ईस्ट इंडिया कंपनी

ईस्ट इंडिया कंपनी (1600-1858) से जुड़ी विस्तृत जानकारी – MPPSC परीक्षा के लिए उपयोगी तथ्य

1. स्थापना और उद्देश्य:

  • स्थापना: 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम ने चार्टर जारी कर कंपनी को व्यापार करने की अनुमति दी।
    • चार्टर एक्ट: संक्षिप्त जानकारी
    • चार्टर एक्ट वे कानून थे, जिनके माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारों, व्यापार, और प्रशासन को नियंत्रित किया।
    • चार्टर एक्ट, 1793 – ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ाया गया।
    • चार्टर एक्ट, 1813 – भारतीय व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार समाप्त, लेकिन चीन और चाय व्यापार पर नियंत्रण बरकरार।
    • चार्टर एक्ट, 1833 – कंपनी का वाणिज्यिक कार्य समाप्त, भारत का पहला गवर्नर-जनरल (विलियम बेंटिक) नियुक्त।
    • चार्टर एक्ट, 1853 – ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंतिम चार्टर, भारतीय प्रशासन में प्रतियोगी परीक्षा से भर्ती की व्यवस्था की गई।
    • ये एक्ट भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार और प्रशासनिक ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण थे।
  • प्रारंभिक उद्देश्य: भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार करना, विशेष रूप से मसालों, रेशम, चाय, और सूती वस्त्रों का व्यापार।
  • मुख्यालय: इंग्लैंड के लंदन में स्थित था।

2. भारत में प्रवेश और प्रारंभिक व्यापार:

  • 1608: कंपनी का पहला जहाज हेक्टर सूरत पहुँचा।
  • 1613: मुगल बादशाह जहांगीर से सूरत में पहली फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति मिली।
    • 1608 ई. में, अंग्रेज व्यापारी कैप्टन विलियम हॉकिन्स पहली बार जहांगीर के दरबार में पहुँचा। उसने मुगल सम्राट से व्यापार करने की अनुमति माँगी, लेकिन दरबारियों के विरोध और पुर्तगालियों की साज़िशों के कारण उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद अंग्रेजों ने दक्षिण भारत में अपने व्यापारिक आधार को मजबूत करने के लिए 1611 ई. में मसूलपट्टनम में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की।
    • हालांकि, अंग्रेजों की असली सफलता तब मिली जब 1615 ई. में सर थॉमस रो को जहांगीर के दरबार में एक राजनयिक के रूप में भेजा गया। उसने मुगल सम्राट से व्यापारिक रियायतें प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक बातचीत की। इसके परिणामस्वरूप, 1613 ई. में जहांगीर ने अंग्रेजों को सूरत में पहली व्यापारिक फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति दी
  • 1615: सर थॉमस रो ने जहांगीर से कई व्यापारिक विशेषाधिकार प्राप्त किए।
  • 1639: मद्रास में सेंट जॉर्ज किला बनाकर कंपनी ने दक्षिण भारत में व्यापार का विस्तार किया। सेंट जॉर्ज किला भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित पहला किला था, जिसे 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास (अब चेन्नई) में बनवाया था। यह किला ब्रिटिश प्रशासन और सैन्य गतिविधियों का मुख्य केंद्र बना, जिससे मद्रास प्रेसीडेंसी की नींव पड़ी। किले के भीतर चर्च, प्रशासनिक भवन और सैन्य बैरक बनाए गए, जो अंग्रेजों की रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करने में सहायक रहे। वर्तमान में, यह तमिलनाडु सरकार के सचिवालय और विधानसभा भवन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • 1668: बॉम्बे को पुर्तगाल से प्राप्त करके एक बड़ा व्यापारिक केंद्र बनाया।
  • 1690: जॉब चार्नॉक ने कलकत्ता (अब कोलकाता) की स्थापना की।

3. सैन्य और राजनीतिक प्रभुत्व:

  • 1757: प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अधिकार कर लिया।प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ा गया था। रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कंपनी की सेना ने मीर जाफर की गद्दारी के कारण नवाब को हरा दिया। इस युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत कर ली और भारत में ब्रिटिश शासन की नींव रखी।
  • 1764: बक्सर के युद्ध में बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया।बक्सर का युद्ध (1764) बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और भारत के तीन शक्तिशाली शासकों—बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय—के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने निर्णायक जीत हासिल की। इस युद्ध के बाद बंगाल, बिहार और ओडिशा पर अंग्रेजों का नियंत्रण और मजबूत हो गया। 1765 में इलाहाबाद संधि के तहत मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने कंपनी को बंगाल, बिहार और ओडिशा की दीवानी सौंप दी, जिससे भारत में ब्रिटिश शासन की नींव और अधिक मजबूत हो गई।
  • 1765: मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अधिकार (राजस्व वसूली) प्राप्त किए।
  • 1773: रेगुलेटिंग एक्ट पास हुआ, जिससे कंपनी के प्रशासन को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाया गया। रेगुलेटिंग एक्ट 1773 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित रेगुलेटिंग एक्ट 1773 ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक और आर्थिक कुप्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए लाया गया पहला महत्वपूर्ण कानून था। इस अधिनियम के तहत गवर्नर ऑफ बंगाल को गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल का दर्जा दिया गया, और वारेन हेस्टिंग्स इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले व्यक्ति बने। इसके अलावा, कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की स्थापना की गई, जिससे कंपनी के प्रशासनिक कार्यों पर नियंत्रण बढ़ाया गया। यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में कंपनी के शासन को विनियमित करने का पहला प्रयास था, जिसने आगे चलकर पिट्स इंडिया एक्ट 1784 और अन्य सुधारों की नींव रखी।
  • 1784: पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा कंपनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण और बढ़ा।पिट्स इंडिया एक्ट 1784 पिट्स इंडिया एक्ट 1784 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण अधिनियम था, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन को सीधे ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाने की कोशिश की। इस अधिनियम के तहत, कंपनी के प्रशासन और व्यापारिक कार्यों को अलग कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने बोर्ड ऑफ कंट्रोल (Board of Control) की स्थापना की, जो कंपनी के प्रशासनिक मामलों की निगरानी करता था, जबकि कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (Court of Directors) कंपनी के व्यापारिक मामलों का संचालन करता था। इस अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के ऊपर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण बढ़ाया और इसे ब्रिटिश क्राउन के अधीन एक प्रशासनिक संस्था बना दिया। यह अधिनियम भारत में द्वैध शासन (Dual System of Governance) की शुरुआत मानी जाती है, जिससे कंपनी ब्रिटिश सरकार के निर्देशों के तहत कार्य करने लगी।

4. प्रमुख युद्ध और सैन्य अभियानों में भूमिका:

  • आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1799): टीपू सुल्तान और हैदर अली के खिलाफ चार युद्ध लड़े और 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में टीपू सुल्तान की हार हुई।
    • आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1799): एक कहानी
    • 18वीं शताब्दी का भारत सत्ता के संघर्षों से गुजर रहा था। दक्षिण में एक शक्तिशाली राज्य था—मैसूर, जिसके शासक हैदर अली और बाद में उनके पुत्र टीपू सुल्तान ने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से अंग्रेजों के सामने कड़ी चुनौती पेश की। लेकिन अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएँ बड़ी थीं, और उन्होंने मैसूर को अपने अधीन करने के लिए चार भीषण युद्ध लड़े।
    • पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769)
    • अंग्रेजों ने मराठों और निज़ाम के साथ मिलकर मैसूर के शासक हैदर अली के खिलाफ युद्ध छेड़ा। लेकिन हैदर अली की रणनीति और गुरिल्ला युद्ध नीति ने अंग्रेजों को चौंका दिया। अंततः 1769 में मद्रास की संधि के तहत यह युद्ध समाप्त हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों को लौटाने का समझौता किया।
    • दूसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784)
    • कुछ ही वर्षों बाद, अंग्रेजों ने फिर से मैसूर पर आक्रमण किया। इस बार हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को कई जगह मात दी। हैदर अली की असामयिक मृत्यु के बाद, टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा। अंततः मंगलौर की संधि (1784) के तहत यह युद्ध समाप्त हुआ और दोनों पक्षों ने पहले की स्थिति स्वीकार कर ली।
    • तीसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-1792)
    • अब अंग्रेजों ने मराठों और निज़ाम के साथ मिलकर टीपू सुल्तान पर हमला किया। टीपू ने बहादुरी से संघर्ष किया लेकिन आखिरकार 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई, जिसमें टीपू को अपने आधे से अधिक राज्य को अंग्रेजों, मराठों और निज़ाम के बीच बांटना पड़ा।
    • चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)
    • 1799 में, अंग्रेजों ने लॉर्ड वेलेस्ली के नेतृत्व में टीपू सुल्तान के खिलाफ अंतिम युद्ध छेड़ा। इस बार अंग्रेजों की सेना अत्यधिक संगठित और शक्तिशाली थी। भीषण लड़ाई के बाद, 4 मई 1799 को श्रीरंगपट्टनम के किले पर हमला हुआ, और टीपू सुल्तान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इसके साथ ही, मैसूर पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया और यह राज्य अंग्रेजों के हाथों चला गया।
    • युद्ध की विरासत
    • आंग्ल-मैसूर युद्धों ने यह साबित कर दिया कि भारत के स्थानीय शासक अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट नहीं थे, जिससे अंग्रेजों को विजय मिली। टीपू सुल्तान की वीरता और उनके प्रयासों को आज भी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
  • आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1818): तीन युद्धों में मराठा शक्ति को समाप्त कर दिया।
    • आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1818): एक कहानी
      18वीं शताब्दी के अंत तक भारत में अंग्रेजों की पकड़ मजबूत होने लगी थी। बंगाल, बिहार, अवध, और दक्षिण भारत के कई हिस्सों पर उन्होंने अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। लेकिन एक शक्ति अब भी उनके रास्ते में खड़ी थी—मराठा साम्राज्य। मराठों की शक्ति और उनके योद्धाओं की बहादुरी अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। इस संघर्ष ने तीन बड़े युद्धों को जन्म दिया, जिन्हें आंग्ल-मराठा युद्ध के रूप में जाना जाता है।

      पहला आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782)
      1772 में पेशवा माधवराव की मृत्यु के बाद मराठों में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। उनके भाई नारायणराव की हत्या कर दी गई, और रघुनाथराव (राघोबा) ने पेशवा बनने की कोशिश की। लेकिन मराठा सरदारों ने उन्हें अस्वीकार कर दिया। निराश राघोबा ने अंग्रेजों से मदद मांगी और 1775 में अंग्रेजों ने मराठों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया
      मराठों ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी। 1782 में सल्बाई की संधि हुई, जिसमें तय हुआ कि अंग्रेज राघोबा का समर्थन छोड़ देंगे और मराठा अपने क्षेत्र बरकरार रखेंगे। यह अंग्रेजों के लिए एक झटका था, क्योंकि वे मराठों को पूरी तरह से पराजित नहीं कर सके थे।

      दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805)
      मराठा साम्राज्य की कमजोरी तब बढ़ गई जब उनके शक्तिशाली सरदार—सिंधिया, भोंसले, होल्कर और गायकवाड़—आपस में लड़ने लगे। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए लॉर्ड वेलेस्ली ने मराठों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
      1803 में, अंग्रेजों ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। मराठा सेनाओं ने वीरता से संघर्ष किया, लेकिन अंग्रेजों की संगठित सेना और आधुनिक हथियारों के आगे टिक नहीं सके। धीरे-धीरे सिंधिया और भोंसले अंग्रेजों के सामने झुक गए और उन्होंने सहायक संधियाँ (Subsidiary Alliances) स्वीकार कर लीं। केवल यशवंतराव होल्कर ने अंग्रेजों का कड़ा विरोध किया, लेकिन उन्हें भी अंततः समझौता करना पड़ा।

      तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818)
      मराठा शक्ति अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई थी। बाजीराव द्वितीय (पेशवा) ने अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश की, लेकिन 1817 में किरकी की लड़ाई में उनकी हार हुई। इसी दौरान, अंग्रेजों ने नागपुर और इंदौर पर भी कब्जा कर लिया
      1818 तक, मराठा साम्राज्य पूरी तरह से समाप्त हो गया और अंग्रेजों का भारत पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया। बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों ने बिठूर (कानपुर) भेज दिया और मराठों की स्वतंत्रता हमेशा के लिए समाप्त हो गई।

      युद्ध की विरासत
      आंग्ल-मराठा युद्धों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के शासकों में एकता की कमी थी। मराठा अगर संगठित होते, तो शायद अंग्रेजों को हराया जा सकता था। लेकिन आपसी झगड़ों और सत्ता संघर्ष ने मराठों को कमजोर कर दिया। इस युद्ध के बाद, भारत पर अंग्रेजों का आधिपत्य लगभग सुनिश्चित हो गया, और 1857 के विद्रोह तक कोई बड़ी चुनौती उनके सामने नहीं आई
      यह युद्ध सिर्फ तलवारों और तोपों की लड़ाई नहीं था, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता के लिए मराठों की अंतिम लड़ाई थी।
  • आंग्ल-सिख युद्ध (1845-1849): दो युद्धों के बाद 1849 में पंजाब पर नियंत्रण कर लिया।
    • आंग्ल-सिख युद्ध (1845-1849): एक वीरता की कहानी
    • 19वीं शताब्दी के मध्य तक भारत के सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक था सिख साम्राज्य, जिसकी नींव महाराजा रणजीत सिंह ने रखी थी। पंजाब में उनकी सत्ता थी, और उनकी सेना आधुनिक हथियारों से सुसज्जित थी। रणजीत सिंह की दूरदर्शिता के कारण अंग्रेजों और सिखों के बीच कोई टकराव नहीं हुआ, लेकिन 1839 में उनकी मृत्यु के बाद स्थिति बदल गई।
    • रणजीत सिंह के बाद पंजाब में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। दरबार में षड्यंत्र, गद्दारी और आपसी लड़ाइयों ने सिख साम्राज्य को कमजोर कर दिया। अंग्रेज इस स्थिति पर नजर रखे हुए थे और सही समय की प्रतीक्षा कर रहे थे।
    • पहला आंग्ल-सिख युद्ध (1845-1846): संघर्ष की शुरुआत
    • 1845 में, अंग्रेजों ने सिखों को उकसाने के लिए सतलुज नदी के पास सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी। सिख सेना, जिसे “खालसा सेना” कहा जाता था, ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
    • प्रमुख युद्ध:
    • मुद्की की लड़ाई (18 दिसंबर 1845) – इस युद्ध में अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी, लेकिन वे विजयी रहे।
    • फिरोजशाह की लड़ाई (21-22 दिसंबर 1845) – यह युद्ध सबसे भयंकर था। सिखों ने जबरदस्त प्रतिरोध किया, लेकिन अंग्रेजों की रणनीति और बेहतर तोपखाने के कारण वे हार गए।
    • अलीवाल की लड़ाई (28 जनवरी 1846) – अंग्रेजों को यहाँ बड़ी सफलता मिली, जिससे उनकी पकड़ मजबूत हो गई।
    • सबराओं की लड़ाई (10 फरवरी 1846) – यह निर्णायक युद्ध था, जिसमें अंग्रेजों ने सिखों को पूरी तरह परास्त कर दिया।
    • लाहौर संधि (1846): सिखों की पहली हार
    • सिखों को मजबूर होकर लाहौर संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े। इसके तहत:
    • पंजाब पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया।
    • कश्मीर को अंग्रेजों ने गुलाब सिंह को बेच दिया।
    • सिख सेना को सीमित कर दिया गया।
    • दूसरा आंग्ल-सिख युद्ध (1848-1849): सिखों की अंतिम लड़ाई
    • हालाँकि पहला युद्ध हारने के बाद भी सिखों में स्वाभिमान बचा था। जब मुल्तान के गवर्नर दिवान मूलराज ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया, तो फिर से युद्ध भड़क उठा।
    • मुख्य युद्ध:
    • रामनगर की लड़ाई (22 नवंबर 1848) – सिखों ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी।
    • चिलियांवाला की लड़ाई (13 जनवरी 1849) – यह युद्ध अंग्रेजों के लिए कठिन साबित हुआ।
    • गुजरात की लड़ाई (21 फरवरी 1849) – यह निर्णायक युद्ध था, जिसमें अंग्रेजों ने पूरी तरह से सिखों को पराजित कर दिया।
    • लाहौर पर कब्जा और सिख साम्राज्य का अंत (1849)
    • गुजरात की जीत के बाद लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। महाराजा दलीप सिंह को अंग्रेजों के अधीन कर दिया गया, और सिख साम्राज्य समाप्त हो गया।
    • वीरता की विरासत
    • आंग्ल-सिख युद्धों ने दिखाया कि सिखों की बहादुरी और संघर्षशीलता अद्वितीय थी। वे अंतिम क्षण तक लड़े, लेकिन उनके आंतरिक मतभेदों और अंग्रेजों की कूटनीति के कारण वे पराजित हो गए। हालाँकि अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया, लेकिन सिखों की वीरता को वे भी सलाम करने पर मजबूर हो गए।
    • इस युद्ध ने भारत के इतिहास में सिखों को एक अजेय योद्धा कौम के रूप में स्थापित कर दिया।

5. शासन सुधार और प्रशासन:

  • 1793: परमानेंट सेटलमेंट लागू कर जमींदारी प्रथा की शुरुआत की।
    • परमानेंट सेटलमेंट नीति (1793): ब्रिटिश शासन की स्थायी भू-राजस्व प्रणाली
    • ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने और प्रशासनिक स्थिरता लाने के लिए विभिन्न नीतियों को लागू किया। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नीति थी परमानेंट सेटलमेंट, जिसे 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में लागू किया। इस नीति का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के लिए एक निश्चित और स्थायी राजस्व प्रणाली स्थापित करना था।
    • परमानेंट सेटलमेंट नीति की पृष्ठभूमि
    • प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के युद्धों के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व संग्रहण का अधिकार) प्राप्त कर ली थी। लेकिन, शुरुआत में कंपनी को कर संग्रहण में कई समस्याएँ आईं, क्योंकि स्थानीय किसानों और ज़मींदारों के बीच कराधान की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी। 1770 में आए भीषण अकाल के कारण भी राजस्व वसूली प्रभावित हुई। इन समस्याओं को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) की नीति बनाई।
    • स्थायी भू-राजस्व दर: इस नीति के तहत ज़मींदारों को उनकी भूमि का स्थायी स्वामी घोषित कर दिया गया और उनसे एक निश्चित कर निर्धारित कर लिया गया, जिसे उन्हें ब्रिटिश सरकार को देना था। यह कर स्थायी रूप से तय किया गया, यानी इसे भविष्य में बदला नहीं जा सकता था।
    • ज़मींदारों की भूमिका: ज़मींदारों को कर वसूली की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिससे वे राजस्व ठेकेदार बन गए। उन्हें सरकार को तयशुदा कर देना होता था, चाहे फसल अच्छी हो या खराब। यदि वे समय पर कर नहीं चुकाते, तो उनकी ज़मीनें नीलाम कर दी जाती थीं।
    • किसानों पर प्रभाव: इस नीति ने किसानों की स्थिति को और खराब कर दिया, क्योंकि ज़मींदारों ने उनसे मनमाना कर वसूला। वे अधिक से अधिक कर वसूलने के लिए किसानों का शोषण करने लगे, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती गई।
    • ब्रिटिश सरकार को लाभ: इस नीति से ब्रिटिश सरकार को निश्चित और स्थायी राजस्व प्राप्त हुआ, जिससे प्रशासन को आर्थिक स्थिरता मिली।
    • कृषि पर नकारात्मक प्रभाव: चूँकि कर की दर स्थायी थी, ज़मींदारों को भूमि सुधार और कृषि विकास में कोई रुचि नहीं थी। इससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई।
    • किसानों का शोषण: किसानों पर भारी कर बोझ डाल दिया गया, जिससे वे कर्जदार हो गए और कई जगहों पर स्थायी कृषक अशांति देखने को मिली।
    • ब्रिटिश सरकार को स्थिर आय: ब्रिटिश सरकार को निश्चित कर प्राप्त होने लगा, जिससे उसका प्रशासनिक ढाँचा मजबूत हुआ।
    • ज़मींदारी प्रथा का विस्तार: यह नीति बंगाल, बिहार और उड़ीसा में लागू की गई थी, लेकिन बाद में इसे उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में भी अपनाया गया। इससे ज़मींदारी व्यवस्था को बढ़ावा मिला
    • परमानेंट सेटलमेंट नीति ब्रिटिश शासन द्वारा अपनाई गई एक महत्वपूर्ण आर्थिक नीति थी, जिसने भारतीय समाज की संरचना को गहराई से प्रभावित किया। यह नीति ज़मींदारों के हितों को संरक्षित करती थी, लेकिन किसानों के लिए यह एक शोषणकारी व्यवस्था साबित हुई। इसने भारतीय कृषि व्यवस्था को कमजोर किया और भविष्य में कई किसान आंदोलनों और विद्रोहों को जन्म दिया।
  • 1813: चार्टर एक्ट के तहत भारतीय व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार समाप्त किया गया।
  • 1833: कंपनी को केवल प्रशासन तक सीमित कर दिया गया, व्यापारिक गतिविधियाँ समाप्त कर दी गईं।
  • 1853: अंतिम चार्टर एक्ट पास हुआ और पहली बार भारतीयों को प्रशासन में शामिल करने की बात हुई।

6. 1857 का विद्रोह और कंपनी का अंत:

  • 1857: भारतीय सिपाहियों और जनता ने कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया।
  • 1858: गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार ने कंपनी का शासन समाप्त कर दिया और भारत को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर लिया।

7. प्रमुख प्रशासनिक सुधार और कानून:

  • भारतीय प्रशासन का आधुनिकीकरण: कलेक्टर प्रणाली लागू की, पुलिस और सेना को संगठित किया।
  • न्याय प्रणाली: सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774), रेगुलेटिंग एक्ट (1773), पिट्स इंडिया एक्ट (1784)।
  • शिक्षा सुधार: 1835 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा नीति लागू की।

8. प्रमुख गवर्नर-जनरल और वायसराय:

  • वॉरेन हेस्टिंग्स (1773-1785): पहला गवर्नर-जनरल, न्यायिक सुधार किए।
    • पहला गवर्नर-जनरल: वॉरेन हेस्टिंग्स (1772-1785) भारत के पहले गवर्नर-जनरल थे।
    • राजस्व सुधार: उसने दिवानी व्यवस्था को पुनर्गठित किया और बंगाल में राजस्व संग्रह प्रणाली को बेहतर बनाया।
    • न्यायिक सुधार: उसने 1772 में अदालतों का पुनर्गठन किया और फौजदारी एवं दीवानी अदालतें स्थापित कीं।
    • रेगुलेटिंग एक्ट 1773: वॉरेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में ब्रिटिश सरकार ने रेगुलेटिंग एक्ट 1773 लागू किया, जिससे कंपनी पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा।
    • इलाहाबाद की संधि (1765): हेस्टिंग्स के समय अंग्रेजों ने शाह आलम द्वितीय के साथ संधि की और बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त की।
    • रोहिला युद्ध (1774): उसने नवाब शुजाउद्दौला की मदद से रोहिलखंड पर आक्रमण कर उसे ब्रिटिश नियंत्रण में लिया।
    • मराठों से संघर्ष: उसने पहले आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) के दौरान पेशवाओं और सिंधियाओं से संघर्ष किया।
    • मैसूर युद्ध: वॉरेन हेस्टिंग्स के समय पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769) और दूसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784) हुआ।
    • हैदर अली से युद्ध: उसने मैसूर के शासक हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान से संघर्ष किया।
    • पटना में मदरसा: उसने 1781 में पटना में एक मुस्लिम मदरसा की स्थापना की।
    • एशियाटिक सोसायटी: उसने 1784 में सर विलियम जोन्स के साथ मिलकर एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना की।
    • भारतीय भाषाओं को बढ़ावा: उसने संस्कृत और फारसी अध्ययन को बढ़ावा दिया और ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ का अंग्रेजी अनुवाद करवाया।
    • महाभारत और वेदों का अध्ययन: उसने संस्कृत ग्रंथों जैसे महाभारत और वेदों के अनुवाद में सहायता की।
    • बोर्ड ऑफ कंट्रोल: उसके कार्यकाल में ब्रिटेन ने 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट लागू किया, जिससे ब्रिटिश सरकार का ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण बढ़ा।
    • कोलकाता में सुप्रीम कोर्ट: 1774 में कोलकाता में भारत का पहला सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया गया।
    • बनारस संधि (1775): उसने बनारस के राजा चैत सिंह से भारी कर वसूलने का प्रयास किया, जिससे विरोध हुआ।
    • निजाम से गठबंधन: उसने हैदराबाद के निजाम से मित्रता कर मराठों के खिलाफ अंग्रेजों की स्थिति मजबूत की।
    • इमपीचमेंट केस: भारत में अपनी नीतियों के लिए 1785 में इंग्लैंड लौटने के बाद हेस्टिंग्स पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उस पर 1788 से 1795 तक ब्रिटिश संसद में महाभियोग चला, लेकिन वह निर्दोष साबित हुआ।
    • भारत का पहला गवर्नर-जनरल: 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत वॉरेन हेस्टिंग्स भारत का पहला आधिकारिक गवर्नर-जनरल बना।
    • संगीत और साहित्य प्रेमी: हेस्टिंग्स को भारतीय संगीत और साहित्य से गहरा लगाव था और उसने भारतीय कलाओं को भी प्रोत्साहित किया।
    • वॉरेन हेस्टिंग्स ने भारत में ब्रिटिश प्रशासन की नींव मजबूत की और आधुनिक भारत के प्रशासनिक ढांचे की नींव रखी।
  • लॉर्ड वेलेजली (1798-1805): सहायक संधि प्रणाली लागू की।
    • सहायक संधि प्रणाली: उसने भारतीय राज्यों को ब्रिटिश संरक्षण में लाने के लिए सहायक संधि (Subsidiary Alliance) प्रणाली लागू की।
    • टीपू सुल्तान पर विजय: 1799 में चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान को हराकर श्रीरंगपट्टनम पर कब्जा कर लिया।
    • अवध को दबाव में लिया: 1801 में अवध के नवाब से सहायक संधि करवा ली और उसकी सेना भंग कर दी।
    • मराठों से संघर्ष: दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) के दौरान उसने सिंधिया, होल्कर और भोंसले को पराजित किया।
    • दिल्ली पर कब्जा: 1803 में ब्रिटिश सेना ने दिल्ली पर कब्जा कर मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को ब्रिटिश संरक्षण में ले लिया।
    • कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना: 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज स्थापित किया, जिससे प्रशासनिक अधिकारियों को भारतीय भाषाओं की शिक्षा दी गई।
    • भारत में ब्रिटिश शक्ति को बढ़ाया: उसने ब्रिटिश साम्राज्य को भारत में मजबूती दी और ब्रिटेन की सर्वोच्चता स्थापित की।
    • मद्रास और बॉम्बे प्रेसिडेंसी को मजबूत किया: उसने ब्रिटिश सैन्य शक्ति और प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया।
    • निजाम से संधि: 1800 में निजाम को सहायक संधि के तहत लाकर ब्रिटिश सेना को हैदराबाद में स्थायी रूप से स्थापित किया।
    • ब्रिटेन लौटने के बाद राजनीतिक जीवन: 1805 में भारत से लौटने के बाद वह ब्रिटेन में विदेश सचिव बना और ब्रिटिश राजनीति में सक्रिय रहा।
    • भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप: उसकी नीतियों ने भारत में स्थानीय राजाओं की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया और ब्रिटिश प्रभुत्व को बढ़ाया।
    • सैन्य सुधार: उसने ब्रिटिश सेना का आधुनिकीकरण किया और भारतीय राज्यों में ब्रिटिश शक्ति को मजबूत किया।
    • असम और उड़ीसा की रणनीतिक स्थिति को समझा: उसने भविष्य में इन क्षेत्रों पर कब्जे की योजनाएँ बनाई, जिससे ब्रिटिश प्रभाव बढ़ा।
    • सहायक संधि का कड़ा विरोध: मराठा शासकों और अन्य भारतीय राजाओं ने सहायक संधि प्रणाली का विरोध किया, लेकिन अंततः इसे मानने को मजबूर हुए।
    • ब्रिटिश शक्ति का चरम: वेलेजली के शासनकाल में ब्रिटिश साम्राज्य भारत में सबसे शक्तिशाली शक्ति बन गया।
  • लॉर्ड विलियम बेंटिंक (1828-1835): सती प्रथा का अंत किया, अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
    • सती प्रथा का अंत (1829): हिंदू विधवाओं को जीवित जलाने की प्रथा (सती) को गैरकानूनी घोषित किया और इसे रोकने के लिए कड़ा कानून बनाया।
    • ठगी प्रथा का उन्मूलन: भारत में ठगों के गिरोहों को खत्म करने के लिए कठोर अभियान चलाया और इस कुप्रथा को समाप्त किया।
    • अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत: 1835 में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली लागू की और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बनाया।
    • बंगाल में पुलिस सुधार: भारत में पहली बार आधुनिक पुलिस व्यवस्था लागू की, जिससे कानून-व्यवस्था मजबूत हुई।
    • सैन्य और प्रशासनिक खर्चों में कटौती: ब्रिटिश सरकार के खर्च को कम करने के लिए भारतीय सेना और प्रशासन में सुधार किए।
    • भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्ति: उसने भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में भर्ती करने की सिफारिश की, जिससे आगे चलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की नींव पड़ी।
    • बेस्ली रिपोर्ट और शिक्षा नीति: थॉमस मैकाले की सिफारिश पर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया और पारंपरिक भारतीय शिक्षा को कम किया।
    • चार्टर एक्ट 1833: इस एक्ट के तहत गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल को “गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया” बनाया, जिससे भारत में केंद्रीकृत प्रशासन शुरू हुआ।
    • समाज सुधारों में रुचि: उसने भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए, जैसे- जातिगत भेदभाव और महिलाओं की स्थिति सुधारने की कोशिश की।
    • भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता: उसने भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया और प्रेस पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की कोशिश की।
    • पहला भारतीय गवर्नर-जनरल: वह भारत का पहला गवर्नर-जनरल था, जिसने पूरे भारत के प्रशासन का कार्यभार संभाला।
    • सैन्य विद्रोहों को दबाया: उसने भारतीय सैनिकों के बीच असंतोष को शांत किया और ब्रिटिश सेना को मजबूत किया।
    • भारत में औद्योगिकरण को बढ़ावा: ब्रिटिश शासन के तहत भारत में कपड़ा उद्योग और अन्य उद्योगों के विकास की नीति अपनाई।
    • मद्रास और बॉम्बे में सुधार: प्रशासनिक सुधारों को बंगाल के अलावा मद्रास और बॉम्बे में भी लागू किया।
    • भारत में न्यायिक सुधार: उसने भारतीयों को न्याय दिलाने के लिए अदालतों में सुधार किया और ब्रिटिश न्याय प्रणाली को लागू किया।
    • लॉर्ड विलियम बेंटिंक को भारत में सामाजिक सुधारों का जनक माना जाता है, जिसने ब्रिटिश शासन को एक नई दिशा दी और भारतीय समाज में गहरे बदलाव किए।
  • लॉर्ड डलहौजी (1848-1856): हड़प नीति (Doctrine of Lapse) लागू की, रेलवे और टेलीग्राफ सेवा शुरू की।
    • लॉर्ड डलहौजी (1848-1856) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य (वन-लाइन उत्तर)
    • व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse) लागू किया, जिससे कई भारतीय रियासतें ब्रिटिश शासन के अधीन आ गईं।
    • अवध का विलय (1856) किया, जिससे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति असंतोष बढ़ा।
    • रेलवे की शुरुआत (1853) की, पहली रेलगाड़ी मुंबई से ठाणे के बीच चली।
    • डाक और तार सेवा (1854) शुरू की, जिससे संचार व्यवस्था तेज हुई।
    • सार्वजनिक कार्यों को बढ़ावा दिया, भारत में सड़कों, नहरों और पुलों का निर्माण हुआ।
    • 1854 में वुड डिस्पैच लागू किया, जिससे आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई।
    • सैन्य सुधार किए, भारतीय सेना को मजबूत करने के लिए कई नए नियम बनाए।
    • पहली टेलीग्राफ सेवा (1854) शुरू की, कलकत्ता से आगरा तक तार लाइन बिछाई गई।
    • भारत में आधुनिक डाक प्रणाली लागू की, एक समान डाक दर और डाक टिकट की शुरुआत हुई।
    • रोड़की में प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज (1847) की स्थापना की, जिससे तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा मिला।
    • 1853 में सिविल सेवा परीक्षा में भारतीयों को शामिल करने की अनुमति दी, हालांकि उन्हें सीमित अवसर दिए गए।
    • सिंध, पंजाब और बर्मा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया, जिससे भारत में अंग्रेजी शासन का विस्तार हुआ।
    • लोक निर्माण विभाग (PWD) की स्थापना की, जिससे आधारभूत संरचना में सुधार हुआ।
    • 1855 में संथाल विद्रोह हुआ, जिसे ब्रिटिश सेना ने कठोरता से दबा दिया।
    • भारतीय समाज और प्रशासन में पश्चिमीकरण को बढ़ावा दिया, जिससे अंग्रेजी शासन का प्रभाव बढ़ा।
    • लॉर्ड डलहौजी को भारत में आधुनिक परिवहन और संचार व्यवस्था का जनक माना जाता है, लेकिन उसकी नीतियों ने 1857 के विद्रोह के बीज भी बो दिए।

9. आर्थिक और व्यापारिक प्रभाव:

  • भारतीय किसानों को नील और अफीम जैसी नकदी फसलें उगाने के लिए बाध्य किया गया।
  • कर संग्रह प्रणाली के कारण किसान और जमींदार दोनों प्रभावित हुए।
  • ब्रिटिश वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भारतीय हस्तकला उद्योग को बर्बाद किया गया।

MPPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य:

  • रेगुलेटिंग एक्ट, पिट्स इंडिया एक्ट, चार्टर एक्ट पर ध्यान दें।
  • प्रमुख युद्धों (प्लासी, बक्सर, मैसूर, मराठा, सिख) के कारण और परिणाम याद रखें।
  • प्रमुख गवर्नर-जनरल और उनके सुधारों को समझें।
  • कंपनी शासन के अंत और ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत पर सीधा नियंत्रण लेने की प्रक्रिया को समझें।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने भारत में प्रवेश किया और धीरे-धीरे पूरे देश पर शासन स्थापित कर लिया। इसका शासन 1858 तक चला, जब भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन आ गया। कंपनी के शासनकाल में कई युद्ध, प्रशासनिक सुधार, आर्थिक नीतियाँ और सामाजिक बदलाव हुए, जो आधुनिक भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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