गुर्जर प्रतिहार वंश (8वीं – 11वीं शताब्दी)
गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjara-Pratihara Dynasty) भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था, जिसने 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तरी और पश्चिमी भारत पर शासन किया। इन्हें राजपूत युग का पहला महान साम्राज्य भी माना जाता है।
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार
इसका साम्राज्य वर्तमान राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ था। कन्नौज (वर्तमान उत्तर प्रदेश) इसकी राजधानी थी। यह साम्राज्य उत्तर भारत में अरब आक्रमणों के विरुद्ध एक मजबूत रक्षक रहा।
गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रमुख राजा और उनके युद्ध
1. नागभट्ट प्रथम (730-760 ई.)
- इस वंश के संस्थापक माने जाते हैं।
- युद्ध:
- अरबों के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया और उन्हें पश्चिमी भारत में आगे बढ़ने से रोका।
- राजस्थान और मालवा पर अधिकार किया।
2. वत्सराज (775-800 ई.)
- कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
- युद्ध:
- पाल वंश के शासक धर्मपाल और राष्ट्रकूट शासक ध्रुव के साथ त्रिपक्षीय संघर्ष में शामिल रहे।
- राष्ट्रकूटों से पराजित हुए।
3. नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.)
- प्रतिहार शक्ति को पुनः स्थापित किया।
- युद्ध:
- राष्ट्रकूटों से संघर्ष किया, परंतु हार गए।
- पाल वंश से भी टकराव हुआ, लेकिन अंततः कन्नौज पर अधिकार बना लिया।
4. मिहिरभोज (836-885 ई.) (प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक)
- प्रतिहार साम्राज्य का स्वर्णकाल इन्हीं के शासन में आया।
- युद्ध:
- पाल शासक देवपाल और राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय से लड़े।
- अरब आक्रमणकारियों को पश्चिमी भारत में बढ़ने से रोका।
- स्वयं को आदिवराह (भगवान विष्णु का अवतार) घोषित किया।
5. महेंद्रपाल प्रथम (885-910 ई.)
- अपने पिता मिहिरभोज के बाद सत्ता संभाली।
- बंगाल और असम तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
6. राजपाल और विजयपाल (10वीं – 11वीं शताब्दी)
- प्रतिहार शक्ति धीरे-धीरे कमजोर होने लगी।
- युद्ध:
- राष्ट्रकूट, चोल और चालुक्य शासकों से संघर्ष किया।
- अंततः 1036 ई. में चंदेल शासकों ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया और प्रतिहार वंश का पतन हो गया।
गुर्जर प्रतिहार काल में स्थापत्य और मंदिर निर्माण
गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में कई भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें से कुछ आज भी प्रसिद्ध हैं:
- ओसियन मंदिर (राजस्थान) – यह जैन और ब्राह्मण मंदिरों का प्रमुख केंद्र था।
- खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश) – इसका निर्माण चंदेलों ने आगे किया, लेकिन प्रारंभिक नींव प्रतिहारों द्वारा रखी गई थी।
- बूंदी और ग्वालियर के किले – सैन्य वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण।
- कन्नौज और ग्वालियर के शिव और विष्णु मंदिर – यह प्रतिहारों की धार्मिक नीति को दर्शाते हैं।
प्रतिहार स्थापत्य में नागर शैली की झलक मिलती है, जिसमें गुंबद, विशाल द्वार और ऊँची दीवारें मुख्य विशेषताएँ थीं।
गुर्जर प्रतिहार काल में साहित्य और संस्कृति
1. संस्कृत साहित्य का उत्कर्ष
- महेंद्रपाल के शासनकाल में संस्कृत साहित्य को काफी बढ़ावा मिला।
- इस समय के प्रमुख कवि थे:
- राजशेखर – उन्होंने “काव्यमीमांसा”, “बालरामायण”, और “कर्पूरमंजरी” जैसी रचनाएँ लिखीं।
- अन्य संस्कृत ग्रंथों में गूढ़ार्थदीपिका और प्राकृतपैंगलम् भी लिखे गए।
2. कला और शिक्षा
- कन्नौज और उज्जैन में शिक्षा केंद्र विकसित हुए।
- मंदिरों की दीवारों पर शिलालेख और मूर्तिकला की परंपरा मजबूत हुई।
गुर्जर प्रतिहार काल के प्रमुख स्थल
- कन्नौज (उत्तर प्रदेश) – राजधानी और राजनीतिक केंद्र।
- ग्वालियर (मध्य प्रदेश) – सैन्य केंद्र और प्रतिहार स्थापत्य कला का उदाहरण।
- ओसियां (राजस्थान) – जैन और हिंदू मंदिरों का प्रमुख स्थल।
- भीनमाल (राजस्थान) – जहाँ पर संस्कृत साहित्य का बड़ा विकास हुआ।
प्रतिहार वंश के प्रमुख व्यक्तित्व
- मिहिरभोज – सबसे शक्तिशाली प्रतिहार शासक।
- राजशेखर – महान संस्कृत कवि और नाटककार।
- वत्सराज – त्रिपक्षीय संघर्ष में शामिल प्रतिहार शासक।
- नागभट्ट द्वितीय – जिसने कन्नौज को पुनः प्राप्त किया।
गुर्जर प्रतिहारों का पतन क्यों हुआ?
- राष्ट्रकूटों के लगातार आक्रमण – दक्षिण भारत की शक्ति राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों को कमजोर कर दिया।
- आंतरिक विद्रोह और कमजोर शासक – बाद के शासक प्रभावशाली नहीं थे।
- चंदेल, परमार और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों का उदय – छोटे राज्यों ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।
- महमूद गजनी का आक्रमण (1018 ई.) – गजनी ने कन्नौज पर हमला किया, जिससे प्रतिहार साम्राज्य और कमजोर हो गया।
निष्कर्ष
गुर्जर प्रतिहार वंश भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वंश न केवल अरब आक्रमणों के विरुद्ध एक मजबूत ढाल बना रहा, बल्कि उत्तर भारत में स्थापत्य, साहित्य, और कला के विकास में भी योगदान दिया। इनके शासनकाल में संस्कृत साहित्य और मंदिर निर्माण का स्वर्ण युग था।
प्रतिहारों के पतन के बाद चंदेल, परमार और चालुक्य शासकों ने उनकी जगह ले ली और धीरे-धीरे भारत में नई राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ।