पांड्य वंश

पांड्य वंश: इतिहास, कहानियाँ, विशेषताएँ और प्रसिद्ध स्थल

1. पांड्य वंश का इतिहास

पांड्य वंश दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन राजवंशों में से एक था। इसकी शुरुआत मौर्य काल (लगभग 300 ईसा पूर्व) से मानी जाती है और यह 13वीं-14वीं शताब्दी तक चला। पांड्य राजाओं का उल्लेख महाभारत, संगम साहित्य, अशोक के शिलालेखों, और विदेशी यात्रियों (मेगस्थनीज, प्लिनी, पेरिप्लस) के ग्रंथों में मिलता है।

इस वंश का स्वर्ण युग 7वीं से 13वीं शताब्दी के बीच था, जब उन्होंने चोलों और अन्य राजवंशों को टक्कर दी और दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।



3. पांड्य वंश की विशेषताएँ (1 लाइन में)

  1. प्राचीनतम राजवंश – मौर्य काल से लेकर 14वीं शताब्दी तक शासन किया।
  2. संगम साहित्य का संरक्षण – तमिल भाषा और साहित्य को बढ़ावा दिया।
  3. मदुरै राजधानी थी – मदुरै दक्षिण भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनी।
  4. व्यापार शक्ति – रोम, ग्रीस, चीन, श्रीलंका से व्यापार संबंध थे।
  5. चोलों और श्रीलंका पर विजय – जटावर्मन सुंदर पांड्य ने 13वीं शताब्दी में चोलों को हराया।
  6. मीनाक्षी मंदिर निर्माण – मदुरै का मीनाक्षी मंदिर पांड्यों की महान धरोहर है।
  7. शिव और विष्णु भक्ति – शैव और वैष्णव धर्म को संरक्षण मिला।
  8. स्वर्ण मुद्रा प्रचलित की – चांदी और सोने की मुद्राएँ चलाईं।
  9. सशक्त नौसेना – समुद्री व्यापार और सैन्य शक्ति को बढ़ाया।
  10. स्थानीय प्रशासन – नगरों और ग्रामों की स्वायत्त शासन व्यवस्था थी।

4. पांड्य वंश के प्रसिद्ध स्थल और मंदिर

(1) मीनाक्षी अम्मन मंदिर (मदुरै, तमिलनाडु)

  • पांड्य राजाओं द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान सुंदरेश्वर (शिव) और देवी मीनाक्षी (पार्वती) को समर्पित है।
  • यह तमिलनाडु के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसे बाद में नायकों ने भी विस्तारित किया।

(2) श्रीविल्लीपुथुर आंडाल मंदिर (तमिलनाडु)

  • यह मंदिर विष्णु भक्त आंडाल को समर्पित है और पांड्य काल में बनाया गया था।
  • तमिलनाडु राज्य का आधिकारिक प्रतीक इसी मंदिर की वास्तुकला से लिया गया है।

(3) तिरुपरनकुंद्रम मुरुगन मंदिर (तमिलनाडु)

  • यह मंदिर भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) को समर्पित है और पांड्य शासकों ने इसका निर्माण करवाया था।
  • यह मुरुगन के छह पवित्र स्थलों (आरुपदई वीडू) में से एक है।

(4) कुडुमियनमलाई मंदिर (तमिलनाडु)

  • यह शैव मंदिर पांड्य शासकों द्वारा निर्मित था।
  • यहाँ एक प्राचीन तमिल शिलालेख मिला है, जो पांड्य राजाओं की संस्कृति को दर्शाता है।

(5) अzhagar Kovil (तमिलनाडु)

  • यह विष्णु मंदिर पांड्य शासन के दौरान बनाया गया था।
  • यह मंदिर सुंदरा राजा पेरुमल (भगवान विष्णु) को समर्पित है।

(6) कैलासनाथर मंदिर (तमिलनाडु)

  • यह मंदिर पांड्य काल की अद्भुत द्रविड़ शैली की वास्तुकला का उदाहरण है।

5. पांड्य वंश का पतन

  • 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत (मलिक काफूर के आक्रमण) और हिंदू विजयनगर साम्राज्य के उदय से पांड्य शक्ति कमजोर हो गई।
  • 16वीं शताब्दी तक पांड्य प्रभाव समाप्त हो गया और विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत पर नियंत्रण कर लिया।

निष्कर्ष

पांड्य वंश तमिल सभ्यता और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। इन्होंने साहित्य, कला, मंदिर निर्माण, व्यापार, और प्रशासन में बड़ी प्रगति की। मीनाक्षी मंदिर, संगम साहित्य और समुद्री व्यापार पांड्य शासकों की सबसे बड़ी विरासत मानी जाती है।

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