चेर वंश (Chera Dynasty) की विस्तृत जानकारी
1. चेर वंश की स्थापना
- चेर वंश दक्षिण भारत के तमिल क्षेत्र (केरल और पश्चिमी तमिलनाडु) में शासन करने वाला एक प्राचीन राजवंश था।
- इसकी स्थापना 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी।
- चेर वंश के शासक चरण परंपरा (संगम युग) के समय से लेकर मध्यकाल तक शासन करते रहे।
- चेरों की राजधानी प्रारंभ में वान्जी (Vanji) या करुर (Karur) में थी।
- चेर वंश तीन प्रमुख तमिल राजवंशों में से एक था (चोल, पांड्य और चेर)।
2. चेर वंश के प्रमुख राजा
(A) संगम काल के चेर शासक (300 ईसा पूर्व – 300 ईस्वी)
- उदियन चेरलाथन (Uthiyan Cheralathan) – पहला ऐतिहासिक चेर शासक।
- नेडुंचेरलाथन (Nedunchezhiyan I) – उत्तर भारत के मौर्य शासकों से संबंध स्थापित किया।
- सेनगुट्टुवन (Senguttuvan) – सबसे प्रसिद्ध चेर राजा, जिन्होंने “कन्नगी” को समर्पित मंदिर बनवाया।
- मंथरम चेरल इरुम्पोरई (Mantharam Cheral Irumporai) – चोल और पांड्य से युद्ध किया।
(B) मध्यकालीन चेर शासक (800-1100 ईस्वी)
- कुलशेखर अलवर (Kulasekhara Alwar) – वैष्णव भक्ति संत।
- राजा राम वर्मा कुलशेखर (Rama Varma Kulashekhara) – मलयालम साहित्य का विकास किया।
3. चेर वंश का पतन
- चोल शासकों के आक्रमण और पांड्यों के संघर्ष के कारण चेर वंश का पतन हुआ।
- चोल राजा राजराजा चोल प्रथम (985-1014 ई.) और राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ई.) ने चेर साम्राज्य को कमजोर कर दिया।
- 12वीं शताब्दी के बाद चेर शासकों का प्रभाव कम होने लगा और अंततः वे स्थानीय शक्तियों में बंट गए।
4. चेर वंश के प्रमुख युद्ध
- चेर-चोल युद्ध – चेर और चोल राजाओं के बीच कई युद्ध हुए।
- चेर-पांड्य संघर्ष – पांड्य राजाओं के साथ भी क्षेत्रीय संघर्ष चलता रहा।
- चेर-संगम युद्ध – उत्तर भारतीय शासकों के खिलाफ संघर्ष।
- श्रीलंका आक्रमण – सेनगुट्टुवन ने श्रीलंका पर आक्रमण किया था।
5. चेर वंश के महान शासक और उनकी उपलब्धियाँ
(A) सेनगुट्टुवन (Senguttuvan) (2nd शताब्दी ईस्वी)
- संगम काल का सबसे शक्तिशाली चेर राजा।
- “सिलप्पदिकारम” महाकाव्य में इनका उल्लेख है।
- श्रीलंका और उत्तर भारत के राजाओं से युद्ध किया।
- कन्नगी (Kannagi) के सम्मान में पट्टिनी मंदिर का निर्माण कराया।
(B) कुलशेखर अलवर (Kulasekhara Alvar) (9वीं शताब्दी ईस्वी)
- वैष्णव संत, जिन्होंने भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया।
- “पेरुमाल तिरुमोऴि” (Perumal Tirumozhi) की रचना की।
6. चेर वंश के प्रमुख मंदिर और स्थापत्य कला
- पट्टिनी मंदिर (Kannagi Temple) – सेनगुट्टुवन द्वारा निर्मित।
- थिरुवंजिकुलम मंदिर (Thiruvanchikulam Temple) – भगवान शिव को समर्पित।
- कुम्बाकोणम मंदिर (Kumbakonam Temple) – भक्ति काल में चेरों का योगदान।
- गुरुवायूर मंदिर (Guruvayur Temple) – भगवान विष्णु को समर्पित।
7. प्रसिद्ध स्थल
- करुर (Karur) – चेर वंश की प्रारंभिक राजधानी।
- वान्जी (Vanji) – संगम काल में चेर साम्राज्य का केंद्र।
- मदुरै (Madurai) – तमिल संस्कृति का केंद्र, जहाँ चेर, चोल और पांड्य प्रभाव था।
- त्रिस्सूर (Thrissur) – केरल में चेर संस्कृति का प्रमुख केंद्र।
8. चेर वंश के साहित्य और ग्रंथ
(A) संगम साहित्य (Sangam Literature)
- सिलप्पदिकारम (Silappadikaram) – इलांगो अदिगल द्वारा रचित, कन्नगी की कथा।
- मणिमेखलै (Manimekalai) – बुद्ध धर्म पर आधारित तमिल महाकाव्य।
- पेरुमाल तिरुमोऴि (Perumal Tirumozhi) – कुलशेखर अलवर द्वारा रचित भक्ति ग्रंथ।
(B) अन्य ग्रंथ
- थिरुक्कुरल (Thirukkural) – तिरुवल्लुवर द्वारा रचित नैतिकता पर आधारित ग्रंथ।
- अगनानूरू (Akananuru) – तमिल संगम साहित्य का हिस्सा।
- पुथानानूरू (Purananuru) – चेर राजाओं के वीरता गान को समर्पित।
9. प्रसिद्ध लेखक और विद्वान
- इलांगो अदिगल (Ilango Adigal) – “सिलप्पदिकारम” के लेखक।
- सीतानार (Seethanar) – “मणिमेखलै” के लेखक।
- तिरुवल्लुवर (Thiruvalluvar) – “तिरुक्कुरल” के रचयिता।
- कुलशेखर अलवर (Kulasekhara Alvar) – वैष्णव भक्ति संत और कवि।
10. चेर वंश से जुड़े प्रमुख व्यक्ति
- सेनगुट्टुवन – सबसे प्रसिद्ध चेर शासक, जिन्होंने कन्नगी को समर्पित मंदिर बनवाया।
- कुलशेखर अलवर – भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत।
- इलांगो अदिगल – “सिलप्पदिकारम” के रचयिता।
- तिरुवल्लुवर – नैतिकता और नीति पर आधारित “तिरुक्कुरल” के लेखक।
निष्कर्ष
चेर वंश दक्षिण भारत का एक प्राचीन और शक्तिशाली राजवंश था, जिसने तमिल और मलयालम संस्कृति को समृद्ध किया। संगम साहित्य, भक्ति आंदोलन, और मंदिर निर्माण में चेर राजाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हालाँकि, चोल और पांड्य राजाओं के संघर्षों के कारण चेर वंश का पतन हुआ, लेकिन इसकी सांस्कृतिक विरासत आज भी केरल और तमिलनाडु में जीवित है।