छत्रपति शिवाजी महाराज: एक वीर योद्धा की कहानी
“स्वराज्य की स्थापना की गाथा”
साल 1630, शिवनेरी के किले में कोहराम मचा हुआ था। माता जीजाबाई की गोद में एक नन्हा बालक था, जिसने आंखें खोलीं तो मानो मराठा साम्राज्य के भविष्य की नई रोशनी जाग उठी। ये बालक कोई साधारण नहीं था – यह था शिवाजी भोसले, जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
बचपन और वीरता (1630-1645)
शिवाजी का बचपन शिवनेरी किले में बीता। उनकी माँ जीजाबाई ने उन्हें रामायण, महाभारत और मराठा वीरों की कहानियाँ सुनाकर तैयार किया। गुरु दादाजी कोंडदेव ने उन्हें राजनीति और युद्ध-कला में निपुण बनाया। छोटी उम्र में ही वे तलवार और घुड़सवारी में माहिर हो गए थे।
पहला किला और स्वतंत्रता की नींव (1645-1647)
1645 ई. में मात्र 15 साल की उम्र में, शिवाजी ने पहली बार स्वराज्य की नींव रखी। उन्होंने बीजापुर सल्तनत के अधीन तोरणा किले को बिना युद्ध जीता और इसके साथ कई और किलों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उन्होंने राजगढ़ किले को अपनी राजधानी बनाया।
1647 ई. तक शिवाजी ने बीजापुर के खिलाफ विद्रोह कर दिया और कई महत्वपूर्ण किले जीत लिए।
अफजल खान का वध (1659)
बीजापुर के सुल्तान को जब शिवाजी की बढ़ती शक्ति का आभास हुआ, तो उसने अपने सेनापति अफजल खान को भेजा। यह एक विशाल शरीर वाला और क्रूर सेनापति था, जिसने कई मंदिरों को तोड़ा और शिवाजी को हराने के लिए एक चाल चली।
शिवाजी और अफजल खान की मुलाकात 10 नवंबर 1659 को प्रतापगढ़ किले के पास हुई। अफजल खान ने शिवाजी को गले लगाने का नाटक किया और उन्हें धोखे से मारने की कोशिश की। लेकिन शिवाजी पहले से तैयार थे – उन्होंने अपनी बाघनख (लोहे के पंजे) से अफजल खान का पेट फाड़ दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद मराठों ने बीजापुर सेना को पूरी तरह पराजित कर दिया।
मुगलों से संघर्ष और आगरा की कैद (1666)
शिवाजी के पराक्रम से मुगल सम्राट औरंगजेब चिंतित हो गया। उसने अपने सेनापति जय सिंह और दिलेर खान को भेजा।
शिवाजी ने मुगलों से संघर्ष किया लेकिन 1665 में पुरंदर की संधि करनी पड़ी, जिससे उन्हें कई किले मुगलों को सौंपने पड़े।
इसके बाद, 1666 ई. में, शिवाजी को आगरा बुलाया गया, लेकिन वहां उन्हें कैद कर लिया गया।
यहाँ शिवाजी ने चतुराई से खुद को फल और मिठाइयों की टोकरियों में छुपाकर आगरा से भागने में सफलता पाई।
छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक (1674)
10 जून 1674 ई., रायगढ़ में एक ऐतिहासिक दिन था। शिवाजी ने खुद को “छत्रपति” घोषित किया और स्वराज्य की स्थापना की।
उन्होंने अपने प्रशासन को मजबूत किया और अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की, जो आठ मंत्रियों की एक समिति थी।
शिवाजी की मृत्यु (1680)
3 अप्रैल 1680, जब मराठा साम्राज्य पूरे भारत में फैल रहा था, तभी अचानक शिवाजी का देहांत हो गया। उनकी मृत्यु का कारण बुखार और पेट की बीमारी बताया जाता है।
शिवाजी की विशेषताएँ और योगदान
- स्वराज्य की स्थापना: मुगलों और आदिलशाही के विरुद्ध लड़कर स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना की।
- गुरिल्ला युद्ध प्रणाली: दुश्मन को परेशान करके हराने की रणनीति विकसित की।
- नौसेना की स्थापना: समुद्र की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली नौसेना खड़ी की।
- सामरिक दृष्टि से किलों का निर्माण: रायगढ़, प्रतापगढ़, सिंधुदुर्ग जैसे किले बनवाए।
- धार्मिक सहिष्णुता: सभी धर्मों का सम्मान किया और जबरन धर्मांतरण का विरोध किया।
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी महाराज केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक, दूरदर्शी राजा और प्रेरणादायक नेता थे। उनका स्वराज्य का सपना आगे चलकर मराठा साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ। उनकी गाथा आज भी प्रेरणा का स्रोत है और उनकी नीतियाँ युद्ध और प्रशासन में अनुकरणीय मानी जाती हैं।