खिज्र खां

खिज्र खां (1414-1421 ई.) का इतिहास

1. सत्ता प्राप्ति और शासन की शुरुआत:

  • खिज्र खां मूल रूप से मुल्तान का गवर्नर था और तैमूर के सेनापति के रूप में दिल्ली सल्तनत पर नजर रखता था।
  • तैमूर ने 1398 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को लूटने के बाद वहाँ कोई स्थायी शासन स्थापित किए बिना लौट गया।
  • तैमूर की मृत्यु के बाद 1414 में खिज्र खां ने सैय्यद वंश की स्थापना की और दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया।

2. युद्ध और साम्राज्य विस्तार:

  • खिज्र खां ने दिल्ली पर कब्जा करने के बाद अपने शासन को मजबूत करने के लिए कई युद्ध लड़े।
  • उसने तैमूर के उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा के नाम पर शासन किया और स्वयं को “दिल्ली का सुल्तान” घोषित नहीं किया, बल्कि “तैमूर का प्रतिनिधि” बताया।
  • उसने मुल्तान, लाहौर, दीपालपुर, और दोआब क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखा।
  • उसने कई बार जौनपुर, मालवा, बंगाल और गुजरात के शासकों के खिलाफ सैन्य अभियान चलाए।

3. साहित्य और पुस्तकें:

  • खिज्र खां के शासनकाल में कोई विशेष साहित्यिक योगदान नहीं हुआ क्योंकि वह अधिकतर युद्धों में व्यस्त रहा।
  • तैमूर के आक्रमण और दिल्ली की लूट के कारण साहित्य और शिक्षा का विकास रुक गया था।
  • उसके शासनकाल में फारसी साहित्य और इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों की प्रतियां बनाई जाती थीं, लेकिन कोई महत्वपूर्ण पुस्तक या ग्रंथ नहीं लिखा गया।

4. स्थापत्य कला और निर्माण कार्य:

  • खिज्र खां के शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण स्थापत्य कला का निर्माण नहीं हुआ।
  • तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली खंडहर बन चुकी थी और वह इसे पुनः संगठित करने में लगा रहा।
  • उसके उत्तराधिकारी मुबारक शाह ने कुछ निर्माण कार्य करवाए, लेकिन खिज्र खां ने स्वयं कोई बड़ा निर्माण नहीं कराया।

5. शासन की विशेषताएँ:

  • खिज्र खां ने धार्मिक सहिष्णुता अपनाई और कट्टरता से बचा।
  • वह तैमूर के नाम पर सिक्के चलाता था और उसका नाम खुतबे में पढ़वाता था।
  • उसने प्रशासनिक सुधार किए और शासकों के बीच फैले असंतोष को शांत करने की कोशिश की।

6. उत्तराधिकारी और अंत:

  • 1421 में खिज्र खां की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
  • खिज्र खां के बाद सैय्यद वंश की शक्ति कमजोर होती गई और अंततः 1451 में लोदी वंश ने सत्ता पर कब्जा कर लिया।

निष्कर्ष:

खिज्र खां ने दिल्ली सल्तनत पर नियंत्रण कर तैमूर के उत्तराधिकारी के रूप में शासन किया, लेकिन उसने कोई बड़ी स्थापत्य कला या साहित्यिक कार्य नहीं किए। उसका शासनकाल अधिकतर सैन्य अभियानों और दिल्ली की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में बीता।

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