भारत की जलवायु

भारत की जलवायु

भारत की जलवायु को “मानसूनी जलवायु” (Monsoon Climate) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु के अंतर्गत आती है। भारत की जलवायु विविधतापूर्ण है और इसमें कई कारक योगदान करते हैं।


1. भारत की जलवायु के प्रकार

भारत में मुख्यतः पाँच प्रकार की जलवायु पाई जाती है:

  1. उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Tropical Humid Climate)
    • भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (Tropical Humid Climate in India)
      भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु मुख्य रूप से पश्चिमी तट (Konkan, Malabar), पूर्वोत्तर भारत और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है। इस जलवायु में पूरे साल अधिक तापमान, आर्द्रता और भारी वर्षा होती है।

      1. भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु के प्रमुख क्षेत्र
      भारत में यह जलवायु मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में पाई जाती है:
      पश्चिमी तट (Western Coast):
      केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र का तटीय भाग
      यहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण अधिक वर्षा होती है।
      पूर्वोत्तर भारत (Northeast India):
      असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर
      यहाँ बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाओं के कारण भारी बारिश होती है।
      मेघालय का मासिनराम (Mawsynram) विश्व का सबसे वर्षा वाला स्थान है।
      अंडमान और निकोबार द्वीप समूह:
      यहाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावन (Tropical Rainforest) पाए जाते हैं।
      यह क्षेत्र पूरे साल गर्म और नम बना रहता है।

      2. प्रमुख विशेषताएँ
      उच्च तापमान:
      पूरे वर्ष औसत तापमान 25°C से 30°C के बीच रहता है।
      ठंड का प्रभाव नगण्य होता है।
      भारी वर्षा:
      वार्षिक वर्षा 1500 मिमी से 7000 मिमी तक हो सकती है।
      मेघालय का मासिनराम 11,000 मिमी से अधिक वर्षा प्राप्त करता है।
      अधिक आर्द्रता (Humidity):
      पूरे वर्ष आर्द्रता 70% से 90% बनी रहती है।
      तटीय क्षेत्रों में उमस (Humidity) अधिक रहती है।
      सघन वनस्पति और जैव विविधता:
      इस जलवायु में घने उष्णकटिबंधीय वर्षावन (Tropical Rainforest) पाए जाते हैं।
      यहाँ साल, महोगनी, आबनूस, रबर और अन्य सदाबहार वृक्ष होते हैं।
      जैव विविधता अत्यधिक होती है।

      3. उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु बनने के कारण
      भूमध्य रेखा के पास स्थिति: भारत का दक्षिणी भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है, जिससे यह क्षेत्र गर्म रहता है।
      मानसूनी हवाएँ: दक्षिण-पश्चिम मानसून बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से भारी नमी लाकर इस क्षेत्र में वर्षा कराता है।
      आई.टी.सी.जेड (ITCZ – Intertropical Convergence Zone): इस क्षेत्र में हवाओं का टकराव होता है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश होती है।
      समुद्री प्रभाव: समुद्र के पास होने के कारण हवा में नमी अधिक रहती है, जिससे वर्षा और आर्द्रता बनी रहती है।

      4. इस जलवायु का प्रभाव
      कृषि: यहाँ धान, गन्ना, नारियल, सुपारी, मसाले (इलायची, काली मिर्च), और रबर की खेती होती है।
      वनस्पति और जीव: यहाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावन होते हैं, जिनमें बाघ, हाथी, गैंडा, और कई प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं।
      मानव जीवन: लोग हल्के, सूती कपड़े पहनते हैं और घर हवादार बनाए जाते हैं।

      5. निष्कर्ष
      भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु मुख्य रूप से पश्चिमी तटीय क्षेत्रों, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है। इस जलवायु में उच्च तापमान, अधिक आर्द्रता, और भारी वर्षा होती है, जिससे यहाँ घने वर्षावन और जैव विविधता विकसित होती है।
  2. उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु (Tropical Dry Climate)
    • भारत में उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु (Tropical Dry Climate in India)
      परिभाषा:
      उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु वह जलवायु है जहाँ तापमान अधिक होता है, लेकिन वर्षा बहुत कम होती है। इस क्षेत्र में गर्मी तीव्र होती है और वर्ष के अधिकांश समय शुष्क परिस्थितियाँ बनी रहती हैं।

      1. भारत में उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु के क्षेत्र
      भारत में यह जलवायु मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में पाई जाती है:
      थार मरुस्थल (राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भाग)
      सबसे शुष्क क्षेत्र, जहाँ वार्षिक वर्षा 150 मिमी से 500 मिमी तक होती है।
      गर्मी में तापमान 50°C तक पहुँच सकता है और सर्दियों में बहुत ठंड होती है।
      मध्य भारत (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा के कुछ हिस्से)
      यहाँ औसत वर्षा 500 से 1000 मिमी तक होती है।
      गर्मी अधिक रहती है और सर्दी सामान्य होती है।
      दक्कन का पठार (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना के कुछ हिस्से)
      कम वर्षा, अधिक गर्मी और शुष्क हवाएँ चलती हैं।
      यहाँ वर्षा 600 से 800 मिमी तक होती है।

      2. प्रमुख विशेषताएँ
      उच्च तापमान:
      गर्मी में तापमान 40°C – 50°C तक पहुँच सकता है।
      सर्दी में तापमान 10°C – 20°C तक गिर सकता है।
      कम वर्षा:
      वार्षिक वर्षा 150 मिमी से 1000 मिमी तक हो सकती है।
      राजस्थान में सबसे कम वर्षा होती है।
      शुष्क और गर्म हवाएँ (लू):
      गर्मियों में उत्तर भारत में लू (Heat Waves) चलती हैं, जिससे तापमान और बढ़ जाता है।
      वनस्पति:
      यहाँ कँटीले पौधे, बबूल, खेजड़ी, खजूर, सूखा-सहिष्णु घास पाई जाती है।
      घने जंगल नहीं होते।
      जल संसाधन की कमी:
      जल स्रोत बहुत कम होते हैं।
      कुएँ, तालाब और कृत्रिम जल स्रोतों पर निर्भरता अधिक होती है।

      3. उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु बनने के कारण
      भूगोलिक स्थिति:
      यह क्षेत्र अरब सागर से दूर होते हैं, जिससे मानसून की नमी यहाँ तक नहीं पहुँच पाती।
      पर्वतों का प्रभाव:
      अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान में वर्षा लाने वाली हवाओं को नहीं रोक पाती, जिससे यहाँ शुष्क जलवायु बनी रहती है।
      कम नमी:
      उच्च तापमान और कम वर्षा के कारण नमी बहुत जल्दी उड़ जाती है, जिससे वातावरण शुष्क रहता है।
      पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) का सीमित प्रभाव:
      सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ से हल्की बारिश होती है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत कम होता है।

      4. इस जलवायु का प्रभाव
      कृषि: कम वर्षा के कारण बाजरा, ज्वार, मूंगफली, ग्वार, और दालों की खेती होती है।
      वनस्पति और जीव: शुष्क जलवायु में बबूल, खेजड़ी, और रेत में रहने वाले जानवर (गिरगिट, साँप, ऊँट) पाए जाते हैं।
      मानव जीवन: लोग मिट्टी के घर, पतले सूती कपड़े और पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों (बावड़ी, टांका) का उपयोग करते हैं।

      5. निष्कर्ष
      भारत में उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्कन के पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस जलवायु में कम वर्षा, उच्च तापमान और शुष्क हवाएँ चलती हैं, जिससे यह क्षेत्र कृषि और जल आपूर्ति के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाता है।
  3. उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु (Tropical Monsoon Climate)
    • उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु (Tropical Monsoon Climate)
      परिभाषा:
      उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वह जलवायु है जहाँ गर्मी और नमी के साथ मौसमी हवाओं (मानसून) के कारण वर्षा होती है। यह जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती है, और भारत इसका प्रमुख उदाहरण है।

      1. भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु के क्षेत्र
      भारत में यह जलवायु लगभग पूरे देश में पाई जाती है, लेकिन सबसे अधिक प्रभावी रूप से यह पश्चिमी तट, पूर्वोत्तर भारत और गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी क्षेत्रों में देखी जाती है।
      पश्चिमी तटीय क्षेत्र:
      केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र
      यहाँ सबसे अधिक वर्षा होती है, खासकर पश्चिमी घाट के कारण।
      पूर्वोत्तर भारत:
      असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम
      यहाँ बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएँ भारी वर्षा कराती हैं।
      गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान:
      उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड
      यहाँ मानसून के समय अच्छी बारिश होती है, लेकिन कभी-कभी सूखा भी पड़ता है।
      दक्कन का पठार:
      महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु
      यहाँ बारिश होती है, लेकिन पश्चिमी घाट के कारण कुछ हिस्से वर्षा की छाया (Rain Shadow) में होते हैं।

      2. प्रमुख विशेषताएँ
      मौसमी हवाएँ (Seasonal Winds):
      गर्मी में दक्षिण-पश्चिम मानसून हवाएँ समुद्र से नमी लाकर भारी वर्षा कराती हैं।
      सर्दी में उत्तर-पूर्वी मानसून हवाएँ शुष्क होती हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों (जैसे तमिलनाडु) में बारिश कराती हैं।
      तीन स्पष्ट मौसम:
      गर्मी (मार्च-जून): तापमान 35°C-45°C तक पहुँच सकता है।
      वर्षा ऋतु (जून-सितंबर): मानसून से वर्षा होती है, तापमान गिरता है।
      सर्दी (अक्टूबर-फरवरी): तापमान 10°C-25°C तक रहता है, वर्षा कम होती है।
      वर्षा वितरण:
      वार्षिक वर्षा 200 मिमी से 2500 मिमी तक होती है।
      मासिनराम (मेघालय) दुनिया का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है (~11,000 मिमी)।
      वनस्पति और कृषि:
      यहाँ उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forest) पाए जाते हैं।
      चावल, गेहूँ, गन्ना, दलहन, चाय, कॉफी जैसी फसलें उगाई जाती हैं।

      3. उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु बनने के कारण
      मानसूनी पवन प्रणाली:
      भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून (South-West Monsoon) अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लाकर वर्षा कराता है।
      आई.टी.सी.जेड (ITCZ – Intertropical Convergence Zone):
      ग्रीष्मकाल में यह भारत के ऊपर खिसकता है, जिससे वर्षा होती है।
      भूमि और समुद्र के तापमान में अंतर:
      गर्मी में भारतीय उपमहाद्वीप का तापमान अधिक हो जाता है और समुद्र से हवाएँ नमी लेकर आती हैं।
      सर्दियों में भूमि ठंडी हो जाती है और मानसूनी हवाएँ उल्टी दिशा में चलने लगती हैं।
      पर्वतों का प्रभाव:
      हिमालय मानसूनी हवाओं को उत्तर की ओर जाने से रोकता है, जिससे भारत में भारी वर्षा होती है।
      पश्चिमी घाट भी तटीय क्षेत्रों में अधिक वर्षा करवाते हैं।

      4. इस जलवायु का प्रभाव
      कृषि: भारत की अर्थव्यवस्था मानसून पर निर्भर करती है, क्योंकि 60% से अधिक खेती वर्षा आधारित है।
      वनस्पति और जीव: यहाँ घने जंगल, जैव विविधता और मानसूनी वनस्पति पाई जाती है।
      जनसंख्या और जीवनशैली: लोग मौसम के अनुसार कृषि, वस्त्र और आवास निर्माण करते हैं।

      5. निष्कर्ष
      भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु व्यापक रूप से फैली हुई है। यह जलवायु मानसूनी हवाओं, आईटीसीजेड, समुद्र और भूमि के तापमान के अंतर, तथा हिमालय और पश्चिमी घाट जैसी भौगोलिक संरचनाओं के कारण विकसित होती है। इसका प्रभाव कृषि, जल संसाधन, वनस्पति, और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ता है, जिससे भारत की पूरी पारिस्थितिकी और समाज प्रभावित होता है।
  4. गर्म समशीतोष्ण जलवायु (Warm Temperate Climate)
    • गर्म समशीतोष्ण जलवायु (Warm Temperate Climate)
      परिभाषा:
      गर्म समशीतोष्ण जलवायु वह जलवायु होती है, जिसमें गर्मी मध्यम होती है और सर्दी हल्की होती है। यह जलवायु मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में पाई जाती है, जो उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंध (Tropics & Temperate Zones) के बीच स्थित होते हैं।

      1. भारत में गर्म समशीतोष्ण जलवायु के क्षेत्र
      भारत में यह जलवायु मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी और कुछ ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ तापमान अधिक ठंडा नहीं होता लेकिन अत्यधिक गर्म भी नहीं होता।
      हिमालय की निचली पहाड़ियाँ:
      उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश के कुछ भाग
      यहाँ सर्दियों में हल्की ठंड होती है और गर्मियाँ सुहावनी होती हैं।
      उत्तर-पूर्वी भारत के कुछ ऊँचाई वाले क्षेत्र:
      नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम के पहाड़ी क्षेत्र
      यहाँ नमी अधिक होती है और वर्षा भी अच्छी होती है।
      दक्कन के ऊँचाई वाले क्षेत्र:
      महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु के कुछ पहाड़ी क्षेत्र
      जैसे महाबलेश्वर, ऊटी, कुर्ग, कोडैकनाल, मुन्नार आदि।

      2. प्रमुख विशेषताएँ
      मध्यम तापमान:
      गर्मियों में तापमान 15°C – 30°C के बीच रहता है।
      सर्दियों में तापमान 5°C – 15°C तक हो सकता है।
      औसत वर्षा:
      वार्षिक वर्षा 800 से 2000 मिमी तक होती है।
      मानसून के कारण बारिश अधिक होती है।
      वनस्पति:
      इस जलवायु में समशीतोष्ण सदाबहार वन (Temperate Evergreen Forest) पाए जाते हैं।
      देवदार, चीड़, ओक, शंकुधारी वृक्ष और चाय के बागान पाए जाते हैं।
      जनजीवन और कृषि:
      यहाँ सेब, चाय, कॉफी, आलू और मसालों की खेती होती है।
      लोग पतले ऊनी और सूती कपड़े पहनते हैं।

      3. गर्म समशीतोष्ण जलवायु बनने के कारण
      ऊँचाई (Altitude):
      पहाड़ी क्षेत्रों में समुद्र तल से ऊँचाई अधिक होने के कारण तापमान मध्यम रहता है।
      मानसूनी प्रभाव:
      गर्मियों में मानसून हवाएँ नमी लाती हैं, जिससे यहाँ अच्छी वर्षा होती है।
      हिमालय का प्रभाव:
      हिमालय ठंडी हवाओं को उत्तर से आने से रोकता है, जिससे तापमान बहुत कम नहीं गिरता।

      4. इस जलवायु का प्रभाव
      पर्यटन: मनाली, नैनीताल, दार्जिलिंग, शिलांग, ऊटी जैसे हिल स्टेशन लोकप्रिय हैं।
      वनस्पति और जीव: यहाँ समशीतोष्ण वनस्पति और हिमालयी जीव-जंतु पाए जाते हैं।
      कृषि: चाय, कॉफी, सेब, मसाले, और औषधीय पौधों की खेती होती है।

      5. निष्कर्ष
      भारत में गर्म समशीतोष्ण जलवायु मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी, उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी घाट के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इस जलवायु में मध्यम तापमान, अच्छी वर्षा, घने जंगल, और पहाड़ी कृषि पाई जाती है, जिससे यह क्षेत्र पर्यटन और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण बनता है।
  5. ठंडी या हिमालयी जलवायु (Cold or Mountain Climate)
    • ठंडी या हिमालयी जलवायु (Cold or Mountain Climate)
      परिभाषा:
      ठंडी या हिमालयी जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ ऊँचाई अधिक होती है और तापमान अधिकांश समय ठंडा रहता है। भारत में यह जलवायु मुख्य रूप से हिमालय और अन्य ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

      1. भारत में ठंडी या हिमालयी जलवायु के क्षेत्र
      यह जलवायु मुख्य रूप से हिमालय और उसके आसपास के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में देखी जाती है।
      जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड:
      यहाँ सालभर ठंड रहती है और बर्फबारी होती है।
      जैसे श्रीनगर, लेह-लद्दाख, गुलमर्ग, मनाली, औली आदि।
      सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के ऊँचाई वाले क्षेत्र:
      जैसे तवांग, गंगटोक, लाचुंग आदि।
      यहाँ तापमान अक्सर शून्य से नीचे चला जाता है।
      हिमालय के अन्य उच्च पर्वतीय क्षेत्र:
      जहाँ ऊँचाई 2500 मीटर से अधिक होती है, वहाँ सालभर ठंड बनी रहती है।

      2. प्रमुख विशेषताएँ
      अत्यधिक ठंडा तापमान:
      गर्मियों में भी तापमान 0°C – 15°C तक ही रहता है।
      सर्दियों में तापमान -20°C या उससे नीचे चला जाता है।
      बर्फबारी और कम वर्षा:
      इस क्षेत्र में बर्फबारी अधिक होती है और बारिश बहुत कम होती है।
      लद्दाख और ऊँचे हिमालयी क्षेत्र शुष्क होते हैं क्योंकि मानसूनी हवाएँ यहाँ तक नहीं पहुँच पातीं।
      कम वायुदाब और ऑक्सीजन:
      अधिक ऊँचाई के कारण वायुदाब कम होता है और ऑक्सीजन की मात्रा भी घट जाती है।
      वनस्पति और जीव:
      यहाँ टुंड्रा और अल्पाइन वनस्पति पाई जाती है।
      देवदार, चीड़, भोजपत्र, और कुछ ऊँचाई पर घास और झाड़ियाँ मिलती हैं।
      बर्फीले तेंदुए, भेड़िए, तिब्बती याक और कस्तूरी मृग यहाँ पाए जाते हैं।
      जनजीवन:
      आबादी कम होती है, क्योंकि ठंड और कठिन परिस्थितियों के कारण रहना मुश्किल होता है।
      घर पत्थर और लकड़ी से बने होते हैं।
      तिब्बती संस्कृति का प्रभाव अधिक होता है।

      3. ठंडी या हिमालयी जलवायु बनने के कारण
      अधिक ऊँचाई (Altitude Effect):
    • समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर तापमान कम हो जाता है।
      हर 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान लगभग 1°C गिरता है
      हिमालय का प्रभाव:
      यह क्षेत्र उच्च पर्वतीय क्षेत्र में आता है, जिससे तापमान सालभर कम रहता है।
      मानसूनी हवाओं की सीमित पहुँच:
      मानसूनी हवाएँ अधिक ऊँचाई पर नहीं पहुँच पातीं, जिससे यहाँ बारिश बहुत कम होती है।
      बर्फबारी और ग्लेशियर:
      ऊँचाई बढ़ने के कारण यहाँ ग्लेशियर होते हैं, जो जल स्रोत का काम करते हैं।

      4. इस जलवायु का प्रभाव
      पर्यटन: मनाली, औली, गुलमर्ग, लेह-लद्दाख, और सिक्किम में बर्फबारी के कारण पर्यटन बहुत प्रसिद्ध है।
      कृषि: सेब, बादाम, अखरोट, और तिब्बती जौ (बार्ली) जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
      वनस्पति और जीव: यहाँ विशेष रूप से ठंडे स्थानों में पाई जाने वाली वनस्पति और जीव-जंतु मिलते हैं।
      जल स्रोत: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ (गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र) पूरे भारत के लिए जल स्रोत हैं।

      5. निष्कर्ष
      भारत में ठंडी या हिमालयी जलवायु मुख्य रूप से हिमालय, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इस जलवायु में अत्यधिक ठंड, बर्फबारी, कम ऑक्सीजन, और विशेष प्रकार की वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र भारत की जलवायु, नदियों, पर्यटन और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं।

2. भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

  1. अक्षांश द्वारा भारत की जलवायु पर प्रभाव
    अक्षांश (Latitude) किसी स्थान की उत्तर या दक्षिण दिशा में भूमध्य रेखा (Equator) से दूरी को दर्शाता है। यह भारत की जलवायु को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, क्योंकि सूर्य का ताप और दिन-रात की अवधि अक्षांश के अनुसार बदलती है।

    1. भारत की भौगोलिक स्थिति और अक्षांशीय विस्तार
    भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर अक्षांश के बीच स्थित है।
    यह उष्णकटिबंधीय (Tropical) और समशीतोष्ण (Temperate) क्षेत्र में आता है।
    कर्क रेखा (Tropic of Cancer – 23°30′ उत्तर) भारत के मध्य से होकर गुजरती है, जो इसके उत्तरी और दक्षिणी भागों की जलवायु को अलग करती है।

    2. अक्षांश का जलवायु पर प्रभाव
    (i) सूर्य के तापमान और ऊष्मा वितरण पर प्रभाव
    भूमध्य रेखा के पास (दक्षिण भारत, 8°-23° उत्तर):
    अधिक गर्मी रहती है क्योंकि सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं।
    यहाँ उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है।
    जैसे केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश।
    कर्क रेखा के आसपास (मध्य भारत, 23°-30° उत्तर):
    गर्मी अधिक होती है, लेकिन सर्दियाँ भी पड़ती हैं।
    यहाँ गर्म समशीतोष्ण जलवायु देखी जाती है।
    जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़।
    उत्तरी क्षेत्र (30°-37° उत्तर, हिमालयी क्षेत्र):
    सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं, जिससे ठंडा मौसम रहता है।
    यहाँ हिमालयी या पर्वतीय जलवायु पाई जाती है।
    जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड।

    (ii) मौसमी बदलाव और दिन-रात की अवधि पर प्रभाव
    दक्षिण भारत:
    यहाँ दिन-रात की अवधि में कम अंतर होता है।
    सालभर गर्मी बनी रहती है।
    उत्तर भारत:
    यहाँ सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं।
    गर्मियों में दिन बड़े होते हैं, जिससे अधिक गर्मी पड़ती है।

    (iii) मानसून और वर्षा पर प्रभाव
    दक्षिण भारत (उष्णकटिबंधीय क्षेत्र):
    यहाँ वर्षा अधिक होती है, खासकर पश्चिमी तट और पूर्वोत्तर भारत में।
    मानसून का असर लंबा रहता है।
    उत्तर भारत (समशीतोष्ण क्षेत्र):
    यहाँ मानसून की अवधि कम होती है।
    सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के कारण बारिश और बर्फबारी होती है।

    3. निष्कर्ष
    भारत की जलवायु को अक्षांश सीधे प्रभावित करता है।
    दक्षिण भारत गर्म और आर्द्र है (उष्णकटिबंधीय जलवायु)।
    मध्य भारत में गर्मी और सर्दी दोनों होती हैं (गर्म समशीतोष्ण जलवायु)।
    उत्तर भारत और हिमालय ठंडे हैं (ठंडी या पर्वतीय जलवायु)।
    इसके कारण भारत में विविध जलवायु पाई जाती है, जिससे कृषि, वनस्पति, जनजीवन और मौसम में अंतर देखने को मिलता है।
  2. समुद्र तल से ऊँचाई के कारण भारत की जलवायु पर प्रभाव
    समुद्र तल से ऊँचाई (Altitude) किसी स्थान की जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। जैसे-जैसे हम समुद्र तल से ऊँचाई पर जाते हैं, वातावरण का दबाव, तापमान, आर्द्रता, और ऑक्सीजन की मात्रा में बदलाव आता है। यह भारत की जलवायु में विभिन्न प्रकार की भिन्नताएँ उत्पन्न करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो पहाड़ी या पर्वतीय होते हैं।

    1. ऊँचाई और तापमान पर प्रभाव
    समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर तापमान घटता है
    सामान्यतः हर 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान लगभग 1°C गिरता है
    हिमालयी और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में, जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है, तापमान बहुत कम हो जाता है।
    उदाहरण:
    मनाली (हिमाचल प्रदेश) और औली (उत्तराखंड) जैसे पहाड़ी क्षेत्र जहाँ ऊँचाई अधिक होती है, वहाँ सर्दियाँ बहुत ठंडी होती हैं और गर्मियों में भी तापमान बहुत कम रहता है।
    लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्र जहाँ समुद्र तल से ऊँचाई 3000 मीटर से ऊपर है, यहाँ तापमान कभी-कभी -20°C तक गिर सकता है।

    2. वर्षा पर प्रभाव
    समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर वायुवेग (Air Pressure) कम होता है, जिससे जलवाष्प का संघनन (Condensation) कम होता है।
    इस कारण पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, खासकर उन जगहों पर जहाँ समुद्र तल से ऊँचाई बहुत अधिक होती है।
    हालांकि, कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में ओरोग्राफिक वर्षा (Orographic Rainfall) होती है, जहाँ हवा पहाड़ों से टकराकर वाष्प छोड़ देती है और बारिश होती है।
    उदाहरण:
    हिमालय के दक्षिणी ढलान पर अच्छी वर्षा होती है, क्योंकि यहाँ मानसूनी हवाएँ ज्यादा नमी लेकर आती हैं।
    वहीं लेह-लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के ऊँचे इलाकों में वर्षा बहुत कम होती है, क्योंकि ये क्षेत्र वर्षा-छाया क्षेत्र (Rain Shadow Area) में आते हैं।

    3. आर्द्रता और वायु दबाव पर प्रभाव
    समुद्र तल से ऊँचाई पर जाने से वायुदाब कम हो जाता है, जिससे वातावरण अधिक शुष्क (Dry) हो सकता है
    उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में वायुवेग (Wind Speed) भी बढ़ जाता है, जिससे यहाँ की हवा और अधिक ठंडी और शुष्क हो जाती है।

    4. ऑक्सीजन की कमी और प्रभाव
    जब हम समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर जाते हैं, तो ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है।
    इस कारण पर्वतीय क्षेत्रों में कम ऑक्सीजन के कारण रहने और शारीरिक गतिविधियों में कठिनाई हो सकती है।
    ऊँचाई पर रहने वाले लोग, जैसे लेह-लद्दाख के निवासी, अनुकूलित होते हैं और अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं महसूस करते।

    5. हिमालयी और पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु के प्रभाव
    हिमालय और दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु काफी भिन्न होती है।
    यहाँ हिमालयी जलवायु पाई जाती है, जिसमें सर्दियाँ बहुत ठंडी और बर्फबारी होती है, जबकि गर्मी में मौसम सुखद रहता है।
    पर्वतीय क्षेत्रों में हिमनद (Glaciers) होते हैं, जो जल स्रोतों का मुख्य कारण होते हैं।

    6. निष्कर्ष
    समुद्र तल से ऊँचाई के कारण भारत की जलवायु में कई प्रमुख बदलाव होते हैं:
    तापमान घटता है।
    वर्षा में भिन्नता आती है (ओरोग्राफिक वर्षा और वर्षा-छाया प्रभाव)।
    आर्द्रता और वायुदाब में बदलाव होता है।
    ऑक्सीजन की कमी और उच्चतम ऊँचाई पर शारीरिक गतिविधियों में कठिनाई होती है।
    इस प्रकार, भारत के पर्वतीय क्षेत्रों और हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु अत्यधिक ठंडी, शुष्क, और विशेष होती है, जो समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर और भी बदलती जाती है।
  3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के कारण भारतीय जलवायु में परिवर्तन
    1. पश्चिमी विक्षोभ क्या है?
    पश्चिमी विक्षोभ एक तूफानी प्रणाली (Storm System) है, जो भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) और अटलांटिक महासागर से उत्पन्न होती है और पश्चिमी हवाओं (Westerlies) के साथ भारत की ओर बढ़ती है।
    यह मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम भारत, उत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान वर्षा और हिमपात लाता है।

    2. भारतीय जलवायु पर पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव
    (i) उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों की वर्षा
    पश्चिमी विक्षोभ दिसंबर से मार्च के बीच पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हल्की से मध्यम वर्षा लाता है।
    यह वर्षा “मावठ” (Mavath) कहलाती है, जो रबी की फसलों (गेहूँ, जौ, सरसों) के लिए लाभदायक होती है।
    (ii) हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात
    जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी हिमपात होता है।
    यह हिमपात ग्लेशियरों और नदियों के जलस्तर को बनाए रखने में मदद करता है, जो गंगा, यमुना और सिंधु जैसी नदियों के प्रवाह को प्रभावित करता है।
    (iii) तापमान में गिरावट
    पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तर भारत में तापमान अचानक गिर जाता है
    सर्दियों के मौसम में यह कोल्ड वेव (Cold Wave) और शीत लहर का कारण बनता है।
    (iv) चक्रवात और ओलावृष्टि
    कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से चक्रवाती तूफान और ओलावृष्टि हो सकती है, जिससे फसलों को नुकसान पहुँचता है।
    खासकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में तेज बारिश और ओले गिरने से फसलें खराब हो सकती हैं।
    (v) मानसून और ग्रीष्मकालीन जलवायु पर प्रभाव
    अगर पश्चिमी विक्षोभ देर तक सक्रिय रहता है, तो यह भारत में ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में देरी कर सकता है।
    यह मानसूनी हवाओं के आगमन और उनकी तीव्रता को भी प्रभावित कर सकता है।

    3. निष्कर्ष
    पश्चिमी विक्षोभ भारतीय जलवायु में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है
    यह सर्दियों में वर्षा और हिमपात का मुख्य कारण होता है।
    यह रबी की फसलों के लिए फायदेमंद, लेकिन ओलावृष्टि और तूफानों के कारण कभी-कभी नुकसानदायक भी हो सकता है।
    यह उत्तर भारत के तापमान और नदी जल प्रणाली को बनाए रखने में मदद करता है
    इसलिए, भारतीय जलवायु में पश्चिमी विक्षोभ का महत्वपूर्ण स्थान है।
  4. तटीय क्षेत्रों में समुद्र के कारण जलवायु में परिवर्तन
    भारत के तटीय क्षेत्र, जो अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से घिरे हैं, वहाँ की जलवायु मुख्य रूप से समुद्र की निकटता के कारण प्रभावित होती है। समुद्र का प्रभाव इन क्षेत्रों में तापमान, आर्द्रता, वायु प्रवाह और वर्षा को नियंत्रित करता है।

    1. भारतीय जलवायु पर तटीय प्रभाव
    (i) तापमान में स्थिरता (Moderate Climate)
    समुद्र में जल ऊष्मा धारिता (Heat Capacity) अधिक होती है, जिससे यह तापमान को धीरे-धीरे ग्रहण और त्याग करता है।
    तटीय क्षेत्रों में गर्मी और सर्दी में बहुत अधिक अंतर नहीं होता
    जैसे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और गोवा में मौसम पूरे साल समशीतोष्ण रहता है
    (ii) आर्द्रता (Humidity) अधिक होती है
    समुद्र से लगातार वाष्पीकरण के कारण तटीय क्षेत्रों में वायुमंडल में नमी अधिक रहती है
    जैसे कोच्चि और चेन्नई जैसे शहरों में वर्ष भर आर्द्रता 70-90% तक बनी रहती है।
    (iii) मानसून और वर्षा पर प्रभाव
    समुद्र से आने वाली नम हवाएँ दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी मानसून को प्रभावित करती हैं
    पश्चिमी तट (केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा) को दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारी वर्षा मिलती है।
    पूर्वी तट (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल) में वर्षा मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी मानसून से होती है।
    (iv) समुद्री तूफानों (Cyclones) का खतरा
    बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अक्टूबर-नवंबर और मई-जून में चक्रवात (Cyclones) बनने की संभावना अधिक होती है।
    ये तूफान तटीय राज्यों (ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र) को प्रभावित करते हैं और भारी बारिश, बाढ़ और तेज़ हवाएँ लाते हैं।
    (v) समुद्री और स्थलीय पवन (Land and Sea Breezes)
    दिन में समुद्र से भूमि की ओर ठंडी हवाएँ (Sea Breeze) चलती हैं, जिससे दिन का तापमान नियंत्रित रहता है।
    रात में भूमि से समुद्र की ओर हवा (Land Breeze) चलती है, जिससे रात्रि का तापमान भी अधिक नहीं गिरता।
    इस प्रक्रिया के कारण तटीय क्षेत्रों में मौसम सुहावना रहता है और अत्यधिक गर्मी या ठंड नहीं पड़ती

    2. निष्कर्ष
    तटीय क्षेत्रों में समुद्र का प्रभाव जलवायु को स्थिर बनाए रखता है
    यहाँ तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता
    आर्द्रता अधिक होती है, जिससे उमस महसूस होती है।
    मानसून और वर्षा समुद्र से आने वाली हवाओं से प्रभावित होते हैं।
    चक्रवात और समुद्री हवाएँ तटीय जलवायु को नियंत्रित करती हैं।
    इसलिए, तटीय क्षेत्रों की जलवायु को “समुद्री जलवायु (Maritime Climate)” कहा जाता है, जो मुख्य भूमि की जलवायु से अलग होती है।
  5. मानसून के कारण भारत की जलवायु में परिवर्तन
    भारत की जलवायु मुख्य रूप से मानसूनी पवन प्रणाली पर निर्भर करती है। मानसून शब्द अरबी भाषा के “मौसिम” (Mausim) से लिया गया है, जिसका अर्थ “ऋतु” या “मौसम” होता है। भारत में मानसून के कारण तापमान, आर्द्रता, वायुदाब और वर्षा में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं।

    1. मानसून के प्रकार और उनका प्रभाव
    (i) दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) – जून से सितंबर
    जून में, जब ग्रीष्मकालीन तापमान अधिक हो जाता है, तब भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में निम्न वायुदाब (Low Pressure) बनता है।
    हिंद महासागर से आने वाली नमी युक्त दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाएँ भारत के अधिकांश भागों में भारी वर्षा लाती हैं।
    भारत की कुल वार्षिक वर्षा का 70-80% हिस्सा इसी मानसून से प्राप्त होता है
    पश्चिमी घाट, असम, मेघालय और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक बारिश होती है।
    प्रभाव:
    भारत की कृषि पर निर्भरता: चावल, दालें, गन्ना और कपास जैसी फसलें मानसून पर निर्भर करती हैं।
    बाढ़ और भूस्खलन: असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में मानसून के कारण भारी बाढ़ आती है।
    शुष्क क्षेत्रों में राहत: राजस्थान और पश्चिमी भारत के शुष्क इलाकों में कुछ नमी प्रदान करता है।

    (ii) उत्तर-पूर्वी मानसून (Northeast Monsoon) – अक्टूबर से दिसंबर
    यह हवाएँ सर्दियों में भारत के उत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर चलती हैं और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में बारिश कराती हैं।
    इसे “शीतकालीन मानसून” भी कहते हैं।
    प्रभाव:
    तमिलनाडु और दक्षिणी आंध्र प्रदेश में मुख्य वर्षा का स्रोत
    उत्तरी भारत में सर्दी का आरंभ।
    भारत के अधिकांश भागों में शुष्क मौसम की शुरुआत।

    2. मानसून के कारण भारत की जलवायु में परिवर्तन
    (i) तापमान में परिवर्तन
    मानसून के दौरान, भारत के अधिकांश भागों में तापमान गिर जाता है, क्योंकि नमी युक्त हवाएँ ठंडक लाती हैं।
    मानसून के आगमन से पहले मई-जून में उत्तर भारत में लू (Heat Wave) चलती है, लेकिन बारिश के बाद गर्मी कम हो जाती है।
    (ii) वर्षा वितरण में असमानता
    मानसून की बारिश पूरे भारत में समान रूप से नहीं होती।
    पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होती है।
    राजस्थान, गुजरात और लद्दाख में बहुत कम वर्षा होती है।
    (iii) भारतीय कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव
    भारत की 60% कृषि मानसून पर निर्भर करती है, खासकर खरीफ फसलें (जैसे धान, गन्ना, मूँगफली, ज्वार, बाजरा)।
    मानसून कमजोर होने पर सूखा पड़ता है (जैसे 2009 का सूखा), जिससे खाद्य उत्पादन और जल आपूर्ति प्रभावित होती है।
    मानसूनी जल से नदियाँ, जलाशय और भूजल भंडार रिचार्ज होते हैं, जो पूरे वर्ष जल आपूर्ति में सहायक होते हैं।
    (iv) चक्रवात और बाढ़
    मानसून के दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवात बनने की संभावना बढ़ जाती है
    मानसूनी बारिश से असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और केरल में हर साल बाढ़ आती है
    (v) मानसून की वापसी (Retreating Monsoon) और ठंड का आगमन
    सितंबर-अक्टूबर में मानसून की वापसी होती है, जिससे उत्तर भारत में सर्दियों की शुरुआत होती है।
    इस दौरान तमिलनाडु और दक्षिण भारत में वर्षा होती है, जबकि उत्तर और मध्य भारत में शुष्क मौसम शुरू हो जाता है।

    3. निष्कर्ष
    मानसून भारतीय जलवायु का सबसे महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह वर्षा, तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करता है।
    यह भारतीय कृषि, जल संसाधनों, बाढ़ और सूखे को सीधे प्रभावित करता है।
    भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था मानसून पर अत्यधिक निर्भर है
    इसलिए, मानसून भारतीय जलवायु और जनजीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है

3. भारत की ऋतुएँ (Seasons of India)

  1. ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) – मार्च से जून
    • अधिकतम तापमान: 45°C तक
    • लू (गर्म हवाएँ) चलती हैं, विशेषकर उत्तरी भारत में।
  2. वर्षा ऋतु (Monsoon Season) – जून से सितंबर
    • मानसूनी हवाओं के कारण वर्षा होती है।
    • सबसे अधिक वर्षा चेरापूंजी और मासिनराम (मेघालय) में होती है।
  3. शरद ऋतु (Post-Monsoon Season) – अक्टूबर से नवंबर
    • मानसून की वापसी होती है, विशेष रूप से दक्षिण भारत में वर्षा होती है।
  4. शीत ऋतु (Winter Season) – दिसंबर से फरवरी
    • न्यूनतम तापमान: 0°C तक गिर सकता है (हिमालयी क्षेत्र में)।
    • उत्तर-पश्चिमी भारत में ठंडी हवाएँ चलती हैं।

4. भारत की प्रमुख मानसूनी हवाएँ

  1. दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) – जून से सितंबर
    • अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर भारत में भारी वर्षा करता है।
    • अधिकतम वर्षा पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, और गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानों में होती है।
  2. उत्तर-पूर्व मानसून (Northeast Monsoon) – अक्टूबर से दिसंबर
    • बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में वर्षा करता है।

5. भारत में वर्षा वितरण

  1. अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र – मासिनराम, चेरापूंजी (400-1000 सेमी)
  2. मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र – उत्तर भारत, पश्चिमी तटीय क्षेत्र (100-300 सेमी)
  3. कम वर्षा वाले क्षेत्र – राजस्थान, गुजरात, लद्दाख (10-50 सेमी)

6. जलवायु परिवर्तन और भारत

  • बढ़ता तापमान – औसत तापमान बढ़ रहा है, जिससे लू, सूखा, और चक्रवातों की तीव्रता बढ़ रही है।
  • अनियमित वर्षा – मानसून की भविष्यवाणी कठिन हो रही है, जिससे कृषि प्रभावित हो रही है।
  • हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना – गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के जल प्रवाह में बदलाव हो सकता है।

निष्कर्ष

भारत की जलवायु इसकी भौगोलिक स्थिति और विविधतापूर्ण टोपोग्राफी के कारण अत्यधिक विविध है। मानसून भारत के जीवन और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कृषि पर गहरा प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए टिकाऊ विकास और पर्यावरणीय संरक्षण आवश्यक है।

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