इक्ष्वाकु वंश की विस्तृत जानकारी
परिचय:
- इक्ष्वाकु वंश सूर्यवंशी वंश से संबंधित था और इसे आंध्र प्रदेश के प्रारंभिक शासकों में गिना जाता है।
- यह वंश सातवाहन साम्राज्य के पतन के बाद लगभग 225 ईस्वी से 325 ईस्वी तक आंध्र प्रदेश में सत्ता में रहा।
- इनकी राजधानी विजयपुरी (नगरजुनकोंडा) थी।
- इन्होंने बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों का संरक्षण किया, लेकिन महायान बौद्ध धर्म को अधिक प्रोत्साहित किया।
इक्ष्वाकु वंश के प्रमुख शासक और उनकी विशेषताएँ
1. वासीठिपुत्र शान्तमूल (225 – 250 ईस्वी)
- यह इक्ष्वाकु वंश का संस्थापक और पहला राजा था।
- इसने सातवाहनों के पतन के बाद विजयपुरी (नगरजुनकोंडा) को अपनी राजधानी बनाया।
- ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया और अश्वमेध यज्ञ करवाया।
- प्रशासन को मजबूत किया और व्यापार को बढ़ावा दिया।
2. वीरपुरुषदत्त (250 – 275 ईस्वी)
- इक्ष्वाकु वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
- इसने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और कई बौद्ध विहार तथा स्तूपों का निर्माण कराया।
- उसकी माता श्रीमती बौद्ध धर्म की अनुयायी थी और उसने बौद्ध धर्म प्रचार के लिए कई कार्य किए।
- इसने ब्राह्मण धर्म को भी संरक्षण दिया और विभिन्न वैदिक यज्ञ करवाए।
- इसके शासनकाल में नगरजुनकोंडा और अमरावती बौद्ध शिक्षा और कला के बड़े केंद्र बने।
- विदेशी व्यापार बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया, जिससे रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार हुआ।
3. एहवुला संतान (275 – 300 ईस्वी)
- यह वीरपुरुषदत्त का उत्तराधिकारी था।
- नगरजुनकोंडा में स्तूपों और चैत्यगृहों का निर्माण करवाया।
- बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों को समर्थन दिया।
- इसने भी व्यापारिक गतिविधियों को जारी रखा।
- प्रशासनिक ढांचे को बनाए रखा और अपने पूर्वजों की नीति का पालन किया।
4. रुद्रपुरुषदत्त (300 – 325 ईस्वी)
- इक्ष्वाकु वंश का अंतिम प्रभावशाली शासक था।
- इसने भी बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और कई धार्मिक स्थलों का निर्माण कराया।
- इसने अपने शासनकाल में कई युद्ध लड़े लेकिन पश्चिमी क्षत्रपों और पल्लवों से संघर्ष में कमजोर पड़ गया।
- इसके बाद वंश का धीरे-धीरे पतन होने लगा।
इक्ष्वाकु वंश की विशेषताएँ:
1. धर्म और संस्कृति
- इक्ष्वाकु शासकों ने बौद्ध धर्म (विशेष रूप से महायान शाखा) और ब्राह्मण धर्म दोनों को संरक्षण दिया।
- ब्राह्मण धर्म के यज्ञ जैसे अश्वमेध यज्ञ और राजसूय यज्ञ करवाए गए।
- नगरजुनकोंडा और अमरावती बौद्ध शिक्षा और कला के बड़े केंद्र बने।
2. वास्तुकला और कला
- इक्ष्वाकु शासकों ने नगरजुनकोंडा और अमरावती में बौद्ध स्तूप, विहार और चैत्यगृह बनवाए।
- उनके सिक्कों पर बौद्ध प्रतीकों और कुछ ब्राह्मण प्रतीकों का समावेश था।
- उन्होंने विदेशी व्यापार और बंदरगाहों का विकास किया।
3. युद्ध और प्रशासन
- इक्ष्वाकु शासकों ने स्थानीय राजाओं और पश्चिमी क्षत्रपों से युद्ध किए।
- प्रशासनिक व्यवस्था सातवाहन वंश से प्रभावित थी।
- उन्होंने व्यापार मार्गों की सुरक्षा पर ध्यान दिया।
4. पतन के कारण
- 325 ईस्वी के बाद इक्ष्वाकु वंश पल्लवों के हमलों के कारण कमजोर हुआ।
- व्यापार मार्गों पर नियंत्रण खोने से आर्थिक संकट आया।
- प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी के कारण धीरे-धीरे वंश समाप्त हो गया।
महत्व:
- इक्ष्वाकु वंश ने दक्षिण भारत में बौद्ध धर्म और वास्तुकला को बढ़ावा दिया।
- इनके समय में अमरावती और नगरजुनकोंडा सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बने।
- इन्होंने विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया, जिससे दक्षिण भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
इक्ष्वाकु वंश का योगदान मुख्य रूप से धार्मिक संरचनाओं, कला, और दक्षिण भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण रहा।