भारतीय संसद का इतिहास

भारतीय संसद का इतिहास भारत में विधायी प्रणाली के विकास को दर्शाता है। इसका विकास ब्रिटिश शासन के दौरान आरंभ हुआ और स्वतंत्रता के बाद संविधान के तहत एक पूर्ण लोकतांत्रिक संसद के रूप में स्थापित हुआ।

भारतीय संसद का ऐतिहासिक विकास

1. ब्रिटिश शासनकाल (1773-1947)

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में विधायी प्रणाली का क्रमिक विकास हुआ:

  • 1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट:
    • भारत में पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद बनाई गई।
    • परिषद के सदस्यों को ब्रिटिश सरकार की मंजूरी से नियुक्त किया गया।
  • 1833 का चार्टर एक्ट:
    • पहली बार केंद्रीय विधान परिषद (Legislative Council) का गठन किया गया।
    • भारत में विधायी शक्ति गवर्नर-जनरल को दी गई।
  • 1858 का भारत शासन अधिनियम:
    • ब्रिटिश क्राउन ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासन अपने हाथ में लिया।
    • वायसराय की नियुक्ति की गई।
  • 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम:
    • वायसराय की कार्यकारी परिषद में भारतीय सदस्यों को नामांकित करने की व्यवस्था की गई।
  • 1892 का भारतीय परिषद अधिनियम:
    • पहली बार कुछ भारतीयों को विधान परिषद में प्रवेश दिया गया।
    • विधायकों को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
  • 1909 का मॉर्ले-मिन्टो सुधार:
    • पहली बार भारतीयों को विधान परिषद का सदस्य बनने की अनुमति दी गई।
    • मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचक मंडल (Separate Electorate) की व्यवस्था की गई।
  • 1919 का मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार:
    • केंद्र में द्वैध शासन (Dyarchy) की शुरुआत हुई।
    • दो सदनों वाली केंद्रीय विधान परिषद बनी—कौंसिल ऑफ स्टेट्स (राज्य परिषद) और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली (केंद्रीय विधानसभा)।
    • द्वैध शासन (Dyarchy) और मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919) – संक्षिप्त जानकारी
    • परिचय:
      • द्वैध शासन (Dyarchy) भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत प्रांतीय स्तर पर लागू किया गया था।
      • इसे ब्रिटिश सरकार के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत लाया गया, जिसका उद्देश्य भारत में उत्तरदायी शासन की शुरुआत करना था।
    • द्वैध शासन की प्रणाली:
      • प्रांतीय सरकार को दो भागों में विभाजित किया गया – “वर्जित विषय” (Reserved) और “हस्तांतरित विषय” (Transferred)।
      • वर्जित विषय – गवर्नर और ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में रहे (जैसे रक्षा, कानून-व्यवस्था, भूमि राजस्व)।
      • हस्तांतरित विषय – भारतीय मंत्रियों को सौंपे गए (जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, स्थानीय स्वशासन, कृषि)।
    • मुख्य विशेषताएँ:
      • गवर्नर के पास वीटो (Veto) का अधिकार था।
      • भारतीय मंत्रियों को सीमित अधिकार दिए गए थे।
      • केंद्रीय स्तर पर ब्रिटिश सरकार का पूरा नियंत्रण बना रहा।
    • कमियाँ:
      • भारतीय मंत्रियों के पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं थी।
      • वित्तीय स्वतंत्रता नहीं थी, जिससे सुधार कार्य प्रभावी नहीं हो सके।
      • द्वैध शासन अव्यवहारिक और असफल रहा।
    • परिणाम:
      • द्वैध शासन को 1935 के भारत सरकार अधिनियम में समाप्त कर दिया गया और प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy) की व्यवस्था लागू की गई।
  • 1935 का भारत शासन अधिनियम:
    • भारत में संघीय व्यवस्था की नींव रखी गई।
    • द्विसदनीय संसद की अवधारणा को मजबूत किया गया।
    • केंद्र और प्रांतों में स्वायत्तता बढ़ाई गई।

2. स्वतंत्र भारत में संसद (1947 – वर्तमान)

  • 1947: भारत को स्वतंत्रता मिली और अंतरिम संसद का गठन हुआ।
  • 1950: भारतीय संविधान लागू हुआ, और भारत में संसदीय प्रणाली अपनाई गई।
  • 1952: पहली लोकसभा और राज्यसभा का गठन हुआ।

भारतीय संसद की संरचना

संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, भारतीय संसद में तीन घटक होते हैं:

  1. राष्ट्रपति: संसद का अभिन्न अंग, विधेयकों को मंजूरी देता है।
  2. राज्यसभा (ऊपरी सदन): स्थायी सदन, जिसमें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं।
  3. लोकसभा (निचला सदन): प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का सदन।

भारत का संसद भवन – सामान्य ज्ञान

  1. निर्माण वर्ष: 1921-1927
  2. उद्घाटन: 18 जनवरी 1927
  3. डिजाइन: ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर
  4. स्थान: नई दिल्ली
  5. आकार: वृत्ताकार (सर्कुलर)
  6. व्यास: लगभग 173 मीटर
  7. परिधि: 533 मीटर
  8. कुल स्तंभ: 144 (प्रवेश द्वारों के चारों ओर)
  9. कुल मंजिलें: 3
  10. संसद भवन के कक्ष:
  • लोकसभा कक्ष (निचला सदन)
  • राज्यसभा कक्ष (ऊपरी सदन)
  • सेंट्रल हॉल (जहाँ संविधान सभा की बैठकें हुई थीं)
  1. प्रेरणा: भारत के प्राचीन मंदिरों, विशेष रूप से चौसठ योगिनी मंदिर (मध्य प्रदेश, मोरेना) से प्रेरित
  2. नए संसद भवन का उद्घाटन: 28 मई 2023 (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा)
  3. नए संसद भवन का डिजाइन: बिमल पटेल
  4. नए संसद भवन का आकार: तिकोना (त्रिकोणीय)
  5. पुराने और नए संसद भवन में अंतर:
  • नया संसद भवन आधुनिक तकनीकों से लैस है।
  • पुराना संसद भवन ब्रिटिश काल में बना था, जबकि नया भारतीय स्थापत्य शैली का उदाहरण है।
  1. राष्ट्रीय प्रतीक: नए संसद भवन में अशोक स्तंभ का विशाल प्रतीक स्थापित किया गया है।
  2. संसद भवन का ऐतिहासिक महत्व:
  • यहीं पर 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान अंगीकार किया गया।
  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा।

राज्यसभा का इतिहास और विस्तृत जानकारी

1. राज्यसभा का परिचय

राज्यसभा भारतीय संसद का ऊपरी सदन (Upper House) है, जिसे स्थायी सदन भी कहा जाता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80 और 81 के तहत स्थापित किया गया है। राज्यसभा का मुख्य उद्देश्य भारतीय संघीय व्यवस्था को मजबूत करना और केंद्र एवं राज्यों के बीच समन्वय बनाए रखना है।


2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

(क) ब्रिटिश काल में द्विसदनीय व्यवस्था की शुरुआत

ब्रिटिश शासनकाल में भारत में विधायी प्रणाली धीरे-धीरे विकसित हुई:

  1. 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम:
    • गवर्नर-जनरल की कार्यकारी परिषद बनाई गई, जिसमें कुछ नामित भारतीय सदस्य भी शामिल थे।
    • यह केवल एक सलाहकार निकाय था।
  2. 1919 का भारत सरकार अधिनियम (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार):
    • भारत में द्विसदनीय (Bicameral) विधायी प्रणाली की शुरुआत हुई।
    • पहली बार “राज्य परिषद” (Council of States) और “केंद्रीय विधानसभा” (Legislative Assembly) बनाए गए।
    • “राज्य परिषद” को ही आधुनिक “राज्यसभा” का पूर्ववर्ती रूप माना जाता है।
  3. 1935 का भारत सरकार अधिनियम:
    • केंद्र में द्विसदनीय विधान मंडल को और अधिक शक्तियाँ दी गईं।
    • राज्य परिषद में कुछ निर्वाचित भारतीय सदस्यों को शामिल किया गया।

3. स्वतंत्र भारत में राज्यसभा का गठन

(क) संविधान सभा और राज्यसभा का स्वरूप (1947-1950)

  • 1947 में स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा ने भारत की संसद के स्वरूप पर विचार किया।
  • भारत ने ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को अपनाया, जिसमें द्विसदनीय संसद (Bicameral Legislature) शामिल थी।
  • संविधान सभा में निर्णय लिया गया कि भारत में भी लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (ऊपरी सदन) होंगे।

(ख) राज्यसभा का औपचारिक गठन (1952)

  • राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को आयोजित हुआ।
  • पहला उद्घाटन सत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के पहले सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा आयोजित किया गया।

4. राज्यसभा की संरचना और सदस्य संख्या

(क) राज्यसभा के कुल सदस्य

संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार, राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं। इनमें से:

  • 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
  • 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं।

(ख) वर्तमान में राज्यसभा की सदस्य संख्या

वर्तमान में राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं:

  • 233 निर्वाचित सदस्य (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से)।
  • 12 मनोनीत सदस्य (विज्ञान, कला, साहित्य, समाजसेवा आदि के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले)।

(ग) राज्यसभा में सदस्यों का चुनाव

  • राज्यसभा के सदस्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों (MLAs) द्वारा प्रतिनिधित्वात्मक एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Proportional Representation by Single Transferable Vote) से चुने जाते हैं।
  • यह चुनाव प्रत्यक्ष मतदान (Direct Election) द्वारा नहीं होता।

5. राज्यसभा की विशेषताएँ

(क) स्थायी सदन (Permanent House)

  • लोकसभा हर 5 साल में भंग हो जाती है, लेकिन राज्यसभा एक स्थायी सदन है और कभी भंग नहीं होती।
  • प्रत्येक 2 वर्ष में राज्यसभा के 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं, और नए सदस्य चुने जाते हैं।

(ख) राज्यसभा का कार्यकाल

  • प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
  • हर दो वर्ष में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं, और नए चुनाव होते हैं।

6. राज्यसभा के प्रमुख पदाधिकारी

  1. सभापति (Chairman):
    • भारत का उपराष्ट्रपति स्वाभाविक रूप से राज्यसभा का सभापति होता है।
    • वर्तमान उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा की अध्यक्षता करता है।
    • वोटिंग में केवल टाई (समान मतों) की स्थिति में वोट डालता है।
  2. उपसभापति (Deputy Chairman):
    • राज्यसभा अपने सदस्यों में से एक को उपसभापति के रूप में चुनती है।
    • जब सभापति अनुपस्थित होते हैं, तो उपसभापति सदन की कार्यवाही संचालित करता है।
    • राज्यसभा के उपसभापति के बारे में पाँच महत्वपूर्ण बातें
    • चुनाव प्रक्रिया:
      • राज्यसभा का उपसभापति राज्यसभा के सदस्यों द्वारा स्वयं चुना जाता है।
      • चुनाव बहुमत के आधार पर होता है और इसके लिए किसी राजनीतिक दल से होना आवश्यक नहीं होता।
    • कार्यकाल और पद से हटाना:
      • उपसभापति का कार्यकाल उसके राज्यसभा सदस्य के कार्यकाल तक होता है।
      • उसे राज्यसभा के बहुमत सदस्यों के द्वारा प्रस्ताव पारित कर हटाया भी जा सकता है।
    • दायित्व और शक्तियाँ:
      • उपसभापति, सभापति की अनुपस्थिति में राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करता है।
      • यदि सभापति (उपराष्ट्रपति) अनुपस्थित होता है, तो उपसभापति की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
    • मतदान में भूमिका:
      • उपसभापति को मतदान का अधिकार होता है, लेकिन वह केवल तभी मतदान करता है जब सदन में मतों की संख्या बराबर हो जाती है।
    • महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान:
  3. सदन के नेता (Leader of the House):
    • प्रधानमंत्री राज्यसभा के लिए एक नेता नियुक्त करते हैं।
    • राज्यसभा के सदन के नेता के बारे में पाँच महत्वपूर्ण बातें
    • नियुक्ति:
      • राज्यसभा के सदन के नेता (Leader of the House) को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है
      • आमतौर पर यह पद राज्यसभा में सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ मंत्री को दिया जाता है।
    • भूमिका और जिम्मेदारियाँ:
      • सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • सरकार के पक्ष को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करता है और नीतियों का बचाव करता है।
    • संसद में प्रभाव:
      • यह पद कैबिनेट मंत्री के समकक्ष होता है और राज्यसभा में सरकार का प्रमुख चेहरा होता है।
      • विपक्ष के साथ चर्चा कर सदन में सहमति बनाने का प्रयास करता है।
    • बहस और चर्चा का नेतृत्व:
      • महत्वपूर्ण विधेयकों और नीतिगत चर्चाओं में सरकार की ओर से नेतृत्व करता है।
      • सरकार की योजनाओं और कार्यों की जानकारी सदन को देता है।
    • विशेषाधिकार:
    • सदन के नेता को राज्यसभा में बैठने के लिए अग्रिम पंक्ति में स्थान दिया जाता है।
    • वह विभिन्न संसदीय समितियों में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है और सदन के कामकाज को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  4. विपक्ष के नेता (Leader of Opposition):
    • राज्यसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता होता है।
    • उसे भारत सरकार के नियमों के अनुसार कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है।
    • राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) के बारे में पाँच महत्वपूर्ण बातें
    • नियुक्ति और मान्यता:
      • राज्यसभा में विपक्ष के सबसे बड़े दल का नेता, राज्यसभा का नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) बनता है।
      • यह पद तभी मान्यता प्राप्त करता है जब संबंधित विपक्षी दल के सदस्यों की संख्या कुल सदन की 10% (25 सदस्य) से अधिक होती है।
    • भूमिका और जिम्मेदारियाँ:
      • सरकार की नीतियों और विधेयकों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करता है।
      • सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए सवाल उठाता है और विपक्ष का पक्ष मजबूती से प्रस्तुत करता है।
    • संसदीय कार्य में योगदान:
      • संसद में बहस, चर्चा और समितियों में सरकार के खिलाफ तर्क रखता है।
      • नीतिगत और विधायी मामलों पर सरकार से संवाद करता है।
    • विशेषाधिकार और मान्यता:
      • नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जा प्राप्त होता है।
      • उन्हें वेतन, भत्ता और सरकारी सुविधाएँ मिलती हैं।
    • महत्व और प्रभाव:
      • यह पद लोकतंत्र की मजबूती और संतुलित शासन प्रणाली के लिए आवश्यक है।
      • विभिन्न संसदीय समितियों, विशेष रूप से लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) में अहम भूमिका निभाता है।

7. राज्यसभा की शक्तियाँ और कार्य

  1. विधायी कार्य:
    • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर कानून बनाने का कार्य करती है।
    • कोई भी विधेयक (Bill) दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति से कानून बनता है।
  2. वित्तीय शक्तियाँ:
    • राज्यसभा में वित्त विधेयक (Money Bill) प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
    • लेकिन, राज्यसभा को इसे 14 दिनों के भीतर पारित करना होता है।
  3. संशोधन प्रस्ताव (Amendment Proposal):
    • संविधान संशोधन विधेयक पारित करने में राज्यसभा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
    • संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से इसे पारित करना अनिवार्य होता है।
  4. विशेष शक्तियाँ (अनुच्छेद 249):
    • राज्यसभा को यह अधिकार है कि वह राष्ट्रीय हित में संसद को किसी राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने की सिफारिश कर सकती है।
    • इसके लिए उसे दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करना होता है।

राज्यसभा में सदस्यों का चुनाव कैसे होता है?

राज्यसभा भारतीय संसद का ऊपरी सदन है, और इसके सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं चुने जाते। बल्कि, इनका चुनाव राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (MLAs) द्वारा किया जाता है।


1. राज्यसभा के सदस्यों की संख्या और वर्गीकरण

  • कुल सदस्य: अधिकतम 250 हो सकते हैं।
  • वर्तमान सदस्य: 245 (233 निर्वाचित + 12 मनोनीत)।
  • 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
  • 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

2. राज्यसभा के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?

राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य प्रत्याक्षी प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) के अंतर्गत एकल संक्रमणीय मत पद्धति (Single Transferable Vote System) से चुने जाते हैं।

(क) कौन मतदान करता है?

  • प्रत्येक राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य (MLAs) राज्यसभा के लिए मतदान करते हैं।
  • केंद्रशासित प्रदेशों में भी विधायकों द्वारा राज्यसभा सदस्यों का चुनाव होता है।
  • दिल्ली और पुडुचेरी जैसे कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को भी राज्यसभा में प्रतिनिधित्व प्राप्त है।

(ख) मतदान की प्रक्रिया

राज्यसभा चुनावों में गुप्त मतदान (Secret Ballot) नहीं होता बल्कि विधायकों को अपनी पार्टी को मत दिखाना अनिवार्य होता है (Anti-Defection Law लागू होता है)।

(ग) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली कैसे काम करती है?

  • प्रत्येक विधायक के पास केवल एक वोट होता है।
  • लेकिन उसे प्राथमिकता क्रम (1, 2, 3, आदि) में उम्मीदवारों को रैंक देना होता है।
  • यदि कोई उम्मीदवार पहली वरीयता (First Preference) के वोटों से आवश्यक कोटा हासिल कर लेता है, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
  • यदि कोई उम्मीदवार कोटा हासिल नहीं कर पाता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है और उसके वोट को दूसरी वरीयता वाले उम्मीदवार को ट्रांसफर कर दिया जाता है।
  • यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि सभी सीटें भर नहीं जातीं।

3. राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य

संविधान के अनुच्छेद 80(1) के अनुसार, राष्ट्रपति 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत (Nominated) करता है।

(क) किन क्षेत्रों के विशेषज्ञ मनोनीत किए जाते हैं?

राष्ट्रपति विज्ञान, कला, साहित्य, समाज सेवा और खेलकूद के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को नामित करता है।

(ख) मनोनीत सदस्यों के विशेष अधिकार

  • वे मतदान नहीं कर सकते यदि कोई विधेयक पैसे (Money Bill) से संबंधित हो।
  • लेकिन वे अन्य विधायी कार्यों में भाग ले सकते हैं और बहस में हिस्सा ले सकते हैं।

4. राज्यसभा की सदस्यता का कार्यकाल

  • 6 साल का कार्यकाल होता है।
  • हर दो साल में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं और उनकी जगह नए सदस्य चुने जाते हैं।
  • यह प्रणाली राज्यसभा को स्थायी सदन बनाती है, जिसे कभी भंग नहीं किया जाता।

राज्यसभा का चुनाव प्रत्यक्ष नहीं होता बल्कि राज्य विधानसभाओं द्वारा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के तहत किया जाता है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि छोटे और क्षेत्रीय दलों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिले। साथ ही, राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य इसे और अधिक विविध और ज्ञानवर्धक बनाते हैं।

राज्यसभा के सभापति कौन होते हैं?

राज्यसभा का सभापति (Chairman) भारत का उपराष्ट्रपति होता है। संविधान के अनुच्छेद 64 और 89 के तहत, जो भी व्यक्ति उपराष्ट्रपति चुना जाता है, वह स्वतः ही राज्यसभा का पदेन (Ex-officio) सभापति बन जाता है।


राज्यसभा के सभापति का चुनाव कैसे होता है?

राज्यसभा के सभापति का सीधा चुनाव नहीं होता, बल्कि इसका चुनाव उपराष्ट्रपति चुनाव के माध्यम से होता है।

उपराष्ट्रपति का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित और नामित सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह चुनाव प्रत्यक्ष्य एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Proportional Representation by Single Transferable Vote) द्वारा होता है। इसमें सांसद गुप्त मतदान के माध्यम से अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। जो उम्मीदवार बहुमत (50% + 1 वोट) प्राप्त करता है, वह भारत का उपराष्ट्रपति और राज्यसभा का सभापति बन जाता है।

उपराष्ट्रपति (अर्थात राज्यसभा के सभापति) का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन वे फिर से चुनाव लड़ सकते हैं। यदि राष्ट्रपति का पद किसी कारणवश खाली हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालना पड़ता है।


राज्यसभा के सभापति के दायित्व और शक्तियाँ

  1. सदन की कार्यवाही का संचालन: राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही को सुव्यवस्थित रूप से चलाता है।
  2. विधेयकों पर निर्णय: यह तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक (Money Bill) है या नहीं।
  3. बहस और चर्चा को नियंत्रित करना: राज्यसभा में चर्चाओं, प्रश्नकाल और विधायी प्रक्रिया को नियमों के तहत सुनिश्चित करता है।
  4. अनुशासन बनाए रखना: सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए, वह सांसदों को चेतावनी दे सकता है, कार्यवाही से निष्कासित कर सकता है, या निलंबित कर सकता है।
  5. निर्णायक मत (Casting Vote): आम तौर पर, सभापति राज्यसभा में मतदान नहीं करता। लेकिन यदि सदन में मतों की संख्या बराबर हो जाती है, तो वह निर्णायक मत डाल सकता है।
  6. संसदीय समितियों की नियुक्ति: संविधान और नियमों के तहत विभिन्न संसदीय समितियों का गठन करता है और सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  7. विशेषाधिकार उल्लंघन के मामले: यदि कोई सांसद राज्यसभा की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, तो सभापति उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है।

इस प्रकार, राज्यसभा के सभापति की भूमिका केवल सदन का संचालन करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह विधायी प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लोकसभा: इतिहास और विस्तृत जानकारी

लोकसभा भारत की संसद का निचला सदन (Lower House) है, जिसे जनता का सदन भी कहा जाता है। यह भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है, क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। लोकसभा में सरकार बनती है और यह विधायी प्रक्रिया का केंद्र होती है।


1. लोकसभा का इतिहास

संवैधानिक प्रावधान और गठन

  • लोकसभा का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के तहत किया गया है।
  • भारत में पहली लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ था।
  • लोकसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को आयोजित किया गया था।
  • संविधान में लोकसभा को संसद के तीन घटकों (राष्ट्रपति, राज्यसभा, लोकसभा) में से एक के रूप में स्थापित किया गया।

लोकसभा का ऐतिहासिक विकास

  • 1935 का भारत सरकार अधिनियम: ब्रिटिश शासन के दौरान यह अधिनियम आया, जिसने केंद्रीय विधानसभा का प्रावधान किया।
  • 1950: भारतीय संविधान लागू हुआ और लोकसभा की परिकल्पना की गई।
  • 1952: पहली लोकसभा का गठन हुआ और इसे लोकतंत्र की नींव माना गया।
  • 1975-77: आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल 6 साल तक बढ़ा दिया गया था।
  • 1989-91: गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ।
  • 2014: पहली बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पूर्ण बहुमत मिला।

2. लोकसभा की संरचना और सदस्यता

सदस्यों की संख्या

  • संविधान के अनुसार, लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं।
  • वर्तमान में 543 निर्वाचित सदस्य होते हैं।
  • राष्ट्रपति 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को मनोनीत कर सकता था, लेकिन यह प्रावधान 126वें संविधान संशोधन (2019) द्वारा समाप्त कर दिया गया।

सदस्यों का चुनाव

  • लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं।
  • चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) के आधार पर होते हैं।
  • प्रत्येक भारतीय नागरिक जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है, मतदान कर सकता है।
  • चुनाव पहले-पहले-पश्चात (First Past the Post System) प्रणाली के आधार पर होते हैं।

3. लोकसभा का कार्यकाल और विघटन

  • लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन इसे राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जा सकता है।
  • आपातकाल की स्थिति में संसद के निर्णय से इसका कार्यकाल 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

4. लोकसभा के प्रमुख पदाधिकारी

(क) लोकसभा अध्यक्ष (Speaker)

  • लोकसभा अध्यक्ष सदन का प्रमुख होता है और इसे सदस्यों द्वारा बहुमत से चुना जाता है।
  • इसका कार्य सदन की कार्यवाही को नियंत्रित करना और नियमों का पालन सुनिश्चित करना है।
  • लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) के बारे में पाँच महत्वपूर्ण बातें
  • चुनाव और नियुक्ति:
    • लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
    • चुनाव तब होता है जब लोकसभा का नया सत्र शुरू होता है या जब अध्यक्ष का पद खाली होता है।
  • संसद में भूमिका:
    • अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाही को निष्पक्ष रूप से संचालित करता है।
    • किसी भी सांसद को सदन से निष्कासित करने का अधिकार रखता है।
    • यह तय करता है कि कौन-सा विधेयक धन विधेयक है या नहीं।
  • निर्णायक मत (Casting Vote):
    • आमतौर पर, अध्यक्ष मतदान नहीं करता, लेकिन यदि सदन में मतों की संख्या बराबर हो जाती है, तो उसका निर्णायक मत (Casting Vote) महत्वपूर्ण होता है।
  • महाभियोग प्रक्रिया:
    • लोकसभा अध्यक्ष को सदन के बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित करके हटाया जा सकता है।
    • इसके लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना आवश्यक होता है।

(ख) उपाध्यक्ष (Deputy Speaker)

  • यह अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्य करता है।
  • लोकसभा के उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) के बारे में पाँच महत्वपूर्ण बातें
  • चुनाव प्रक्रिया:
    • लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा बहुमत से किया जाता है।
    • यह चुनाव लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के बाद संपन्न होता है।
  • कार्यभार और जिम्मेदारी:
    • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का संचालन करता है।
    • अध्यक्ष की तरह उसे भी संसद की गरिमा बनाए रखने और निष्पक्षता बरतने की जिम्मेदारी दी जाती है।
  • राजनीतिक स्वतंत्रता:
    • एक बार निर्वाचित होने के बाद, उपाध्यक्ष को किसी भी राजनीतिक दल की गतिविधियों से अलग रहना होता है।
    • वह सदन में निष्पक्ष भूमिका निभाता है।
  • निर्णायक मत (Casting Vote):
    • यदि लोकसभा में किसी प्रस्ताव पर मतों की संख्या बराबर हो जाए, तो उपाध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार होता है।
  • पद से हटाने की प्रक्रिया:
    • उपाध्यक्ष को लोकसभा के बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित करके हटाया जा सकता है।
    • इसके लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना आवश्यक होता है।

(ग) प्रधानमंत्री (Prime Minister)

  • लोकसभा में सबसे बड़े दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है।
  • प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद मिलकर सरकार चलाते हैं।

(घ) नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition)

  • यह पद लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को दिया जाता है।
  • उसे कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जा प्राप्त होता है।

5. लोकसभा की शक्तियाँ और कार्य

(क) विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers)

  • लोकसभा नए कानून बनाने, संशोधित करने और हटाने का अधिकार रखती है।
  • इसे संविधान के अनुच्छेद 107-111 के तहत विधायी शक्तियाँ दी गई हैं।

(ख) कार्यकारी नियंत्रण (Executive Control)

  • लोकसभा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखती है।
  • अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence Motion) लाकर सरकार को हटा सकती है।

(ग) वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers)

  • संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार, धन विधेयक (Money Bill) केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है।
  • अनुदान माँग (Demand for Grants) का अधिकार केवल लोकसभा को है।

(घ) न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers)

  • लोकसभा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के जजों के महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।

6. लोकसभा और राज्यसभा में अंतर

  • लोकसभा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुनी जाती है, जबकि राज्यसभा अप्रत्यक्ष चुनाव से।
  • लोकसभा को भंग किया जा सकता है, लेकिन राज्यसभा एक स्थायी सदन है।
  • लोकसभा में सरकार बनती है, जबकि राज्यसभा केवल समीक्षा का कार्य करती है।
  • धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।

7. लोकसभा के प्रमुख तथ्य

  • पहली लोकसभा के अध्यक्ष: गणेश वासुदेव मावलंकर
  • सबसे लंबी लोकसभा: 5वीं लोकसभा (1971-77)
  • सबसे कम समय की लोकसभा: 12वीं लोकसभा (1998-99)
  • अधिकतम महिला सांसद: 17वीं लोकसभा (2019) में 78 महिला सांसद
  • लोकसभा का सबसे बड़ा राज्य: उत्तर प्रदेश (80 सीटें)
  • सबसे छोटा राज्य: सिक्किम (1 सीट)

8. निष्कर्ष

लोकसभा भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह जनता की इच्छाओं को अभिव्यक्त करता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है। इसकी विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियाँ इसे भारत की सबसे प्रभावशाली संस्था बनाती हैं।

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