आयोग बनाने की बात कही।
✅ पंचायतों के लिए राज्य स्तर पर एक स्वतंत्र निकाय गठित करने का सुझाव दिया।
✅ पंचायती राज में विकास योजनाओं को पंचायतों के माध्यम से लागू करने की सिफारिश की।


6. गाडगिल समिति (1986-87)

विशेषताएँ:
✅ पंचायतों को विकास कार्यों का पूरा नियंत्रण देने की बात कही।
✅ पंचायती राज को वित्तीय रूप से मजबूत करने पर जोर दिया।
✅ ग्राम पंचायतों को राज्य सरकार से सीधे फंड प्राप्त करने की सिफारिश की।
✅ पंचायतों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और विकास योजनाएँ बनाने का अधिकार देने की बात कही।


निष्कर्ष

इन आयोगों की सिफारिशों के आधार पर 73वां संविधान संशोधन (1992) लाया गया, जिससे पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला। मध्य प्रदेश में 1993 में पंचायती राज अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत पंचायतों को वित्तीय, प्रशासनिक और विकास कार्यों से जुड़े अधिकार दिए गए। इससे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वशासन और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को मजबूती मिली

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