भारतीय संविधान

भारतीय संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है, जो देश की शासन प्रणाली, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों, तथा सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

1. निर्माण और लागू होने की प्रक्रिया

  • संविधान सभा का गठन: 9 दिसंबर 1946
  • संविधान का अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
  • संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली समिति: प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी)
  • प्रारूप समिति के अध्यक्ष: डॉ. भीमराव अंबेडकर
  • संविधान अंगीकार करने की तिथि: 26 नवंबर 1949
  • संविधान लागू होने की तिथि: 26 जनवरी 1950

2. संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

  • लिखित और विस्तृत संविधान: विश्व के सबसे विस्तृत लिखित संविधानों में से एक
  • संघीय संरचना: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन
  • गणतांत्रिक व्यवस्था: राष्ट्रपति एक निर्वाचित राष्ट्राध्यक्ष होता है
  • सामाजिक और आर्थिक न्याय: समाजवाद और कल्याणकारी राज्य की अवधारणा
  • मौलिक अधिकार: नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं
  • नीति निर्देशक तत्व (DPSP): सरकार के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत
  • संविधान की संशोधन प्रक्रिया: लचीला और कठोर दोनों तरह का संशोधन संभव

3. संविधान के प्रमुख भाग और अनुच्छेद

  • भाग 1: संघ और उसका क्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)
  • भाग 2: नागरिकता (अनुच्छेद 5-11)
  • भाग 3: मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35)
  • भाग 4: नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36-51)
  • भाग 4(A): मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)
  • भाग 5: संघीय शासन (अनुच्छेद 52-151)
  • भाग 6: राज्य सरकारें (अनुच्छेद 152-237)

4. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights – Part III, Article 12-35)

  1. अनुच्छेद 14-18: समानता का अधिकार
  2. अनुच्छेद 19-22: स्वतंत्रता का अधिकार
  3. अनुच्छेद 23-24: शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. अनुच्छेद 29-30: सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
  6. अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचार का अधिकार

5. मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties – Article 51A)

मौलिक कर्तव्य 42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए। इनमें राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान, संविधान का पालन, स्वतंत्रता संग्राम का आदर, पर्यावरण की रक्षा, वैज्ञानिक सोच विकसित करना आदि शामिल हैं।

6. संविधान में संशोधन

  • अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन की प्रक्रिया तय की गई है।
  • अब तक 100+ संशोधन किए जा चुके हैं।
  • 42वां संशोधन (1976): “समाजवादी”, “पंथनिरपेक्ष” और “अखंडता” शब्द जोड़े गए।
  • 44वां संशोधन (1978): संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार से हटा दिया गया।
  • 73वां और 74वां संशोधन (1992): पंचायत राज और नगर पालिका प्रणाली को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

7. संविधान की महत्वपूर्ण विशेषताएँ

  • संप्रभुता: भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है।
  • समाजवाद: आर्थिक और सामाजिक समानता पर बल।
  • धर्मनिरपेक्षता: राज्य सभी धर्मों से समान दूरी रखता है।
  • लोकतंत्र: जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन।
  • गणराज्य: राष्ट्रपति चुनाव द्वारा चुना जाता है।

8. भारतीय संविधान के स्रोत

भारतीय संविधान कई देशों के संविधानों से प्रभावित है, जैसे:

  • ब्रिटेन: संसदीय प्रणाली
  • अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन
  • आयरलैंड: नीति निर्देशक तत्व
  • ऑस्ट्रेलिया: समवर्ती सूची
  • जर्मनी: आपातकालीन प्रावधान

भारतीय संविधान – भाग 1 (संघ और उसका क्षेत्र)

संविधान का भाग 1 (अनुच्छेद 1 से 4) भारत के संघीय ढांचे, उसके क्षेत्रीय स्वरूप और राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित है।


1. अनुच्छेद 1 – भारत का नाम और राज्य क्षेत्र

  • भारत को “इंडिया, जो कि भारत है” के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का एक संघ होगा।
  • भारत का क्षेत्र तीन घटकों में विभाजित है:
    1. राज्यों का क्षेत्र
    2. केंद्रशासित प्रदेशों का क्षेत्र
    3. वे क्षेत्र जिन्हें सरकार अधिग्रहित कर सकती है

2. अनुच्छेद 2 – नए राज्यों का प्रवेश और गठन

  • संसद को अधिकार है कि वह किसी नए राज्य को भारतीय संघ में शामिल कर सकती है।
  • विदेशी क्षेत्रों को भारत में मिलाया जा सकता है।
  • उदाहरण: 1975 में सिक्किम को भारतीय राज्य बनाया गया।

3. अनुच्छेद 3 – राज्यों का पुनर्गठन

  • संसद को अधिकार है कि वह:
    1. किसी राज्य का क्षेत्र घटा या बढ़ा सकती है।
    2. राज्यों की सीमाएँ बदल सकती है।
    3. नए राज्यों का निर्माण कर सकती है।
    4. राज्यों के नाम बदल सकती है।
  • राज्य पुनर्गठन पर संबंधित राज्य से राय लेना आवश्यक है, लेकिन वह बाध्यकारी नहीं है।
  • 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों का भाषाई आधार पर पुनर्गठन किया गया।

4. अनुच्छेद 4 – संशोधन और संविधान में बदलाव

  • अनुच्छेद 2 और 3 के तहत किए गए परिवर्तन संविधान संशोधन नहीं माने जाएंगे (अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी)।
  • संसद साधारण बहुमत से राज्यों के पुनर्गठन या नाम बदलने संबंधी कानून पारित कर सकती है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • भारत एक संघीय राज्य है, लेकिन राज्यों का अस्तित्व संसद पर निर्भर करता है।
  • भारतीय संविधान राज्यों को स्वायत्तता देता है, लेकिन उन्हें पूरी स्वतंत्रता नहीं है।
  • संसद को राज्यों के सीमांकन और पुनर्गठन का विशेषाधिकार प्राप्त है।

भाग 1 भारत के संघीय ढांचे की नींव रखता है और भारतीय क्षेत्र की अखंडता को सुनिश्चित करता है।

भारतीय संविधान – भाग 2 (नागरिकता)

संविधान का भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) भारत में नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट करता है। यह यह बताता है कि भारत का नागरिक कौन होगा और किन परिस्थितियों में नागरिकता प्राप्त की जा सकती है या छीन ली जा सकती है।


1. अनुच्छेद 5 – भारत में नागरिकता का अधिकार

  • 26 जनवरी 1950 को जो व्यक्ति भारत का नागरिक था, वह भारतीय नागरिक बना रहेगा।
  • निम्नलिखित लोग भारत के नागरिक माने जाएंगे:
    1. जो भारत में जन्मे हों।
    2. जिनके माता-पिता में से कोई एक भारत में जन्मा हो।
    3. जो लोग भारत में 5 साल से अधिक समय से रह रहे हों।

2. अनुच्छेद 6 – विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए लोगों की नागरिकता

  • जो लोग 1 जुलाई 1948 से पहले भारत में आ गए थे, वे स्वतः भारतीय नागरिक बन गए।
  • जो लोग 1 जुलाई 1948 के बाद भारत आए, उन्हें नागरिकता के लिए आवेदन देना पड़ा।

3. अनुच्छेद 7 – पाकिस्तान गए भारतीयों की नागरिकता

  • जो भारतीय पाकिस्तान चले गए थे और बाद में भारत लौटे, उन्हें विशेष प्रक्रिया के तहत नागरिकता दी गई।

4. अनुच्छेद 8 – विदेशों में रह रहे भारतीयों की नागरिकता

  • जो भारतीय मूल के लोग किसी अन्य देश में रह रहे हैं लेकिन भारत में नागरिकता पाना चाहते हैं, वे भारतीय दूतावास में आवेदन कर सकते हैं।

5. अनुच्छेद 9 – दोहरी नागरिकता निषिद्ध

  • अगर कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता लेता है, तो वह स्वतः भारतीय नागरिकता खो देगा।

6. अनुच्छेद 10 – नागरिकता का अधिकार जारी रहेगा

  • संविधान लागू होने के बाद भी नागरिकता के अधिकार लागू रहेंगे, जब तक कि संसद अन्यथा न तय करे।

7. अनुच्छेद 11 – संसद को नागरिकता से जुड़े कानून बनाने की शक्ति

  • संसद को यह शक्ति दी गई कि वह नागरिकता से जुड़े कानून बना सकती है और नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति से जुड़े नियम तय कर सकती है।
  • इसी अधिकार के तहत “भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955” बनाया गया।

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रमुख प्रावधान

यह अधिनियम 5 तरीकों से नागरिकता प्राप्त करने का प्रावधान करता है:

  1. जन्म से – अगर कोई व्यक्ति भारत में जन्मा है, तो वह भारतीय नागरिक होगा (कुछ शर्तों के साथ)।
  2. वंशानुक्रम से – अगर किसी के माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, तो उसे नागरिकता मिल सकती है।
  3. पंजीकरण से – कुछ विशेष श्रेणियों के विदेशी नागरिकों को पंजीकरण के आधार पर नागरिकता दी जा सकती है।
  4. नागरिकता ग्रहण (Naturalization) द्वारा – अगर कोई विदेशी व्यक्ति भारत में लंबे समय तक रह रहा हो और कुछ शर्तें पूरी करता हो, तो उसे नागरिकता दी जा सकती है।
  5. अधिग्रहण द्वारा (Territorial Incorporation) – यदि भारत किसी नए क्षेत्र को जोड़ता है, तो वहां के नागरिक स्वतः भारतीय नागरिक बन जाएंगे (जैसे – सिक्किम का विलय, 1975)।

नागरिकता समाप्त होने के कारण

  1. त्याग (Renunciation) – अगर कोई भारतीय नागरिक अपनी इच्छा से नागरिकता छोड़ता है।
  2. स्वेच्छिक रूप से विदेशी नागरिकता अपनाना – अगर कोई भारतीय नागरिक दूसरे देश की नागरिकता लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
  3. राजद्रोह या धोखाधड़ी (Deprivation) – अगर कोई नागरिक संविधान-विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है या नागरिकता धोखाधड़ी से प्राप्त करता है, तो सरकार उसकी नागरिकता समाप्त कर सकती है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • भारत में दोहरी नागरिकता (Dual Citizenship) की अनुमति नहीं है।
  • भारत में नागरिकता का आधार “जन्म का अधिकार” (Jus Soli) और “वंशानुगत अधिकार” (Jus Sanguinis) का मिश्रण है।
  • नागरिकता से जुड़े प्रावधानों को संशोधित करने की शक्ति केवल संसद के पास है।

संविधान का भाग 2 भारतीय नागरिकता की परिभाषा और उसके नियम तय करता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल योग्य व्यक्तियों को नागरिकता प्राप्त हो।

भारतीय संविधान – भाग 3 (मौलिक अधिकार)

संविधान का भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) से संबंधित है। ये अधिकार भारतीय नागरिकों और कुछ मामलों में विदेशी नागरिकों को भी दिए गए हैं, ताकि वे स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवनयापन कर सकें।


1. अनुच्छेद 12 – राज्य की परिभाषा

  • सरकार, संसद, राज्य विधानमंडल, और अन्य सरकारी संस्थानों को “राज्य” माना गया है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।

2. अनुच्छेद 13 – मूल अधिकारों की सुरक्षा

  • संविधान के विरुद्ध कोई भी कानून अमान्य होगा, यदि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

मौलिक अधिकारों के प्रकार (Fundamental Rights)

1. समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14 से 18

अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता

  • कानून सभी के लिए समान होगा और सरकार किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकती।

अनुच्छेद 15 – भेदभाव का निषेध

  • धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 16 – रोजगार में समान अवसर

  • सरकारी नौकरियों में सभी को समान अवसर मिलना चाहिए, लेकिन पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण दिया जा सकता है।

अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत

  • अस्पृश्यता (Untouchability) को समाप्त किया गया और इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया।

अनुच्छेद 18 – उपाधियों का उन्मूलन

  • सरकार किसी को “राजा”, “नवाब” जैसी उपाधियाँ नहीं दे सकती, लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे “भारत रत्न” दिए जा सकते हैं।

2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22

अनुच्छेद 19 – अभिव्यक्ति और अन्य स्वतंत्रताएँ

  • सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा, संघ बनाने, आवागमन, निवास, और पेशा चुनने की स्वतंत्रता दी गई।

अनुच्छेद 20 – अपराधों से सुरक्षा

  • द्वैध दंड (Double Jeopardy) निषिद्ध है – किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए दो बार दंड नहीं दिया जा सकता।
  • स्वयं-अभियोग से सुरक्षा – किसी व्यक्ति को खुद के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण

  • कोई भी व्यक्ति बिना विधिक प्रक्रिया के जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता
  • सुप्रीम कोर्ट ने इसमें “सम्मानपूर्वक जीवन जीने” और “स्वच्छ पर्यावरण” जैसी अवधारणाएँ जोड़ी हैं।

अनुच्छेद 21A – शिक्षा का अधिकार

  • 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया।

अनुच्छेद 22 – गिरफ्तारी और नजरबंदी से सुरक्षा

  • किसी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया के बिना अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) – अनुच्छेद 23 और 24

अनुच्छेद 23 – मानव तस्करी और बलात श्रम का निषेध

  • बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाई गई।

अनुच्छेद 24 – बाल श्रम निषेध

  • 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करने की अनुमति नहीं है।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25 से 28

अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता

  • सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार है।

अनुच्छेद 26 – धार्मिक मामलों की स्वतंत्रता

  • हर धर्म अपने धार्मिक संस्थान स्थापित और संचालित कर सकता है।

अनुच्छेद 27 – धर्म के प्रचार पर कर का निषेध

  • किसी भी व्यक्ति को धार्मिक उद्देश्य से कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता

अनुच्छेद 28 – धार्मिक शिक्षा पर रोक

  • सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती, लेकिन निजी धार्मिक संस्थानों में दी जा सकती है।

5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29 और 30

अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यकों की संस्कृति की सुरक्षा

  • कोई भी समुदाय अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाए रख सकता है

अनुच्छेद 30 – अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थापना का अधिकार

  • अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार है।

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32

  • यह “मौलिक अधिकारों का रक्षक” है, जो नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय जाने की अनुमति देता है।
  • यदि कोई सरकार या संस्था मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को इसे रोकने के लिए रिट जारी करने का अधिकार है।

रिट्स के प्रकार:

  1. हबीयस कॉर्पस (Habeas Corpus) – अवैध हिरासत से मुक्ति।
  2. मैंडमस (Mandamus) – सरकारी अधिकारी को अपना कर्तव्य निभाने का आदेश।
  3. प्रोहिबिशन (Prohibition) – निचली अदालत को किसी मामले की सुनवाई से रोकना।
  4. सर्टियोरी (Certiorari) – उच्च अदालत द्वारा निचली अदालत के निर्णय को रद्द करना।
  5. क्यू वारंटो (Quo Warranto) – किसी व्यक्ति से यह पूछना कि वह किसी पद पर कैसे नियुक्त हुआ।

अनुच्छेद 33 से 35 – मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध और कार्यान्वयन

  • अनुच्छेद 33 – संसद को सशस्त्र बलों और पुलिस बलों के मौलिक अधिकारों को सीमित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 34 – आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 35 – संसद को मौलिक अधिकारों से संबंधित कानून बनाने का अधिकार देता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • मौलिक अधिकार सिर्फ नागरिकों को ही नहीं, बल्कि कुछ मामलों में विदेशियों को भी मिलते हैं।
  • अनुच्छेद 32 को “संविधान की आत्मा” कहा जाता है।
  • मौलिक अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (Enforceable) हैं।

संविधान का भाग 3 नागरिकों को बुनियादी स्वतंत्रताएँ देता है और लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता है।

भारतीय संविधान – भाग 4 (नीति निदेशक तत्व)

संविधान का भाग 4 (अनुच्छेद 36 से 51) नीति निदेशक तत्वों (Directive Principles of State Policy – DPSP) से संबंधित है। ये ऐसे दिशानिर्देश हैं, जिनका पालन सरकार को करना चाहिए ताकि देश में सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित किया जा सके।


1. अनुच्छेद 36 – नीति निदेशक तत्वों की परिभाषा

  • इसमें “राज्य” की परिभाषा वही है, जो भाग 3 (अनुच्छेद 12) में दी गई है।

2. अनुच्छेद 37 – नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति

  • ये न्यायालय में बलपूर्वक लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन ये सरकार के लिए मौलिक दिशा-निर्देश हैं।

नीति निदेशक तत्वों के प्रमुख प्रकार

1. समाजवादी सिद्धांत (Socio-economic Principles)

अनुच्छेद 38 – कल्याणकारी राज्य की स्थापना

  • सरकार को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देना चाहिए ताकि असमानता को कम किया जा सके।

अनुच्छेद 39 – आर्थिक समानता

राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि:

  1. सभी नागरिकों को रोजगार और आजीविका के समान अवसर मिलें।
  2. संसाधनों का वितरण संपूर्ण समाज के हित में हो।
  3. पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन मिले।
  4. श्रमिकों का शोषण न हो।

अनुच्छेद 39A – निःशुल्क न्याय और विधिक सहायता

  • गरीबों को निःशुल्क कानूनी सहायता मिलनी चाहिए ताकि वे न्याय प्राप्त कर सकें।

अनुच्छेद 41 – रोजगार, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता

  • बेरोजगारों, गरीबों, वृद्धों और विकलांगों को रोजगार और सहायता देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

अनुच्छेद 42 – मातृत्व राहत

  • महिलाओं को सुरक्षित प्रसव और मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए।

अनुच्छेद 43 – श्रमिकों की आजीविका

  • श्रमिकों को सम्मानजनक जीवनयापन के लिए उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए।

अनुच्छेद 43A – श्रमिकों की भागीदारी

  • उद्योगों में श्रमिकों को प्रबंधन में भागीदारी का अधिकार मिलना चाहिए।

2. गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)

अनुच्छेद 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन

  • सरकार को ग्राम पंचायतों को स्वायत्त शासन की शक्ति देनी चाहिए।

अनुच्छेद 43 – कुटीर उद्योगों को बढ़ावा

  • छोटे उद्योगों और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए।

अनुच्छेद 46 – अनुसूचित जाति/जनजाति और कमजोर वर्गों की सुरक्षा

  • इन वर्गों की शिक्षा और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

अनुच्छेद 47 – पोषण स्तर और जनसंख्या नियंत्रण

  • सरकार को स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान देना चाहिए तथा नशे और शराब पर रोक लगानी चाहिए।

3. उदारवादी सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles)

अनुच्छेद 44 – समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC)

  • सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना चाहिए, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो।

अनुच्छेद 45 – प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा

  • 6 साल तक के बच्चों को बुनियादी शिक्षा और देखभाल उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

अनुच्छेद 48 – कृषि और पशुपालन

  • वैज्ञानिक तरीकों से कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिए और गौ-हत्या पर रोक लगानी चाहिए।

अनुच्छेद 48A – पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण

  • राज्य को पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए उपाय करने चाहिए।

अनुच्छेद 49 – राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सुरक्षा

  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा होनी चाहिए।

अनुच्छेद 50 – न्यायपालिका और कार्यपालिका का पृथक्करण

  • कार्यपालिका (सरकार) और न्यायपालिका (कोर्ट) को अलग रखा जाना चाहिए ताकि न्याय स्वतंत्र हो।

अनुच्छेद 51 – अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा

  • भारत को अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने, समझौतों का सम्मान करने और युद्ध टालने के लिए प्रयास करना चाहिए।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. नीति निदेशक तत्वों की प्रेरणा – इन्हें आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।
  2. बलपूर्वक लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन सरकार को इन्हें लागू करने का प्रयास करना चाहिए।
  3. मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों में अंतर
    • मौलिक अधिकार: न्यायालय द्वारा लागू कराए जा सकते हैं।
    • नीति निदेशक तत्व: न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, लेकिन सरकार इन्हें लागू करने के लिए बाध्य है।
  4. 42वें संशोधन (1976) द्वारा नए अनुच्छेद जोड़े गए – 39A, 43A और 48A।
  5. 44वें संशोधन (1978) में अनुच्छेद 45 में संशोधन हुआ और इसे बुनियादी शिक्षा के बजाय प्रारंभिक देखभाल से जोड़ दिया गया

निष्कर्ष:

नीति निदेशक तत्व देश के सामाजिक और आर्थिक विकास की नींव रखते हैं। ये एक कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की अवधारणा को साकार करने में मदद करते हैं।

भारतीय संविधान – भाग 4A (मूल कर्तव्य)

संविधान का भाग 4A (अनुच्छेद 51A) भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्यों (Fundamental Duties) से संबंधित है।

परिचय:

  • मूल रूप से संविधान में मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था
  • इन्हें 42वें संविधान संशोधन (1976) के द्वारा सोवियत संघ (रूस) के संविधान से प्रेरणा लेकर जोड़ा गया।
  • मूल रूप से 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए थे, बाद में 86वें संविधान संशोधन (2002) द्वारा एक और कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे इनकी संख्या 11 हो गई।

अनुच्छेद 51A – भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य

प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह:

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करे।
  2. स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को संजोए और उनका पालन करे।
  3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे बनाए रखे।
  4. देश की रक्षा के लिए आवश्यक होने पर सेवा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत की सामाजिक समरसता और भ्रातृत्व की भावना को बढ़ावा दे और महिलाओं के प्रति हिंसा या अपमान को त्यागे।
  6. हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोए और संरक्षित करे।
  7. पर्यावरण की रक्षा करे और प्राकृतिक संसाधनों (वन, झील, नदियाँ, वन्यजीव) की सुरक्षा और संवर्धन करे।
  8. वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
  9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करे और हिंसा से दूर रहे।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर बढ़े, जिससे राष्ट्र की निरंतर प्रगति हो।
  11. (86वां संशोधन, 2002) – 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के अवसर दे।

मूल कर्तव्यों की विशेषताएँ:

  • ये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन इनका पालन करना प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है।
  • कोई भी न्यायालय सीधे इन पर मुकदमा नहीं चला सकता, लेकिन संसद कानून बनाकर इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित कर सकती है।
  • सरकार ने पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा और राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े कई कानून बनाए हैं जो इन कर्तव्यों को लागू करने में सहायक हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. संविधान में मूल रूप से मौलिक अधिकार थे, लेकिन मूल कर्तव्य नहीं थे।
  2. 42वें संविधान संशोधन (1976) के तहत मूल कर्तव्य जोड़े गए।
  3. सोवियत संघ (रूस) के संविधान से प्रेरित थे।
  4. मूल रूप से 10 थे, 86वें संशोधन (2002) द्वारा 11वां कर्तव्य जोड़ा गया।
  5. इनका उल्लंघन कोई दंडनीय अपराध नहीं है, लेकिन सरकार कानून बनाकर इन्हें लागू कर सकती है।

निष्कर्ष:

मौलिक अधिकार नागरिकों को अधिकार देते हैं, जबकि मूल कर्तव्य उन्हें यह सिखाते हैं कि उन अधिकारों का उपयोग राष्ट्र के हित में कैसे करें। भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का समावेश एक नागरिक को जिम्मेदार बनाने और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने के उद्देश्य से किया गया है।

भारतीय संविधान – भाग 5 (संघ सरकार)

संविधान का भाग 5 (अनुच्छेद 52 से 151) संघ सरकार (Union Government) से संबंधित है। इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, अटॉर्नी जनरल और संघ के अधिनियमों की जानकारी दी गई है।


1. राष्ट्रपति (अनुच्छेद 52-62)

अनुच्छेद 52 – भारत में राष्ट्रपति का पद

  • भारत का प्रमुख संवैधानिक पद राष्ट्रपति (President) है।
  • वह संविधान का संरक्षक और देश का सर्वोच्च नागरिक होता है।

अनुच्छेद 53 – कार्यकारी शक्ति

  • राष्ट्रपति संघ की संपूर्ण कार्यकारी शक्ति का धारक होता है।
  • यह शक्ति वह स्वयं या मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग करता है।

अनुच्छेद 54 – राष्ट्रपति का चुनाव

  • राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता है, जिसमें शामिल होते हैं:
    1. लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य
    2. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली और पुडुचेरी) की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य

अनुच्छेद 55 – चुनाव की प्रक्रिया

  • राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) द्वारा होता है।
  • इसमें एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) का उपयोग होता है।

अनुच्छेद 56 – कार्यकाल

  • राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

अनुच्छेद 61 – महाभियोग (Impeachment)

  • यदि राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ महाभियोग (Impeachment) प्रक्रिया चलाई जा सकती है।
  • यह प्रक्रिया संसद में दो-तिहाई बहुमत से पारित होती है।

2. उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 63-71)

अनुच्छेद 63 – उपराष्ट्रपति का पद

  • भारत में एक उपराष्ट्रपति (Vice President) होगा।

अनुच्छेद 64 – राज्यसभा के अध्यक्ष

  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष (Ex-Officio Chairman) होता है।

अनुच्छेद 66 – चुनाव प्रक्रिया

  • उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा व राज्यसभा) के सदस्य करते हैं।
  • चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा होता है।

अनुच्छेद 67 – कार्यकाल

  • कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

3. संसद (अनुच्छेद 79-122)

अनुच्छेद 79 – संसद की स्थापना

  • भारत की संसद में तीन भाग होते हैं:
    1. राष्ट्रपति
    2. लोकसभा (सांसदों की संख्या: 545 – अब 543)
    3. राज्यसभा (सांसदों की संख्या: 250 – अब 245)

अनुच्छेद 80 – राज्यसभा की संरचना

  • राज्यसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है।
  • इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं।
  • शेष 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं।
  • वर्तमान में राज्यसभा की सदस्य संख्या 245 है।

अनुच्छेद 81 – लोकसभा की संरचना

  • लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है।
  • इसमें से 530 सदस्य राज्यों से, 20 केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं, और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जा सकते हैं (अब समाप्त)
  • वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 543 है।

अनुच्छेद 83 – संसद का कार्यकाल

  • लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
  • राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसका 1/3 भाग हर 2 वर्ष में सेवानिवृत्त होता है।

अनुच्छेद 100 – मतदान और निर्णय लेने की प्रक्रिया

  • किसी भी प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत आवश्यक होता है।

अनुच्छेद 108 – संयुक्त सत्र

  • यदि किसी विधेयक पर लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद हो, तो राष्ट्रपति संयुक्त सत्र बुला सकता है।

4. प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद (अनुच्छेद 74-75)

अनुच्छेद 74 – मंत्रिपरिषद और राष्ट्रपति

  • राष्ट्रपति को अपनी शक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग करनी होती हैं।

अनुच्छेद 75 – प्रधानमंत्री की नियुक्ति

  • राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है
  • मंत्रिपरिषद संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।

5. अटॉर्नी जनरल (अनुच्छेद 76)

  • भारत सरकार का सर्वोच्च विधि अधिकारी (Law Officer) अटॉर्नी जनरल (Attorney General of India) होता है
  • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • वह संसद में भाग ले सकता है, लेकिन मतदान नहीं कर सकता।

6. संघ की न्यायपालिका (अनुच्छेद 124-147)

अनुच्छेद 124 – सुप्रीम कोर्ट की स्थापना

  • भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) होगा

अनुच्छेद 125 – वेतन और भत्ते

  • मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों का वेतन संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है।

अनुच्छेद 126 – कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश

  • यदि मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होता है, तो वरिष्ठतम न्यायाधीश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनता है।

अनुच्छेद 127 – एडहॉक न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • यदि न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी हो, तो राष्ट्रपति एडहॉक न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है।

अनुच्छेद 136 – विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP)

  • सुप्रीम कोर्ट को विशेष अनुमति से किसी भी न्यायालय के निर्णय को सुनने की शक्ति है।

अनुच्छेद 141 – निर्णयों की बाध्यता

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय पूरा देश मानने के लिए बाध्य होता है।

7. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) (अनुच्छेद 148-151)

  • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General – CAG) की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है
  • वह भारत सरकार और राज्यों के वित्तीय लेन-देन की जांच करता है

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. राष्ट्रपति संविधान का संरक्षक और कार्यपालिका का प्रमुख होता है।
  2. लोकसभा और राज्यसभा मिलकर संसद बनाते हैं।
  3. प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद उसकी सहायता करती है।
  4. सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है।
  5. CAG सरकारी खर्चों की निगरानी करता है।

निष्कर्ष:

भाग 5 संघ सरकार की कार्यप्रणाली, शक्तियाँ, जिम्मेदारियाँ और संस्थानों के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। यह लोकतंत्र के सुचारु संचालन और शक्ति संतुलन को सुनिश्चित करता है।

भारतीय संविधान – भाग 6 (राज्य सरकार)

संविधान का भाग 6 (अनुच्छेद 152 से 237) राज्य सरकार (State Government) से संबंधित है। इसमें राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद, राज्य विधानमंडल, राज्य न्यायपालिका और अन्य राज्य स्तरीय प्रशासनिक प्रावधानों की जानकारी दी गई है।


1. राज्यपाल (Governor) (अनुच्छेद 153-162)

अनुच्छेद 153 – राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति

  • प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा
  • एक व्यक्ति एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल भी हो सकता है

अनुच्छेद 154 – कार्यकारी शक्ति

  • राज्य की संपूर्ण कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है।
  • वह मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है

अनुच्छेद 155 – राज्यपाल की नियुक्ति

  • राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है

अनुच्छेद 156 – कार्यकाल

  • राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के सुखानुसार (Pleasure of President) अपने पद पर बना रहता है।

अनुच्छेद 161 – राज्यपाल की क्षमादान शक्ति

  • राज्यपाल को राज्य कानूनों के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को क्षमा, दंड-परिवर्तन, दंड-निरसन या दंड-लाघव (Commutation) देने की शक्ति होती है

2. मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद (अनुच्छेद 163-164)

अनुच्छेद 163 – मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह

  • राज्यपाल को अपने कार्यों के लिए मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह लेनी होती है।

अनुच्छेद 164 – मुख्यमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति

  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है
  • अन्य मंत्री मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते हैं
  • मंत्रिपरिषद राज्य विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है

3. राज्य विधानमंडल (State Legislature) (अनुच्छेद 168-212)

अनुच्छेद 168 – राज्य विधानमंडल की संरचना

  • भारत में कुछ राज्यों में द्विसदनीय (Bicameral) विधानमंडल होता है, जिसमें दो सदन होते हैं:
    1. विधानसभा (Legislative Assembly / Vidhan Sabha)
    2. विधान परिषद (Legislative Council / Vidhan Parishad)
  • अधिकांश राज्यों में एकसदनीय (Unicameral) विधानमंडल होता है, जिसमें केवल विधानसभा होती है।

अनुच्छेद 170 – विधानसभा की सदस्य संख्या

  • विधानसभा में सदस्यों की संख्या 60 से 500 के बीच हो सकती है।

अनुच्छेद 171 – विधान परिषद की सदस्य संख्या

  • विधान परिषद में सदस्य विधानसभा की संख्या के 1/3 से अधिक नहीं हो सकते
  • न्यूनतम सदस्य संख्या 40 होनी चाहिए।

अनुच्छेद 172 – विधानसभा का कार्यकाल

  • विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है, लेकिन इसे राष्ट्रपति की मंजूरी से भंग किया जा सकता है

अनुच्छेद 174 – राज्य विधानमंडल का सत्रावसान

  • विधानसभा और विधान परिषद के सत्रों के बीच 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं हो सकता

अनुच्छेद 198 – धन विधेयक (Money Bill)

  • केवल विधानसभा में धन विधेयक (Money Bill) प्रस्तुत किया जा सकता है

4. राज्य न्यायपालिका (State Judiciary) (अनुच्छेद 214-231)

अनुच्छेद 214 – उच्च न्यायालय की स्थापना

  • प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय (High Court) होगा
  • दो या अधिक राज्य एक संयुक्त उच्च न्यायालय साझा कर सकते हैं

अनुच्छेद 217 – उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है

अनुच्छेद 226 – उच्च न्यायालय की रिट जारी करने की शक्ति

  • उच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत पांच प्रकार की रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है:
    1. हabeas Corpus – किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में लेने पर उसकी रिहाई के लिए।
    2. Mandamus – किसी अधिकारी को उसका कर्तव्य निभाने का आदेश देने के लिए।
    3. Prohibition – अधीनस्थ न्यायालय को उसके क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य करने से रोकने के लिए।
    4. Certiorari – अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दिए गए गलत निर्णय को रद्द करने के लिए।
    5. Quo-Warranto – किसी व्यक्ति को अवैध रूप से पद धारण करने से रोकने के लिए।

5. अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान (अनुच्छेद 232-237)

अनुच्छेद 233 – जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।

अनुच्छेद 235 – अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण

  • अधीनस्थ न्यायालयों (Lower Courts) का नियंत्रण उच्च न्यायालय के पास होता है।

अनुच्छेद 237 – विशेष उपबंध

  • राष्ट्रपति को कुछ क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान लागू करने की शक्ति प्राप्त है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी शक्ति मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
  2. अधिकांश राज्यों में केवल एकसदनीय विधानमंडल (विधानसभा) होता है, जबकि कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल (विधानसभा + विधान परिषद) होता है।
  3. उच्च न्यायालय राज्य का सर्वोच्च न्यायिक निकाय होता है और उसे विभिन्न रिट जारी करने की शक्ति होती है।
  4. जिला और अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण उच्च न्यायालय के पास होता है।
  5. राज्य विधानमंडल के सत्रों के बीच अधिकतम 6 महीने का अंतर हो सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान का भाग 6 राज्य सरकार की संरचना, शक्तियाँ, जिम्मेदारियाँ और प्रशासनिक व्यवस्था को परिभाषित करता है। यह भाग संघीय व्यवस्था को संतुलित रखते हुए राज्य को स्वायत्तता और शक्तियाँ प्रदान करता है

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