भारत के प्रधानमंत्रियों की कहानी

भारत के प्रधानमंत्रियों का सफर: लोकतंत्र की कहानी

15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ। एक नए भविष्य की शुरुआत हुई, और इस नवोदित लोकतंत्र को दिशा देने के लिए एक नेता की जरूरत थी। ऐसे में पंडित जवाहरलाल नेहरू (1947-1964) को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं की नींव रखी, सार्वजनिक उपक्रमों को बढ़ावा दिया और विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को बढ़ाया। लेकिन 1962 का चीन युद्ध उनकी सबसे बड़ी चुनौती साबित हुआ।

उनकी मृत्यु के बाद, लाल बहादुर शास्त्री (1964-1966) प्रधानमंत्री बने। उनकी सादगी और “जय जवान, जय किसान” के नारे ने देश को एक नई ऊर्जा दी। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ, जिसमें भारत ने शानदार विजय प्राप्त की। लेकिन ताशकंद समझौते के बाद ही उनका निधन हो गया।

इसके बाद इंदिरा गांधी (1966-1977) सत्ता में आईं। उन्हें एक दृढ़निश्चयी नेता के रूप में देखा गया, जिन्होंने 1971 में बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन आपातकाल (1975-77) के फैसले से उनकी लोकप्रियता को झटका लगा, और उन्हें सत्ता से हटना पड़ा।

मोरारजी देसाई (1977-1979) जनता पार्टी के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया, लेकिन पार्टी में आंतरिक कलह के कारण सरकार गिर गई। फिर चौधरी चरण सिंह (1979-1980) प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल छोटा रहा।

1980 में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आईं, लेकिन 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद उनके बेटे राजीव गांधी (1984-1989) प्रधानमंत्री बने। उन्होंने दूरसंचार क्रांति शुरू की, लेकिन बोफोर्स घोटाले से उनकी छवि धूमिल हुई।

1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह (1989-1990) प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने मंडल आयोग लागू कर आरक्षण नीति में बड़ा बदलाव किया। लेकिन उनकी सरकार ज्यादा दिन नहीं चली, और चंद्रशेखर (1990-1991) प्रधानमंत्री बने।

1991 में कांग्रेस सत्ता में लौटी, और पी. वी. नरसिम्हा राव (1991-1996) प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी (1996) पहली बार 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

1996 में एच. डी. देवेगौड़ा (1996-1997) और फिर आई. के. गुजराल (1997-1998) प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी सरकारें अस्थिर रहीं।

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी (1998-2004) फिर से प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षण कर भारत को वैश्विक ताकत बना दिया। उनके कार्यकाल में करगिल युद्ध (1999) हुआ, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को हराया।

2004 में डॉ. मनमोहन सिंह (2004-2014) प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, लेकिन 2G और कोयला घोटाले ने सरकार की छवि खराब की।

2014 में नरेंद्र मोदी (2014-वर्तमान) प्रधानमंत्री बने। उन्होंने डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाएं शुरू कीं। 2019 में वे फिर से प्रधानमंत्री बने और अनुच्छेद 370 हटाने जैसे ऐतिहासिक फैसले लिए।

इस तरह, भारत ने कई प्रधानमंत्रियों को देखा, जिन्होंने अपने-अपने समय में देश को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। यह यात्रा संघर्ष, विजयों, असफलताओं और सुधारों से भरी रही, और भारत की लोकतांत्रिक शक्ति को दर्शाती रही।

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