पल्लव वंश: संपूर्ण जानकारी
1. पल्लव वंश का इतिहास
पल्लव वंश का उदय 3वीं शताब्दी में हुआ और यह 9वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में सत्ता में रहा। इनकी राजधानी कांचीपुरम थी। प्रारंभ में पल्लव छोटे शासक थे, लेकिन धीरे-धीरे इन्होंने शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।
6वीं और 7वीं शताब्दी में पल्लव साम्राज्य अपनी राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक उन्नति के चरम पर था। इस काल में पल्लवों ने चालुक्यों और पांड्यों से कई युद्ध किए। 9वीं शताब्दी के अंत तक पल्लवों की शक्ति चोल वंश के उदय के साथ समाप्त हो गई।
2. पल्लव वंश के प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ
महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.)
- यह पल्लव वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था।
- इसने कांचीपुरम को सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बनाया।
- इसने गुफा मंदिरों का निर्माण करवाया, जिनमें ममंदूर गुफाएँ और त्रिमूर्ति मंदिर प्रमुख हैं।
- यह कवि और विद्वान भी था, जिसने संस्कृत नाटक “मत्तविलास प्रहसन” लिखा।
नरसिंहवर्मन प्रथम (महामल्ल) (630-668 ई.)
- इसने चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय को हराकर बदला लिया और “महमल्ल” की उपाधि धारण की।
- इसके शासनकाल में महाबलीपुरम के रथ मंदिर और शोर मंदिर का निर्माण हुआ।
- इसने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से संबंध स्थापित किए।
परमेश्वरवर्मन प्रथम (670-695 ई.)
- इसने चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम से युद्ध किया।
- इसने कई मंदिरों का निर्माण करवाया और कला को बढ़ावा दिया।
नरसिंहवर्मन द्वितीय (राजसिंह) (695-722 ई.)
- इसके समय में कांचीपुरम का प्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर बना।
- यह कला और साहित्य का संरक्षक था।
दंतीवर्मन (796-847 ई.)
- इसने पल्लव वंश को पुनर्जीवित करने की कोशिश की लेकिन चोलों के बढ़ते प्रभाव के कारण पल्लव साम्राज्य कमजोर हो गया।
अपराजितवर्मन (9वीं शताब्दी के अंत तक)
- यह अंतिम पल्लव शासक था, जिसे चोल राजा आदित्य प्रथम ने हराकर पल्लव साम्राज्य का अंत कर दिया।
3. पल्लव वंश की विशेषताएँ
- द्रविड़ शैली की वास्तुकला की शुरुआत – पल्लवों ने मंदिर निर्माण की नई शैली विकसित की, जिसमें रथ मंदिर और गुफा मंदिर प्रमुख हैं।
- महाबलीपुरम के शिल्प और मंदिर – यह शहर पल्लवों द्वारा बनवाए गए पत्थर की नक्काशी और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- संस्कृति और शिक्षा का विकास – कांचीपुरम उस समय का प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जहाँ बौद्ध, जैन और हिंदू विद्वान अध्ययन करते थे।
- चालुक्य-पल्लव संघर्ष – पल्लवों ने चालुक्यों से कई युद्ध किए, जिनमें नरसिंहवर्मन प्रथम ने चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय को हराकर बदला लिया।
- व्यापार और समुद्री संबंध – पल्लवों ने श्रीलंका, कंबोडिया और सुमात्रा के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए।
- संस्कृत और तमिल साहित्य को बढ़ावा – संस्कृत नाटकों और ग्रंथों के अलावा, तमिल भाषा में भी कई धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथ लिखे गए।
- कांस्य और पत्थर की मूर्तिकला – पल्लव काल की मूर्तियाँ और नक्काशियाँ भारतीय कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
4. पल्लव वंश के प्रसिद्ध स्थल और मंदिर
1. महाबलीपुरम (तमिलनाडु)
- इसे नरसिंहवर्मन प्रथम (महामल्ल) ने बनवाया था।
- यहाँ के प्रमुख स्थल पाँच रथ, शोर मंदिर और अर्जुन की तपस्या की अद्भुत नक्काशी हैं।
2. कांचीपुरम (तमिलनाडु)
- पल्लवों की राजधानी थी और दक्षिण भारत का प्रमुख सांस्कृतिक एवं धार्मिक केंद्र रहा।
- यहाँ स्थित कैलाशनाथ मंदिर, एकाम्बरेश्वर मंदिर, और वैक्कुंठ पेरुमल मंदिर पल्लव स्थापत्य कला के उदाहरण हैं।
3. शोर मंदिर (महाबलीपुरम)
- इसे नरसिंहवर्मन प्रथम ने बनवाया था।
- यह मंदिर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।
4. पंच रथ (महाबलीपुरम)
- यह पाँच अलग-अलग आकार के पत्थर के रथों का समूह है, जो पांडवों के नाम पर हैं।
- इन्हें “मोनोंलिथिक” (एक ही पत्थर से काटकर बनाए गए) मंदिर कहा जाता है।
5. कैलाशनाथ मंदिर (कांचीपुरम)
- इसे नरसिंहवर्मन द्वितीय (राजसिंह) ने बनवाया था।
- यह द्रविड़ शैली का पहला मंदिर था, जो बाद में चोल और अन्य राजवंशों की स्थापत्य शैली का आधार बना।
6. तिरुवेक्का मंदिर (कांचीपुरम)
- यह विष्णु मंदिर है, जिसे पल्लवों ने बनवाया था।
- यह मंदिर विशेष रूप से वैष्णव संतों द्वारा पूजनीय है।
7. इरावतनश्वर मंदिर (कांचीपुरम)
- यह भी पल्लवों की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।
5. पल्लव वंश का पतन
9वीं शताब्दी के अंत तक, पल्लव वंश कमजोर हो गया। चोल शासक आदित्य प्रथम ने अंतिम पल्लव शासक अपराजितवर्मन को हराकर पल्लव शासन समाप्त कर दिया। इसके बाद चोल वंश दक्षिण भारत की प्रमुख शक्ति बन गया।
पल्लव वंश दक्षिण भारत की संस्कृति, वास्तुकला और प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला राजवंश था। इनकी द्रविड़ शैली की मंदिर वास्तुकला ने बाद के चोल, पांड्य और विजयनगर शासकों को प्रभावित किया। कांचीपुरम और महाबलीपुरम के मंदिर और मूर्तिकला आज भी भारतीय धरोहर का हिस्सा हैं और पल्लवों की महानता को दर्शाते हैं।