स्थापत्य कला क्या होती है?
स्थापत्य कला (Architecture) वह कला है जिसमें भवनों, मंदिरों, किलों, महलों, स्तूपों, गुफाओं, और अन्य संरचनाओं का निर्माण किया जाता है। यह कला न केवल भवन निर्माण से संबंधित होती है, बल्कि इसमें उपयोग की जाने वाली तकनीक, डिज़ाइन, वास्तुशिल्प विशेषताएँ और धार्मिक-सांस्कृतिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण होते हैं। स्थापत्य कला समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान को दर्शाती है।
मध्य प्रदेश की स्थापत्य कला
मध्य प्रदेश की स्थापत्य कला अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है। यहाँ अनेक मंदिर, गुफाएँ, स्तूप, किले और महल हैं, जो विभिन्न राजवंशों और कालखंडों की स्थापत्य विशेषताओं को दर्शाते हैं। यह कला मुख्य रूप से गुप्त, प्रतिहार, परमार, चंदेल, कलचुरी, गोंड और मुग़ल काल में विकसित हुई।
मध्य प्रदेश की स्थापत्य कला के प्रमुख प्रकार
- बौद्ध स्थापत्य कला
- जैन स्थापत्य कला
- हिंदू मंदिर स्थापत्य कला
- इस्लामिक स्थापत्य कला
- गोंड स्थापत्य कला
बौद्ध स्थापत्य कला की संपूर्ण जानकारी
बौद्ध स्थापत्य कला वह वास्तुशिल्प परंपरा है जो बौद्ध धर्म के विस्तार के साथ विकसित हुई। इसमें स्तूप, विहार, चैत्यगृह, बौद्ध गुफाएँ और मंदिर शामिल हैं। यह स्थापत्य कला मुख्य रूप से अशोक, सातवाहन, कुषाण और गुप्त काल में फली-फूली। मध्य प्रदेश इस कला का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, जहाँ सांची, विदिशा, भरहुत, देउर कोठार, उदयगिरि और बाघ गुफाएँ स्थित हैं।
बौद्ध स्थापत्य कला का क्षेत्रीय विस्तार
मध्य प्रदेश में बौद्ध स्थापत्य कला मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में पाई जाती है:
- सांची (रायसेन जिला) – विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों का स्थान।
- भरहुत (सतना जिला) – प्राचीन बौद्ध रेलिंग और स्तूप।
- देउर कोठार (सतना जिला) – अशोक कालीन स्तूप और बौद्ध अवशेष।
- उदयगिरि (विदिशा जिला) – बौद्ध गुफाएँ और अशोककालीन अभिलेख।
- बाघ गुफाएँ (धार जिला) – बौद्ध चित्रकला और गुफा स्थापत्य कला।
- मिर्जापुर, रीवा और शहडोल – बौद्ध स्तूपों के अवशेष।
बौद्ध स्थापत्य कला के प्रमुख घटक
1. स्तूप
- यह गोलाकार गुंबदनुमा संरचना होती थी, जिसमें बौद्ध धर्म से जुड़े अवशेष रखे जाते थे।
- स्तूप के चारों ओर रेलिंग और तोरण होते थे।
- प्रमुख उदाहरण: सांची स्तूप, भरहुत स्तूप, देउर कोठार के स्तूप।
2. चैत्यगृह
- यह बौद्ध पूजा स्थल होता था, जिसमें स्तूप और स्तंभ होते थे।
- प्रमुख उदाहरण: बाघ गुफाओं के चैत्यगृह।
3. विहार
- यह बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान होते थे।
- प्रमुख उदाहरण: बाघ गुफाएँ, उदयगिरि गुफाएँ।
4. बौद्ध गुफाएँ
- ये पहाड़ियों को काटकर बनाई जाती थीं और इनमें धार्मिक चित्रांकन होता था।
- प्रमुख उदाहरण: बाघ गुफाएँ, उदयगिरि गुफाएँ।
बौद्ध स्थापत्य कला के प्रमुख व्यक्ति
1. सम्राट अशोक
- विशेषता: बौद्ध धर्म के महान संरक्षक।
- योगदान: सांची, भरहुत और विदिशा में स्तूपों और अभिलेखों का निर्माण।
- रोचक तथ्य: अशोक ने अपने शिलालेखों में अहिंसा और धर्म का प्रचार किया।
2. कुषाण शासक कनिष्क
- विशेषता: महायान बौद्ध धर्म का संरक्षक।
- योगदान: बौद्ध स्थापत्य कला को बढ़ावा दिया।
3. सातवाहन शासक
- विशेषता: बौद्ध स्थापत्य कला के प्रमुख संरक्षक।
- योगदान: सांची के तोरण और रेलिंग का निर्माण।
4. ह्वेनसांग (चीनी यात्री)
- विशेषता: भारत में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया।
- योगदान: अपने लेखों में सांची और विदिशा के बौद्ध स्थलों का उल्लेख किया।
बौद्ध स्थापत्य कला की विशेषताएँ
- धार्मिक प्रतीकवाद – स्तूपों में बौद्ध धर्म के प्रतीक जैसे कमल, चक्र, सिंह आदि उकेरे गए।
- कला और शिल्प – गुप्तकालीन बौद्ध मूर्तियों में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का चित्रण मिलता है।
- तोरण और रेलिंग – ये बौद्ध धर्म की कथाओं को चित्रित करते थे।
- गुफा चित्रकला – बाघ गुफाओं में सुंदर बौद्ध चित्रकला देखी जाती है।
- अशोक स्तंभ – बौद्ध स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण उदाहरण।
बौद्ध स्थापत्य कला से जुड़े रोचक तथ्य
- सांची का स्तूप – यह यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है।
- भरहुत स्तूप – यहाँ बुद्ध के पिछले जन्मों (जातक कथाओं) का चित्रण मिलता है।
- बाघ गुफाएँ – इन्हें “मध्य प्रदेश का अजंता” कहा जाता है।
- अशोक के शिलालेख – ये बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण थे।
- सांची का तोरण द्वार – इसे भारत की सबसे सुंदर पत्थर की नक्काशी माना जाता है।
MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- सांची स्तूप – सम्राट अशोक द्वारा निर्मित, तोरण और रेलिंग सातवाहन शासकों ने बनवाए।
- भरहुत स्तूप – जातक कथाओं की उत्कृष्ट मूर्तिकला देखने को मिलती है।
- बाघ गुफाएँ – मध्य प्रदेश में बौद्ध चित्रकला का अनूठा उदाहरण।
- उदयगिरि गुफाएँ – इनमें अशोककालीन बौद्ध अभिलेख पाए गए हैं।
- देउर कोठार स्तूप – मध्य प्रदेश का सबसे प्राचीन बौद्ध स्थल।
बौद्ध स्थापत्य कला ने न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी मध्य प्रदेश को समृद्ध किया। इसकी विरासत आज भी सांची, बाघ गुफाओं और भरहुत जैसे स्थलों में जीवंत है। MPPSC परीक्षा में इससे जुड़े कई प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए इस कला की विशेषताओं, स्थलों, संरचनाओं और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़ना आवश्यक है।
जैन स्थापत्य कला की संपूर्ण जानकारी
जैन स्थापत्य कला वह वास्तुशिल्प परंपरा है जो जैन धर्म के विस्तार के साथ विकसित हुई। इसमें जैन मंदिर, गुफाएँ, स्तूप, और तीर्थस्थल शामिल हैं। यह स्थापत्य कला मुख्य रूप से गुप्त, प्रतिहार, चंदेल, परमार और कालचुरी शासकों के संरक्षण में विकसित हुई। मध्य प्रदेश जैन स्थापत्य कला का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, जहाँ खजुराहो, ग्वालियर, देवगढ़, कुंडलपुर, सोनागिरि, और उज्जैन जैसे स्थल स्थित हैं।
जैन स्थापत्य कला का क्षेत्रीय विस्तार
मध्य प्रदेश में जैन स्थापत्य कला मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में पाई जाती है:
- खजुराहो (छतरपुर जिला) – जैन मंदिरों का एक प्रमुख केंद्र।
- ग्वालियर किला (ग्वालियर जिला) – विशाल जैन प्रतिमाएँ और गुफाएँ।
- सोनागिरि (दतिया जिला) – 100 से अधिक जैन मंदिरों का समूह।
- कुंडलपुर (दमोह जिला) – भगवान आदिनाथ की विशाल प्रतिमा और जैन तीर्थस्थल।
- बीजा मंडल (विदिशा जिला) – प्राचीन जैन मंदिरों का स्थल।
- देवगढ़ (ललितपुर, एमपी-यूपी सीमा) – प्राचीन जैन मूर्तिकला और मंदिर।
- उज्जैन (मालवा क्षेत्र) – जैन मंदिरों और तीर्थस्थलों का प्रमुख केंद्र।
जैन स्थापत्य कला के प्रमुख घटक
1. जैन मंदिर
- यह श्वेत संगमरमर और बलुआ पत्थर से बनाए जाते थे।
- प्रमुख उदाहरण: खजुराहो के पार्श्वनाथ और आदिनाथ मंदिर, कुंडलपुर मंदिर, सोनागिरि के मंदिर।
2. जैन गुफाएँ
- ये पहाड़ियों को काटकर बनाई गईं और इनमें तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उकेरी गईं।
- प्रमुख उदाहरण: ग्वालियर किले की जैन प्रतिमाएँ, उदयगिरि गुफाएँ।
3. स्तूप और शिलालेख
- ये जैन तीर्थंकरों और संतों के सम्मान में बनाए गए थे।
- प्रमुख उदाहरण: देवगढ़ के जैन शिलालेख, बीजा मंडल का जैन स्तूप।
4. विशाल जैन मूर्तियाँ
- जैन तीर्थंकरों की विशाल प्रतिमाएँ बनाई गईं।
- प्रमुख उदाहरण: ग्वालियर किले की 57 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति, कुंडलपुर में आदिनाथ प्रतिमा।
जैन स्थापत्य कला के प्रमुख व्यक्ति
1. चंदेल शासक धर्मपाल और यशोवर्मन (10वीं-11वीं सदी)
- विशेषता: जैन धर्म के संरक्षक।
- योगदान: खजुराहो के जैन मंदिरों का निर्माण।
2. परमार राजा भोज (11वीं सदी)
- विशेषता: जैन धर्म को संरक्षण दिया।
- योगदान: उज्जैन और विदिशा में जैन मंदिरों का निर्माण।
3. ग्वालियर के तोमर शासक (15वीं सदी)
- विशेषता: विशाल जैन प्रतिमाओं का निर्माण।
- योगदान: ग्वालियर किले की जैन मूर्तियों का निर्माण।
4. कालचुरी शासक गांगेयदेव (11वीं सदी)
- विशेषता: जैन धर्म के अनुयायी।
- योगदान: जैन तीर्थस्थलों का विस्तार किया।
जैन स्थापत्य कला की विशेषताएँ
- संगमरमर और बलुआ पत्थर का प्रयोग – मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण उच्च गुणवत्ता वाले पत्थरों से किया गया।
- तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियाँ – जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की भव्य प्रतिमाएँ बनाई गईं।
- नक्काशी और शिल्पकला – मंदिरों के स्तंभों और द्वारों पर सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है।
- धार्मिक प्रतीकवाद – जैन मंदिरों में कमल, स्वस्तिक, और धर्मचक्र जैसे प्रतीक उकेरे गए।
- तीर्थस्थलों का निर्माण – ग्वालियर, सोनागिरि और कुंडलपुर जैसे तीर्थस्थल विकसित किए गए।
जैन स्थापत्य कला से जुड़े रोचक तथ्य
- ग्वालियर किले की पार्श्वनाथ प्रतिमा – यह भारत की सबसे ऊँची जैन प्रतिमाओं में से एक है।
- खजुराहो के जैन मंदिर – इनकी मूर्तिकला और शिल्पकला हिंदू मंदिरों जैसी है।
- सोनागिरि तीर्थ – यहाँ 100 से अधिक जैन मंदिर हैं, जो 9वीं से 16वीं शताब्दी के बीच बने।
- कुंडलपुर की आदिनाथ प्रतिमा – यह मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जैन प्रतिमा है।
- बीजा मंडल के मंदिर – इनका निर्माण परमार और गुर्जर-प्रतिहार शासकों ने कराया था।
MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- खजुराहो के जैन मंदिर – चंदेल शासकों द्वारा निर्मित।
- ग्वालियर किले की जैन प्रतिमाएँ – तोमर शासकों द्वारा निर्मित, भारत की सबसे ऊँची जैन मूर्तियों में शामिल।
- सोनागिरि तीर्थ – जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय का प्रमुख केंद्र।
- कुंडलपुर तीर्थ – आदिनाथ की विशाल प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध।
- देवगढ़ के जैन शिलालेख – ये जैन धर्म की प्राचीनतम स्थापत्य धरोहरों में से एक हैं।
मध्य प्रदेश में जैन स्थापत्य कला अपनी भव्यता, विशाल मूर्तियों और धार्मिक महत्व के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखती है। खजुराहो, ग्वालियर, सोनागिरि और कुंडलपुर जैसे स्थल इस परंपरा की समृद्ध धरोहर को दर्शाते हैं। MPPSC परीक्षा में इससे जुड़े कई प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए इसकी विशेषताओं, स्थलों, संरचनाओं और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़ना आवश्यक है।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला की संपूर्ण जानकारी
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग है। यह स्थापत्य कला मंदिरों के निर्माण में प्रयुक्त शैली, शिल्प, और वास्तु संरचनाओं का अध्ययन करती है। मध्य प्रदेश में हिंदू मंदिर स्थापत्य कला प्रमुख रूप से गुप्त, प्रतिहार, चंदेल, परमार और कालचुरी शासकों के संरक्षण में विकसित हुई।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला का क्षेत्रीय विस्तार
मध्य प्रदेश में हिंदू मंदिर स्थापत्य कला मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में विकसित हुई:
- खजुराहो (छतरपुर जिला) – विश्व धरोहर स्थल, चंदेल कालीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध।
- उज्जैन (मालवा क्षेत्र) – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सहित कई प्रसिद्ध मंदिरों का केंद्र।
- ओंकारेश्वर (खंडवा जिला) – ज्योतिर्लिंग मंदिर, नर्मदा नदी के द्वीप पर स्थित।
- मांडू (धार जिला) – परमार कालीन मंदिरों के अवशेष।
- बटेश्वर मंदिर समूह (मुरैना जिला) – प्रतिहार कालीन 200 से अधिक मंदिरों का समूह।
- बिजामंडल (विदिशा जिला) – परमार कालीन विष्णु और शिव मंदिरों का केंद्र।
- अमझेरा (धार जिला) – परमार शासकों के बनाए प्राचीन मंदिर।
- भीमबेटका (रायसेन जिला) – गुफा चित्रों के अलावा, शिव मंदिरों के अवशेष।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला के प्रमुख घटक
1. नागर शैली (उत्तर भारत की प्रमुख शैली)
- विशेषता: ऊँचे शिखर, गर्भगृह, मंडप और कलश।
- उदाहरण: खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर, बटेश्वर मंदिर समूह।
2. द्रविड़ शैली (दक्षिण भारतीय प्रभाव)
- विशेषता: गोपुरम (प्रवेश द्वार), विस्तृत प्रांगण, शिखर का पिरामिड आकार।
- उदाहरण: उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर (पुनर्निर्मित)।
3. वेसर शैली (नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रण)
- विशेषता: दोनों शैलियों के तत्वों का समावेश।
- उदाहरण: ओंकारेश्वर मंदिर, बिजामंडल मंदिर (विदिशा)।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला के प्रमुख व्यक्ति
1. गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय (4वीं-5वीं सदी)
- विशेषता: मंदिर निर्माण की शुरुआत।
- योगदान: उदयगिरि की गुफाएँ, जिनमें भगवान विष्णु की वराह मूर्ति प्रमुख है।
2. चंदेल शासक धंगदेव (10वीं सदी)
- विशेषता: भव्य मंदिर निर्माण का स्वर्ण युग।
- योगदान: खजुराहो के कंदारिया महादेव, लक्ष्मण और विष्वनाथ मंदिर।
3. परमार राजा भोज (11वीं सदी)
- विशेषता: मंदिर निर्माण और वास्तुशास्त्र का विकास।
- योगदान: भोपाल के भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण।
4. गुर्जर-प्रतिहार शासक मिहिरभोज (9वीं सदी)
- विशेषता: मंदिर स्थापत्य का संरक्षण।
- योगदान: बटेश्वर मंदिर समूह (मुरैना) का निर्माण।
5. कालचुरी शासक गांगेयदेव (11वीं सदी)
- विशेषता: मध्य भारत में शिव मंदिरों का निर्माण।
- योगदान: अमरकंटक क्षेत्र में मंदिरों का निर्माण।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला की विशेषताएँ
- गर्भगृह (Sanctum Sanctorum) – मंदिर का मुख्य भाग, जहाँ देवता की मूर्ति स्थित होती है।
- शिखर (Tower) – मंदिर के ऊपरी भाग में बना हुआ शिखर, जो विभिन्न शैलियों में निर्मित होता था।
- मंडप (Hall) – यह सभा मंडप होता है, जहाँ भक्त पूजा करते हैं।
- अंतःराल (Vestibule) – गर्भगृह और मंडप को जोड़ने वाला क्षेत्र।
- गोपुरम (Gateway Tower) – दक्षिण भारत में मंदिरों के विशाल द्वार।
- नक्काशी और मूर्तिकला – मंदिरों में देवी-देवताओं, अप्सराओं, मिथुन मूर्तियों की अद्भुत शिल्पकारी होती है।
हिंदू मंदिर स्थापत्य कला से जुड़े रोचक तथ्य
- खजुराहो के मंदिर – चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित, अपनी उत्कृष्ट मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध।
- भोपाल का भोजपुर मंदिर – यह भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक को समेटे हुए है।
- बटेश्वर मंदिर समूह – 200 से अधिक छोटे-बड़े मंदिरों का समूह, जो प्रतिहार काल में बने।
- ओंकारेश्वर मंदिर – यह नर्मदा नदी के बीच एक द्वीप पर स्थित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है।
- उदयगिरि गुफाएँ – यहाँ की विष्णु की वराह मूर्ति गुप्तकालीन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।
MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- खजुराहो मंदिर समूह – चंदेल शासकों द्वारा निर्मित, विश्व धरोहर स्थल।
- भोपाल का भोजपुर शिव मंदिर – राजा भोज द्वारा निर्मित, अधूरा रह गया।
- गुप्त कालीन स्थापत्य – उदयगिरि की वराह गुफा और मंदिर।
- प्रतिहार काल के मंदिर – बटेश्वर मंदिर समूह, मुरैना।
- महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर मंदिर – दो प्रमुख ज्योतिर्लिंग मंदिर, धार्मिक और स्थापत्य महत्व के।
मध्य प्रदेश की हिंदू मंदिर स्थापत्य कला अपनी भव्यता, मूर्तिकला, और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो, उज्जैन, ओंकारेश्वर, बटेश्वर और भोजपुर जैसे स्थल इसकी उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। MPPSC परीक्षा में इससे जुड़े कई प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए मंदिरों की शैलियों, संरचनाओं, महत्वपूर्ण व्यक्तियों और स्थापत्य की विशेषताओं को ध्यानपूर्वक पढ़ना आवश्यक है।
मध्य प्रदेश में इस्लामिक स्थापत्य कला
इस्लामिक स्थापत्य कला मध्यकाल में भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ विकसित हुई। मध्य प्रदेश में इस कला का प्रमुख प्रभाव सुल्तानकाल, मुगलकाल और बाद के नवाबी शासन में देखा जाता है। इस्लामिक स्थापत्य कला में मस्जिदें, मकबरें, महल, किले और दरगाहें प्रमुख रूप से शामिल हैं। यह स्थापत्य शैली ज्यामितीय डिजाइन, मेहराब (आर्च), गुंबद, मीनारें और जालीदार नक्काशी के लिए जानी जाती है।
इस्लामिक स्थापत्य कला का क्षेत्रीय विस्तार (मध्य प्रदेश में प्रमुख स्थल)
- मांडू (धार जिला) – अफगान स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण, जहाँ कई ऐतिहासिक महल, मकबरे और मस्जिदें स्थित हैं।
- भोपाल – नवाबी शासनकाल में इस्लामिक स्थापत्य कला का केंद्र, जिसमें ताजुल मस्जिद और मोती मस्जिद जैसे भव्य निर्माण शामिल हैं।
- ग्वालियर – मुगलकालीन और बाद के इस्लामिक वास्तुकला का महत्वपूर्ण केंद्र।
- बुरहानपुर – मुगलकालीन मकबरों और दरगाहों का प्रमुख स्थल, जहाँ शाह नवाज खान का मकबरा और शाही किला स्थित हैं।
- विदिशा और रायसेन – यहाँ मुगल कालीन मस्जिदों और किलों के अवशेष पाए जाते हैं।
- इंदौर – होल्कर शासन के अंतर्गत इस्लामिक और मराठा स्थापत्य का मिश्रण देखा जाता है।
इस्लामिक स्थापत्य कला के प्रमुख घटक
- गुंबद (Dome) – संरचनाओं को भव्यता और मजबूती प्रदान करता है, आमतौर पर मकबरों और मस्जिदों में देखा जाता है।
- मेहराब (Arch) – इमारतों में मुख्य द्वार और खिड़कियों में इस शैली का उपयोग होता है।
- मीनारें (Minarets) – ऊँची टावरनुमा संरचनाएँ, जो मस्जिदों में अज़ान देने के लिए बनती थीं।
- जाली कार्य (Jali Work) – पत्थरों को काटकर महीन डिजाइनों वाली जालीदार खिड़कियाँ बनाई जाती थीं।
- अभिलेख (Calligraphy) – इमारतों की दीवारों पर कुरान की आयतें सुलेख (कैलीग्राफी) में लिखी जाती थीं।
- बाग-बगीचे (Charbagh Design) – विशेषकर मुगलकालीन स्थापत्य में चारबाग शैली के सुंदर उद्यान बनाए जाते थे।
इस्लामिक स्थापत्य कला के प्रमुख व्यक्ति
1. होशंग शाह (15वीं सदी)
- विशेषता: मालवा सल्तनत के प्रमुख शासक, जिन्होंने मांडू को अपनी राजधानी बनाया।
- योगदान: होशंग शाह का मकबरा (मांडू) – भारत का पहला संगमरमर से निर्मित मकबरा, जो ताजमहल की प्रेरणा माना जाता है।
2. बाज बहादुर (16वीं सदी)
- विशेषता: मांडू का अंतिम स्वतंत्र शासक, जिसने स्थापत्य कला को संरक्षण दिया।
- योगदान: रानी रूपमती महल (मांडू), जहाज़ महल, हिंडोला महल – पानी की संरचनाओं से जुड़े सुंदर महल।
3. दोस्त मोहम्मद खान (18वीं सदी)
- विशेषता: भोपाल रियासत का संस्थापक।
- योगदान: भोपाल की इस्लामिक स्थापत्य कला की शुरुआत।
4. शाहजहाँ (17वीं सदी, मुगल सम्राट)
- विशेषता: मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में कुछ उल्लेखनीय इमारतों का निर्माण कराया।
- योगदान: अहमद शाह वली का मकबरा और जैनाबाद महल (बुरहानपुर)।
5. नवाब शाहजहाँ बेगम (19वीं सदी)
- विशेषता: भोपाल की सबसे प्रभावशाली शासिका, जिन्होंने वास्तुकला को बढ़ावा दिया।
- योगदान: ताजुल मस्जिद (भोपाल), मोती मस्जिद।
इस्लामिक स्थापत्य कला की विशेषताएँ
- धार्मिक भवनों का निर्माण – इस्लामिक स्थापत्य में प्रमुख रूप से मस्जिदें, दरगाहें और मकबरे बनाए गए।
- संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर का उपयोग – इमारतों में उच्च गुणवत्ता वाले पत्थरों का प्रयोग किया गया।
- हिंदू और इस्लामिक स्थापत्य का संगम – कई संरचनाओं में हिंदू और इस्लामिक स्थापत्य का मिश्रण देखा गया, जैसे ग्वालियर का किला।
- चारबाग उद्यान प्रणाली – विशेषकर मुगल काल में बागों का निर्माण किया गया, जैसे बुरहानपुर में बने बगीचे।
- विशाल प्रवेश द्वार – प्रमुख इमारतों में भव्य द्वार बनाए गए, जिन पर नक्काशी और सुलेख का कार्य किया गया।
इस्लामिक स्थापत्य कला से जुड़े रोचक तथ्य
- होशंग शाह का मकबरा – यह मकबरा भारत की पहली संपूर्ण संगमरमर से बनी इमारत है और ताजमहल के वास्तुकारों ने इससे प्रेरणा ली थी।
- ताजुल मस्जिद, भोपाल – यह एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जिसे शाहजहाँ बेगम ने बनवाया था।
- जहाज़ महल, मांडू – यह महल एक झील के बीच स्थित है और ऐसा प्रतीत होता है मानो पानी में तैर रहा हो।
- ग्वालियर का किला – इसमें मुगल स्थापत्य के साथ राजपूत और हिंदू प्रभाव भी देखने को मिलता है।
- बुरहानपुर का शाही किला – शाहजहाँ की पत्नी मुमताज महल की मृत्यु यहीं हुई थी और प्रारंभ में ताजमहल यहीं बनाने की योजना थी।
MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- होशंग शाह का मकबरा (मांडू) – भारत का पहला संपूर्ण संगमरमर मकबरा।
- ताजुल मस्जिद (भोपाल) – एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक।
- जहाज़ महल (मांडू) – पानी के ऊपर बना प्रतीत होने वाला महल।
- ग्वालियर किला – इस्लामिक और हिंदू स्थापत्य का मिश्रण।
- बुरहानपुर का शाही किला – जहाँ मुमताज महल की मृत्यु हुई थी।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश में इस्लामिक स्थापत्य कला मांडू, भोपाल, बुरहानपुर और ग्वालियर जैसे क्षेत्रों में विकसित हुई। यह कला गुंबद, मीनारें, मेहराब, जालीदार नक्काशी और सुंदर उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है। इस शैली में हिंदू और इस्लामिक वास्तुकला का अनूठा समावेश देखने को मिलता है। MPPSC परीक्षा की दृष्टि से इस्लामिक स्थापत्य कला से संबंधित स्मारक, उनके निर्माणकर्ता और उनकी विशेषताएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मध्य प्रदेश की गोंड स्थापत्य कला
गोंड स्थापत्य कला मध्य प्रदेश में गोंड जनजाति के शासकों द्वारा विकसित की गई थी। यह कला मुख्य रूप से गढ़-प्रासादों (किलों), मंदिरों, स्मारकों, और जल प्रबंधन संरचनाओं में देखी जाती है। यह स्थापत्य कला प्रकृति से प्रेरित, लोक मान्यताओं से जुड़ी और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी। गोंड स्थापत्य कला में पत्थर, लकड़ी और मिट्टी का व्यापक रूप से उपयोग किया गया।
गोंड स्थापत्य कला का क्षेत्रीय विस्तार (मध्य प्रदेश में प्रमुख स्थल)
- गढ़ा-कटंगा (जबलपुर) – गोंड राजवंश की राजधानी, जहाँ भव्य किले और मंदिर स्थित हैं।
- चौरागढ़ (नरसिंहपुर) – गोंड शासक संग्राम शाह द्वारा निर्मित एक सामरिक किला।
- देवगढ़ (छिंदवाड़ा) – गोंड शासकों द्वारा निर्मित ऐतिहासिक किला।
- मंडला किला (मंडला) – नर्मदा नदी के किनारे स्थित, गोंड स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण।
- रामनगर किला (डिंडोरी) – गोंड राजाओं द्वारा निर्मित, जो रक्षा और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र था।
- अमरगढ़ किला (शिवपुरी) – गोंड कालीन स्थापत्य के अवशेष यहाँ देखे जा सकते हैं।
- गोंड महल, चंद्रपुर – गोंड शासनकाल की प्रमुख इमारतों में से एक।
गोंड स्थापत्य कला के प्रमुख घटक
- प्राकृतिक संरचना के अनुरूप निर्माण – गोंड स्थापत्य में पहाड़ियों, नदियों और जंगलों के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखते हुए निर्माण किए गए।
- गढ़-किलों का निर्माण – मजबूत और ऊँची दीवारों वाले किले, जिनमें छिपने के स्थान, जलाशय और सुरंगें होती थीं।
- मंदिरों और देवगृहों का निर्माण – गोंड शासकों ने अपने कुलदेवताओं और प्रकृति-पूजा से जुड़े मंदिरों का निर्माण कराया।
- जल प्रबंधन – किलों के भीतर जल संग्रहण और प्रबंधन के लिए तालाब और बावड़ियाँ बनाई जाती थीं।
- चित्र और भित्ति कला – गोंड स्थापत्य में भित्तिचित्र और लकड़ी की नक्काशी महत्वपूर्ण थी।
गोंड स्थापत्य कला के प्रमुख व्यक्ति
1. संग्राम शाह (15वीं-16वीं सदी)
- विशेषता: गढ़ा-मंडला राज्य के प्रसिद्ध गोंड शासक।
- योगदान: गढ़ा किला (जबलपुर), चौरागढ़ किला (नरसिंहपुर), मंडला किला – मजबूत और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किले बनाए।
- विशेष तथ्य: इन्होंने “गढ़-कटंगा” नामक 52 गढ़ों की शृंखला स्थापित की।
2. दलपत शाह (16वीं सदी)
- विशेषता: संग्राम शाह के उत्तराधिकारी, जिनका विवाह चाँदबीबी से हुआ था।
- योगदान: गोंड राज्य को मजबूत किया और स्थापत्य कला को बढ़ावा दिया।
3. रानी दुर्गावती (16वीं सदी)
- विशेषता: वीरांगना रानी, जिन्होंने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष किया।
- योगदान: रानी दुर्गावती महल (गढ़ा, जबलपुर), जल संरचनाएँ।
- विशेष तथ्य: गोंड स्थापत्य कला में जल संरक्षण प्रणालियों का अद्भुत विकास इनके काल में हुआ।
4. हृदयनारायण शाह (18वीं सदी)
- विशेषता: मंडला के गोंड शासक।
- योगदान: गोंड महलों और किलों के विस्तार में योगदान दिया।
गोंड स्थापत्य कला की विशेषताएँ
- गढ़-किलों की रणनीतिक स्थिति – अधिकतर गोंड किले पहाड़ियों और नदियों के किनारे बनाए गए थे, जिससे वे सुरक्षित और दुर्गम होते थे।
- मिट्टी, लकड़ी और पत्थर का मिश्रित उपयोग – किलों की नींव पत्थर से और ऊपरी हिस्से लकड़ी व मिट्टी से बनाए जाते थे।
- जल संरक्षण प्रणाली – किलों में बड़े-बड़े तालाब, बावड़ियाँ और जलाशय बनाए गए।
- भित्ति चित्रों और नक्काशी का समावेश – गोंड भवनों और मंदिरों में सुंदर चित्रकारी और लकड़ी की नक्काशी होती थी।
- प्राकृतिक और धार्मिक प्रभाव – स्थापत्य कला में प्रकृति की पूजा और टोटमिज़्म (वृक्ष, पशु और पक्षियों की पूजा) की झलक मिलती है।
गोंड स्थापत्य कला से जुड़े रोचक तथ्य
- गढ़ा-मंडला राज्य – गोंड राजाओं ने 52 गढ़ों का निर्माण कराया, जो उनकी सामरिक शक्ति को दर्शाता है।
- रानी दुर्गावती की जल संरचनाएँ – इनके काल में बने जलाशय आज भी जबलपुर और मंडला में देखे जा सकते हैं।
- चौरागढ़ किला – इस किले में हथियार और युद्ध सामग्री संग्रह करने के लिए विशेष भूमिगत कोठरियाँ बनाई गई थीं।
- मंडला किला – यह नर्मदा नदी के किनारे स्थित है और इसका निर्माण रक्षा की दृष्टि से किया गया था।
- गोंड महलों में चित्रकारी – इनमें लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी चित्रकारी की जाती थी।
MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- गढ़ा किला (जबलपुर) – संग्राम शाह द्वारा निर्मित, गोंड स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण।
- चौरागढ़ किला (नरसिंहपुर) – गोंड साम्राज्य का प्रमुख किला, जहाँ विशाल शस्त्रागार था।
- मंडला किला – नर्मदा नदी के किनारे स्थित, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण।
- रानी दुर्गावती और जल प्रबंधन – इनके काल में बने जलाशय और बावड़ियाँ आज भी प्रचलित हैं।
- गोंड स्थापत्य में लकड़ी और मिट्टी का प्रयोग – पत्थर के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हुआ।
गोंड स्थापत्य कला मध्य प्रदेश के आदिवासी शासकों द्वारा विकसित एक अनूठी वास्तुकला शैली थी। यह कला प्रकृति-प्रेरित थी और इसमें मजबूत किले, जल संरक्षण प्रणालियाँ, मंदिर और लोककला से सजी इमारतें शामिल थीं। संग्राम शाह, रानी दुर्गावती और उनके वंशजों ने इस कला को उन्नत किया। MPPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से गोंड स्थापत्य से जुड़े किले, मंदिर, जल संरचनाएँ और प्रमुख शासक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।