मध्यप्रदेश की प्रमुख कला

मध्य प्रदेश की विशेष चित्रकलाएँ

मध्य प्रदेश की चित्रकला विविधता से भरपूर है। यहाँ की प्रमुख चित्रकलाएँ गोंड, भील, मांडना, पिथोरा, बाघ, और सांची की भित्ति चित्रकला हैं। ये चित्रकलाएँ विभिन्न जनजातियों, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई हैं।


1. गोंड चित्रकला

  • क्षेत्र: मांडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा
  • संस्कृति/जाति: गोंड जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला प्रकृति, पशु-पक्षियों और जनजातीय जीवन को दर्शाती है।
    • इसमें बारीक बिंदु (डॉट्स) और रेखाओं (लाइन्स) का विशिष्ट प्रयोग किया जाता है।
    • काले, लाल, पीले, हरे, और सफेद रंग का प्रमुखता से उपयोग होता है।
  • प्रसिद्ध हस्तियाँ:
    • जगदीश स्वामीनाथन – इन्होंने इस चित्रकला को राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
    • जंगड़ सिंह श्याम – पहले गोंड कलाकार जिन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।
  • विशेष तथ्य:
    • गोंड चित्रकला को यूनाइटेड नेशंस और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली
    • जंगड़ सिंह श्याम को लंदन और पेरिस में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाने का अवसर मिला।

2. भील चित्रकला

  • क्षेत्र: झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन
  • संस्कृति/जाति: भील जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला बिंदुओं और ज्यामितीय डिजाइनों से बनाई जाती है।
    • इसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।
    • लोककथाएँ, देवी-देवता, प्रकृति और त्योहारों के दृश्य दर्शाए जाते हैं।
  • प्रसिद्ध हस्तियाँ:
    • भूरी बाई – भारत की पहली महिला आदिवासी चित्रकार, जिन्हें पद्मश्री मिला।
    • राम सिंह उईके – जिन्होंने भील चित्रकला को नई पहचान दी।
  • विशेष तथ्य:
    • भूरी बाई ने मध्य प्रदेश सरकार की कला अकादमी से विशेष सम्मान प्राप्त किया
    • यह चित्रकला भील समाज के त्योहारों (भगोरिया) और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी होती है।

3. मांडना चित्रकला

  • क्षेत्र: मालवा, बुंदेलखंड, निमाड़
  • संस्कृति/जाति: ग्रामीण महिलाएँ, विशेषकर मालवी और बुंदेली समाज
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला घरों की दीवारों, आँगन और फर्श पर बनाई जाती है।
    • इसे चूना, गेरू और लाल मिट्टी से बनाया जाता है।
    • इसमें स्वास्तिक, कमल, माँ दुर्गा, और अन्य धार्मिक प्रतीकों को उकेरा जाता है।
  • प्रसिद्ध हस्तियाँ:
    • लक्ष्मण सिंह – मांडना चित्रकला के संरक्षक।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “फर्श की अलंकरण कला” भी कहते हैं।
    • यह विशेष रूप से दीपावली और अन्य शुभ अवसरों पर बनाई जाती है।

4. पिथोरा चित्रकला

  • क्षेत्र: निमाड़, झाबुआ, अलीराजपुर
  • संस्कृति/जाति: भिलाला और भील जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला पिथोरा देवता की पूजा के रूप में बनाई जाती है।
    • यह भित्ति चित्र (दीवारों पर बनाई जाने वाली चित्रकला) है।
    • इसमें घोड़े, पशु-पक्षी, सूर्य, चंद्रमा और मानव आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
  • प्रसिद्ध हस्तियाँ:
    • प्रहलाद सिखची – पिथोरा कला को संरक्षित करने वाले प्रमुख व्यक्ति।
  • विशेष तथ्य:
    • यह चित्रकला मन्नत माँगने और पूर्ण होने पर घर की दीवारों पर बनाई जाती है
    • इसे केवल पिथोरा कलाकार और ओझा (पुजारी) ही बनाते हैं।

5. बाघ गुफा चित्रकला

  • क्षेत्र: धार जिले का बाघ गाँव
  • संस्कृति/धर्म: बौद्ध धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह प्राचीन भित्ति चित्रकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
    • इसमें बुद्ध, बोधिसत्व और बौद्ध कथाओं को दर्शाया गया है।
    • गहरे लाल और भूरे रंगों का उपयोग प्रमुखता से किया गया है।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे मध्य भारत की अजंता कहा जाता है
    • यह 5वीं-6वीं शताब्दी में बनी थी।
    • यहाँ की चित्रकला गुप्तकालीन भारतीय कला का उदाहरण है

6. सांची की भित्ति चित्रकला

  • क्षेत्र: रायसेन (सांची स्तूप)
  • संस्कृति/धर्म: बौद्ध धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला महात्मा बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं को दर्शाती है।
    • इसमें पत्थरों और स्तूपों पर उकेरी गई चित्रकला शामिल है।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे सम्राट अशोक ने निर्मित कराया था।
    • यह UNESCO विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।

मध्य प्रदेश की चित्रकला विविधता और संस्कृति से भरपूर है। यहाँ की गोंड, भील, मांडना, पिथोरा, बाघ और सांची भित्ति चित्रकला न केवल स्थानीय जीवन और परंपराओं को दर्शाती हैं, बल्कि ये MPPSC परीक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इनसे जुड़े क्षेत्र, कलाकार, और ऐतिहासिक तथ्य परीक्षा में पूछे जा सकते हैं।

मध्य प्रदेश की चित्रकलाओं में कई और महत्वपूर्ण कलाएँ शामिल हैं, जो राज्य की संस्कृति और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। मैं इसी पैटर्न में अन्य चित्रकलाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करूँगा।

7. नरवर चित्रकला

  • क्षेत्र: शिवपुरी जिले का नरवर किला
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह मध्यकालीन भित्ति चित्रकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
    • चित्रों में हिंदू देवी-देवताओं, नृत्य, संगीत, और महलों के दृश्यों को उकेरा गया है।
    • यह चित्रकला ग्वालियर राजवंशों के शासनकाल में विकसित हुई।
  • विशेष तथ्य:
    • नरवर किला परमार और कच्छवाहा शासकों से जुड़ा हुआ है।
    • यहाँ की चित्रकला बुंदेलखंडी और राजस्थानी शैली का मिश्रण है।

8. ओरछा चित्रकला

  • क्षेत्र: टीकमगढ़ और निवाड़ी जिले का ओरछा किला
  • संस्कृति/धर्म: बुंदेला राजवंश (हिंदू धर्म)
  • विशेषताएँ:
    • यह राजस्थानी और मुगल चित्रकला का मिश्रण है।
    • ओरछा के राजमहल और जहांगीर महल की दीवारों पर सुंदर चित्र उकेरे गए हैं।
    • इसमें रामायण, महाभारत, कृष्णलीला, शिकार और दरबार के दृश्य चित्रित किए गए हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • यह चित्रकला बुंदेला शासकों (महाराजा वीर सिंह देव) द्वारा संरक्षित की गई थी।
    • ओरछा के राजा रामराजा को भगवान राम का अवतार मानते थे, इसलिए चित्रों में रामकथा विशेष रूप से दर्शाई गई है।

9. बेतवा भित्ति चित्रकला

  • क्षेत्र: विदिशा, अशोकनगर और ओरछा क्षेत्र
  • संस्कृति/धर्म: बौद्ध एवं हिंदू
  • विशेषताएँ:
    • बेतवा नदी के किनारे स्थित गुफाओं, मंदिरों और महलों की दीवारों पर यह चित्रकला पाई जाती है।
    • इसमें बुद्ध, अप्सराएँ, नृत्य, संगीत और युद्ध के दृश्य चित्रित हैं।
    • यह गुप्तकाल और परमारकाल की शैली को दर्शाती है।
  • विशेष तथ्य:
    • यह चित्रकला सांची और उदयगिरि की गुफाओं से भी जुड़ी हुई है।
    • इसे “बुंदेलखंड की लुप्तप्राय भित्ति चित्रकला” कहा जाता है।

10. धार नगर की चित्रकला

  • क्षेत्र: धार, मांडू
  • संस्कृति/धर्म: इस्लामिक एवं मुगल प्रभाव
  • विशेषताएँ:
    • इसमें मुगल दरबार, बाग-बगीचों, सूफी संतों और शिकार के दृश्य चित्रित किए गए हैं।
    • यह चित्रकला मुगल लघु चित्रकला से प्रेरित है।
    • धार का हिंदू-मुस्लिम कला का अनूठा समावेश इस चित्रकला में दिखाई देता है।
  • विशेष तथ्य:
    • यह चित्रकला मालवा सल्तनत (गयासुद्दीन खिलजी) के समय विकसित हुई
    • धार की मस्जिदों, महलों और किलों में इस चित्रकला के अवशेष देखे जा सकते हैं।

11. भूरी भित्ति चित्रकला

  • क्षेत्र: निमाड़, धार, खरगोन
  • संस्कृति/धर्म: भील और भिलाला जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह मिट्टी और चूने से बनी दीवारों पर उकेरी जाती है।
    • इसमें लोक देवी-देवताओं, पर्व-त्योहारों और कृषि संबंधी चित्रों को दर्शाया जाता है।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे निमाड़ क्षेत्र के “आदिवासी मंदिरों” में देखा जा सकता है
    • यह चित्रकला धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है।

12. बघेलखंडी चित्रकला

  • क्षेत्र: रीवा, सतना, सीधी
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म (बघेल शासकों की कला)
  • विशेषताएँ:
    • यह चित्रकला बघेल राजाओं के किलों और महलों में पाई जाती है।
    • इसमें राजाओं के दरबार, महल, युद्ध, देवी-देवताओं, और शिकार के दृश्य दिखाए गए हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • रीवा के किलों और महलों में यह चित्रकला देखी जा सकती है।
    • यह चित्रकला गोंड और बुंदेली चित्रकला से प्रभावित है।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. गोंड और भील चित्रकला – आदिवासी संस्कृति से संबंधित।
  2. मांडना और पिथोरा चित्रकला – घरों और मंदिरों की सजावट से जुड़ी हुई।
  3. बाघ और सांची की भित्ति चित्रकला – गुप्तकालीन और बौद्ध धर्म से संबंधित।
  4. ओरछा, नरवर और धार की चित्रकला – राजपूत, बुंदेली और मुगल कला का मिश्रण।

मध्य प्रदेश की मूर्तिकला समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ विभिन्न कालों में विकसित हुई मूर्तिकला शैलियों के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं, जिनमें गुप्त, चंदेल, परमार, गोंड, बुंदेला, और मालवा शासकों के समय की मूर्तियाँ प्रमुख हैं। मैं आपको उसी पैटर्न में इन मूर्तिकला शैलियों की विस्तृत जानकारी दूँगा।


1. सांची की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: रायसेन जिला (सांची)
  • संस्कृति/धर्म: बौद्ध धर्म
  • विशेषताएँ:
    • सांची स्तूप की मूर्तिकला मौर्यकाल और शुंगकाल की श्रेष्ठ कृति मानी जाती है।
    • मूर्तियों में बुद्ध के जीवन प्रसंग, जातक कथाएँ और प्राकृतिक दृश्य प्रमुख हैं।
    • स्तंभों और तोरण द्वारों पर सुव्यवस्थित नक़्क़ाशी और सूक्ष्म कलाकारी देखने को मिलती है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • शुंग वंश के समय कलाकारों ने “यक्ष-यक्षिणी” की उत्कृष्ट मूर्तियाँ बनाईं।
  • विशेष तथ्य:
    • सांची स्तूप यूनानी और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण है।
    • यहाँ बुद्ध को चिह्नों (चक्र, सिंहासन, वृक्ष) के माध्यम से दर्शाया गया है, प्रत्यक्ष मूर्तियाँ नहीं बनीं।

2. खजुराहो की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: छतरपुर जिला (खजुराहो)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू एवं जैन धर्म
  • विशेषताएँ:
    • चंदेलकालीन मूर्तिकला की सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ यहाँ देखने को मिलती हैं।
    • मंदिरों की मूर्तियाँ सामाजिक जीवन, देव-देवियों, नृत्य, संगीत, युद्ध, और मैथुन मुद्रा को दर्शाती हैं।
    • मूर्तियों में “त्रिभंग मुद्रा” प्रमुख है, जो गुप्तकाल की विशेषता थी।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • चंदेल शासकों के समय गुंडा, यशोवर्मन, धंग, विद्याधर आदि कलाकार प्रसिद्ध थे।
  • विशेष तथ्य:
    • खजुराहो की मूर्तिकला को “भारतीय कला का स्वर्णिम युग” कहा जाता है।
    • ये मूर्तियाँ संस्कृत साहित्य, विशेषकर वात्स्यायन के “कामसूत्र” से प्रभावित मानी जाती हैं।

3. भीमबेटका की गुफा मूर्तिकला

  • क्षेत्र: रायसेन जिला (भीमबेटका)
  • संस्कृति/धर्म: आदिवासी संस्कृति
  • विशेषताएँ:
    • यह भारत की सबसे प्राचीन शैलकला मानी जाती है।
    • गुफाओं में उकेरी गई मूर्तियों में शिकार, नृत्य, युद्ध और पशु-पक्षियों को दर्शाया गया है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • यह आदिवासी जनजातियों द्वारा बनाई गई प्रागैतिहासिक मूर्तिकला है।
  • विशेष तथ्य:
    • भीमबेटका की मूर्तिकला को “विश्व धरोहर” का दर्जा प्राप्त है।
    • यहाँ की मूर्तियाँ 30,000 वर्ष पुरानी मानी जाती हैं

4. उदयगिरि की गुफा मूर्तिकला

  • क्षेत्र: विदिशा जिला (उदयगिरि)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म (गुप्तकाल)
  • विशेषताएँ:
    • ये मूर्तियाँ गुप्तकाल की सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकला का उदाहरण हैं।
    • प्रमुख मूर्ति “वराह अवतार”, जिसमें भगवान विष्णु पृथ्वी को बचाते हुए दर्शाए गए हैं।
    • मूर्तियों में शक्ति, सौंदर्य और अलंकरण की झलक स्पष्ट रूप से दिखती है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • गुप्तकाल में शिल्पकारों ने शास्त्रीय पद्धति से मूर्तिकला विकसित की
  • विशेष तथ्य:
    • यहाँ की मूर्तियाँ हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं।
    • मूर्तिकला में संस्कृत अभिलेखों का समावेश मिलता है।

5. बाघ गुफाओं की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: धार जिला (बाघ गुफाएँ)
  • संस्कृति/धर्म: बौद्ध धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह गुप्तकालीन बौद्ध मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
    • मूर्तियों में बुद्ध, बोधिसत्व, अप्सराएँ, और राजसी दरबार के दृश्य मिलते हैं।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • गुप्तकाल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित।
  • विशेष तथ्य:
    • यहाँ मूर्तियों के साथ-साथ भित्तिचित्र भी बनाए गए थे।
    • यह मूर्तिकला अजन्ता की गुफाओं से प्रभावित है।

6. भोजपुर की शिव मूर्ति

  • क्षेत्र: रायसेन जिला (भोजपुर)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ स्थित शिवलिंग भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
    • मूर्ति में शिव के विभिन्न रूपों और शिव-पार्वती विवाह के दृश्य उकेरे गए हैं।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • परमार राजा भोज के काल में निर्मित।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “मध्यकालीन भारत का सबसे बड़ा अधूरा मंदिर” कहा जाता है।
    • मूर्ति का आकार और शिल्प कौशल अत्यंत भव्य है।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. सांची की मूर्तिकला – बौद्ध धर्म, शुंगकाल की उत्कृष्ट भित्ति कला।
  2. खजुराहो की मूर्तिकला – चंदेलकाल की मूर्तियाँ, हिंदू और जैन धर्म से संबंधित।
  3. भीमबेटका की गुफाएँ – आदिवासी संस्कृति, प्राचीनतम मूर्तिकला।
  4. उदयगिरि की गुफाएँ – गुप्तकाल, वराह अवतार की प्रसिद्ध मूर्ति।
  5. बाघ गुफाओं की मूर्तियाँ – गुप्तकाल, बौद्ध धर्म, भित्तिचित्रों के साथ मूर्तिकला।
  6. भोजपुर शिवलिंग – परमारकाल, राजा भोज द्वारा निर्मित।


7. ग्यारसपुर की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: विदिशा जिला (ग्यारसपुर)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू और जैन धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ गुप्तकाल और परमारकाल की मूर्तियाँ पाई जाती हैं।
    • सबसे प्रसिद्ध मूर्तियाँ एकताश्मक शिवलिंग, पार्वती प्रतिमा, और जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ हैं।
    • विशेष रूप से “अथखंबा” नामक मंदिर अवशेष में सुंदर अलंकरण देखने को मिलता है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • यह क्षेत्र परमार और गुप्त शासकों के संरक्षण में मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध रहा।
  • विशेष तथ्य:
    • ग्यारसपुर की मूर्तियाँ सांची और उदयगिरि की मूर्तिकला से प्रभावित मानी जाती हैं।
    • यहाँ मूर्तिकला में तांत्रिक प्रभाव भी देखा जाता है।

8. अमझेरा की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: धार जिला (अमझेरा)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ की मूर्तियाँ प्रतिहारकाल और परमारकाल की उत्कृष्ट कलाकृतियाँ हैं।
    • प्रमुख मूर्तियाँ शिव, विष्णु, नृसिंह, और सूर्य देवता से संबंधित हैं।
    • मूर्तियों में मृगमुद्रा, गरुड़ वाहन, और उन्मत्त तांडव नृत्य की झलक मिलती है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • परमार शासकों के संरक्षण में विकसित मूर्तिकला।
  • विशेष तथ्य:
    • यहाँ की मूर्तियाँ “बड़वानी और खजुराहो की मूर्तिकला” से प्रभावित हैं।
    • अमझेरा को मध्यकालीन मालवा मूर्तिकला का केंद्र कहा जाता है।

9. आशीर्वाद की मूर्तिकला (ओंकारेश्वर क्षेत्र)

  • क्षेत्र: खंडवा जिला (ओंकारेश्वर)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह क्षेत्र नर्मदा तट पर स्थित शिवमूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
    • मूर्तियों में शिवलिंग, नंदी, सप्तऋषि, और दशावतार दर्शाए गए हैं।
    • यहाँ की मूर्तियों में शुद्ध शिला पर अलंकरण की उच्च गुणवत्ता देखी जाती है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • यह क्षेत्र परमार और होलकर शासकों द्वारा संरक्षित रहा है।
  • विशेष तथ्य:
    • यहाँ का प्रमुख आकर्षण “महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर शिवलिंग” हैं।
    • मूर्तियों में नर्मदा तट की पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है।

10. बटेश्वर की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: मुरैना जिला (बटेश्वर)
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू और जैन धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह क्षेत्र गुर्जर-प्रतिहारकालीन मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है।
    • यहाँ 200 से अधिक मंदिरों में शिव, विष्णु, जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं।
    • मूर्तियों की विशेषता “रूप-सौंदर्य और अलंकरण” है।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • गुर्जर-प्रतिहार शासकों के समय विकसित मूर्तिकला।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “छोटा खजुराहो” भी कहा जाता है।
    • यहाँ की मूर्तियों में शक्ति, स्त्री सौंदर्य, और भक्ति भावना का अद्भुत मिश्रण है।

11. बड़वानी की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: बड़वानी जिला
  • संस्कृति/धर्म: हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यह क्षेत्र मालवा और निमाड़ मूर्तिकला का संगम दर्शाता है।
    • मूर्तियों में गरुड़, नंदी, महिषासुरमर्दिनी, गणेश, और पार्वती प्रमुख हैं।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • परमारकाल और होलकरकाल में विकसित मूर्तिकला।
  • विशेष तथ्य:
    • यहाँ की मूर्तियाँ “धार और मांडू की स्थापत्य कला” से प्रभावित हैं।
    • बड़वानी में आज भी पत्थर और धातु की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है

12. मांडू की मूर्तिकला

  • क्षेत्र: धार जिला (मांडू)
  • संस्कृति/धर्म: इस्लामिक और हिंदू धर्म
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ की मूर्तियाँ “अफगान और राजपूत शैली” के मिश्रण का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
    • प्रमुख मूर्तियाँ हिंदू देवी-देवताओं और इस्लामिक नक्काशी से युक्त हैं।
  • प्रसिद्ध मूर्तिकार:
    • तुगलक और खलजी शासकों के समय विकसित मूर्तिकला।
  • विशेष तथ्य:
    • मांडू की मूर्तिकला में फारसी और हिंदुस्तानी शिल्प का अनूठा संयोजन है।
    • यहाँ की मूर्तियों को “मुगलकालीन स्थापत्य कला का प्रारंभिक रूप” कहा जाता है।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. ग्यारसपुर की मूर्तिकला – गुप्तकाल और परमारकाल की मिश्रित मूर्तिकला।
  2. अमझेरा की मूर्तिकला – मालवा शैली, शिव और विष्णु की मूर्तियाँ।
  3. ओंकारेश्वर की मूर्तिकला – नर्मदा तट की धार्मिक मूर्तियाँ।
  4. बटेश्वर की मूर्तिकला – गुर्जर-प्रतिहारकाल, छोटा खजुराहो।
  5. बड़वानी की मूर्तिकला – धार और मालवा कला का मिश्रण।
  6. मांडू की मूर्तिकला – इस्लामिक और हिंदू शिल्पकला का संगम।


1. मटकी नृत्य

  • स्थान: मालवा और निमाड़ क्षेत्र (इंदौर, उज्जैन, धार, खरगोन)
  • संबंधित समुदाय: मालवा की ग्रामीण महिलाएँ
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य महिलाएँ सिर पर मटकी रखकर करती हैं।
    • विवाह, त्योहार, और शुभ अवसरों पर किया जाता है।
    • इसमें एकल नृत्य का भी प्रचलन है, जहाँ नर्तकी सिर पर कई मटकियाँ रखकर नृत्य करती है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • मालवा क्षेत्र की लोक नर्तकियाँ इस कला को आगे बढ़ा रही हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इस नृत्य में ढोलक, मंजीरा, और हारमोनियम का उपयोग किया जाता है।
    • इसे “मालवा की पहचान” भी कहा जाता है।

2. भगोरिया नृत्य

  • स्थान: झाबुआ, अलीराजपुर, धार, बड़वानी
  • संबंधित समुदाय: भील जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य भगोरिया हाट मेले के दौरान किया जाता है।
    • इसमें युवा लड़के-लड़कियाँ समूह में नृत्य करते हैं, जो उनके प्रेम विवाह की परंपरा से जुड़ा है।
    • ढोल, मांदल, थाली, और बाँसुरी का प्रयोग होता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • झाबुआ और अलीराजपुर के भील कलाकार इस नृत्य को विशेष पहचान दिलाते हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • भगोरिया नृत्य को “प्रेम और स्वतंत्रता का प्रतीक” माना जाता है।
    • यह नृत्य “कुंभ मेले के समान जनजातीय मेला” भगोरिया मेले का प्रमुख आकर्षण है।

3. सैलवा नृत्य

  • स्थान: बस्तर (डिंडौरी, मंडला, बालाघाट)
  • संबंधित समुदाय: गोंड जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य वर्षा ऋतु और फसल कटाई के समय किया जाता है।
    • इसमें नर्तक डंडों के साथ घेरों में नृत्य करते हैं।
    • तेज़ी से घूमते हुए चक्कर लगाना इसकी विशेषता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • मंडला और बालाघाट के गोंड कलाकार इस नृत्य को विशेष बनाते हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “गोंड आदिवासियों की युद्ध कला” भी कहा जाता है।
    • इसे देखने से गरबा नृत्य की झलक मिलती है।

4. राई नृत्य

  • स्थान: बुंदेलखंड (सागर, छतरपुर, टीकमगढ़)
  • संबंधित समुदाय: बुंदेली लोक कलाकार
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य बुंदेलखंड के योद्धाओं की जीत के अवसर पर किया जाता है।
    • नर्तकियाँ घुँघरू पहनकर थिरकती हैं, और पुरुष ढोल बजाते हैं।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बुंदेलखंड की नृत्यांगनाएँ इस कला को संजोए हुए हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • यह नृत्य बुंदेली वीर गाथाओं से प्रेरित होता है।
    • यह नृत्य राधा-कृष्ण की प्रेम लीलाओं को भी दर्शाता है।

5. तेरहताली नृत्य

  • स्थान: मालवा और बुंदेलखंड
  • संबंधित समुदाय: कामड़ जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • नर्तकियाँ तेरह छोटे मंजीरे अपने शरीर पर बाँधकर नृत्य करती हैं।
    • यह नृत्य भक्ति परंपरा और राजस्थानी लोक संस्कृति से जुड़ा है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • कामड़ जनजाति के नर्तक इस कला में निपुण होते हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • यह नृत्य संत रामदेवजी की भक्ति से जुड़ा हुआ है।
    • इसे “लोक संगीत और नृत्य का अद्भुत संगम” कहा जाता है।

6. गोंड नृत्य

  • स्थान: मंडला, डिंडौरी, बालाघाट
  • संबंधित समुदाय: गोंड जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य शिकार, युद्ध और देवी-देवताओं की पूजा से जुड़ा हुआ है।
    • इसमें समूह में नृत्य और गीत दोनों शामिल होते हैं।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • गोंड जनजाति के पारंपरिक कलाकार इस नृत्य को संरक्षित कर रहे हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इस नृत्य में “धड़धड़ाती हुई मांदल की ध्वनि” इसकी पहचान है।
    • इसे “गोंड जनजाति की पहचान” कहा जाता है।

7. फाग नृत्य

  • स्थान: बुंदेलखंड, मालवा, निमाड़
  • संबंधित समुदाय: ग्रामीण किसान समुदाय
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है।
    • इसमें ढोलक, मंजीरा, और झांझ के साथ उत्साह से नृत्य किया जाता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बुंदेलखंड के ग्रामीण कलाकार इस नृत्य को प्रस्तुत करते हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “फाल्गुन मास का नृत्य” भी कहा जाता है।
    • यह नृत्य कृष्ण लीला और रामचरितमानस से प्रेरित होता है।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. मटकी नृत्य – मालवा क्षेत्र, मटकी संतुलन कला।
  2. भगोरिया नृत्य – झाबुआ के भील, प्रेम विवाह परंपरा।
  3. सैलवा नृत्य – गोंड जनजाति, चक्राकार नृत्य।
  4. राई नृत्य – बुंदेलखंड, वीर गाथाओं पर आधारित।
  5. तेरहताली नृत्य – कामड़ जनजाति, मंजीरों के साथ।
  6. गोंड नृत्य – मंडला, युद्ध और पूजा से संबंधित।
  7. फाग नृत्य – बुंदेलखंड, होली का नृत्य।


8. गवरी नृत्य

  • स्थान: मालवा और निमाड़ क्षेत्र (रतलाम, मंदसौर, उज्जैन)
  • संबंधित समुदाय: भील जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य गवरी पर्व के अवसर पर किया जाता है।
    • इसमें पुरुष नर्तक नाटकीय अभिनय करते हैं और देवी गवरी की पूजा करते हैं।
    • इसे पारंपरिक लोकनाट्य नृत्य भी कहा जाता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • भील जनजाति के पारंपरिक कलाकार इसे संरक्षित कर रहे हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • यह नृत्य भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा हुआ माना जाता है।
    • इस नृत्य को करने वाले कलाकार 40 दिन तक सात्विक जीवन जीते हैं।

9. जस नृत्य

  • स्थान: बस्तर (दंतेवाड़ा, कोंडागांव, नारायणपुर)
  • संबंधित समुदाय: मुरिया, माड़िया, गोंड जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य देवी-देवताओं की भक्ति और पूजा के अवसर पर किया जाता है।
    • इसमें ढोल, मांदल और तुरही का उपयोग होता है।
    • इसे समूह में किया जाता है, जिसमें महिलाएँ और पुरुष दोनों शामिल होते हैं।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बस्तर के गोंड और मुरिया समुदाय के कलाकार इसे पीढ़ियों से कर रहे हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • जस नृत्य को “आदिवासी भक्ति नृत्य” कहा जाता है।
    • यह शक्तिपीठों और स्थानीय देवी-देवताओं की आराधना से जुड़ा हुआ है।

10. सुवा नृत्य

  • स्थान: छत्तीसगढ़ के समीपवर्ती क्षेत्र (अनूपपुर, शहडोल, मंडला)
  • संबंधित समुदाय: गोंड और बैगा जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य दीपावली और फसल कटाई के अवसर पर किया जाता है।
    • इसमें महिलाएँ सुवा (तोता) की आकृति बनाकर नृत्य करती हैं।
    • इस नृत्य में धीमे और लयबद्ध ताल का उपयोग किया जाता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • गोंड और बैगा जनजाति की महिलाएँ इस नृत्य को करती हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक” माना जाता है।
    • यह नृत्य गोंड और बैगा संस्कृति के विवाह परंपराओं से जुड़ा हुआ है।

11. जदुर नृत्य

  • स्थान: बस्तर, मंडला, डिंडौरी
  • संबंधित समुदाय: हल्बा और धुरवा जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य शिकार, युद्ध, और वीरता को दर्शाता है।
    • पुरुष नर्तक धनुष-बाण और भाले के साथ युद्ध की मुद्रा में नृत्य करते हैं।
    • इसे देखने से यह मार्शल आर्ट और युद्ध नृत्य जैसा प्रतीत होता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • हल्बा और धुरवा जनजाति के पारंपरिक कलाकार इसे संरक्षित कर रहे हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • यह नृत्य अग्नि और युद्ध देवताओं की पूजा से जुड़ा हुआ है।
    • इसे “बस्तर का योद्धा नृत्य” भी कहा जाता है।

12. गेंडी नृत्य

  • स्थान: बस्तर, बैतूल, छिंदवाड़ा
  • संबंधित समुदाय: गोंड और मुरिया जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य गेंडी (लकड़ी के ऊँचे डंडों) पर चढ़कर किया जाता है
    • इसमें संतुलन और चपलता का विशेष महत्व होता है।
    • यह नृत्य विशेष रूप से फसल कटाई और हरेली पर्व पर किया जाता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बस्तर और बैतूल के गोंड कलाकार इसे कुशलता से करते हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “सबसे कठिन संतुलन नृत्य” माना जाता है।
    • इस नृत्य में कलाकार ऊँचाई पर रहकर करतब भी दिखाते हैं

13. ककसार नृत्य

  • स्थान: बस्तर (दंतेवाड़ा, कोंडागांव)
  • संबंधित समुदाय: मुरिया जनजाति
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य विवाह और सामाजिक मेलजोल के अवसर पर किया जाता है।
    • इसमें युवक-युवतियाँ जोड़ों में नृत्य करते हैं।
    • इसमें बाँसुरी, मांदल और झांझ का उपयोग होता है।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बस्तर के मुरिया समुदाय के कलाकार इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “मुरिया जनजाति का रोमांटिक नृत्य” भी कहा जाता है।
    • इस नृत्य में युवक-युवतियाँ अपने लिए जीवनसाथी चुनने का अवसर पाते हैं

14. रे बारसे नृत्य

  • स्थान: बुंदेलखंड (सागर, टीकमगढ़, छतरपुर)
  • संबंधित समुदाय: बुंदेली किसान समुदाय
  • विशेषताएँ:
    • यह नृत्य सावन के महीने में वर्षा ऋतु के स्वागत के लिए किया जाता है।
    • महिलाएँ समूह में गाकर और नृत्य कर बारिश के देवता को प्रसन्न करती हैं।
  • प्रसिद्ध कलाकार:
    • बुंदेली लोक कलाकार इस नृत्य को जीवंत बनाए हुए हैं।
  • विशेष तथ्य:
    • इसे “बारिश बुलाने का नृत्य” भी कहा जाता है।
    • यह नृत्य लोकगीतों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ किया जाता है।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. गवरी नृत्य – भील जनजाति, मालवा, गवरी पर्व।
  2. जस नृत्य – गोंड और मुरिया जनजाति, देवी भक्ति से संबंधित।
  3. सुवा नृत्य – गोंड और बैगा जनजाति, दीपावली और फसल कटाई का नृत्य।
  4. जदुर नृत्य – हल्बा जनजाति, युद्ध और वीरता से संबंधित।
  5. गेंडी नृत्य – गोंड जनजाति, लकड़ी के ऊँचे डंडों पर संतुलन।
  6. ककसार नृत्य – मुरिया जनजाति, विवाह परंपरा से संबंधित।
  7. रे बारसे नृत्य – बुंदेलखंड, बारिश का नृत्य।

मध्य प्रदेश का लोक संगीत यहाँ की विविध सांस्कृतिक परंपराओं, जनजातीय समुदायों, धार्मिक आयोजनों, और सामाजिक जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। हर क्षेत्र और समुदाय के अपने अनूठे संगीत रूप हैं, जो न केवल मनोरंजन बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान के भी प्रतीक हैं। यहाँ मध्य प्रदेश के प्रमुख लोक संगीतों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है।


1. फाग गीत

  • स्थान: बुंदेलखंड, बघेलखंड
  • संबंधित समुदाय: बुंदेली और बघेली किसान समुदाय
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत फाल्गुन (होली) के अवसर पर गाए जाते हैं।
    • इनमें राधा-कृष्ण की लीलाएँ, प्रेम, और सामाजिक विषय होते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • यह होली के रंगों और उल्लास को दर्शाने वाला संगीत है।
    • प्रमुख वाद्ययंत्रों में ढोलक, मंजीरा, और खंजरी का उपयोग होता है।
    • पुरुष और महिलाएँ इसे समूह में गाते हैं।
  • रोचक तथ्य:
    • बुंदेलखंड में इसे ‘बुंदेली फाग’ कहा जाता है, जबकि बघेलखंड में ‘बघेली फाग’
    • यह गीत वीर रस, श्रृंगार रस, और भक्ति रस से भरपूर होते हैं।

2. आल्हा गीत

  • स्थान: बुंदेलखंड (सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह)
  • संबंधित समुदाय: बुंदेली योद्धा समुदाय
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह वीर रस से भरा लोक संगीत है, जिसमें राजा परमाल, आल्हा-ऊदल की गाथाएँ होती हैं।
  • विशेषताएँ:
    • यह युद्ध गीत ढोलक, मृदंग और करताल के साथ गाया जाता है।
    • गायक इसे ऊँचे स्वर में और जोश के साथ प्रस्तुत करते हैं।
  • रोचक तथ्य:
    • इसे ‘लोक महाभारत’ भी कहा जाता है क्योंकि इसमें पांडवों की कहानियाँ भी होती हैं।
    • प्रसिद्ध गायक लाल सिंह, राम सिंह लोधी ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया।

3. निमाड़ी लोकगीत

  • स्थान: निमाड़ (खरगोन, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर)
  • संबंधित समुदाय: निमाड़ी किसान और व्यापारी वर्ग
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, और किसान जीवन को दर्शाते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • इसमें ढोल, सारंगी, और खंजरी का उपयोग होता है।
    • यह गीत तेज लय और मधुर धुनों पर आधारित होते हैं।
  • रोचक तथ्य:
    • निमाड़ी लोकगीतों में प्रकृति के प्रति प्रेम झलकता है।
    • इसे “निमाड़ का संगीत” कहा जाता है।

4. भगत गीत

  • स्थान: मालवा (उज्जैन, मंदसौर, रतलाम)
  • संबंधित समुदाय: मालवी और भजन गायक
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह भक्ति रस से भरपूर होते हैं और कृष्ण, राम, शिव की स्तुति के लिए गाए जाते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • गायक ढोलक, मंजीरा, और हारमोनियम का उपयोग करते हैं।
    • भगत गीतों को आमतौर पर मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में गाया जाता है।
  • रोचक तथ्य:
    • मालवा में यह “भजन संध्या” का रूप ले चुका है।
    • इस संगीत परंपरा को तुलसीदास और मीरा बाई की रचनाओं से प्रेरणा मिली है।

5. भिलाला और भील जनजातीय संगीत

  • स्थान: झाबुआ, अलीराजपुर, धार
  • संबंधित समुदाय: भील और भिलाला जनजाति
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह संगीत आदिवासी त्योहारों, प्रकृति पूजा, और पारंपरिक अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है।
  • विशेषताएँ:
    • इस संगीत में बांसुरी, मांदल, और ढोल प्रमुख वाद्ययंत्र होते हैं।
    • यह समूह में गाया जाता है और नृत्य के साथ होता है।
  • रोचक तथ्य:
    • भील जनजाति के गीतों में पशु-पक्षियों और प्रकृति का सुंदर वर्णन होता है।
    • इसे “आदिवासी संगीत का अनमोल रत्न” कहा जाता है।

6. लिंगो गीत

  • स्थान: मंडला, डिंडौरी, बालाघाट
  • संबंधित समुदाय: गोंड जनजाति
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गोंड जनजाति के देवता लिंगो पेन की आराधना में गाया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • यह गीत गोंड जनजाति के पौराणिक कथाओं, वीर गाथाओं, और सामाजिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
    • इसमें ढोल, तुरही, और बाँसुरी का उपयोग होता है।
  • रोचक तथ्य:
    • यह गीत गोंड धर्म और संस्कृति की धरोहर हैं।
    • यह मुख्य रूप से त्योहारों, विवाह, और पूजा-पाठ के अवसर पर गाया जाता है।

7. बरेदी गीत

  • स्थान: मालवा (देवास, उज्जैन, शाजापुर)
  • संबंधित समुदाय: कृषक और ग्रामीण समुदाय
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह दीपावली और कृषि पर्वों से जुड़ा हुआ लोकगीत है।
  • विशेषताएँ:
    • यह मालवी बोली में गाया जाता है और इसमें खेती, ऋतुओं और देवताओं का वर्णन होता है।
    • इसमें मृदंग, ढोल, और सारंगी का उपयोग किया जाता है।
  • रोचक तथ्य:
    • इसे “मालवा का पारंपरिक कृषि संगीत” भी कहा जाता है।
    • यह गीत कृष्ण और गोवर्धन पर्वत से जुड़े प्रसंगों को भी दर्शाते हैं।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु

  1. फाग गीत – बुंदेलखंड, होली से संबंधित।
  2. आल्हा गीत – बुंदेलखंड, वीर गाथा आधारित।
  3. निमाड़ी लोकगीत – निमाड़ क्षेत्र, प्रकृति प्रेम पर आधारित।
  4. भगत गीत – मालवा, भक्ति संगीत।
  5. भिलाला और भील संगीत – झाबुआ, आदिवासी संगीत।
  6. लिंगो गीत – गोंड जनजाति, पौराणिक कथाएँ।
  7. बरेदी गीत – मालवा, कृषि पर्वों से जुड़ा हुआ।


8. कचारिया गीत

  • स्थान: बुंदेलखंड (सागर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह)
  • संबंधित समुदाय: कृषक और ग्रामीण समाज
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत कृषि कार्यों और फसल कटाई के समय गाया जाता है।
    • इसमें किसानों के संघर्ष, ग्रामीण जीवन और प्रेम को दर्शाया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • यह धीमी गति और भावनात्मक अभिव्यक्ति से युक्त होता है।
    • प्रमुख वाद्ययंत्र ढोलक, मंजीरा, और खंजरी होते हैं।
  • रोचक तथ्य:
    • इसे “किसानों का गीत” भी कहा जाता है क्योंकि इसमें कृषि जीवन के अनुभव झलकते हैं।
    • यह गीत अकेले या समूह में गाया जाता है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • बुंदेली लोकगायक राम प्रसाद गुप्ता ने इसे लोकप्रिय बनाया।

9. गणगौर गीत

  • स्थान: मालवा (उज्जैन, मंदसौर, देवास) और निमाड़ (खंडवा, खरगोन)
  • संबंधित समुदाय: राजपूत, मालवी और निमाड़ी महिलाएँ
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत गणगौर पर्व के दौरान गाया जाता है, जो गौरी (पार्वती) और शिव की आराधना के लिए मनाया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • यह शादीशुदा और कुंवारी लड़कियों द्वारा गाया जाता है।
    • गीतों में पार्वती माता की कहानियाँ, विवाह के सुख-दुख और पारिवारिक जीवन का वर्णन होता है।
  • रोचक तथ्य:
    • यह गीत राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में लोकप्रिय है।
    • गणगौर पूजा के बाद इन गीतों को गाने की विशेष परंपरा है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • जवाहर बाई मालवी ने मालवा क्षेत्र में इसे प्रसिद्ध बनाया।

10. सहेलिया गीत

  • स्थान: बुंदेलखंड और बघेलखंड
  • संबंधित समुदाय: महिलाएँ (विशेष रूप से नवविवाहिताएँ)
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत शादी, तीज-त्योहार, और महिलाओं के पारिवारिक जीवन से जुड़ा होता है।
  • विशेषताएँ:
    • इसे समूह में गाया जाता है, जिसमें महिलाएँ एक-दूसरे को सुख-दुख साझा करती हैं।
    • संगीत में मृदंग, ढोलक और हारमोनियम का उपयोग होता है।
  • रोचक तथ्य:
    • इसे “मध्य प्रदेश का स्त्री-संगीत” भी कहा जाता है।
    • यह गाँवों और शहरी क्षेत्रों दोनों में लोकप्रिय है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • गंगादेवी बघेल ने इस गीत शैली को साहित्य में स्थान दिया।

11. कर्बाला गीत

  • स्थान: भोपाल, सीहोर, विदिशा, जबलपुर
  • संबंधित समुदाय: मुस्लिम समुदाय
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत मुहर्रम के अवसर पर गाया जाता है और हजरत इमाम हुसैन की शहादत का वर्णन करता है।
  • विशेषताएँ:
    • इसमें दुख, करुणा, और धार्मिक भावनाओं की प्रधानता होती है।
    • इसे ढोल, तबला, और हारमोनियम के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
  • रोचक तथ्य:
    • भोपाल में इस संगीत की विशेष परंपरा है, जिसे वहाँ के नवाबों ने संरक्षित किया।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • हाजी मुश्ताक अली ने इस शैली को आगे बढ़ाया।

12. लमटेरा गीत

  • स्थान: बस्तर (अब छत्तीसगढ़ में), बालाघाट और मंडला
  • संबंधित समुदाय: गोंड और बैगा जनजातियाँ
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत वन देवी और प्रकृति पूजा से जुड़ा हुआ है।
  • विशेषताएँ:
    • यह प्राकृतिक ध्वनियों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ गाया जाता है।
    • इसमें बांसुरी, मांदल, और तुरही प्रमुख होते हैं।
  • रोचक तथ्य:
    • यह गीत जंगल के त्योहारों, शिकार अनुष्ठानों और विवाह समारोहों में गाया जाता है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • कालूराम बैगा इस संगीत के प्रमुख गायक थे।

13. भैरवी गीत

  • स्थान: मालवा और बुंदेलखंड
  • संबंधित समुदाय: संत और भक्ति संगीत से जुड़े लोग
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह शिव और भैरव देवता की स्तुति में गाया जाता है।
  • विशेषताएँ:
    • यह प्रातःकाल और संध्या में गाया जाता है।
    • इसमें वीणा, सारंगी और ढोलक का उपयोग किया जाता है।
  • रोचक तथ्य:
    • इसे “साधु-संन्यासियों का संगीत” भी कहा जाता है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • स्वामी हरिदास बाबा इस संगीत के महान गायक थे।

14. राई गीत

  • स्थान: बुंदेलखंड (छतरपुर, टीकमगढ़, सागर)
  • संबंधित समुदाय: कोरी, कुशवाहा और नट जातियाँ
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध:
    • यह गीत नृत्य के साथ गाया जाता है और वीर रस से भरपूर होता है।
  • विशेषताएँ:
    • इसे विशेष रूप से स्त्रियाँ गाती हैं और नृत्य भी करती हैं।
    • इसमें ढोलक, मंजीरा, और नगाड़े का प्रयोग होता है।
  • रोचक तथ्य:
    • यह राजा छत्रसाल के समय से लोकप्रिय है।
  • प्रसिद्ध व्यक्ति:
    • चरणदास राई ने इसे लोकप्रिय बनाया।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु

  1. गणगौर गीत – मालवा और निमाड़, महिलाओं का पर्व गीत।
  2. सहेलिया गीत – बुंदेलखंड, नवविवाहिताओं का गीत।
  3. कर्बाला गीत – भोपाल, मुहर्रम से संबंधित।
  4. लमटेरा गीत – बैगा और गोंड जनजाति का धार्मिक संगीत।
  5. भैरवी गीत – भक्ति संगीत, शिव की आराधना।
  6. राई गीत – बुंदेलखंड, नृत्य आधारित वीर रस का गीत।

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